(भाग – 2) क्या आपको पता है कि, जैसे – जैसे आप अपनी प्राण ऊर्जा बढ़ाते जाएंगे, वैसे – वैसे एक्यूप्रेशर से आपकी और दूसरों की बिमारी में मिलने वाला लाभ भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ता जायेगा

कृपया इस आर्टिकल को पढ़ने से पहले, इस आर्टिकल के पहले भाग को पढ़ें इस लिंक पर क्लिक करें- (भाग – 1) क्या आपको पता है कि, जैसे – जैसे आप अपनी प्राण ऊर्जा बढ़ाते जाएंगे, वैसे – वैसे एक्यूप्रेशर से आपकी और दूसरों की बिमारी में मिलने वाला लाभ भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ता जायेगा

आईये सबसे पहले थोड़ा विस्तार से समझते हैं कि प्राण ऊर्जा होती क्या है और यह शरीर में आती कहाँ से है ! देखिये जैसे सूर्य से जो ऊर्जा निकलती है उसे सौर ऊर्जा कहते हैं और वो सौर ऊर्जा इतनी ज्यादा होती है कि उससे करोड़ो – अरबों मेगा वॉट बिजली बनायी जा सकती है (सोलर पैनल्स के माध्यम से) जिससे मुफ्त में दुनिया की हर मशीन चलायी जा सकती है, लेकिन चाहे जितनी भी ज्यादा बिजली बनाई जाए उससे सूर्य की ऊर्जा कभी कम नहीं होती है, ठीक इसी तरह हर मानव के शरीर की नाभि (navel) में स्थित जो “मुख्य प्राण” होता है उससे निकलने वाली अदृश्य ऊर्जा को ही प्राण ऊर्जा कहते हैं और किसी मानव के प्राण के ऊपर माया के आवरण जितने कम होतें हैं उसके शरीर में प्राण ऊर्जा उतनी ही ज्यादा होती है (माया के जन्म जन्मांतर के आवरणों यानी पर्दा से ढके होने की वजह ही नाभि में स्थित मुख्य प्राण की ऊर्जा कम मात्रा में पूरे शरीर में पहुँच पाती हैं, लेकिन जैसे – जैसे पर्दा कम होने लगता है वैसे – वैसे प्राण ऊर्जा ज्यादा मात्रा में पूरे शरीर में भरने लगती है) !

सूर्य की ही तरह, मानव शरीर का प्राण भी अक्षय (मतलब अंतहीन) ऊर्जा का भंडार है इसलिए किसी भी मानव के शरीर से चाहे जितनी भी अधिक प्राण ऊर्जा किसी भी दूसरे मानव में चली जाए इससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योकि प्राण की ऊर्जा तो कभी कम पड़ ही नहीं सकती ! समझने की आसानी के लिए भले ही यह कह दिया जाता है कि प्राण ऊर्जा कही बाहर से यानी ब्रह्माण्ड से (जो कि वास्तव में मानव शरीर का ही रूप है, क्योकि “यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे”) खींचकर अंदर शरीर में समा जाती है, पर वास्तव में कम होने वाली प्राण ऊर्जा कही बाहर से नहीं आती है, बल्कि वो ऊर्जा नाभि में स्थित “मुख्य प्राण” से ही अपने आप लगातार सृजित होती रहती है (क्योकि मुख्य प्राण एक अनलिमिटेड प्राण ऊर्जा पैदा करने वाले न्यूक्लियर रिएक्टर की ही तरह है जो प्राण ऊर्जा पैदा करना तब तक बंद नहीं करता जब तक कि आदमी जीवित है) !

