अगर आप भी आत्महत्या को सभी मुश्किलों का अंत समझते हों तो, कृपया यह लेख जरूर पढ़ें

god real inner peace spirituality religion sadness emotional breakdown apathy sorrow happiness joy enjoy hopelessness relish moral ethical suicide death ghost bhut bhoot pret devil murder kill revolver armorइस संसार के कई दुखद सत्यों में से एक सत्य यह भी है कि यहाँ कब, कहाँ, कौन व्यक्ति (चाहे वह ऊपर से दिखने में कितना भी धनी, स्वस्थ या सुखी क्यों ना हो) अपने निजी जीवन की तकलीफों से आखिरी परेशान होकर, आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगे, कोई नहीं जानता !

आत्महत्या करने की बढ़ती प्रवृत्ति आज की डेट में एक बड़ी समस्या बन चुकी है जिसके पीछे कई कारणों में से एक मुख्य कारण है लोगों में (खासकर युवाओं में) उचित जीवनी शक्ति का ना होना !

अब ये जीवनी शक्ति क्या होती है ?

सारांशतः जीवनी शक्ति, कई छोटी – बड़ी शारीरिक व मानसिक शक्तियों का समूह होती है, जो आम जीवन की दिनचर्या से लेकर मुश्किल भरे दौर तक में संघर्ष करने की क्षमता देती है !

जिसकी जीवनी शक्ति जितनी ज्यादा कमजोर होती है वह उतनी ही जल्दी कठिनाईयों के आगे घुटने टेक देता है !

सिर्फ किस्मत के भरोसे सफल हो जाने वालों की बात छोड़ दें, तो ज्यादातर सफल माने जाने वाले व्यक्तियों की जीवनी शक्ति ज्यादा मजबूत होती है क्योंकि वे अपने सामने वाली हर मुश्किलों को हल करने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं (सिर्फ धनी होना सफलता की निशानी नहीं होती है क्योंकि ज्यादातर आत्महत्या, धनी लोग ही करते हैं ! सफल उनको बोलतें हैं जो समाज में अन्य लोगों के लिए कोई बड़ा प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करतें हों) !

यहाँ पर मुख्य बात समझने की यह है कि, अगर जीवन की किसी मुश्किल को कोई मानव बहुत कठिन मानता हो, तो क्या वह मुश्किल वाकई में उतनी कठिन है भी या नहीं ?

क्योंकि वही मुश्किल बहुत से दूसरे लोगों के लिए सामान्य सी बात हो सकती है !

तो इससे यही साबित होता है की असली दिक्कत उस मुश्किल में नहीं बल्कि उस मानव की सोच में है जो बेवजह उसको उसी की ही नजरों में दूसरों से कम आंक रही है !

अतः अब यहाँ मुख्य प्रश्न उठता है कि कोई मानव अपनी जीवनी शक्ति को कैसे मजबूत कर सकता है, ताकि वह अपने जीवन की हर बड़ी से बड़ी समस्या को हसते मुस्कुराते हुए हल कर सके !

जीवनी शक्ति बढ़ाने के लिए सिर्फ दो ही काम करने होते हैं और वो हैं अपने आचार व विचार को सुधारना ! (आचार को आधुनिक भाषा में कहें तो “लाइफस्टाइल” और विचार का मतलब होता है “सोच”) !

सारांश रूप में देखा जाए तो पूरा का पूरा, परम आदरणीय हिन्दू धर्म सिर्फ इन्ही दोनों कामो के सुधार के तरीकों के बारे में ही बताते हुए नजर आएगा, क्योंकि जैसे जैसे आचार विचार शुद्ध होता जाता है, वैसे वैसे आत्मा के ऊपर जमें हुए अनंत जन्मों के बुरे संस्कार साफ़ होते जाते हैं और आत्मा खुद को पहचानते हुए (अर्थात आत्मसाक्षात्कार) जान जाती है कि मै ही तो परमात्मा हूँ अर्थात आसान भाषा में कहें तो मानव स्वयं ही गोपाल (अर्थात ईश्वर) बनने लगता है !

