Author: gopalp

कहानी – ग्राम-गीत (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

शरद्-पूर्णिमा थी। कमलापुर के निकलते हुए करारे को गंगा तीन ओर से घेरकर दूध की नदी के समान बह रही थी। मैं अपने मित्र ठाकुर जीवन सिंह के साथ उनके सौंध पर बैठा हुआ...

कहानी – क्षमा – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मुसलमानों को स्पेन-देश पर राज्य करते कई शताब्दियाँ बीत चुकी थीं। कलीसाओं की जगह मसजिदें बनती जाती थीं, घंटों की जगह अजान की आवाजें सुनाई देती थीं। ग़रनाता और अलहमरा में वे समय की...

कहानी – अमिट स्मृति (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

फाल्गुनी पूर्णिमा का चन्द्र गंगा के शुभ्र वक्ष पर आलोक-धारा का सृजन कर रहा था। एक छोटा-सा बजरा वसन्त-पवन में आन्दोलित होता हुआ धीरे-धीरे बह रहा था। नगर का आनन्द-कोलाहल सैकड़ों गलियों को पार...

कहानी – दीक्षा – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

जब मैं स्कूल में पढ़ता था, गेंद खेलता था और अध्यापक महोदयों की घुड़कियाँ खाता था, अर्थात् मेरी किशोरावस्था थी, न ज्ञान का उदय हुआ था और न बुद्धि का विकास, उस समय मैं...

कहानी – नीरा (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

नीरा अब और आगे नहीं, इस गन्दगी में कहाँ चलते हो, देवनिवास?   थोड़ी दूर और-कहते हुए देवनिवास ने अपनी साइकिल धीमी कर दी; किन्तु विरक्त अमरनाथ ने बे्रक दबाकर ठहर जाना ही उचित...

कहानी – मुक्ति-मार्ग – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सिपाही को अपनी लाल पगड़ी पर, सुन्दरी को अपने गहनों पर और वैद्य को अपने सामने बैठे हुए रोगियों पर जो घमंड होता है, वही किसान को अपने खेतों को लहराते हुए देखकर होता...

कहानी – इंद्रजाल (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

गाँव के बाहर, एक छोटे-से बंजर में कंजरों का दल पड़ा था। उस परिवार में टट्टू, भैंसे और कुत्तों को मिलाकर इक्कीस प्राणी थे। उसका सरदार मैकू, लम्बी-चौड़ी हड्डियोंवाला एक अधेड़ पुरुष था। दया-माया...

कहानी – सौभाग्य के कोड़े – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

लड़के क्या अमीर के हों, क्या गरीब के, विनोदशील हुआ ही करते हैं। उनकी चंचलता बहुधा उनकी दशा और स्थिति की परवा नहीं करती। नथुवा के माँ-बाप दोनों मर चुके थे, अनाथों की भाँति...

कहानी – सलीम (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त में एक छोटी-सी नदी के किनारे, पहाड़ियों से घिरे हुए उस छोटे-से गाँव पर, सन्ध्या अपनी धुँधली चादर डाल चुकी थी। प्रेमकुमारी वासुदेव के निमित्त पीपल के नीचे दीपदान करने पहुँची। आर्य-संस्कृति...

कहानी – विचित्र होली – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

होली का दिन था; मिस्टर ए.बी. क्रास शिकार खेलने गये हुए थे। साईस, अर्दली, मेहतर, भिश्ती, ग्वाला, धोबी सब होली मना रहे थे। सबों ने साहब के जाते ही खूब गहरी भंग चढ़ायी थी...

कहानी – प्रतिध्वनि (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

मनुष्य की चिता जल जाती है, और बुझ भी जाती है परन्तु उसकी छाती की जलन, द्वेष की ज्वाला, सम्भव है, उसके बाद भी धक्-धक करती हुई जला करे। तारा जिस दिन विधवा हुई,...

कहानी – डिक्री के रुपये- (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

नईम और कैलास में इतनी शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक अभिन्नता थी, जितनी दो प्राणियों में हो सकती है। नईम दीर्घकाय विशाल वृक्ष था, कैलास बाग का कोमल पौधा; नईम को क्रिकेट और फुटबाल,...

कहानी – चित्तौड़-उद्धार (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

दीपमालाएँ आपस में कुछ हिल-हिलकर इंगित कर रही हैं, किन्तु मौन हैं। सज्जित मन्दिर में लगे हुए चित्र एकटक एक-दूसरे को देख रहे हैं, शब्द नहीं हैं। शीतल समीर आता है, किन्तु धीरे-से वातायन-पथ...

कहानी – वज्रपात – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

अर्थात् तेरी निगाहों की तलवार से कोई नहीं बचा। अब यही उपाय है कि मुर्दों को फिर जिलाकर कत्ल कर। शेर ने दिल पर चोट किया। पत्थर में भी सुराख होते हैं; पहाड़ों में...

कहानी – कला (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

उसके पिता ने बड़े दुलार से उसका नाम रक्खा था-‘कला’। नवीन इन्दुकला-सी वह आलोकमयी और आँखों की प्यास बुझानेवाली थी। विद्यालय में सबकी दृष्टि उस सरल-बालिका की ओर घूम जाती थी; परन्तु रूपनाथ और...

एक क्षण में सब कुछ कर सकने में सक्षम ममता की महासागर देवी से सब कुछ पाने का दुर्लभ समय है “नवरात्रि”

शारदीय नवरात्रि वो महान दिन है जिसमें अम्बे देवी की थोड़ी सी भी शुद्धता पूर्वक भक्ति करने वाला बिना निहाल हुए नहीं रह सकता ! ये नौ दिन वही है जिसमे अति बलशाली भयानक...