वो अपने
जो अपने कभी मेरे बहुत करीब थे
आज वही मेरे बुरे वक्त के दर्पण में
अपना वो वास्तविक अक्स छोड़ गए
जो मेरी कल्पना से भी परे था !
आज जब मुझे उन अपनों के
सच्चे स्नेह व सांत्वना के चन्द
शब्दों की जरूरत थी
तब उनका दामन इस तरह
सिमट गया कि वे
परायों से भी ज्यादा पराये हो गए !
लेकिन कुछ अपने ऐसे अब भी हैं
जिनके स्नेह की छाँव में
क्षणांश के लिए ही सही
मैं सुकून के कुछ
पल बिता लेती हूँ !
लेखिका –
श्री देवयानी (श्री देवयानी की अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए, कृपया नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें)-
न हम कुछ कर सके, न तुम कुछ कर सके
सिर्फ अपनी ख़ुशी की तलाश बर्बाद कर रही है अपने अंश की ख़ुशी
एक माँ – पुत्र के विछोह की असीम पीड़ायुक्त संवाद
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