(भाग – 1) रूद्र के अंश गृहस्थ अवतार श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी
सबसे पहले हम अपने सभी आदरणीय पाठको को बताना चाहेंगे कि “स्वयं बनें गोपाल” समूह की स्थापना में जिन दिव्य ऋषि सत्ताओं द्वारा प्रदत्त विशेष ज्ञान व स्नेह का आधार हैं, उनमें से एक गृहस्थ संत थे,- परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी !
“स्वयं बनें गोपाल” समूह के कुछ स्वयं सेवकों को भी परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के साथ कुछ समय बिताने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है ! श्री कृष्ण पाण्डेय जी का पृथ्वी लोक से विदा हो जाने के बावजूद भी “स्वयं बनें गोपाल” समूह के प्रति कितना अदम्य स्नेह है आप इसका अंदाजा इस छोटी सी आश्चर्यजनक घटना से भी लगा सकते हैं जब श्री कृष्ण पाण्डेय जी की एक आत्मीय स्वजन श्रीमती एन. मिश्रा जी ने काफी समय पूर्व “स्वयं बनें गोपाल” समूह की वेबसाइट खोली तो उन्होंने देखा कि कुछ देर के लिए वेबसाइट के हेडर (अर्थात शीर्ष स्थान) पर, श्री कृष्ण पाण्डेय जी की फोटो अपने आप प्रकाशित हो गयी थी (जबकि “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने आज से पहले तक, अपनी वेबसाइट में कहीं भी, कभी भी श्री कृष्ण पाण्डेय जी की कोई भी फोटो प्रकाशित नहीं की थी) !
श्री कृष्ण पाण्डेय जी की फोटो का कुछ देर के लिए अपने आप वेबसाइट के शीर्ष स्थान पर प्रकाशित होने की घटना मानो उनके द्वारा दिया गया एक दैवीय संकेत था कि मै धरती छोड़ने के बाद भी, कई रूपों के अतिरिक्त “स्वयं बनें गोपाल” समूह के लेखों के रूप में भी तुम लोगो के सम्मुख हूँ !
इसी तरह, श्री कृष्ण पाण्डेय जी के पृथ्वी लोक से प्रस्थान कर जाने के कुछ वर्षों बाद, उनके एक अन्य आत्मीय स्वजन को भी रात्रि में सोते समय अद्भुत जीवंत स्वप्न आया जिसमे उन्होंने देखा कि सफ़ेद बर्फ से ढकी हुई किसी पर्वत की चोटी पर श्री कृष्ण चन्द्र जी शांत भाव से, त्रिशूल लिए हुए नृत्य मुद्रा में खड़े हैं !
उन आत्मीय स्वजन को इस सपने का मतलब बाद में संत समाज से पता चला कि उस दिन प्रदोष था और प्रदोष काल में कैलाश पर्वत पर भगवान् शिव और भगवान शिव के ही स्वरुप उनके सभी रूद्र गण प्रसन्नतापूर्वक ताण्डव नृत्य करते हैं अतः यह स्वप्न यही इंगित कर रहा था कि श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी वास्तव में भगवान रूद्र के ही एक गण थे जिन्होंने पृथ्वी पर कई दुखियो के दुःख दूर करने व कुछ विशिष्ट कार्यो की नीव रखने के लिए जन्म लिया था !
आईये अब बात करते हैं परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के संक्षिप्त जीवन परिचय और उनके जीवन में घटी कुछ दुर्लभ घटनाओं के बारे में !
परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी का जन्म 30 जून 1925 को, भगवान् शिव की नगरी वाराणसी के ज्ञानपुर क्षेत्र में हुआ था ! हालांकि बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने ज्ञानपुर वाले क्षेत्र को वाराणसी से अलग करके एक नए जिले में तब्दील कर दिया था जिसका नाम रखा गया भदोही (वर्तमान में भदोही का नाम फिर से बदलकर संत रविदास नगर रख दिया गया है) ! श्री कृष्ण पाण्डेय जी 31 दिसम्बर 2010 को इस पृथ्वी लोक से विदा हो गये थे !
