(भाग – 3) शरीर के किसी भी रोगों के कारण टोक्सिंस (विष) को इस तरह विषहर्ता भगवान शिव को समर्पित करके बनिए रोगमुक्त (श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी आत्मकथा)
गृहस्थ संत परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे (श्री पाण्डेय जी का संक्षिप्त जीवन परिचय जानने के लिए कृपया उनसे सम्बन्धित पूर्व प्रकाशित आर्टिकल्स को पढ़ें जिनके लिंक्स इस आर्टिकल के नीचे दिए गएँ हैं) !
लेकिन श्री पाण्डेय जी का भगवान शिव की भक्ति करने का तरीका भी निराला था, जैसे- भगवान शिव के अधिकाँश भक्त शिवरात्रि के पावन पर्व पर व्रत रहते हैं, लेकिन श्री पाण्डेय जी का मानना था कि आज के दिन भूखे रहने की क्या जरूरत है क्योकि आज तो भगवान शिव व माता पार्वती की मैरिज एनिवर्सरी (शादी की सालगिरह) है इसलिए आज तो सेलिब्रेट करने की जरूरत है ! अतः शिवरात्रि के दिन वो घर में भजन उत्सव का आयोजन करते थे जिसमें कई लोग शामिल होते थे और साथ ही साथ स्वादिष्ट पकवान बनवाते थे जिसे गरीबो में भी बाटते थे !
श्री पाण्डेय जी भगवान के शिव रूप के बहुत बड़े प्रशंसक थे ! उनका कहना था कि भगवान ने शिव रूप धारण ही इसलिए किया है ताकि वे हलाहल विष की ही तरह अपने भक्तों को तकलीफ देने वाले सभी विष (चाहे वे विष किसी शारीरिक या मानसिक बिमारी पैदा करने वाले टोक्सिन के रूप में हो या किसी सामाजिक या पारिवारिक कष्ट के रूप में हो) को खुद अपने शरीर में धारण कर लें, जिससे उनके भक्त तकलीफों से मुक्त रह सकें !
यहाँ पर यह बात भी ध्यान से समझने की ज़रूरत है कि पाण्डेय जी जैसे सभी उच्च मानसिकता के व्यक्ति जानते थे कि सिर्फ पूजा पाठ करने वाले लोगों को भक्त नहीं कहा जा सकता है क्योकि असली भक्त वही होता है जो अपने आराध्य ईश्वर के अधिक से अधिक गुणों को अपने अंदर आत्मसात करने की निरंतर कोशिश करता रहता है !
अतः जैसे भगवान् शिव दूसरों का जीवन बचाने के लिए खुद तुरंत हलाहल विष पीने को तैयार हो गए थे उसी तरह भगवान शिव का असली भक्त वही है जो दूसरों की भलाई के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार सभी उचित कर्मों को करने से भी ना हिचकिचाए ! और इसी परोपकार धर्म का आजीवन पालन किया था श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी ने !
आईये आज हम बात करते हैं खुद पाण्डेय जी के साथ हुई एक आश्चर्यजनक घटना के बारे में जिसमे उन्हें भगवान शिव की कृपा से अपने कठिन रोग से मुक्ति मिली थी !
वैसे तो पाण्डेय जी एक बेहद स्वस्थ, मजबूत किस्म के आदमी थे जिसकी वजह से वो कभी बीमार पड़ते ही नहीं थे ! इसका एक कारण था उनकी मेहनत भरी दिनचर्या ! वो अपने जमाने में सबसे सफल वकीलों में से एक थे जिसकी वजह से कोर्ट (Court) में प्रैक्टिस के दौरान, सुबह से शाम तक उनकी फिजिकल एक्टिविटीज काफी होती थी, इसके अलावा वो रोज अपने शरीर की सरसों के तेल से विधिवत मालिश करने जैसे स्वास्थ्यवर्धक कार्य करना नही भूलते थे !
