सर्वे से पता चली ऐसी सीधी वजह, जिसे मानते बहुत लोग हैं, पर स्वीकारते कम लोग हैं

मुझे शून्य में विलीन करती रही

22222222222222222(नोट – सम्बंधित आर्टिकल इस कविता के नीचे उद्धृत है)

वर्षा की गिरती हुई बूंदों सी
पतझड़ की झरती हुई कलियों सी
माँ मै जाने कितनी बार
तुम्हारी कोख से फिसलती रही !

माँ मै भी तुम्हारे आँगन की बगिया की
कली बनकर खिलना चाहती हूँ
और तुम्हारे नैनो के स्नेहिल रस
से भीगना चाहती हूँ !

पर हर बार तुम मुझे एक वंशधर (पुत्र)
की चाह में शून्य में विलीन करती रही !

और मैं आज भी माँ की
उस कोख की तलाश में हूँ
जहाँ पुत्र और पुत्री दोनों समान पहचान
से पल्लवित और पुष्पित हों !

[ माँ, पत्नी सभी पुरुषों को चाहिए पर बेटियों के पैदा होने पर दिल से वाकई में खुश होने वाले पुरुष बहुत ही कम मिलते हैं ! लड़का, लड़की की समानता पर घंटों उपदेश देने वालों के घर भी अगर लड़की पैदा हो जाती है तो कहीं ना कहीं उनके दिल के कोने में तकलीफ पैदा होने लगती है !

आखिर ऐसी क्या वजह है कि अच्छे से अच्छे पढ़े लिखे और अमीर लोगों के घर भी लड़की पैदा होने पर उतनी ख़ुशी नहीं होती है जितना लड़का पैदा होने पर !

‘स्वयं बने गोपाल’ समूह ने समाज का दूरगामी नाश करने वाली इस मानसिकता की असली वजह जानने के लिए कई लड़कियों के माता पिताओं का इंटरव्यू लिया !

मुख्य वजह जो सुनने को मिली वो बहुत सीधी है पर इसे टी वी पर या मीडिया के सामने कहने में बहुत से लोग हिचकते हैं !

सबसे मुख्य वजह यह है कि ज्यादातर माता पिता मानते हैं कि इस घोर भ्रष्ट माहौल में लड़कियों को बचपना बीतने के बाद से ही और लगभग प्रौढ़ावस्था तक उनकी सुरक्षा के लिए किसी ना किसी पुरुष की जरूरत पड़ती ही है जबकि लड़कों के साथ ऐसा नहीं हैं !

ऐसे माता पिताओं का मानना है कि, चाहे घर से मार्केट जाकर कुछ सामान खरीदना हो या नौकरी पर जाकर पैसा कमाना हो, बहुत कम ही जगह ऐसी हैं जहाँ आँख बंदकर विश्वास किया जा सकता है कि हमारी लड़की एकदम सुरक्षित रहेगी !

मतलब लड़की घर से बाहर निकलती है, तब से लेकर उसके घर में सुरक्षित वापस लौटने तक, मन में कहीं ना कहीं थोड़ी बहुत चिंता बनी ही रहती है !

समाज में एक, दो लड़कियों के साथ होने वाले गलत कामों की ख़बरें अखबारों में पढने को मिलती है लेकिन डर तो हर लड़की के माँ बाप के मन में बैठ जाता है खासकर जब तक लड़की अनब्याही हो क्योंकि ज्यादातर माँ बाप का मानना है कि शादी से पहले अगर उनकी लड़की के साथ कोई अभद्र काम हो जाएगा तो उससे शादी करने को कौन शरीफ आदमी तैयार होगा !

और इन माता पिताओं का यह भी मानना है कि लड़कियां, लड़कों की तुलना में ज्यादा सीधी व भोली भाली होती है इसलिए भी कोई धूर्त टाइप का लड़का उन्हें बहला फुसला कर उनकी जिंदगी ख़राब कर सकता है !