उनके पिता श्री राम आधार पाण्डेय जी एक बेहद ईमानदार सिटी मजिस्ट्रेट थे और धर्म के उच्च स्तरीय विद्वान भी थे ! श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी अपने पिता की इकलौती ऐसी संतान थे जो जीवित बचे थे और इस बात की भविष्यवाणी श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी ने स्वयं अपने बचपन में अपने माँ से कर दी थी कि उनके अतिरिक्त, उनका कोई भी भाई या बहन जीवित नही बचेगा !
परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी बचपन से ही आम लड़को से अलग थे क्योकि उन्हें हंसी मजाक या एन्जॉय के नाम पर निरर्थक बाते या हरकतें करना पसंद नहीं था इसलिए वे ज्यादातर समय मौन रहकर, गम्भीर चिन्तन में ही व्यस्त रहते थे !
हालांकि उन्होंने अपने बेहद निकट सम्बन्धियों से भी कभी एकदम खुलकर जाहिर नहीं किया कि वे अपने गंभीर अवस्था में आत्मसाक्षात्कार की किन गुत्थियों को सुलझा रहे होते थे लेकिन उनके द्वारा कभी कभार अपने सुपात्र शिष्यों को दिए गए आंशिक संकेतों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वे दिव्य लोको के ऋषियों, सिद्धों व देव पुरुषों के सम्पर्क में भी थे !
श्री कृष्ण पाण्डेय जी निश्चित रूप से उच्च लोकों की हस्तियों (जिन्हें आजकल की सामान्य भाषा में एलियंस; Aliens समझा जाता हैं) से मानसिक संवाद करते थे, जिसका सबसे बड़ा प्रमाण था कि उन्हें ईश्वर के साकार व निराकार रूप के बारे में ऐसी – ऐसी दुर्लभ व प्रैक्टिकल बातें पता थी जो आज के उपलब्ध किसी ग्रन्थ में भी मिल पाना मुश्किल थी !
अगर आम व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो बिना किसी आध्यात्मिक गुरु की सहायता के श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी को उच्च स्तरीय आध्यात्मिक बातो के बारे जानकारी होना आश्चर्यजनक था क्योकि उनका पूरा जीवन तो एक साधारण गृहस्थ की तरह घर परिवार के बीच में ही बीता था !
हालांकि इस विषय में श्री कृष्ण पाण्डेय जी ने सांकेतिक रूप से यह भी स्वीकारा था कि अक्सर स्वयं माँ भगवती दुर्गा भी, गुरु रूप में उन्हें स्वप्नावस्था, तन्द्रावस्था या ध्यानावस्था में दुर्लभ ज्ञान दे जाती थी (ठीक यही स्थिति विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आचार्य रामानुजन की भी थी जिन्हें माँ दुर्गा की रूप नामगिरी देवी अक्सर कठिन मैथमेटिकल फ़ॉर्मूले व इक्वेशन्स बता जाती थी, जो आज भी वैज्ञानिको के लिए रहस्यमय है) !
हरिद्वार स्थित शान्तिकुञ्ज परिवार के संस्थापक आचार्य श्री राम शर्मा जी की ही तरह, सर्वथा आडम्बर व पाखंड रहित, श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी की सामान्य वेशभूषा व रहन सहन देखकर, कोई उनका बेहद घनिष्ठ भी अंदाजा नहीं लगा पाता था कि वो कितने उच्च स्तर के सिद्ध महात्मा हैं !
वास्तव में श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी को महामाया के विभिन्न दृश्य अदृश्य कार्यकलापों के बारे में गूढ़ ज्ञान था ! श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी धीरे – धीरे पूजा पाठ के कर्मकाण्ड से ऊपर उठकर राजयोग की अति उच्च स्तरीय प्रक्रिया अर्थात ईश्वर का स्वतः, सहज व सतत चिन्तन में व्यस्त रहने लगे थे !
श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी ने वाराणसी जिले की “बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी” से लॉ की डिग्री ली थी ! वे पढाई में शुरू से बेहद कुशाग्र बुद्धि के थे और उन्हें इंग्लिश, उर्दू, संस्कृत व हिंदी भाषाओं का इतना जबरदस्त ज्ञान था कि बड़े से बड़ा विद्वान भी उनसे शास्त्रार्थ में जीत नहीं सकता था ! श्री पाण्डेय जी दिखने में भी काफी सुंदर थे; उनका ललाट उन्नत, आँखे विशाल और वाणी मधुर थी !