हम यहाँ फिर से इस प्रश्न का उत्तर आसान भाषा में दे रहें हैं कि जब हर मानव के नाभि में स्थित मुख्य प्राण हमेशा अथाह ऊर्जा पैदा करता रहता है तो फिर किसी आदमी में क्यों कम प्राण ऊर्जा रहती है और किसी में क्यों ज्यादा ! ये तो सभी लोग जानते होंगे कि सभी धर्म ग्रंथो में लिखा है कि दुनिया के हर कण – कण में ईश्वर समान रूप से वास करते हैं (जैसा की तुलसीदास जी ने भी कहा है कि “हरि व्यापक सर्वत्र समाना”) लेकिन क्यों हम लोग मंदिर में लगी पत्थर की मूर्ती को छूने को सौभाग्य समझते हैं, लेकिन कीचड़ में डूबे पत्थर से छू जाने पर नाक भौं सिकोड़ते हैं (जबकि कीचड़ में पड़े हुए पत्थर में भी उतना ही ईश्वर का वास है जितना मूर्ती में) तो इस भेदभाव का स्पष्ट कारण यह है कि मूर्ती से तो सुखद ईश्वरीय ऊर्जा यानी शान्ति, दिव्यता महसूस होती है जबकि कीचड़ के पत्थर से तो दुखद ऊर्जा यानी गंदगी, बदबू महसूस होती है इसलिए कहा जा सकता है कि कीचड़ के पत्थर में “ईश्वरीय अंश है तो जरूर, लेकिन अप्रकट अवस्था (यानी छुपी हुई कंडीशन) में है” इसलिए कीचड़ के पत्थर में, मूर्ती के पत्थर जितनी ऊर्जा नहीं है जो किसी मानव की किस्मत बदल दे !

ठीक इसी तरह जिस मानव ने मेहनत करके अपने छुपे हुए मुख्य प्राण के ऊपर से माया का जितना अधिक आवरण (यानी पर्दा) हटाया होगा उसकी प्राण की ऊर्जा उतना ही ज्यादा खुलकर प्रकट होती है, जिससे उतना ही ज्यादा प्राण ऊर्जा उसके पूरे शरीर में समाती रहती है और साथ ही साथ उसके आस – पास स्थित दूसरे मानवो के शरीर में भी अपने आप समाती रहती है ! जी हाँ ये सच है, कि प्राण ऊर्जा का दूसरे लोगों के शरीर में जाने के लिए केवल एक्यूप्रेशर ही तरीका नहीं है, बल्कि दुनिया के हर व्यक्ति की प्राण ऊर्जा अपने आप उसके अगल – बगल स्थित उससे कम प्राण ऊर्जा वाले सभी जीवों में हमेशा समाती रहती है (और इस प्रक्रिया को कभी रोका नहीं जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे पानी की ज्यादा मात्रा अपने आप बहकर, पानी की कम मात्रा की तरफ जाने लगती है) इसलिए आपने देखा होगा की उच्च स्तरीय साधू – सन्यासी – योगी के पास बैठने से अपने आप अच्छा महसूस होता है (क्योकि उनके शरीर से हमेशा प्राण ऊर्जा बाहर निकलकर आस पास बैठे हुए जीवों के अंदर समाती रहती है) !

ज्यादा प्राण ऊर्जा वाले व्यक्ति के सिर्फ पास बैठने से हो सकता है कि उतनी पर्याप्त मात्रा में प्राण ऊर्जा किसी जरूरतमंद बीमार आदमी के अंदर नहीं पहुंच पा रही हो इसलिए अगर ज्यादा प्राण ऊर्जा वाला व्यक्ति अपने हाथ से बीमार आदमी के रोगों से संबंधित एक्यूप्रेशर पॉइंट्स को दबाये तो फायदा की रफ्तार कई गुना ज्यादा बढ़ सकती है !

वैसे तो प्राण ऊर्जा पूरे शरीर से हमेशा थोड़ा – बहुत बाहर निकलती रहती है लेकिन जब कोई एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट किसी बीमार का इलाज करने की इच्छा से एक्यूप्रेशर पॉइंट्स को दबाता है तो अपने आप एक्सपर्ट की हाथ की हथेली व उँगलियों से सबसे ज्यादा प्राण ऊर्जा निकलने लग सकती है, जिससे मरीज को लाभ मिलता है !

