(भाग – 1) क्या आपको पता है कि, जैसे – जैसे आप अपनी प्राण ऊर्जा बढ़ाते जाएंगे, वैसे – वैसे एक्यूप्रेशर से आपकी और दूसरों की बिमारी में मिलने वाला लाभ भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ता जायेगा

जैसा की आपने कई बार देखा होगा कि “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए रिसर्चर्स हमेशा इसी प्रयास में लगे रहते हैं कि वे ऐसी क्या बिल्कुल नई जानकारियों, अविष्कारों की खोज कर सकें, जिनकी मदद से उन निराश, परेशान लोगों को भी लाभ मिल सके जिन्हे अब तक किसी अन्य उपाय से लाभ ना मिल पा रहा हो ! हमारे इस प्रयास को सफल बनाने के लिए पिछले कई वर्षों से हमारे स्वयं सेवी शोधकर्ता अपनी बड़ी मेहनत से खोजी गयी बेशकीमती जानकारियों को भी आसान व विस्तृत तरीके से हमारी इस वेबसाइट पर प्रकाशित करते आएं हैं ताकि अधिक से अधिक आम जनमानस घर बैठकर उनसे लाभान्वित हो सके वो भी एकदम मुफ्त में !

आपको शायद जानकार आश्चर्य होगा कि “स्वयं बनें गोपाल” समूह से ऐसे युवा रिसर्चर्स जुड़ें है जिन्होंने भले ही अपने प्रोफेशनल करियर के लिए इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट की पढ़ाई की हो, लेकिन योग – आयुर्वेद की लुप्त होती हुई दुर्लभ जानकारियों को खोज निकालने के लिए, उन्होंने योग – आयुर्वेद की लगभग 5 हजार से अधिक ऐसी किताबों को पढ़ डाला, जिनमें से कई दुर्लभ किताबे तो 100 साल से भी ज्यादा पुरानी थी (जबकि आम तौर पर, विद्वान माने जाने वाले MBBS, MD डॉक्टर्स भी अपनी चिकित्सकीय पढ़ाई के दौरान 500 से ज्यादा बुक्स नहीं पढ़ पातें हैं) और साथ ही उन्होंने काफी धैर्यपूर्वक मेहनत करके ऐसे दिव्य योगियों से भी दुर्लभ जानकारियां इकट्ठी करने की कोशिश की है, जिन्हे ईश्वर के साक्षात् दर्शन का महासौभाग्य प्राप्त था ! इसलिए ऐसे रिसर्चर्स के बेशकीमती अनुभवों के आधार पर लिखे गए आर्टिकल्स (जो हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित होतें हैं) अपने आप में एक “रिसर्च जर्नल” की तरह होते हैं !

तो आईये अब बात करतें हैं हमारे इन समर्पित शोधकर्ता द्वारा खोजे गए उन नायाब तथ्यों के बारे में, जिन्हे अपनाकर आप भी एक्यूप्रेशर चिकित्सा से अपनी बिमारी और दूसरों की बिमारी में मिलने वाले लाभ को आश्चर्यजनक रूप से कई गुना ज्यादा बढ़ा सकते हैं !

आम तौर पर लोग जानते हैं कि एक्यूप्रेशर चीन देश के लोगों द्वारा खोजी गयी चिकित्सा पद्धति है लेकिन वास्तविकता में ऐसा है नहीं क्योकि एक्यूप्रेशर पूरी तरह से एंशिएंट इंडियन साइंटिस्ट्स (यानी प्राचीन ऋषि – मुनियों – योगियों) द्वारा अविष्कृत की गयी चिकित्सा पद्धति है ! हालांकि इस करोड़ो साल पुराने तथ्य को साबित करने के लिए कोई गारंटीड सबूत तो उपलब्ध कराना मुश्किल है, लेकिन आज हम यहाँ एक ऐसी आसान विधि बता रहें हैं जिससे यह अपने आप साबित हो सकता है कि कैसे प्राचीन भारतीय सिद्धांत ही वर्तमान एक्यूप्रेशर चिकित्सा के मुख्य आधार हो सकतें हैं !

