स्वयं बने गोपाल

उपन्यास – गोदान – 13 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

गोबर अँधेरे ही मुँह उठा और कोदई से बिदा माँगी। सबको मालूम हो गया था कि उसका ब्याह हो चुका है, इसलिए उससे कोई विवाह-संबंधी चर्चा नहीं की। उसके शील-स्वभाव ने सारे घर को...

उपन्यास – गोदान – 14 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

होरी की फसल सारी की सारी डाँड़ की भेंट हो चुकी थी। वैशाख तो किसी तरह कटा, मगर जेठ लगते-लगते घर में अनाज का एक दाना न रहा। पाँच-पाँच पेट खाने वाले और घर...

उपन्यास – गोदान – 15 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मालती बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हँसी ही हँसी नहीं है, केवल गुड़ खा कर कौन जी सकता है! और जिए भी तो वह कोई सुखी जीवन न होगा।...

उपन्यास – गोदान – 16 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

रायसाहब को खबर मिली कि इलाके में एक वारदात हो गई है और होरी से गाँव के पंचों ने जुरमाना वसूल कर लिया है, तो फोरन नोखेराम को बुला कर जवाब-तलब किया – क्यों...

उपन्यास – गोदान – 17 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

गाँव में खबर फैल गई कि रायसाहब ने पंचों को बुला कर खूब डाँटा और इन लोगों ने जितने रुपए वसूल किए थे, वह सब इनके पेट से निकाल लिए। वह तो इन लोगों...

उपन्यास – गोदान – 18 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

खन्ना और गोविंदी में नहीं पटती। क्यों नहीं पटती, यह बताना कठिन है। ज्योतिष के हिसाब से उनके ग्रहों में कोई विरोध है, हालाँकि विवाह के समय ग्रह और नक्षत्र खूब मिला लिए गए...

उपन्यास – गोदान – 19 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मिर्जा खुर्शेद का हाता क्लब भी है, कचहरी भी, अखाड़ा भी। दिन-भर जमघट लगा रहता है। मुहल्ले में अखाड़े के लिए कहीं जगह नहीं मिलती थी। मिर्जा ने एक छप्पर डलवा कर अखाड़ा बनवा...

उपन्यास – गोदान – 20 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

फागुन अपने झोली में नवजीवन की विभूति ले कर आ पहुँचा था। आम के पेड़ दोनों हाथों से बौर के सुगंध बाँट रहे थे, और कोयल आम की डालियों में छिपी हुई संगीत का...

उपन्यास – गोदान – 21 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

देहातों में साल के छ: महीने किसी न किसी उत्सव में ढोल-मजीरा बजता रहता है। होली के एक महीना पहले से एक महीना बाद तक फाग उड़ती है, असाढ़ लगते ही आल्हा शुरू हो...

उपन्यास – गोदान – 22 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

इधर कुछ दिनों से रायसाहब की कन्या के विवाह की बातचीत हो रही थी। उसके साथ ही एलेक्शन भी सिर पर आ पहुँचा था, मगर इन सबों से आवश्यक उन्हें दीवानी में एक मुकदमा...

उपन्यास – गोदान – 23 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

गोबर और झुनिया के जाने के बाद घर सुनसान रहने लगा । धनिया को बार-बार चुन्नू की याद आती रहती है । बच्चे की माँ तो झुनिया थी, पर उसका पालन धनिया ही करती...

उपन्यास – गोदान – 24 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सोना सत्रहवें साल में थी और इस साल उसका विवाह करना आवश्यक था। होरी तो दो साल से इसी फिक्र में था, पर हाथ खाली होने से कोई काबू न चलता था। मगर इस...

उपन्यास – गोदान – 25 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

भोला इधर दूसरी सगाई लाए थे। औरत के बगैर उनका जीवन नीरस था। जब तक झुनिया थी, उन्हें हुक्का-पानी दे देती थी। समय से खाने को बुला ले जाती थी। अब बेचारे अनाथ-से हो...

उपन्यास – गोदान – 26 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

लाला पटेश्वरी पटवारी-समुदाय के सद्गुणों के साक्षात अवतार थे। वह यह न देख सकते थे कि कोई असामी अपने दूसरे भाई की इंच भर भी जमीन दबा ले। न वह यही देख सकते थे...

उपन्यास – गोदान – 27 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मिस्टर खन्ना को मजूरों की यह हड़ताल बिलकुल बेजा मालूम होती थी। उन्होंने हमेशा जनता के साथ मिले रहने की कोशिश की थी। वह अपने को जनता का ही आदमी समझते थे। पिछले कौमी...

उपन्यास – गोदान – 28 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मिस्टर खन्ना को मजूरों की यह हड़ताल बिलकुल बेजा मालूम होती थी। उन्होंने हमेशा जनता के साथ मिले रहने की कोशिश की थी। वह अपने को जनता का ही आदमी समझते थे। पिछले कौमी...