Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को
मियाँ आजाद साँड़नी पर बैठे हुए एक दिन सैर करने निकले, तो एक सराय में जा पहुँचे। देखा, एक बरामदे में चार-पाँच आदमी फर्श पर बैठे धुआँधार हुक्के उड़ा रहे हैं, गिलौरी चबा रहे...
आजाद को नवाब साहब के दरबार से चले महीनों गुजर गए, यहाँ तक कि मुहर्रम आ गया। घर से निकले, तो देखते क्या हैं, घर-घर कुहराम मचा हुआ है, सारा शहर हुसेन का मातम...
वसंत के दिन आए। आजाद को कोई फिक्र तो थी ही नहीं, सोचे, आज वसंत की बहार देखनी चाहिए। घर से निकल खड़े हुए, तो देखा कि हर चीज जर्द है, पेड़-पत्ते जर्द, दरो-दीवार...
एक दिन आजाद शहर की सैर करते हुए एक मकतबखाने में जा पहुँचे। देखा, एक मौलवी साहब खटिया पर उकड़ू बैठे हुए लड़कों को पढ़ा रहे हैं। आपकी रँगी हुई दाढ़ी पेट पर लहरा...
आजाद तो इधर साँड़नी को सराय में बाँधे हुए मजे से सैर-सपाटे कर रहे थे, उधर नवाब साहब के यहाँ रोज उनका इंतिजार रहता था कि आज आजाद आते होंगे और सफशिकन को अपने...
इधर शिवाले का घंटा बजा ठनाठन, उधर दो नाकों से सुबह की तोप दगी दनादन। मियाँ आजाद अपने एक दोस्त के साथ सैर करते हुए बस्ती के बाहर जा पहुँचे। क्या देखते हैं, एक...
मियाँ आजाद ठोकरें खाते, डंडा हिलाते, मारे-मारे फिरते थे कि यकायक सड़क पर एक खूबसूरत जवान से मुलाकात हुई। उसने इन्हें नजर भर कर देखा, पर यह पहचान न सके। आगे बढ़ने ही को...
मियाँ आजाद एक दिन चले जाते थे। क्या देखते हैं, एक पुरानी-धुरानी गड़हिया के किनारे एक दढ़ियल बैठे काई की कैफियत देख रहे हैं।कभी ढेला उठाकर फेंका, छप। बुड्ढे आदमी और लौंडे बने जाते...
मियाँ आजाद के पाँव में तो आँधी रोग था। इधर-उधर चक्कर लगाए, रास्ता नापा और पड़ कर सो रहे। एक दिन साँड़नी की खबर लेने के लिए सराय की तरफ गए, तो देखा, बड़ी...
आजाद के दिल में एक दिन समाई कि आज किसी मसजिद में नमाज पढ़े, जुमे का दिन है, जामे-मसजिद में खूब जमाव होगा। फौरन मसजिद में आ पहुँचे। क्या देखते हैं, बड़े-बड़े जहिद और...
मियाँ आजाद एक दिन चले जाते थे, तो देखते क्या हैं, एक चौराहे के नुक्कड़ पर भंगवाले की दुकान है और उस पर उनके एक लँगोटिए यार बैठे डींग की ले रहे हैं। हमने...
एक दिन मियाँ आजाद साँड़नी पर सवार हो घूमने निकले, तो एक थिएटर में जा पहुँचे। सैलानी आदमी तो थे ही, थिएटर देखने लगे, तो वक्त का खयाल ही न रहा। थिएटर बंद हुआ,...
मियाँ आजाद रेल पर बैठ कर नाविल पढ़ रहे थे कि एक साहब ने पूछा – जनाब, दो-एक दम लगाइए, तो पेचवान हाजिर है। वल्लाह, वह धुआँधार पिलाऊँ कि दिल फड़क उठे। मगर याद...
मियाँ आजाद के पाँव में तो सनीचर था। दो दिन कहीं टिक जायँ तो तलवे खुजलाने लगें। पतंगबाज के यहाँ चार-पाँच दिन जो जम गए, तो तबीयत घबराने लगी लखनऊ की याद आई। सोचे,...