माता पिता का अपने संतान के प्रति लगाव जिंदगी भर बना रहता है इसलिए ज्यादातर मातापिता इस घोर कलियुगी माहौल से उत्पन्न होने वाली रोजमर्रा की कठिनाईयों से बचने के लिए, अर्थात सारांश रूप में यही चाहते हैं कि उनको बेटा ही पैदा हो, जिससे कम से कम टेंशन में अधिक से अधिक संतान द्वारा सुख प्राप्त किया जा सके !

बेटा सुख देगा कि बेटी सुख देगी, इसका सिर्फ बेटा या बेटी होने से कभी भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि आजकल जहाँ बेटों द्वारा अपने माता पिता को सताने कि बातें सुनने को मिल रहीं हैं वही बेटियों द्वारा भी माँ बाप को पीड़ा पहुचाने के किस्से सुनने को मिल रहें हैं !

बेटा या बेटी अपने माँ बाप को सुख देंगे या दुःख, यह बात मुख्यतः निर्भर करती हैं उनकी परवरिश पर और उनके जीन्स में आयें उनके पूर्वजन्मो के संस्कारों पर !

कुछ मूर्धन्य समाजशास्त्री, माता पिता द्वारा लड़कियों के पैदा होने पर होने वाली इस मुख्य चिन्ता की वजह का हल बताते हैं और यह हल भी, वजह की ही तरह बहुत सीधा है !

हल है कि लड़कियों के लिए असुरक्षित माहौल पैदा ही नहीं होने दिया जाय और अगर दुर्भाग्यवश असुरक्षित माहौल पैदा हो भी गया तो उन्हें उस माहौल से निपटने का तरीका सुझाया जाय !

66666666666असुरक्षित माहौल पैदा ना हो, इसके भी दो तरीके हैं, एक तो उस माहौल कि गवर्निंग बॉडी इतनी सख्त हो कि ऐसी नौबत ही ना पैदा होने दे जिसका बहुत बढियां उदहारण हैं गुजरात, जहाँ मोदी जी ने अपने शासन काल में इतनी तगड़ी और सतर्क क़ानून व्यवस्था बना दी है कि महिलायें अकेले भी रातों में गहनों से सज धज कर बेख़ौफ़ निकलती हैं !

किसी भी प्रदेश की कानून व्यवस्था पूरी तरह से वहां के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी होती है और अगर किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री 5 साल में महिलाओं और बच्चो तक के लिए भी भय मुक्त समाज ना बना पाय तो वो दुबारा मुख्यमंत्री बनने के लायक नहीं है !

अगर दुर्भाग्यवश असुरक्षित माहौल पैदा हो गया हो तो उससे निपटने के लिए मार्शल आर्ट्स (जूडो, कराटे आदि) का इस्तेमाल या किसी सिक्योरिटी परसोनेल या इक्विपमेंट्स (जैसे- जलन पैदा करने वाला स्प्रे आदि) का इस्तेमाल करना आना चाहिए !

कई सामाजिक संगठन, कई बार ये आवाज उठा चुके हैं कि महिलाओं को भी प्राइमरी लेवल से ही मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग अनिवार्य कर देना चाहिए, जिससे उनके ऊपर से “अबला” वाला टाईटल हट जाय और वे अपने साथ कभी भी हो सकने वाली हिंसा से अपनी रक्षा कर सकें !

00090मार्शल आर्ट्स सीखने के ढेरों अन्य शारीरिक फायदें भी हैं, जैसे आजीवन शरीर के जॉइंट्स (जैसे घुटने, गर्दन आदि) और अंगों (हाथ, पैर, कमर आदि) में ताकत बनी रहती है, मोटापा नहीं होने पाता है, शरीर हमेशा स्लिम ट्रिम और छरहरा बना रहता है और डायबिटीज, ब्लड प्रेशर व अन्य हार्ट डिसीज आदि होने का चांस नहीं रहता है क्योंकि मार्शल आर्ट्स की डेली आधे घंटे के लिए भी की गयी प्रैक्टिस से पूरे शरीर की हैवी एक्सरसाइज हो जाती है !