लॉ की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने आजमगढ़ जिले की कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की ! श्री कृष्ण चन्द्र जी को किसी भी सांसारिक चीज का लालच बिल्कुल भी नहीं था जिसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है वे अपने क्लाइंटस (मुवक्किल) से कभी भी फीस के लिए जिरह तक नही करते थे और जो क्लाइंट जितना पैसा दे देता था उसे चुपचाप ले लेते थे ! उन्होंने अपने जीवनकाल में ना जाने कितने ही गरीबों की निःशुल्क व कम से कम फीस में सहायता की !
श्री कृष्ण चन्द्र जी बेहद संकोची स्वभाव के साथ – साथ बेहद स्वाभिमानी व्यक्ति भी थे ! उनके इस अनप्रैक्टिकल लगने वाले स्वभाव के बारे में सुनकर कई लोगों को लग सकता है कि पाण्डेय जी की कमाई तो ज्यादा नही हो पाती होगी क्योकि आज के जमाने में आम तौर पर माना जाता है कि जब तक कस्टमर्स पर किसी तरह से दबाव ना बनाया जाए, तब तक वे ज्यादा पैसे नही देते है !
लेकिन वास्तव में हुआ ठीक इसके विपरीत क्योकि श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी ने अपने जीवन काल में करोड़ो रुपयों की सम्पत्ति खड़ी की ! श्री कृष्ण जी का सदा यही मानना था कि “जो मेरा है उसे मुझसे कोई छीन नही सकता और जो मेरा नही है उसे मै लाख चाहकर भी प्राप्त नही कर सकता” इसलिए जीवन में किस बात के लिए हाय तौबा करना !
श्री कृष्ण जी का विवाह एक बेहद पवित्र और संत स्वभाव की स्त्री, श्रीमती सुमित्रा पाण्डेय जी से हुआ था ! परम आदरणीय श्रीमती सुमित्रा जी भी एक बेहद बुद्धिमान महिला थी जो कि तत्कालीन समाज की आधुनिकता से बखूबी वाकिफ होने के साथ – साथ एक महान भक्ति योगी भी थी !
परम आदरणीय श्रीमती सुमित्रा जी माँ दुर्गा की इतनी बड़ी भक्त थी की उन्हें प्रौढ़ावस्था में ही साक्षात माँ दुर्गा के प्रत्यक्ष दर्शन का महा सौभाग्य प्राप्त हुआ था !
इस घटना के बारे में श्रीमति सुमित्रा जी ने इस प्रकार बताया था कि एक बार वे अपने खानदान में हुई एक आकस्मिक मृत्यु से बेहद दुखी होकर, अपने घर की छत पर बनें हुए छोटे से मंदिर में रोते – रोते गयी, लेकिन जैसे ही उन्होंने मंदिर का दरवाजा खोला उन्होंने देखा कि मूर्ति की जगह साक्षात् देवी दुर्गा बैठी हुई थी ! उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्हें विश्वास नही हुआ तो यह चेक करने के लिए कही वो सपना तो नही देख रही हैं, वो तुरंत मंदिर से बाहर निकलकर आसमान की ओर देखने लगी तो उन्हें आसमान में भी देवी के परम दिव्य रूप के दर्शन हुए !
तब उन्हें विश्वास हुआ कि वो जो देख रही हैं वो सपना नही बल्कि हकीकत है और उसके बाद वो तुरंत फिर दौड़कर मंदिर में पहुची तो तब तक देवी अदृश्य हो चुकी थी !
देवी को सामने देखकर भी विश्वास ना करने की वजह से वो देवी का भरपूर दर्शन कर पाने से वे वंचित रह गयी थी, इस बात का महान दुःख उन्हें कई वर्षों तक रहा, लेकिन इस घटना के बाद उनका जीवन जीने का नजरिया ही बदल गया था क्योकि अब उन्हें सांसारिक सुखों से एक विरक्ति सी हो गयी थी इसलिए अब वो अपना पूरा समय सिर्फ श्री राधा – कृष्ण की भक्ति व पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में ही व्यतीत करने लगी थी !
