जानिये, स्वयं को गोपाल बनाने वाली महा दैवीय प्रकिया के बारे में

ngo svyam bane gopal process Indian Hindi Hindu spirituality religion religious templeगोपाल अर्थात ईश्वर अनंत है इसलिए कोई भी जीवात्मा साकार रूप में, कभी भी पूरी तरह से परमात्मा का पूर्ण रूप प्राप्त कर ही नहीं सकती है !

यही वजह है कि आज भी महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, दुर्वासा, कश्यप, पराशर, लोमश आदि सभी ऋषि अनेकों बार ईश्वर का दर्शन पाने के बावजूद भी ईश्वर को आज तक समझने का प्रयास ही कर रहें हैं (सम्बन्धित संदर्भ को अच्छे से समझने के लिए कृपया इन दो लेखों के लिंक पर भी क्लिक करके पढ़ें- हर रोम में करोड़ो ब्रह्माण्ड, हर ब्रह्माण्ड में असंख्य लोक

ईश्वरीय खोज की अंतहीन गाथा : निराशा भरी उबन से लेकर ख़ुशी के महा विस्फोट तक ) !

Radhe-krishna-radhe-shyam-radha-rani-ladli-sarkarवास्तव में ईश्वर अंत हीन है इसलिए इनका अंत पता लगा पाना संभव ही नहीं है ! इसलिए नारद पुराण में दिए गए राधा-कृष्ण के युगल सहस्त्र नाम में राधा जी के वर्णित एक नाम का अर्थ है,- जो कृष्ण को अनंत वर्षों से रोज खोजने निकलती हैं और उन्हें कृष्ण रोज एक एकदम नए रूप में दर्शन भी देतें हैं (वास्तव में राधा कृष्ण की अद्भुत लीला, पृथ्वी पर भले ही द्वापर युग में हुई हो, लेकिन गोलोक में अनंत वर्षों से अनवरत सक्रीय है) !

यहाँ तक कि चरम मोक्ष मानी जाने वाली “कैवल्य मुक्ति” (जिसमें कुण्डलिनी शक्ति जागकर सहस्त्रार चक्र स्थित शिव से मिल जाती है) मिल जाने के बाद भी ईश्वर की खोज की जीवात्मा की यात्रा रूकती नहीं है, बल्कि आम आदमी की कल्पना से भी परे एडवांस्ड स्टेज में पहुँच जाती है, लेकिन तब भी रहती है अंतहीन !

ईश्वर एक ऐसी चीज हैं, जिनके बारे में जो जितना ज्यादा जानता है, उसे उतना ही ज्यादा अहसास होने लगता है कि मैंने तो अभी तक ईश्वर के बारे कुछ भी नहीं जाना है !

यही हाल ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र का भी है जिन्होंने स्वयं भगवान् राम को त्रेतायुग में शिक्षा दीक्षा दी और काफी वर्ष भी बिताया साक्षात् भगवान् राम के ही साथ, लेकिन वो शाश्वत अमर ऋषि वशिष्ठ, विश्वामित्र जी आज भी भगवान् राम को पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं, इसलिए आज भी वे ऋषि, भगवान् के द्वारा बनाये हुए अनंत ब्रह्मांडों में, भगवान् के ही विभिन्न रूपों व कार्यकलापो को समझने के लिए विचरण करते हुए सिर्फ एक ही बात कहतें हैं,- नेति, नेति (= न इति, न इति:- एक संस्कृत वाक्य है जिसका अर्थ होता है ‘अन्त नहीं है, अन्त नहीं है ! उपनिषदों में यह वाक्य ब्रह्म या ईश्वर की अनंतता सूचित करता है) !

यहाँ पर ईश्वर के असीमित विस्तार के बारे में इतने ज्यादा विस्तार से इसलिए समझाया गया है क्योंकि कोई यह भ्रम ना पाले कि अगर किसी को ईश्वर की कोई अनुभूति या स्वयं साक्षात् ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन का महासौभाग्य मिल भी गया तो वह ईश्वर को पूरी तरह से समझ पाने में सफल हो जाता है !

मतलब यदि कोई मानव अपनी अथक मेहनत (चाहे राजयोग, हठयोग, कर्मयोग या भक्ति योग में हो या चारों योगों के सम्मिलित अभ्यास में हो) से महा सौभाग्य अर्थात साक्षात् ईश्वर का दर्शन प्राप्त कर पाने में सफल हो जाता है तो वो निश्चित रूप से ईश्वर को समझने की प्रक्रिया में आम आदमी की तुलना में अनन्त गुना आगे निकल जाता है, लेकिन अभी भी उसे अंत हीन यात्रा तय करना बाकी है, क्योंकि ईश्वर का तो कोई अंत है ही नही !