तो उम्मीद है ऊपर लिखे हुए तथ्यों से सभी आदरणीय पाठक समझ गएँ होंगे कि कैसे किसी एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट की अधिक प्राण ऊर्जा से मरीज को मिलने वाला लाभ कई गुना ज्यादा बढ़ सकता है ! तो अब यहाँ सबसे मुख्य प्रश्न यह बनता है कि क्या कोई तरीका है अपनी खुद की प्राण ऊर्जा बढ़ाने का ?

तो इसका जवाब है कि हां बिल्कुल तरीका है, और बल्कि एक नहीं अनगिनत तरीके हैं जिनकी मदद से आप अपनी प्राण ऊर्जा को बढ़ाकर ना केवल अपने रोगों को, बल्कि अपने परिवार के साथ – साथ दूसरे बीमार लोगों के भी रोगों को ज्यादा प्रभावी तरीके से ठीक कर सकतें हैं !

तो अब आप जानना चाह रहे होंगे कि आखिर वे तरीके हैं क्या ? तो इसका जवाब है,- हर मानव द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से होने वाले हर अच्छे काम से उसकी प्राण ऊर्जा अपने आप बढ़ती रहती है, लेकिन हर मानव द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से होने वाले किसी भी गलत काम से उसकी प्राण ऊर्जा घटती नहीं है ! शायद यह आपको सुनकर थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सत्य है क्योकि यह जानकारी ईश्वर दर्शन प्राप्त संत जनों से मिली है कि कलियुग में भगवान ने यह स्पेशल छूट हम सभी मानवों को दे रखी है कि हर अच्छे काम से प्राण ऊर्जा बढ़ेगी तो, लेकिन किसी भी बुरे काम से घटेगी नहीं, क्योकि कलियुग में इतनी ताकत होती है कि ना चाहते हुए भी सज्जन व्यक्तियों से भी जाने – अनजाने गलतियां अक्सर हो जाती हैं इसलिए हर गलती पर अगर प्राण ऊर्जा घटने लगी तो हम निरीह मानवों का कभी उद्धार हो ही नहीं सकता है ! यहाँ पर ध्यान से समझने वाली बात है कि गलत काम करने से पाप तो जरूर लगता है (जिसका दंड भी देर सवेर भुगतना पड़ता है) लेकिन किसी भी गलत काम को करने पर प्राण ऊर्जा कभी नहीं घटती है ! मतलब हर मानव के शरीर में प्राण ऊर्जा हमेशा केवल बढ़ सकती है, घट कभी नहीं सकती है (आप जितना ज्यादा अच्छा काम करेंगे, उतना ही तेजी से आपकी प्राण ऊर्जा बढ़ेगी) !

अब अच्छा काम कहते किसे हैं ? आसान भाषा में कहें तो हर वो काम जिससे खुद का या दूसरों का उचित भला हो सके, वो अच्छा काम है ! वास्तव में संसार के सारे अच्छे काम, चार मुख्य योगों के अंतर्गत ही आतें हैं, जैसे-

हठ योग के अंतर्गत आने वाले अच्छे काम- जो भी आदमी हठ योग के अभ्यास यानी आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध, ध्यान आदि में से किसी का भी रोज अभ्यास करता है उसकी प्राण ऊर्जा बढ़ती है !

राज योग के अंतर्गत आने वाले अच्छे काम- जो भी आदमी राज योग के अभ्यास यानी मनन, ईश्वर का साकार या निराकार चिंतन, भाव समाधि आदि में से किसी का भी रोज अभ्यास करता है उसकी प्राण ऊर्जा बढ़ती है !

भक्ति योग के अंतर्गत आने वाले अच्छे काम- जो भी आदमी भक्ति योग के अभ्यास यानी ईश्वर आराधना, भजन, कीर्तन, पूजा, पाठ आदि में से किसी का भी रोज अभ्यास करता है उसकी प्राण ऊर्जा बढ़ती है !

कर्म योग के अंतर्गत आने वाले अच्छे काम- जो भी आदमी कर्म योग के अभ्यास यानी ईमानदारीपूर्वक नौकरी या बिजनेस करके घर – खानदान के लोगों का उचित पालन – पोषण – मार्गदर्शन करते रहना, गरीब को भोजन – पानी – कपड़ा – घर – चिकित्सा उपलब्ध कराना, जरूरतमंदों को जीवन में लाभ पहुंचाने वाली जानकारी देना, हरे पेड़ लगाना, पानी बचाना, समाज को साफ़ – सुथरा रखना आदि में से किसी का भी रोज अभ्यास करता है उसकी प्राण ऊर्जा बढ़ती है !