श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी को भी उनके वृद्धावस्था में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित विन्ध्याचल मंदिर में माँ दुर्गा के प्रत्यक्ष दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था !
इस दुर्लभ घटना का वृत्तांत वहां उपस्थित उनके स्वजन इस प्रकार बताते हैं कि उस दिन मंदिर में किसी शुभ मुहूर्त की वजह से अत्यधिक भीड़ थी जिसकी वजह से दर्शन करने वाले भक्त गणों को बिना मूर्ति के पास गये हुए, केवल बाहर से दर्शन करते हुए निकल जाना पड़ रहा था !
एक छोटे से कमरे में भक्तों की चरम स्तर की भीड़ होने की वजह से सांस लेने में भी तकलीफ व घुटन महसूस हो रही थी जिसकी वजह से वहां उपस्थित कई लोग मन ही मन कुढ़ रहे थे कि ऐसे दर्शन करने से क्या फायदा, जिसमें आदमी की जान पर ही बन आये !
लेकिन इन सब तकलीफों से एकदम जुदा, श्री कृष्ण पाण्डेय जी मानो अपनी एक अलग खुशनुमा दुनिया में ही खोये हुए थे और बीच – बीच में छोटे बच्चों की तरह हाथ उठाकर देवी की जयकार करने लगते थे !
हमेशा सिंह की तरह गम्भीर रहने वाले 80 वर्षीय श्री कृष्ण पाण्डेय जी द्वारा, अचानक से एक छोटे बच्चे की तरह खूब खुश होकर देवी की जय करने वाला व्यवहार वहां उपस्थित लोगों को, थोड़ा अटपटा व अजीब लग रहा था !
इसके बाद श्री कृष्ण पाण्डेय जी ने एक और विचित्र काम किया कि जैसे ही उनकी लाइन, गर्भ गृह के पास पहुची वैसे ही उन्होंने लाइन तोड़कर बिना परमिशन के गर्भ गृह के अंदर घुसकर देवी की मूर्ति के पैर छू लिए !
श्री कृष्ण पाण्डेय जी की इस हरकत को देखकर, गर्भ गृह के अंदर बैठे हुए मुख्य पंडित को गुस्सा आया और वो तुरंत लपका, पाण्डेय जी को बाहर निकालने के लिए ! लेकिन जैसे ही उस पंडित ने पाण्डेय जी को छूया, वैसे ही मानो उसे बिजली का एक तेज झटका लगा हो, जिसकी वजह से वह पंडित तुरंत घबराकर पीछे हट गया और फिर उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ी पाण्डेय जी से कुछ भी बोल पाने की !
उसके बाद पांडये जी काफी देर तक उस गर्भ गृह में देवी की मूर्ति के ठीक सामने बस एकटक सम्मोहित होकर खड़े हुए थे ! अंततः जब वो उस गर्भ गृह से बाहर निकले तो उनका चेहरा व आँखे एकदम लाल पड़ चुकी थी मानो उनका ब्लड प्रेशर बहुत हाई हो गया हो लेकिन उसके बावजूद भी वो ख़ुशी के सातवे आसमान पर थे जिसका कारण उन्होंने खुद अपने मुहं से बताया कि उन्हें माँ जगदम्बा का प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त हुआ है !
पाण्डेय जी ने बताया कि जब से वे मन्दिर में देवी के दर्शन के लिए लाइन में खड़े हुए थे तभी से उन्हें पता नही क्यों एक अनजानी ख़ुशी व उत्साह महसूस होने लगा था और जैसे ही वो मूर्ति के सामने पहुचे वैसे ही मूर्ति से देवी साक्षात् बाहर निकल आयी और उन्हें अपने परम दिव्य रूप का दर्शन कराया !
श्री कृष्ण पाण्डेय जी और उनकी धर्म पत्नी श्रीमती सुमित्रा पाण्डेय जी के साथ हुई ये अति दुर्लभ घटनायें इस बात का परिचायक है कि वेद पुराणों में लिखी हुई ईश्वर द्वारा प्रत्यक्ष दर्शन देने की घटनाए केवल काल्पनिक नही हैं बल्कि एकदम सत्य हैं !