कुछ माँ बाप का सोचना होता है कि मार्शल आर्ट्स सीखने से लड़कियों का स्वभाव हिंसक हो जाता है जबकि वास्तव में ज्यादातर केसेस में ठीक इसका उल्टा होता हैं क्योंकि मार्शल आर्ट्स में सफलता पाने के लिए सबसे पहले कड़े अनुशासन से मन की भावनाओं को वश में करना सिखाया जाता है ! वास्तव में मार्शल आर्ट्स का ज्ञान सबसे पहले भगवान् बुद्ध ने ही भारतवर्ष में उन तपस्वी साधुओं को दिया था जो घनघोर और खतरनाक जंगल में एकदम अकेले रहकर तपस्या करते थे ! भारत से ही यह विद्या चीन और जापान तक पहुची थी, जहाँ लोगों ने इसका आधुनिक नाम मार्शल आर्ट्स (जूडो, कराटे, ताईक्वान्डो आदि) रखा !

मार्शल आर्ट्स सीखने के बाद लड़कियों में इतना कॉन्फिडेंस आ जाता है कि उन्हें छोटी छोटी बातों पर गुस्सा आना बंद हो जाता है, और उनके स्वभाव से चिड़चिड़ापन कम होकर खुशनुमापन बढ़ जाता है, इसलिए कई बार मार्शल आर्ट्स कि वजह से पति पत्नी के बीच में होने वाले झगड़ों को भी कम होते हुए देखा गया है ! विदेशों में तो 45 साल से ऊपर की माताओं को भी बड़ी लगन से मार्शल आर्ट्स सीखते हुए देखा गया है क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा के साथ साथ अपना खोया हुआ किशोरावस्था का फिगर भी पाना है !

कुछ लोगों का सोचना होता है कि अगर लड़कियां पढ़ लिखकर कोई बड़ी अधिकारी बन जाय तो फिर किसकी मजाल है कि उनके साथ कोई बुरा बर्ताव कर सके ! इस बात का जवाब वे घटनाएं देती हैं जब विधानसभा में, कोर्ट में, या सीनियर महिला पुलिस अधिकारी के साथ भी असभ्य काम होने की वारदात सुनी गई !

महिला भले ही शादी शुदा हो जाय, या प्रौढ़ हो जाय लेकिन उसके साथ अगर कोई भी बुरा काम होता है तो उसके जीवित माता पिता को जरूर बहुत दुःख होता है ! इसलिए व्यवहारिक जिंदगी में महिलाओं के साथ हमेशा जुड़े रहने वाले इन खतरों की वजह से भी बहुत से माँ बाप लड़की पैदा होने पर चिंतित हो जाते हैं !

पर अगर लड़की पैदा ना हो तो, दुनिया ही ख़त्म हो जायेगी ! इसलिए कुछ ठोस कदम उठाकर, लड़की पैदा ना करने वाली मानसिकता से उबरना निहायत ही जरूरी है !

इन चिंताओं के अलावा भी कई माँ बाप को चिंता होती है कि लड़की होने पर शादी ब्याह आदि में खर्चा बहुत आएगा ! पर अब वास्तव में ऐसी दकियानूसी मानसिकता बदल रही है क्योंकि ज्यादातर लड़के वाले भी समझदार और स्वाभिमानी हो गएँ हैं और शादी ब्याह आदि में होने वाले खर्चे का बोझ आपस में परस्पर बाँट लेते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि असली धन तो लड़की के रूप में मिलने वाली गृह लक्ष्मी ही है !]

(नोट – ऊपर लिखी कविता की लेखिका, श्री देवयानी जी हैं और कविता के अन्त में साझा किया गया अनुभव, ‘स्वयं बने गोपाल’ समूह से जुड़े स्वयंसेवी समाज शास्त्रियों का है ! श्री देवयानी की अन्य रचनाओं को पढने के लिए आप निम्नलिखित लिंक्स पर क्लिक कर सकते हैं –

न हम कुछ कर सके, न तुम कुछ कर सके

सिर्फ अपनी ख़ुशी की तलाश बर्बाद कर रही है अपने अंश की ख़ुशी

एक कठोर अनुशासक ऐसा भी

एक माँ – पुत्र के विछोह की असीम पीड़ायुक्त संवाद

वो अपने

अनजाना कर्ज

माँ

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