वास्तव में जिसे हम आज एक्यूप्रेशर थेरेपी (Acupressure Therapy) के नाम से जानते हैं उसी को कालांतर में कई भारतीय नामो से जाना जाता था जैसे मर्दन चिकित्सा (मालिश चिकित्सा), मर्म चिकित्सा, स्पर्श चिकित्सा, प्राण ऊर्जा चिकित्सा आदि ! कई अनुभवी लोगों का मानना है कि एक्यूप्रेशर अपने आप में एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है इसलिए बिना किसी भी दवा के मदद के, सिर्फ एक्यूप्रेशर से लगभग सभी छोटी – बड़ी बीमारियों में लाभ मिल सकता है ! प्राप्त जानकारी अनुसार एक्यूप्रेशर मामूली जुकाम से लेकर कैंसर, लकवा जैसी बड़ी माने जाने वाली बीमारियों से जुड़ी तकलीफों में भी लाभ पहुंचा सकता है (अधिक जानकारी के लिए कृपया मीडिया में प्रकाशित यह खबर पढ़ें- एक्यूप्रेशर विधि से कैंसर के इलाज का दावा) ! डायबिटिज, ब्लड प्रेशर जैसी जिद्दी बीमारियों के अलावा किडनी, लिवर, हार्ट (ब्लॉकेज), आंत, ह्रदय, ब्रेन, फेफड़ा, थायराइड, आँख, बाल, दांत, मसूढ़े, गर्दन, कान, पीठ, गुदा (कब्ज, बवासीर आदि), घुटना (गठिया), कमर, हड्डियां, त्वचा आदि से जुड़ी वर्षो पुरानी समस्याओं में भी जल्दी लाभ पंहुचा सकता है एक्यूप्रेशर !

आईये अब सबसे पहले एक्यूप्रेशर के बेसिक कांसेप्ट को समझते हैं ! एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार शरीर के रोगों के इलाज के किये शरीर की त्वचा पर अलग – अलग जगह बने हुए विशेष पॉइंट्स पर थोड़ी देर तक दबाव दिया जाता है ! वैसे तो एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट्स शरीर में रोगों के इलाज के लिए कुछ विशेष पॉइंट्स (लगभग 361 पॉइंट्स) को ही तवज्जो देतें है लेकिन हमारे शोधकर्ताओं ने अपने अनुभव से जाना है कि शरीर का कौन सा ऐसा स्थान (यानी पॉइंट) नहीं है जो विशेष ना हो किसी ना किसी अंग की बिमारी में आराम पहुँचाने के लिए (ठीक उसी तरह जैसे करोड़ों वर्ष पुराना हमारा आयुर्वेद कहता है कि दुनिया का कोई भी पेड़ – पौधा ऐसा नहीं है जो विशेष ना हो किसी ना किसी बिमारी की दवा बनाने के लिए) !

इसलिए प्राचीन काल में पूरे शरीर की रोज विधिवत तेल मालिश करने की कंपल्सरी आदत बच्चों को बचपन से सिखाई जाती थी ताकि शरीर में स्थित सारे एक्यूप्रेशर पॉइंट्स पर रोज दबाव पड़ सके (जिससे कई बीमारियां होने नहीं पाती थी और जो बीमारियां पहले से शरीर में थी उनमें भी अपने आप आराम मिलने लगता था) !

लेकिन अगर प्रारब्ध प्रबल हो तो, अनुशासित दिनचर्या जीने वाला आदमी भी, कभी भी बीमार पड़ सकता है, जैसे संतुलित जीवन जीने वाले महान योगी श्री गौतम बुद्ध भी एक बार काफी बीमार पड़ गए थे (पूर्व जन्म की किसी गलती के प्रायश्चित स्वरुप उन्हें वो बिमारी हुई थी) और श्री बुद्ध खुद से अपनी बिमारी ठीक नहीं कर पा रहे थे !