श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी शिव शक्ति के अनन्य भक्त थे और उनका व्यक्तित्व इतना तेजस्वी था कि उनसे बात करने वाला हर व्यक्ति बिना उनसे प्रभावित हुए नही रह पाता था ! उनके शरीर से हमेशा ऐसी अदृश्य उर्जा निकलती रहती थी कि उनके पास बैठते ही मन शांत और सभी तरह के भय से रहित होने लगता था !
श्री पाण्डेय जी हमेशा सबसे बेहद प्रेम व विनम्रता से बात करते थे ! वैसे तो श्री पाण्डेय जी को कभी क्रोध आता नही था लेकिन जब कभी कोई उन्हें क्रोधित होने के लिए मजबूर कर देता था तो उस समय उनका व्यक्तिव एक गर्जना करते हुए सिंह के समान पराक्रमी हो जाता था !
श्री पांडये जी के ज्ञान व तेज की महिमा दूर – दूर तक प्रसिद्ध थी इसलिए अक्सर लोग उनसे विभिन्न तरह की सहायता प्राप्त करने के लिए आते रहते थे और उन्होंने कभी भी, किसी को भी निराश नहीं किया और उनसे जो भी बन पड़ा, वो उन्होंने सबके लिए किया !
80 वर्ष से ऊपर की अवस्था में उनके शरीर की आंशिक कायाकल्प की प्रक्रिया भी अपने आप शुरू हो गयी थी जिसकी वजह से उनके शरीर के सफ़ेद पड़ चुके कई बाल धीरे – धीरे काले होने लगे थे और शरीर के कई हिस्सों की झुर्रियाँ भी मिटने लगी थी ! इस तरह की ना जाने कितनी ही अत्यंत आश्चर्यजनक घटनाए (जिसका जवाब आज के मॉडर्न साइंस के पास बिल्कुल नहीं है) उनके जीवन काल में घटी !
सभी आदरणीय संतो की ही तरह श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी का जीवन चरित्र भी बेहद विशाल है और संयोग से हमारे पास श्री पाण्डेय जी के बारे में और भी कई बेहद बेशकीमती जानकारियाँ उपलब्ध हैं जो आने वाली पीढ़ियों के मार्गदर्शन के लिए बेहद कारगार साबित हो सकती हैं इसलिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह भविष्य में भी समय – समय पर उनसे सम्बन्धित नये आर्टिकल्स प्रकाशित करता रहेगा !
कहा जाता है कि सच्चा संत अर्थात महान आत्मा वही होता है जो हर तरह के पक्षपात से रहित होकर सर्वहित के लिए काम करता है इसलिए परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी जैसी दिव्य आत्मायें, पृथ्वी स्थित अपनी मरणधर्मा शरीर के छूटने के बाद जब दुर्लभ मुक्ति प्राप्त कर लेती है तब भी वे अपने स्वभाववश सदा सिर्फ परोपकारी काम ही करती रहती हैं लेकिन मुक्त होने के बाद अब वे अपने परोकारी कार्यो से पहले की तुलना में, कल्पना से भी ज्यादा लोगों का भला कर सकती हैं !
अर्थात मुक्ति पाने से पहले तक परोपकारी आत्माएं इच्छा होने के बावजूद भी, सामर्थ्य के अभाव में सिर्फ कुछ सीमित लोगों का ही भला कर पाती है लेकिन जब ये आत्मायें मुक्त होकर अपने नित्य निवास स्थान अर्थात ईश्वर के धाम में पहुचकर, ईश्वर का ही रूप (जिन्हें पार्षद, गण या ऋषि भी कहते हैं) प्राप्त कर लेती हैं तो ईश्वरीय प्रेरणा से वे हर वो काम करती है जिससे पूरे ब्रह्मांड में स्थित सभी सुख – दुःख महसूस कर सकने वाले जीवों (चाहे वे जीव पृथ्वी पर रहने वाले कोई जानवर या मानव की योनि में हों या पृथ्वी के बाहर अन्य किसी लोक में एलियंस माने जाने वाले रूप में हों) का उद्धार हो सके !