तो इस तरह ऊपर लिखे हुए कामों का अधिक से अधिक अभ्यास करके कोई भी अपनी प्राण ऊर्जा को रोज पहले से ज्यादा बढ़ा सकता है ! और आपको जानकार आश्चर्य होगा कि जब – जब कोई अधिक प्राण ऊर्जा वाला व्यक्ति, कम प्राण ऊर्जा वाले मरीज का इलाज एक्यूप्रेशर से करता है तब – तब उस अधिक प्राण ऊर्जा वाले व्यक्ति की प्राण ऊर्जा पहले से भी और ज्यादा बढ़ जाती है क्योकि इस तरह इलाज करना भी एक बहुत अच्छा काम होता है (भले ही उसने एक्यूप्रेशर की फीस मरीज से ली हो तब भी प्राण ऊर्जा बढ़ती है क्योकि स्वास्थ्य अनमोल है इसलिए किसी को स्वस्थ बनाने के लिए उचित प्रयास करना महान अच्छा काम होता है) !

यहाँ हम आपकी सहूलियत के लिए एक और आसान प्रयोग बता रहें हैं कि मान लीजिये कभी आपको कोई शारीरिक तकलीफ हो जाती हो और आप उसका इलाज सिर्फ नेचुरोपैथी जैसे एक्यूप्रेशर से ही करना चाह रहें हों, इसलिए आपने सबसे पहले इंटरनेट से उस तकलीफ के लिए एक्यूप्रेशर पॉइंट्स को खोजा और उन पॉइंट्स पर खुद की उंगलियों से दबाव दिया तो आपको कोई ख़ास रिलीफ नहीं मिला ! फिर आपने किसी एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट की भी मदद ली लेकिन तब भी आपको कोई ख़ास आराम नहीं मिला !

तो फिर आपने इस आर्टिकल में लिखी जानकारी के अनुसार किसी ज्यादा प्राण ऊर्जा वाले एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट की तलाश शुरू की तो आपके सामने ये समस्याएं आयी कि आप कैसे पहचानेंगे कि किसी एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट की प्राण ऊर्जा ज्यादा है या नहीं ! तो हम बताना चाहेंगे कि इसका बहुत सीधा सा फार्मूला होता है कि जिस आदमी की जितनी ज्यादा प्राण ऊर्जा होती है उसकी पर्सनालिटी (व्यक्तित्व) उतनी ही ज्यादा प्रभावित करने वाली होती है ! मतलब ज्यादा प्राण ऊर्जा वाला कोई व्यक्ति भले ही खुद कई बीमारियों से परेशान हो या अच्छा वक्ता ना हो या दिखने में सुंदर ना हो या आधुनिक वेशभूषा रहन सहन वाला मॉडर्न जेंटलमैन हो, लेकिन तब भी उससे मिलने या बात करने से लोग इम्प्रेस्ड होतें हैं (वैसे आजकल तो कई लोग हीरो – हीरोइन से या अमीर लोगों से या स्मार्ट लोगों से या दबंग – माफिया टाइप लोगों से भी इम्प्रेस्ड हो जातें है, लेकिन प्राण ऊर्जा का प्रभाव इन सबसे अलग तरह का सुखद होता है) !

ऊपर के उदाहरण को आगे बढ़ाने से पहले, यहाँ इस शंका का निवारण भी जरूरी है कि क्या अधिक प्राण ऊर्जा वाला व्यक्ति खुद भी बीमार हो सकता है या नहीं, और अगर बीमार हो सकता है तो क्या ऐसा भी हो सकता है कि अधिक प्राण ऊर्जा वाला व्यक्ति अपनी बिमारी को खुद से ठीक ही ना कर सके ! तो इसका जवाब है इस विचित्र दुनिया में कुछ भी सम्भव है और इसके एक बड़े उदाहरण थे श्री गौतम बुद्ध जी (जिनके बारे में विस्तार से इस आर्टिकल के भाग – 1 में वर्णन किया गया है) ! असल में ऐसे उदाहरणों के पीछे अक्सर ये कारण सुनने को मिलता है की पूर्व जन्म के किसी कर्म की वजह से यह पहले से तय होता है कि किसी विशेष बिमारी का खात्मा सिर्फ किसी विशेष तरीके व विशेष आदमी की सहायता से ही होगा !