तब शिष्यों को निवेदन पर श्री बुद्ध ने उस समय के विश्व प्रसिद्ध वैद्य जीवक जी को बुलवाया, तो जीवक जी ने आकर श्री बुद्ध से आश्चर्य से पूछा कि मेरा जैसा महामूर्ख जो कि खुद भव रोग से पीड़ित है वो आप जैसे महान व्यक्ति की बीमारी कैसे दूर कर सकता है (मतलब आपके दिव्य व्यक्तित्व के आगे मेरी क्या औकात है) ! तब श्री बुद्ध ने जीवक जी को समझाया कि इस मृत्युलोक में जन्म लेने वाला कोई भी प्राणी सर्वसमर्थ (यानी सब कुछ करने में सक्षम) नहीं हो सकता है इसलिए सभी को, कभी ना कभी दूसरों की किसी ना किसी तरह की मदद की आवश्यकता पड़ सकती है, जैसे आज मै अपनी बिमारी को अपने योगाभ्यास से ठीक नहीं कर पा रहा हूँ इसलिए मै तुम्हारा शुक्रगुजार रहूंगा अगर तुम अपने आयुर्वेद से मेरी बिमारी को ठीक कर सको ! तब जीवक जी ने गाय माँ की घी से कोई दवा बनाकर श्री बुद्ध जी को दी जिससे बुद्ध जी एकदम ठीक हो गए !

कहने का मतलब यह है कि अच्छी दिनचर्या के बावजूद भी, कोई भी, कभी भी बीमार पड़ सकता है और यह जरूरी नहीं है कि एक ही इलाज पद्धति से सभी रोगी ठीक हो सकें इसलिए जरूरत पड़ने पर अपनी समस्या को ठीक करने के लिए, किसी अन्य चिकित्सा पद्धति के जानकार से भी मदद लेने से संकोच नहीं करना चाहिए (जैसे आपने अक्सर सुना होगा कि कई प्रसिद्ध डॉक्टर्स जिन्होंने अपनी चिकित्सा पद्धति से लाखों मरीजों का इलाज किया लेकिन उनकी खुद की बीमारी वो ठीक ना कर सके, इसलिए उन्होंने दूसरे चिकित्सा पद्धति के डॉक्टर्स की मदद से अपनी बिमारी ठीक की) !

यहाँ पर इस बात को इसलिए बताया जा रहा है क्योकि आज भी कई सो कॉल्ड पढ़े – लिखे लोग (जिनसे आम तौर पर ये उम्मीद की जाती है उनके दिमाग की बुद्धि व तर्क शक्ति, आम जनता से ज्यादा विकसित होगी) हर तरह की नेचुरल चिकित्सा (जैसे- योग, आयुर्वेद, एक्यूप्रेशर आदि) को “लोअर क्लास ट्रीटमेंट” (मतलब जूनियर, अनपढ़, गँवार, झोलाछाप व नीम हकीम द्वारा किये जाना वाला ट्रीटमेंट) मानते हैं ! जबकि प्राचीन काल में (जब ऐलोपैथी की पैदाइश ही नहीं थी) नेचुरोपैथी की एक्यूप्रेशर वाली ब्रांच का एक्सपर्ट बनने के लिए ऐसे कठिन एग्जाम पास करने पड़ते थे, जो कि सिर्फ किसी परम् परोपकारी योगी, ऋषि, मुनि के ही वश की बात थी (क्योकि एक्यूप्रेशर का एक्सपर्ट बनने के लिए जिस लेवल की प्राण ऊर्जा चाहिए होती थी वो कोई बेहद परोपकारी योगी ही प्राप्त कर सकता था; हमारी इस खोज का इस आर्टिकल में आगे विस्तार से वर्णन है) !

(चूंकि यह आर्टिकल सिर्फ एक्यूप्रेशर पर ही आधारित है इसलिए) अब हम बात करते हैं कि आखिर प्राचीन काल में एक्यूप्रेशर (यानी मर्म या मर्दन या स्पर्श या प्राण ऊर्जा चिकित्सा) का एक्सपर्ट सिर्फ योगी, ऋषि, मुनि ही क्यों बन पाते थे !