अतः शत् शत् नमन है सनातन धर्म की ऐसी महान परोपकारी संत परम्परा को !
ऋषि सत्ता की आत्मकथा (भाग – 1): पृथ्वी से गोलोक, गोलोक से पुनः पृथ्वी की परम आश्चर्यजनक महायात्रा
ऋषि सत्ता की आत्मकथा (भाग – 2): चाक्षुषमति की देवी प्रदत्त ज्ञान
ऋषि सत्ता की आत्मकथा (भाग – 3): सज्जन व्यक्ति तो माफ़ कर देंगे किन्तु ईश्वर कदापि नहीं
ऋषि सत्ता की आत्मकथा (भाग 5): अदम्य प्रेम व प्रचंड कर्मयोग के आगे मृत्यु भी बेबस है
ऋषि सत्ता की आत्मकथा (भाग 6): त्रैलोक्य मोहन रूप में आयेगें तो मृत्यु ही मांगोगे
ऋषि सत्ता की आत्मकथा (भाग 7): जिसे उद्दंड लड़का समझा, वो अनंत ब्रह्माण्ड अधीश्वर निकला
संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को के मीडिया ग्रुप का भी मेम्बर बना “स्वयं बनें गोपाल” समूह
संयुक्त राष्ट्र संघ के कई नए विश्वप्रसिद्ध उपक्रमों का पार्टनर व मेम्बर बना “स्वयं बनें गोपाल” समूह
संयुक्त राष्ट्र संघ के दूसरे उपक्रम ने भी “स्वयं बनें गोपाल” समूह को अपना पार्टनर बनाया
संयुक्त राष्ट्र संघ के उपक्रम ने अपना पार्टनर बनाया “स्वयं बनें गोपाल” समूह को
नोवेल कोरोना वायरस (Novel Corona Virus; COVID-19) में लाभकारी हो सकतें है ये उपाय
सर्वोच्च सौभाग्य की कीमत है बड़ी भयंकर
क्या चंद्रयान -2 के लैंडर ‘विक्रम’ से सम्पर्क टूटने के पीछे एलियंस का हाथ है
“स्वयं बनें गोपाल” समूह खुलासा कर रहा है भारत में हो सकने वाले एलिएंस के वर्तमान संभावित शहर की
यू एफ ओ, एलियंस के पैरों के निशान और क्रॉस निशान मिले हमारे खोजी दल को
वैज्ञानिकों के लिए अबूझ बनें हैं हमारे द्वारा प्रकाशित तथ्य
क्या एलियन से बातचीत कर पाना संभव है ?
क्या वैज्ञानिक पूरा सच बोल रहें हैं बरमूडा ट्राएंगल के बारे में
एलियन्स कैसे घूमते और अचानक गायब हो जाते हैं
जानिये कौन हैं एलियन और क्या हैं उनकी विशेषताएं
यहाँ कल्पना जैसा कुछ भी नहीं, सब सत्य है
जानिये, मानवों के भेष में जन्म लेने वाले एलियंस को कैसे पहचाना जा सकता है
क्यों गिरने से पहले कुछ उल्कापिण्डो को सैटेलाईट नहीं देख पाते
आखिर एलियंस से सम्बन्ध स्थापित हो जाने पर कौन सा विशेष फायदा मिल जाएगा ?
सावधान, पृथ्वी के खम्भों का कांपना बढ़ता जा रहा है !
जिसे हम उल्कापिंड समझ रहें हैं, वह कुछ और भी तो हो सकता है
Our research group finds U.F.O. and Aliens’ footprints
The facts published by us are still the riddles for the scientists
Is it possible to interact with aliens?
Are Scientists telling the complete truth about Bermuda Triangle ?
What we consider as meteorites, can actually be something else as well
How aliens move and how they disappear all of sudden
Who are real aliens and what their specialties are
Why satellites can not see some meteorites before they fall down
Know how to identify the aliens who are born in human form
There is nothing imaginary here, everything is true
Eventually what do we get benefited with if the actual contact with Aliens gets established
Beware, shaking of pillars of earth is increasing !
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