स्वयं बने गोपाल

उपन्यास – गोदान – 29 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

नोहरी उन औरतों में न थी, जो नेकी करके दरिया में डाल देती हैं। उसने नेकी की है, तो उसका खूब ढिंढोरा पीटेगी और उससे जितना यश मिल सकता है, उससे कुछ ज्यादा ही...

उपन्यास – गोदान – 30 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मिल करीब-करीब पूरी जल चुकी है, लेकिन उसी मिल को फिर से खड़ा करना होगा। मिस्टर खन्ना ने अपनी सारी कोशिशें इसके लिए लगा दी हैं। मजदूरों की हड़ताल जारी है, मगर अब उससे...

उपन्यास – गोदान – 31 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

रायसाहब का सितारा बुलंद था। उनके तीनों मंसूबे पूरे हो गए थे। कन्या की शादी धूम-धाम से हो गई थी, मुकदमा जीत गए थे और निर्वाचन में सफल ही न हुए थे, होम मेंबर...

उपन्यास – गोदान – 32 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मिर्जा खुर्शेद ने अस्पताल से निकल कर एक नया काम शुरू कर दिया था। निश्चिंत बैठना उनके स्वभाव में न था। यह काम क्या था? नगर की वेश्याओं की एक नाटक-मंडली बनाना। अपने अच्छे...

उपन्यास – गोदान – 33 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

डाक्टर मेहता परीक्षक से परीक्षार्थी हो गए हैं। मालती से दूर-दूर रह कर उन्हें ऐसी शंका होने लगी है कि उसे खो न बैठें। कई महीनों से मालती उनके पास न आई थी और...

उपन्यास – गोदान – 34 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सिलिया का बालक अब दो साल का हो रहा था और सारे गाँव में दौड़ लगाता था। अपने साथ वह एक विचित्र भाषा लाया था, और उसी में बोलता था, चाहे कोई समझे या...

उपन्यास – गोदान – 35 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

होरी की दशा दिन-दिन गिरती ही जाती थी। जीवन के संघर्ष में उसे सदैव हार हुई, पर उसने कभी हिम्मत नहीं हारी। प्रत्येक हार जैसे उसे भाग्य से लड़ने की शक्ति दे देती थी,...

उपन्यास – गोदान – 36 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

दो दिन तक गाँव में खूब धूमधाम रही। बाजे बजे, गाना-बजाना हुआ और रूपा रो-धो कर बिदा हो गई, मगर होरी को किसी ने घर से निकलते न देखा। ऐसा छिपा बैठा था, जैसे...

उपन्यास – निर्मला – 1 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

यों तो बाबू उदयभानुलाल के परिवार में बीसों ही प्राणी थे, कोई ममेरा भाई था, कोई फुफेरा, कोई भांजा था, कोई भतीजा, लेकिन यहां हमें उनसे कोई प्रयोजन नहीं, वह अच्छे वकील थे, लक्ष्मी...

उपन्यास – निर्मला – 2 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सेमरी और बेलारी दोनों अवध-प्रांत के गाँव हैं। जिले का नाम बताने की कोई जरूरत नहीं। होरी बेलारी में रहता है, रायसाहब अमरपाल सिंह सेमरी में। दोनों गाँवों में केवल पाँच मील का अंतर...

उपन्यास – निर्मला – 3 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

होरी अपने गाँव के समीप पहुँचा, तो देखा, अभी तक गोबर खेत में ऊख गोड़ रहा है और दोनों लड़कियाँ भी उसके साथ काम कर रही हैं। लू चल रहीं थी, बगुले उठ रहे...

उपन्यास – निर्मला – 4 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

होरी को रात-भर नींद नहीं आई। नीम के पेड़-तले अपने बाँस की खाट पर पड़ा बार-बार तारों की ओर देखता था। गाय के लिए नाँद गाड़नी है। बैलों से अलग उसकी नाँद रहे तो...

उपन्यास – निर्मला – 5 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

उधर गोबर खाना खा कर अहिराने में जा पहुँचा। आज झुनिया से उसकी बहुत-सी बातें हुई थीं। जब वह गाय ले कर चला था, तो झुनिया आधे रास्ते तक उसके साथ आई थी। गोबर...

उपन्यास – निर्मला – 6 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

जेठ की उदास और गर्म संध्या सेमरी की सड़कों और गलियों में, पानी के छिड़काव से शीतल और प्रसन्न हो रही थी। मंडप के चारों तरफ फूलों और पौधों के गमले सजा दिए गए...

उपन्यास – निर्मला – 7 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष-यज्ञ समाप्त हो चुका था और सामाजिक प्रहसन की तैयारी हो रही थी, मगर इन सज्जनों को उससे विशेष दिलचस्पी न थी। केवल मिस्टर मेहता...

उपन्यास – निर्मला – 8 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष-यज्ञ समाप्त हो चुका था और सामाजिक प्रहसन की तैयारी हो रही थी, मगर इन सज्जनों को उससे विशेष दिलचस्पी न थी। केवल मिस्टर मेहता...