जैसे एक सरकारी अधिकारी की चर्चित घटना शायद आपने भी सुनी हो जिसके अनुसार वो अधिकारी कई सालों से अपने कान बहने की बिमारी से परेशान थे और महंगे से महंगा इलाज करवाने के बावजूद वह बिमारी ठीक नहीं हो पा रही थी, इसलिए वो अधिकारी अपने कान पर हमेशा रुमाल बांधे रहते थे ! एक दिन वो अधिकारी पैदल कही जा रहे थे तो एक अनजान गरीब बच्चे ने उनसे खाने के लिए कुछ माँगा ! अधिकारी जल्दी में थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बच्चे के खाने की व्यवस्था तुरंत की और वहां से चले गए ! काफी देर बाद उन्होंने गौर किया की उनकी रुमाल तो एकदम सूखी है और उसके बाद से उनके कान से कभी भी मवाद नहीं बहा !

वो अधिकारी खुद भी बहुत हैरान थे कि आखिर उनकी कान की बिमारी अचानक से गायब कैसे हो गयी ! इस घटना पर संत जनो की स्पष्ट राय यही थी कि उन अधिकारी ने यह बिमारी पूर्व जन्म की उस गलती के लिए झेली होगी जिस गलती से पूर्व जन्म में उस लड़के को कोई तकलीफ हुई होगी इसलिए इस जन्म में उस लड़के को भोजन देकर प्रयाश्चित करते ही उनकी वह बिमारी अपने आप समाप्त हो गयी ! संत जनों की यह राय इसलिए भी सही लगती है क्योकि उन सरकारी अधिकारी ने इससे पहले भी कई गरीब बच्चों को खाना खिलाया था लेकिन तब उनकी कान की बिमारी ठीक नहीं हुई थी पर जैसे ही उन्होंने उस बच्चे को खिलाया वैसे ही उनकी बिमारी जादू की तरह गायब हो गयी, जिसका साफ़ – साफ़ मतलब है कि उनकी बीमारी उसी बच्चे को पूर्व जन्म में तकलीफ पहुंचाने की वजह से हुई थी (यहाँ यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कई दूसरे गरीब बच्चो को खिलाने के पुण्य की वजह से ही उन अधिकारी के जीवन में ऐसा सुखद संयोग बन सका की, एक दिन वही बच्चा उन अधिकारी से खाना मांगने पहुंच गया जिससे उनकी बीमारी तुरंत ठीक हो सकी ! अन्यथा इस दुनिया में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अपनी बिमारी को आजीवन झलते – झेलते मर जाते हैं लेकिन उनके साथ कोई ऐसा सुखद संयोग कभी नहीं बन पाता हैं जिससे वे भी अपनी बीमारी से मुक्त हो सकें ! इसलिए जब, जहाँ, जो मिले उसकी उचित सहायता करते चलना चाहिए क्योकि “ना जाने किस भेष में मिल जाएँ नारायण”) !

कहने का मतलब यह है कि सभी चिकित्सा पद्धतियों में मिलने वाले सत्य उदाहरणों की ही तरह, हो सकता हो कि पूर्व जन्म के किसी अकाट्य प्रारब्ध की वजह से कभी कोई अधिक प्राण ऊर्जा वाला व्यक्ति खुद से अपनी कोई बिमारी ठीक ना कर पा रहा हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह दूसरे कम प्राण ऊर्जा वाले मरीजों की बिमारी ठीक नहीं कर सकेगा (क्योकि जैसा की पूर्व में हमने बताया है कि ऐसे बहुत से प्रसिद्ध डॉक्टर हुए हैं जिन्होंने लाखों मरीजों का इलाज तो किया लेकिन अपनी खुद की बिमारी ठीक नहीं कर सके) इसी तरह खुद की बिमारी को ठीक ना कर सकने वाला एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट (जिसकी प्राण ऊर्जा ज्यादा हो) कम प्राण ऊर्जा वाले लाखों मरीजों की कठिन बीमारियों में तेज लाभ पंहुचा सकता है !