आईये इस तथ्य को आसान उदाहरण से समझतें है, जैसे- मान लीजिये आपको अक्सर सिर में दर्द होता हो और आपको एलोपैथी में सिर दर्द की पेनकिलर दवा के बारे में पता हो तो आप उस दवा को हर बार खरीदकर खा लेते है जिससे आपको आराम मिल जाता है ! लेकिन अगर आप बार – बार के होने वाले सिर दर्द से थक गए हों तो आप इसके बेहतर इलाज के लिए किसी जानकार एलोपैथिक डॉक्टर के पास जायेंगे {लेकिन एक्यूप्रेशर से इलाज करवाने के इच्छुक ज्यादातर मरीज, किसी एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट (यानी बोलचाल की भाषा में जिन्हे कई लोग एक्यूप्रेशर का डॉक्टर भी कहते हैं) की मदद नहीं लेते हैं} !



क्योकि, अब मान लीजिये कि आपको सिर दर्द को दूर करने के लिए कुछ एक्यूप्रेशर पॉइंट्स के बारे में भी पता चल गया जिन्हे दबाने से आपको सिर दर्द में आराम मिलता है तो फिर आपको क्या जरूरत है किसी एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट के पास जाकर, पैसा खर्च करके उन्ही पॉइंट्स को उस एक्सपर्ट से दबवाने की ! देखा जाए तो यह एकदम सही बात है कि जब एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट भी फीस लेकर वही पॉइंट्स दबाएंगे, तब बेहतर है कि आप उन्ही पॉइंट्स को मुफ्त में अपने हाथों से या अपने परिवार में किसी सदस्य के हाथों से दबवा लें !

तो यहीं पर काम करती है हमारे रिसर्चर द्वारा खोजी गयी अद्भुत थ्योरी ! हमारे रिसर्चर के अनुसार, यह सही है कि एक्यूप्रेशर पॉइंट्स को चाहे आप खुद दबाएं या कोई दूसरा एक्सपर्ट, फायदा तो उतना ही मिलेगा, जब तक कि निम्नलिखित दो वजहें ना हों-

पहली वजह- हो सकता हो कि एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट को आपसे अधिक व शक्तिशाली एक्यूप्रेशर पॉइंट्स के बारे में पता हो इसलिए एक्सपर्ट से दबवाने से आपको लाभ ज्यादा मिल सकता है (हालांकि आज के इंटरनेट के युग में कोई भी आदमी मोबाइल की मदद से लगभग सभी एक्यूप्रेशर पॉइंट्स के बारे में जान सकता है, इसलिए यह जरूरी नहीं है कि एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट्स किसी बिमारी को ठीक कर सकने वाले पॉइंट्स के मामले में हमेशा आपसे अधिक जानते हों) !

दूसरी वजह- हो सकता हो कि एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट के शरीर की प्राण ऊर्जा आपसे कहीं ज्यादा हो इसलिए उनके हाथ से आपके शरीर के पॉइंट्स को दबाने पर आपकी बिमारी में बहुत ज्यादा लाभ मिल सकता है !

यह जो दूसरी वजह है, वास्तव में उसी में राज छिपा है प्राचीन योगियों द्वारा एक्यूप्रेशर से आश्चर्यजनक लाभ पहुंचाने का ! देखिये होता यह है कि जब कोई साधारण आदमी अपनी किसी बिमारी को ठीक करने के लिए अपने शरीर पर स्थित एक्यूप्रेशर पॉइंट्स को खुद अपने हाथ की उँगलियों से दबाता है तो उसे साधारण लाभ मिलता है, क्योकि साधारण आदमी के हाथ की उँगलियों से निकलने वाली प्राण ऊर्जा भी साधारण होती है ! लेकिन जब उसी साधारण आदमी के शरीर पर स्थित एक्यूप्रेशर पॉइंट्स को कोई असाधारण प्राण ऊर्जा वाला आदमी अपने हाथों से दबाता है तो असाधारण लाभ मिलता है क्योकि असाधारण प्राण ऊर्जा वाले व्यक्ति के हाथों की उँगलियों से जो असाधारण प्राण ऊर्जा निकलती वो ज्यादा प्रभावी तरीके से उस साधारण प्राण ऊर्जा वाले व्यक्ति के शरीर पर स्थित पॉइंट को एक्टिवेट कर पाती है !