आचार विचार सुधारने के लिए सुबह सोकर उठने के बाद से लेकर रात को सोने से पहले तक कई ऐसे छोटे – बड़े अच्छे काम करने पड़ते हैं जिनसे पूरी मानवीय सोच व शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है !

ये काम कोई नए, अनोखे या दुर्लभ नहीं है, बल्कि इनके बारे में लगभग सभी थोडा बहुत जानते हैं, जैसे- सुबह जल्दी सोकर उठना, उठते ही मातापिता गोमाता व भगवान् का पैर छूना (अगर मातापिता व गोमाता उपलब्ध ना हो तो इनका मन में अर्थात मानसिक पैर छूना), फिर पानी पी कर शौचालय से निवृत्त होना !

फिर आधा घंटा मॉर्निंग वाक या दौड़ना ! उसके थोड़ी देर बाद नहाकर आधा घंटा योगासन प्राणायाम करना (और अगर फुर्सत मिले तो सुबह, नहीं तो रात को सोने से पहले कम से कम 15 मिनट से लेकर आधा घंटा तक ध्यान करना) !

फिर कोई स्वास्थकारक नाश्ता करना उसके बाद अपना नित्य का कर्मयोग (जैसे नौकरी, व्यापार, शिक्षा आदि) को ईमानदारी से निभाना ! दोपहर में भी कोई हेल्दी सा लंच करना ! और रात का डिनर हर हाल में सूर्यास्त से पहले ले लेना ! फिर रात को सोने से एक घंटा पहले 15 – 20 मिनट नाईटवाक करके 1 ग्लास गर्म दूध पीना और रात 8 बजे से लेकर अधिकतम रात 12 बजे से पहले तक सो जाना !

कोशिश करना कि दिन भर सबसे प्रेम से बात करना और बेवजह किसी को कष्ट ना देना ! तामसिक भोजन (अर्थात मांस, मछली, अंडा या कोई नशा जैसे शराब, बियर, सिगरेट आदि) एकदम ना खाना, सिर्फ शाकाहारी भोजन ही खाना ! दिन रात जब भी फुर्सत मिले भगवान के किसी भी मनपसन्द नाम का अधिक से अधिक जप करना आदि आदि !

इन कामो के अलावा हमेशा कुछ न कुछ नया व अच्छा सीखने का प्रयास करते रहना जिसके लिए सिर्फ अच्छे लोगों का साथ व अच्छी पुस्तकों का नियमित अध्ययन करते रहना !

ये तो हो गये जीवनी शक्ति को सुधारने के ऐसे तरीके जो दिखते तो मामूली हैं लेकिन जिनके कुछ ही दिनों के अभ्यास से, कठिन व बोझ सी लगने वाली जिंदगी, निश्चित ही कुछ ही दिनों में किसी भी बड़े से बड़े निराश, दुखी स्त्री/पुरुष को भी खुशनुमा सी लगने लगती है (जिसे चाहे तो कोई भी आजमाकर निश्चित देख सकता है) !

पर यहाँ इस गलतफहमी का खंडन करना भी जरूरी है कि आत्महत्या करने से जीवन की किसी बड़ी समस्या से तुरंत मुक्ति पाई जा सकती है !

इस बात का सही उत्तर प्राप्त करने के लिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह की सहायता की परम आदरणीय ऋषि सत्ता ने एक सत्य कथा को हमें विदित करके जिसका आज के उपलब्ध किसी भी पुराण या ग्रन्थ में वर्णन नहीं है !

god real inner peace spirituality religion sadness emotional breakdown apathy sorrow happiness joy enjoy hopelessness relish moral ethical suicide death ghost bhut bhoot pret devil murder kill revolver armor वो सत्य कथा इस प्रकार है कि एक बार भगवान् सूर्य (जो भगवान विष्णु के ही प्रत्यक्ष अवतार हैं) ने अपने सातों घोड़ों को सातों आयाम में अलग – अलग व अकेले – अकेल जाने को कहा ! सातों घोड़ों को आश्चर्य हुआ कि आज प्रभु ने ऐसा आदेश क्यों दिया !

