Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को

कहानी – अनबोला (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

उसके जाल में सीपियाँ उलझ गयी थीं। जग्गैया से उसने कहा-”इसे फैलाती हूँ, तू सुलझा दे।” जग्गैया ने कहा-”मैं क्या तेरा नौकर हूँ?”   कामैया ने तिनककर अपने खेलने का छोटा-सा जाल और भी...

आत्मकथा – चुनार – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

रामचन्‍द्र भगवानद्य सरयू नदी के किनारे पैदा हुए थे, मैं पैदा हुआ गंगा सुरसरि के किनारे। मुझे सरयू उतनी अच्‍छी नहीं लगतीं जितनी नर, नाग, विबुध बन्‍दनी गंगा। रामचन्‍द्र भगवान् अयोध्‍या नगरी में पैदा...

कहानी – सेवा-मार्ग – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

‘तारा ने बारह वर्ष दुर्गा की तपस्या की। न पलंग पर सोयी, न केशो को सँवारा और न नेत्रों में सुर्मा लगाया। पृथ्वी पर सोती, गेरुआ वस्त्र पहनती और रूखी रोटियाँ खाती। उसका मुख...

आत्मकथा – नागा भागवतदास – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

यह सन् 1910 ई. है। और यह नगर? इसका नाम है मिण्‍टगुमरी! मिण्‍टगुमरी? यह नगर कहाँ है रे बाबा! यह नगर इस समय पश्चिमी पाकिस्‍तान में है, लेकिन जब की बात लिखी जा रही...

कहानी – ज्योतिष्मती (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

तामसी रजनी के हृदय में नक्षत्र जगमगा रहे थे। शीतल पवन की चादर उन्हें ढँक लेना चाहती थी, परन्तु वे निविड़ अन्धकार को भेदकर निकल आये थे, फिर यह झीना आवरण क्या था! बीहड़,...

आत्मकथा – राममनोहरदास – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

महन्‍त भागवतदास ‘कानियाँ’ की नागा-जमात के साथ मैंने पंजाब और नार्थवेस्‍ट फ्रण्टियर प्राविंस का लीला-भ्रमण किया। अमृतसर, लाहौर, सरगोधा मण्‍डी, चूहड़ काणा, पिंड दादन खाँ, मिण्‍टगुमरी, कोहाट और बन्‍नू तक रामलीलाओं में अपने राम...

आत्मकथा – भानुप्रताप तिवारी – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

बचपन में मेरे मुहल्‍ले में दो हस्तियाँ ऐसी थीं जिनका कमोबेश प्रभाव मुझ पर सारे जीवन रहा। उनमें एक थे भानुप्रताप तिवारी (जब मैं सात बरस का था, वह साठ के रहे होंगे), दूसरे...

कहानी – धर्मसंकट – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

पुरुषों और स्त्रियों में बड़ा अन्तर है, तुम लोगों का हृदय शीशे की तरह कठोर होता है और हमारा हृदय नरम, वह विरह की आँच नहीं सह सकता।’ ‘शीशा ठेस लगते ही टूट जाता...

आत्मकथा – बच्चा महाराज – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

‘बाबू!’ जवान लड़के ने वृद्ध, धनिक और पुत्रवत्‍सल पिता को सम्‍बोधित किया। ‘बचवा… !’ ‘मिर्ज़ापुर में पुलिस सब-इन्‍स्‍पेक्‍टर की नौकरी मेरा एक दोस्‍त, जो कि पुलिस में है, मुझे दिलाने को तैयार है। क्‍या...

कहानी – सहयोग (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

मनोरमा, एक भूल से सचेत होकर जब तक उसे सुधारने में लगती है, तब तक उसकी दूसरी भूल उसे अपनी मनुष्यता पर ही सन्देह दिलाने लगती है। प्रतिदिन प्रतिक्षण भूल की अविच्छिन्न शृंखला मानव-जीवन...

कहानी – बलिदान – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मनुष्य की आर्थिक अवस्था का सबसे ज्यादा असर उसके नाम पर पड़ता है। मौजे बेला के मँगरू ठाकुर जब से कान्सटेबल हो गए हैं, इनका नाम मंगलसिंह हो गया है। अब उन्हें कोई मंगरू...

आत्मकथा – पं. जगन्नाथ पाँडे – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

अब मैं चौदह साल का हो चला था कि रामलीला-मण्‍डली से छुट्टी मनाने बड़़े भाई के संग चुनार आया। इस बार अलीगढ़ में किसी बात पर महन्‍त राममनोहरदास और मेरे बड़े भाई में वाद-विवाद...

कहानी – रमला (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

साजन के मन में नित्य वसन्त था। वही वसन्त जो उत्साह और उदासी का समझौता कराता, वह जीवन के उत्साह से कभी विरत नहीं, न-जाने कौन-सी आशा की लता उसके मन में कली लेती...

आत्मकथा – लाला भगवान ‘दीन’ – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

अरसा हुआ वाराणसी के दैनिक अखबार ‘आज’ में आदरणीय पं. श्रीकृष्‍णदत्तजी पालीवाल की चर्चा करते हुए मैंने लिखा था कि मेरे पाँच गुरु हैं, जिनमें एक पालीवालजी भी हैं। उन पाँचों में मैं अपने...

कहानी – ज्वालामुखी – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

डिग्री लेने के बाद मैं नित्य लाइब्रेरी जाया करता। पत्रों या किताबों का अवलोकन करने के लिए नहीं। किताबों को तो मैंने न छूने की कसम खा ली थी। जिस दिन गजट में अपना...

आत्मकथा – पं. बाबूराव विष्णु पराड़कर’ – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

यह चर्चा सन् 1920 और 21 ई. के बीच की होगी। यह सब मैं स्‍मरण से लिख रहा हूँ, क्‍योंकि डायरी रखने की आदत मैंने नहीं पाली, इस ख़ौफ़ से कि कहीं राजा हरिश्‍चन्‍द्र...