इसलिए प्राचीन काल में एक्यूप्रेशर से बीमार लोगों के इलाज का काम, हर कोई नहीं करता था बल्कि सिर्फ वही लोग करते थे जिनके खुद के शरीर की प्राण ऊर्जा, आम जनता से ज्यादा थी ! पुराने जमाने में एक्यूप्रेशर का सामान्य फायदा तो लगभग सभी लोग घर में रोज खुद से मालिश करके पा लेते थे (जिनसे उनको जल्दी कोई बीमारी होने नहीं पाती थी), इसलिए लोग किसी एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट के पास सिर्फ तभी जाते थे जब उनकी कोई बिमारी, उनके खुद के द्वारा की जाने वाली मालिश से ठीक नहीं हो पा रही होती थी (यानी लोगो द्वारा खुद से मालिश करने के दौरान जो प्राण ऊर्जा उनके एक्यूप्रेशर पॉइंट्स से अंदर जा रही थी वो कम मात्रा में थी इसलिए उनकी बिमारी ठीक नहीं हो पा रही थी) ! अतः प्राचीन काल में अगर किसी को एक्यूप्रेशर का एक्सपर्ट बनना होता था तो उसे सिर्फ एक्यूप्रेशर पॉइंट्स की जानकारी होना पर्याप्त नहीं था, बल्कि उसे मेहनत करके अपने शरीर की प्राण ऊर्जा भी बढ़ानी होती थी (किस तरह की मेहनत से प्राण ऊर्जा बढ़ सकती है इसका वर्णन भी आगे इस आर्टिकल में किया गया है) !

आईये हमारे रिसर्चर की इस खोज को और ज्यादा आसानी से समझतें हैं ! जैसा कि हमने पूर्व के आर्टिकल्स में भी बताया है कि योग शास्त्र के अनुसार शरीर के किसी अंग में कोई बिमारी सिर्फ तभी पैदा हो सकती है जब उस अंग में प्राण ऊर्जा का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता हो ! मतलब जिस अंग में प्राण ऊर्जा का प्रवाह जितना बेढंगे होता है, उस अंग में उतनी ही ज्यादा बड़ी बिमारी होती है ! इसलिए एक्यूप्रेशर समेत दुनिया की चाहे कोई भी चिकित्सा पद्धति हो वो किसी अंग की बिमारी तभी ठीक कर सकती है जब उस अंग में प्राण ऊर्जा का प्रवाह ठीक कर सके !

एक्यूप्रेशर चिकित्सा का भी यही सिद्धांत है कि शरीर पर स्थित पॉइंट्स पर प्रेशर देने से यानी पॉइंट को एक्टिवेट (या चार्ज) करने से किसी अंग की प्राण ऊर्जा में आ रहा व्यवधान धीरे – धीरे दूर होता है, (जिससे बीमारी में आराम मिलता है) लेकिन अब यहाँ मुख्य बात ध्यान देने वाली यह है कि जब किसी पॉइंट पर प्रेशर देने वाला कोई असाधारण प्राण ऊर्जा का मालिक होता है तो प्रेशर देते समय, प्रेशर के साथ – साथ उसकी प्राण ऊर्जा भी उस रोगी आदमी के अंदर जाती है जिससे उस रोगी आदमी के अंग में आयी खराबी (यानी प्राण ऊर्जा में बाधा) बहुत तेजी से दूर होती है !