सातों घोड़े अपने अलग अलग आयाम में जहाँ जहाँ भी जा रहे थे, उन्हें बड़ा आश्चर्य हो रहा था क्योंकि उन्हें हर जगह अपने ठीक सामने सिर्फ भगवान् सूर्य ही दिखाई दे रहे थे और कुछ भी नहीं !

काफी समय पश्चात् भगवान् सूर्य ने अपने सातों घोड़ों को वापस लौट कर आने का मानसिक आदेश दिया ! घोड़ों के लौटकर आने के बाद भगवान सूर्य ने उनसे पूछा कि बताओ तुम लोगों ने अपनी यात्रा में क्या क्या देखा ?

सभी घोड़ों ने सिर्फ एक ही उत्तर दिया कि प्रभु हम लोगों ने तो सिर्फ और सिर्फ आपको ही देखा और कुछ भी नहीं देखा ! और सबसे बड़ी आश्चर्य की बात तो यह थी कि हम लोग कितना भी तेज क्यों ना दौड़ते थे लेकिन हर जगह आप हम लोगों से पहले ही, ना जाने कैसे पहुँच जाते थे ?

तब भगवान भास्कर ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि देखो यही सच्चाई मै तुम लोगों के माध्यम से जीव जगत के लिए उदाहरण स्वरुप व्यक्त कर रहा हूँ कि वास्तव में कोई भी जीव चाहे जहाँ भी जाएगा उसको हर जगह सिर्फ और सिर्फ मै ही दिखाई दूंगा !

और मै कौन हूँ ? तुम लोग जो कुछ भी देख, सुन या महसूस कर सकते हो वो सब मै (यानी ईश्वर) ही हूँ !

अर्थात सभी जीवों के सामने जो भी सुख या दुःख है वो सब भी मै ही हूँ ! इसलिए अपने किसी दुःख से अनुचित तरीके से बच कर भागने के लिए भी जो जहाँ – जहां भी जायेगा, उसे वहां – वहां भी वही दुःख जरूर मिलेगा !

किसी दुःख से अनुचित तरीके से बचकर किसी दूसरी जगह भाग कर जाने पर उस दुःख का रूप तो बदल सकता है लेकिन उस दुःख की तीव्रता में कोई परिवर्तन नहीं आने वाला है, जब तक कि उस दुःख को दूर करने के लिए सही प्रयास ना किया जाए !

इसलिए यह भ्रम कभी मत रखना कि प्रारब्धवश मिली किसी तकलीफ (जो कि मेरा ही रूप है) से बचने के लिए, अनुचित तरीके से अपना स्थान परिवर्तन कर लिया (अर्थात आत्महत्या करके, पृथ्वी छोड़कर किसी दूसरे लोक में चले गये) तो उस तकलीफ से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जायेगी क्योंकि जहाँ भी जाओगे, उस तकलीफ से तब तक त्रस्त रहोगे, जब तक कि उचित साहस दिखाते हुए उस समस्या से निकलने का प्रयास ना करो या उस समस्या का तुम्हे परेशान करने का समय ही समाप्त ना हो जाए !

परम आदरणीय ऋषि सत्ता के द्वारा बताई गयी इस कथा का आसान भाषा में मतलब यही है कि कोई मानव अगर अपनी निजी जिंदगी की किसी भी तकलीफ से परेशान होकर आत्महत्या करके इस दुनिया से विदा हो लेता है, तब भी उसे उस तकलीफ से मुक्ति तब तक नही मिलती जब तक कि वो उस तकलीफ को दूर करने के लिए सही प्रयास नही करता है और साथ ही साथ आत्महत्या (जिसे शास्त्रों में पाप नही, बल्कि महा पाप कहा गया है) करने की वजह से कई और भयंकर कष्टों को झेलने की सजा नर्क में जाकर भुगत नही लेता है !

इसलिए जब आत्महत्या के बाद भी किसी तकलीफ से तब तक मुक्ति नहीं मिल सकती जब तक की सही प्रयास नहीं किया जाए तो आत्महत्या करना मूर्खता नहीं, बल्कि घनघोर मूर्खता है !

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