लेकिन जैसे इस कलियुग में भगवान गौतम बुद्ध आदि को भी कभी ना कभी शारीरिक रूप से रोग ग्रस्त होना पड़ा था, ठीक उसी तरह श्री पाण्डेय जी ने भी वृद्धावस्था में एक बार काफी तकलीफ झेली थी जब उनके पैर में लगी एक मामूली चोट धीरे – धीरे बढ़ते हुए एक इतने बड़े ब्यायल (फोड़ा; boil or tumour) में बदल गयी थी, कि डॉक्टर ने कहा कि अगर इसका जल्द ही ऑपरेशन ना किया गया तो फैलते जहर की वजह से पैर को एम्पुटेट (amputate; पैर काट डालना) करने की नौबत भी आ सकती है !
सभी महान पुरुषो के जीवन की ही तरह श्री पाण्डेय जी के जीवन में भी एक से बढ़कर एक तकलीफें आई थी, जिनका सामना पाण्डेय जी ने बिना घबराये हुए डटकर किया था, और इसी आत्मविश्वास से उन्होंने इस बार भी अपने सभी स्वजनों को आश्वासन देते हुए कहा कि तुम लोग घबराओ मत, मेरे शरीर पर आज तक ना तो किसी डॉक्टर को चीर – फाड़ (यानी ऑपरेशन) करने की नौबत आई है और ना ही मेरे जीते जी आएगी !
पाण्डेय जी के पैर में हुए फोड़े का साईज तेजी से बढ़ता जा रहा था जिसकी वजह से उनके घर वाले घबराए हुए थे कि जल्द ही डॉक्टर की सलाह ना मानी तो जहर पूरे पैर को खराब कर सकता है ! इसलिए आनन – फानन में घर वालों ने डॉक्टर से कह दिया कि आपको जो भी ठीक लगे उसे अगले ही दिन कर दीजिये !
घर वाले भी इस बात से भी बहुत हैरान थे कि, ना जाने कितने ही लोगों की कठिन बिमारियों को ठीक करने में अत्यंत सहायक साबित होने वाले श्री पाण्डेय जी आज खुद की बिमारी क्यों नही ठीक कर पा रहें हैं !
पाण्डेय जी ने सोचा कि कल डॉक्टर क्या फैसला लेगा यह कल देखा जाएगा, फिलहाल आज मेरे पास एक रात का समय तो बचा ही है भगवान से प्रार्थना करने के लिए; इसलिए मै एक बार भगवान् से सहायता प्राप्त करने का प्रयास करके देखता हूँ, बाकि जैसी प्रभु की इच्छा !
उसके बाद पाण्डेय जी ने बिस्तर पर लेटकर मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करते हुए प्रार्थना कि, हे भगवान शिव आपने हमेशा से अपने भक्तो के सभी दुखों को समाप्त किया है इसलिए आज मुझ तुच्छ प्राणी के पैर से सम्बन्धित दुःख को समाप्त करने की कृपा करें !
प्रार्थना करने के बाद पाण्डेय जी आँख बंद करके लेटे हुए भगवान शिव के प्रसिद्ध मन्त्र “नमः शिवाय” का जप करते – करते कब सो गये उन्हें खुद भी पता नही चला !
सुबह जब आँख खुली तो उनके पैर पर बधी हुई पट्टी कुछ गीली लग रही थी ! जब डॉक्टर चेक करने आये और उन्होंने पट्टी खोली तो डॉक्टर को बहुत आश्चर्य हुआ यह देखकर कि वो फोड़ा ना जाने कैसे फूट गया था जिसकी वजह से पस (Pus; मवाद) बाहर निकल रहा था !
डॉक्टर ने उत्साह से बताया कि अब फोड़े का साईज घट रहा है इसलिए अब किसी भी तरह के ऑपरेशन की जरूरत नही है और केवल दवा से ही पैर पूरी तरह से ठीक हो जाएगा !
डॉक्टर को उस समय खुद भी आश्चर्य हो रहा था कि जिन दवाओं को पिछले कई दिनों से खिलाने के बावजूद भी फोड़ा घटने की बजाय बड़ा होता जा रहा था, आज उसी दवा से एक रात में फोड़ा अचानक से फूट कैसे गया था !
जबकि ये सच्चाई तो उस समय सिर्फ पाण्डेय जी को ही पता था कि फोड़ा फूटकर उससे मवाद रुपी विष के बाहर निकलने की असली वजह तो विषहर्ता भगवान् शिव की कृपा थी जो अचानक से किसी भी असम्भव को भी संभव बना सकती है !