जैसे एक अन्य प्रसिद्ध उदाहरण है भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण जी का ! लक्ष्मण जी खुद दुनिया के सबसे बड़े व सबसे शक्तिशाली सांप शेषनाग जी के अवतार थे इसलिए उनके अंदर क्षमता है हर तरह के सांप के जहर के असर को समाप्त कर देने की {इसलिए आज भी लोग (खासकर दक्षिण भारत में) लक्ष्मण जी की पूजा करतें हैं सांप से बचने के लिए} ! लेकिन मेघनाद से लड़ाई के दौरान लक्ष्मण जी खुद एक सांप से बने हुए हथियार यानी नागपाश से बेहोश हो गए थे, तब गरुण जी को बुलाना पड़ा था उनके इलाज के लिए !

लक्ष्मण जी को सांपो से बने हथियार के जहर से बेहोश हुआ देखकर गरुण जी को भी शक हो गया था कि क्या वाकई में लक्ष्मण जी सांपो के सबसे बड़े राजा शेषनाग जी के अवतार हैं भी या नहीं ! वास्तव में भगवान लक्ष्मण ने ये लीला इसलिए जानबूझकर रची थी ताकि आने वाले समय में लोग इस सच्चाई को याद रखें कि भले ही कोई आदमी किसी भी चीज का सबसे बड़ा एक्सपर्ट ही क्यों ना हो (जैसे लक्ष्मण जी थे सांप का जहर ख़त्म करने के) लेकिन जीवन में ऐसा कठिन समय कम से कम एक बार तो जरूर आता है, जब उस आदमी की सारी एक्स्पर्टीज़ उसके किसी काम नहीं आती है और उसको उससे काफी जूनियर से भी मदद के लिए गुहार लगानी पड़ सकती है !

तो इस दुनिया में पैदा होने वाले हर जीव का अपना अलग – अलग यूनिक प्रारब्ध होता है इसलिए यह जरूरी नहीं है कि एक ही इलाज पद्धति से सभी रोगी ठीक हो सकें ! लेकिन ज्यादातर स्थितियों में देखा गया है कि एक्यूप्रेशर को अधिक प्राण ऊर्जा का सपोर्ट मिलते ही बड़ी बीमारियों में भी जल्दी लाभ मिलता है ! कई बार तो ऐसा भी देखा गया है वर्षों से परेशान करने वाली बिमारी में भी मात्र 1 से 2 बार में ही आश्चर्यजनक लाभ मिल गया है इसलिए सभी को अपनी प्राण ऊर्जा बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए या किसी अधिक प्राण ऊर्जा वाले एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट से भी एक बार अपना इलाज करवाकर देख लेना चाहिए !

तो आईये अब आगे बढ़ाते हैं ऊपर लिखे अधूरे उदाहरण को,- यानी आपको अपनी तकलीफ को समाप्त करने के लिए कोई ज्यादा प्राण ऊर्जा वाला एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट नहीं मिल पा रहा है, तब आप क्या करेंगे ! तब आप उस स्थिति में अपने माता या पिता से भी अपने एक्यूप्रेशर पॉइंट्स को दबवाकर बढियाँ लाभ पा सकतें हैं क्योकि यह लगभग हर बार देखा गया है कि जन्मदाता माता – पिता में हमेशा अपनी संतान से कई गुना ज्यादा प्राण ऊर्जा रहती है इसलिए कोई भी संतान चाहे खुद यह बात कभी समझ सके या ना समझ सके, लेकिन वो मन ही मन सबसे ज्यादा प्रभावित अपने माता पिता से ही होता है (प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार किसी के माता पिता में अपने संतान से तो ज्यादा प्राण ऊर्जा हो सकती है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उन माता पिता में अपने संतान के अलावा अन्य बाकी लोगों से भी ज्यादा प्राण ऊर्जा हो ! इसलिए उन माता पिता से जितना प्रभावित उनकी खुद की संतान होती है, यह जरूरी नहीं है कि बाकी दूसरे लोग भी उनसे उतना ही प्रभावित हो सकें) !