वैसे तो एक्यूप्रेशर पॉइंट्स पर विभिन्न टूल्स व मशीनों से भी दबाव डालकर लाभ पाया जा सकता है, लेकिन जब कोई आदमी अपने हाथ की उँगलियों से किसी एक्यूप्रेशर पॉइंट को दबाता है (भले ही वह आदमी हथेली में स्थित निडिल से पॉइंट्स को दबाये या हाथ में दस्ताने पहनकर दबाये) तो भी उसकी हाथ की उँगलियों से उसकी अदृश्य प्राण ऊर्जा भी थोड़ी – बहुत मात्रा में उस एक्यूप्रेशर पॉइंट के अंदर तक पहुँच जाती है, और प्राण ऊर्जा जितनी ज्यादा अंदर पहुंचती है उतना ही ज्यादा तेजी से बिमारी का कारण (यानी बीमार आदमी के किसी अंग में प्राण ऊर्जा के प्रवाह में दिक्क्त पैदा करने वाली रुकावट) दूर होती है !

मतलब एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट के शरीर की प्राण ऊर्जा जितनी ज्यादा होगी उतना ही ज्यादा उसकी प्राण ऊर्जा उसके हाथ की उंगलियों से होते हुए बीमार आदमी के अंदर जाकर बीमार आदमी को फायदा पहुचायेंगी, इसलिए अगर कोरोना जैसे किसी इन्फेक्शन का डर ना हो तो बेहतर होता है कि एक्यूप्रेशर पॉइंट पर प्रेशर देते समय हाथ में दस्ताने आदि जैसी चीजें नहीं पहननी चाहिए ताकि अधिक से अधिक प्राण ऊर्जा बीमार आदमी के शरीर के पीड़ित अंग के अंदर समा सकें !

[इसलिए इस प्रक्रिया को कुछ लोग “स्पर्श चिकित्सा” के नाम से भी जानते हैं क्योकि इसमें अधिक प्राण ऊर्जा वाले एक्सपर्ट की उंगलियों द्वारा सीधे मरीज के शरीर के पॉइंट्स पर दबाव युक्त स्पर्श (touch) करने से मरीज जल्दी लाभ प्राप्त कर सकतें हैं !

चूंकि शरीर में कई मर्म स्थान भी होतें हैं जो इस चिकित्सा से प्रभावित होते हैं इसलिए इसे “मर्म चिकित्सा” भी कहा जा सकता है ! शरीर में जिस स्थान पर मांस, स्नायु, सिरा, अस्थि, संधि का प्राण से विशेष समागम होता है, वे मर्म स्थान (नाड़ी मंडल) कहलाते हैं और जिनकी संख्या कई आधुनिक एक्सपर्ट 107 मानते हैं (जबकि हमारे रिसर्च की खोज के हिसाब से मर्म स्थान 107 नहीं, बल्कि 109 हैं, जिनके बारें में हम अलग से एक विस्तृत आर्टिकल बाद में प्रकाशित करेंगे) !

मर्म स्थान इसलिए महत्वपूर्ण माने जाते है क्योकि इन पर गलत तरीके से चोट लगने पर मौत भी हो सकती है (जैसा की बॉक्सिंग के मैच व एक्सीडेंट आदि के दौरान हो सकता है) और सही तरीके से दबाव देने से बीमारी जादू की तरह गायब हो सकती है इसलिए कई बार देखा गया है कि पूरे शरीर के हर एक अंग की रोज खूब देर तक मालिश करने मात्र से बड़ी से बड़ी बिमारी में भी बिना किसी दवा के, आश्चर्यजनक लाभ मिलता है (क्योकि मालिश करने से सभी मर्म स्थानों पर बहुत अच्छा असर पड़ता है इसलिए इसे “मर्दन या मालिश चिकित्सा” भी कहते हैं) !

भारतीय सनातन धर्म कितना साइंटिफिक है आप इस बात से भी समझ सकतें है कि आदि काल से ही हमारे यहाँ 109 दानों की माला (रुद्राक्ष, तुलसी आदि से बनी हुई माला जिसमें 108 दानों के अलावा 1 सुमेरु दाना भी होता है) का इस्तेमाल होते आ रहा है गले में पहनने के लिए, जिससे शरीर में स्थित सभी मर्म स्थल लाभान्वित होते है !