इस घटना के बाद कुछ दिनों तक डॉक्टर की दवा करने से पाण्डेय जी का पैर पूरी तरह से ठीक हो गया था !
अपने साथ हुई इस आश्चर्यजनक घटना से पाण्डेय जी खुद इतना प्रभावित थे कि वे अपने पास सहायता के लिए आने वाले लगभग सभी लोगों से इसके बारे में बताते हुए समझाते कि कभी किसी कठिन प्रारब्ध से पैदा हुई किसी बिमारी में अगर सिर्फ डॉक्टर की दवा से आराम ना मिल पा रहा हो तो भगवान् शिव के चरणों की कृपा प्राप्त करने के लिए भी प्रार्थना करना चाहिए क्योकि अगर सर्वविषहर्ता भगवान शिव की कृपा हो गयी तो बड़े से बड़े रोग पैदा करने वाले टोक्सिन (toxin) से भी निश्चित मुक्ति मिल सकती है !
श्री पाण्डेय जी भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए किसी भी तरह के कठिन संस्कृत के मन्त्रों (जैसे- महामृत्युंजय मन्त्र आदि) को जप करने की बजाय, भगवान के सिर्फ नाम जप (जैसे- शिव, शंकर आदि) या कोई आसान व हानिरहित संस्कृत मन्त्र (जैसे- नमः शिवाय, आदि) जपने की ही सलाह देते थे ताकि कभी जपते समय गलत उच्चारण हो जाए तो उसका कोई गलत फल ना मिले !
मतलब सारांश रूप में कहें तो किसी भी रोग नाश के लिए एक सबसे आसान व प्रभावी तरीका यह भी माना जा सकता है कि भगवान शिव का जो भी रूप आपको पसंद हो (चाहे वो कोई चित्र हो या मूर्ती हो या शिवलिंग हो) उसका मानसिक रूप से आप ध्यान करते हुए, भगवान् शिव का जो नाम आपको पसंद हो उसका जप अधिक से अधिक कर सकते हैं !
वास्तव में देखा जाए तो शरीर के किसी अंग में कोई रोग तभी होता है जब उस अंग में प्राण का समुचित प्रवाह नहीं हो पा रहा होता है और ये प्रवाह इसलिए नहीं हो पा रहा होता है क्योकि उस अंग से सम्बन्धित नाड़ियों में कोई विजातीय पदार्थ (जिसे हम टोक्सिन भी कह सकते हैं) जमा हुआ होता है ! इस विजातीय पदार्थ को हठ योग के अभ्यासी अनुलोम विलोम प्राणायाम से समाप्त करते हैं (क्योकि अनुलोम विलोम प्राणायाम करने से शरीर में स्थित 72 हजार नाड़ियां शुद्ध हो जातीं हैं) जबकि भक्ति योग के अभ्यासी भगवान् शिव की आराधना से भी समाप्त कर सकते हैं ! इसलिए रोगी आदमी अपनी सुविधानुसार प्रतिदिन नियमित रूप से चाहे किसी एक योग के अभ्यास या दोनों योगों के एक साथ अभ्यास से अपनी कठिन से कठिन बिमारी से मुक्ति पा सकता है !
अगर रोगी व्यक्ति बहुत कमजोर हो और वो खुद भगवान् शिव का ध्यान व जप करने में सक्षम ना हो तो उसके रोग नाश के लिए उसका कोई हितैषी भी ध्यान व जप कर सकता है !
वास्तव में देखा जाए तो इंसान किस्मत के हाथ का खिलौना मात्र है इसलिए जब तक किस्मत ठीक चल रही है तब तक उसको लगता है कि वो सिर्फ अपनी मेहनत के दम पर जो चाहे हासिल कर सकता है पर जैसे ही किस्मत थोड़ी सी करवट बदलती है वैसे ही उसको समझ में आने लगता है कि उसके वश में तो कुछ है ही नही इसलिए वो लाख चाहकर भी कुछ नही कर सकता है; तब ऐसे ही घनघोर निराशायुक्त समय में काम आता है, श्री कृष्ण पाण्डेय जी जैसे संतों के जीवन में घटी प्रेरणादायक घटनाओं का मार्गदर्शन !
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