अब बात करते है शरीर में स्थित विभिन्न एक्यूप्रेशर पॉइंट्स की ! शरीर के लगभग सारे अंगों से सम्बंधित पॉइंट्स दोनों हाथ की हथेलियों के अलावा पैर के पंजों में भी होते हैं ! इन पॉइंट्स के अलावा सामान्यतया उस अंग पर भी एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं (जिस अंग में समस्या होती है) इसलिए बेहतर होता है कि हाथ – पैर में स्थित सम्बंधित पॉइंट्स को दबाने के साथ – साथ उस अंग पर स्थित पॉइंट्स को भी दबाया जाए और उस बीमार अंग की यथासम्भव धीरे – धीरे मालिश भी कर दी जाए, जैसे-

सिर दर्द, बाल झड़ना, याद्दाश्त की कमजोरी, तनाव आदि को दूर करने के लिए, हथेली, पैर के पंजो व सिर पर स्थित पॉइंट्स दबाये जा सकतें हैं और साथ ही साथ पूरे सिर की मालिश भी की जा सकती है !

आँखों में दर्द, रौशनी की कमी, धुंधला दिखाई देना आदि के लिए, हथेली व पंजो पर स्थित पॉइंट्स को दबाने के अलावा दोनों हथेलियों से आँखों की पलकों के ऊपर से हल्की – हल्की मालिश की जा सकती है (सुबह सूर्योदय के समय यह करने से कई लोगों का चश्मा उत्तर गया है) !

चेहरे की झुर्रियों को मिटाने के लिए, त्वचा के पॉइंट्स को दबाने के अलावा दिन – रात में जब भी फुर्सत मिले दोनों हथेलियों से चेहरे को रगड़ते रहना चाहिए, इससे एक ही हफ्ते में स्पष्ट अंतर पता चल जाता है !

गर्दन की सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस व थायराइड जैसी समस्याओं के लिए संबंधित पॉइंट्स को दबाने के अलावा गर्दन की मालिश करने से लाभ मिलता है !

हार्ट प्रॉब्लम्स (जैसे- हाई या लो ब्लड प्रेशर, धड़कन महसूस होना, ब्लॉकेज), लंग्स प्रॉब्लम्स में भी संबंधित पॉइंट्स को दबाने के अलावा सीने पर हाथों से मालिश करने का अच्छा रिजल्ट देखा गया है !

किडनी प्रॉब्लम्स, लिवर प्रॉब्लम्स, आंतों की समस्या, पैंक्रियाज की समस्या (डायबिटिज) आदि के लिए संबंधित पॉइंट्स को दबाने के अलावा पेट व पीठ पर मालिश करने से लाभ मिलता है !

पीठ की समस्या, घुटनो की समस्या आदि के लिए भी संबंधित पॉइंट्स को दबाने के अलावा संबंधित अंगो पर मालिश करना फायदेमंद होता है !

जाहिर सी बात है कि एक्यूप्रेशर के सभी पॉइंट्स पर दबाव व मालिश जितना ज्यादा प्राण ऊर्जा वाला व्यक्ति करेगा उतना जल्दी लाभ मिलेगा इसलिए अपनी किसी वर्षों पुरानी कठिन बीमारी से मुक्ति पाने के लिए या तो अधिक से अधिक अच्छे काम करके अपनी प्राण ऊर्जा बढाईये या कोई ऐसा एक्सपर्ट खोजिये जिसकी प्राण ऊर्जा आपसे कहीं ज्यादा हो !

(Part – 2) Do you know, the more you enhance your Pranic energy, the more beneficial results you will get surprisingly on the results of acupressure treatment for your and others’ illness

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