चूंकि एक्यूप्रेशर में प्राण ऊर्जा का भी जाने – अनजाने में इस्तेमाल होता है इसलिए इसे “प्राण ऊर्जा चिकित्सा” भी कहा जा सकता है ! आम तौर पर प्राण ऊर्जा चिकित्सा के बारे में लोग जानते है कि इसमें मानसिक ध्यान द्वारा अपनी प्राण ऊर्जा को या वातावरण में स्थित प्राण ऊर्जा को खींचकर बीमार आदमी के शरीर के अंदर डाला जाता है जिसे आजकल लोग रेकी या प्राणिक हीलिंग (Reiki; Pranic Healing) के नाम से भी जानते हैं, पर वास्तव में ये मूलतः ध्यान चिकित्सा की एक विधि है (ध्यान चिकित्सा में इस तरह के बहुत से प्रयोगो का वर्णन सुनने को मिलता है जिसमें बीमार आदमी विभिन्न स्रोतों जैसे ईश्वर के साकार रूप या मूर्ती से निकलने वाले दिव्य प्रकाश, हृदय में स्थित प्रकाश, एटमॉस्फेरिक एनर्जी, पॉजिटिव थिंकिंग या निराकार ईश्वर की विचार हीनता आदि युक्त मानसिक ध्यान से अपने शरीर की बिमारी को दूर करने का प्रयास करता है) ] !

सारांश यही है कि आपके शरीर पर स्थित किसी एक्यूप्रेशर पॉइंट को आपके बजाय, आपसे ज्यादा प्राण ऊर्जा वाला कोई व्यक्ति अपने हाथो से दबाएगा तो आपको जल्दी फायदा मिलेगा (क्योकि उसकी ज्यादा प्राण ऊर्जा आपके शरीर के उस पॉइंट से अंदर जाकर उस अंग के प्राण प्रवाह को जल्दी ठीक कर सकता है) !

यहाँ इस शंका का निवारण भी जरूरी है कि एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट की प्राण ऊर्जा, पॉइंट्स पर दबाव देते समय अगर बीमार आदमी के अंदर जाती है तो बीमार आदमी का तो भला हो जाएगा लेकिन उस एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट की प्राण ऊर्जा कम हो जायेगी जिससे एक्सपर्ट के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है ! यह भ्रम पूरी तरह से गलत है क्योकि माना जाता है कि शरीर से जितनी प्राण ऊर्जा बाहर निकलती है उतनी ही ऊर्जा अपने आप ब्रह्माण्ड से वापस खींचकर शरीर के अंदर तुरंत समा जाती है इसलिए शरीर में प्राण ऊर्जा कभी भी कम नहीं होने पाती है !

अब यहां पर कई महत्वपूर्ण प्रश्न पैदा होतें है, जैसे- प्राण ऊर्जा होती क्या है, यह शरीर में आती कहाँ से है, क्यों किसी मानव के शरीर में कम या ज्यादा प्राण ऊर्जा होती है, क्या कोई तरीका है अपनी खुद की प्राण ऊर्जा बढ़ाने का, और अधिक प्राण ऊर्जा वाले व्यक्ति को कैसे पहचाना जा सकता है, आदि ! इन सभी आवश्यक प्रश्नो का उत्तर जानने के लिए कृपया इस आर्टिकल का दूसरा भाग पढ़ें इस लिंक पर क्लिक करके- (भाग – 2) क्या आपको पता है कि, जैसे – जैसे आप अपनी प्राण ऊर्जा बढ़ाते जाएंगे, वैसे – वैसे एक्यूप्रेशर से आपकी और दूसरों की बिमारी में मिलने वाला लाभ भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ता जायेगा

(Part – 1) Do you know, the more you enhance your Pranic energy, the more beneficial results you will get surprisingly on the results of acupressure treatment for your and others’ illness

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