यहाँ एक बात और ध्यान से समझने की जरूरत है कि जो कोई भी जीवात्मा, जैसे जैसे जितना ज्यादा से ज्यादा ईश्वर के बारे में जानने लगता है वो उतना ही ज्यादा ईश्वर का रूप प्राप्त करने लगता है मतलब उतना ही ज्यादा ईश्वर के समान होने लगता है !

अर्थात आसान भाषा में कहें तो, वह जीवात्मा स्वयं ही ईश्वर बनने लगता है ! ! !

ठीक इसी संदर्भ में हम बात कर रहें हैं, परम आदरणीय व दिव्य दृष्टिधारी ऋषि सत्ता द्वारा बतायी गयी एक ऐसी दैवीय प्रक्रिया के बारे में, जिसका निरंतर अभ्यास करने पर, कोई भी आम इंसान (चाहे वह कितना भी बड़ा पापी हो या पुण्यात्मा, गरीब हो या अमीर, स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध) निश्चित रूप से दिन ब दिन बढ़ती हुई अपने अंदर ईश्वरत्व की अनुभूति को महसूस करते हुए स्वयं, गोपाल अर्थात ईश्वर बनने की प्रक्रिया की ओर बढ़ने लगता है !

जिसके फलस्वरूप धीरे धीरे उसके शरीर की सभी बीमारियों का नाश होकर, वह चिर युवावस्था की ओर बढ़ता है और तदनन्तर उचित समय आने पर ईश्वर के दर्शन पाने का महा सौभाग्य भी उसे अवश्य प्राप्त होता है, जिसके बाद की उसके जीवन की बागडोर स्वयं गोपाल अर्थात ईश्वर संभाल लेतें हैं !

इस दैवीय प्रक्रिया से ना केवल शरीर की सभी बिमारियों का नाश होता है बल्कि सभी उचित सांसारिक मनोकामनाएं भी सही समय आने पर निश्चित पूरी होती हैं !

अतः यह दैवीय प्रक्रिया निश्चित रूप से हर आम इंसान के लिए अमृत स्वरुप है और इसे रोज करने में मात्र एक घंटा ही समय लगता है !

आईये बताते हैं इस महान दैवीय प्रक्रिया के बारे में जिसका नाम है “स्वयं बनें गोपाल” प्रक्रिया-

इस पूरी प्रक्रिया में मात्र 3 बेहद आसान काम ही करने होते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

devi SARASWATI MATA Indian Hindi Hindu spirituality religion religious temple God yoga pranayama asana mudra ayurveda treatment cure meditation(1)- सुबह जब भी सो कर उठें, उठते ही तुरंत अर्थात बिस्तर पर ही, देवी सरस्वती के इन तीन नामों का मात्र 12 बार जप कर लें- “जय माँ सरस्वती जितेन्द्रिया अनन्ता” !

ऐसा करने से पूरा दिन आपके चारो तरफ माँ सरस्वती का एक प्रबल शक्तिशाली अदृश्य सुरक्षा घेरा बना रहेगा जो आपको हर समस्या, मुसीबतों व बुरे विचारों से हमेशा बचाता रहेगा जब तक कि आप जानबूझ कर कोई बड़ा गलत काम नहीं करते हैं (इन नामों को जपने के पूर्ण फायदे व विधि जानने के लिए कृपया इस लेख के लिंक पर क्लिक करें- सभी बिमारियों, सभी मनोकामनाओं व सभी समस्याओं का निश्चित उपाय है ये ) !

(2)- सुबह माँर्निंग वाक करके, व नहाने के बाद खाली पेट, नीचे लिखे योगों का अभ्यास करें {अगर आप सुबह सोकर उठते ही पानी या चाय पीने के आदती हैं, तो ध्यान रखें कि कोई भी योग प्राणायाम किसी लिक्विड (अर्थात तरल) पदार्थ को पीन के कम से कम एक से डेढ़ घंटे बाद और किसी सॉलिड भोजन (जैसे लंच, डिनर आदि) के कम से कम 3 से 4 घंटे बाद ही करना चाहिए, नहीं तो नुकसान हो सकता है} !

Hindi Hindu spirituality religion religious temple God yoga pranayama asana mudra ayurveda treatment cure meditationसबसे पहले आप 10 मिनट कपालभाति प्राणायाम करें, फिर 10 मिनट अनुलोम विलोम प्राणायाम करें {ये दोनों प्राणायाम शरीर के कर्माशय में जमा पिछले कई जन्मों के कुसंस्कारों (जो मुख्य कारण होतें हैं इस जन्म की सभी तरह की बिमारियों, मुसीबतों व बाधाओं के) का तेजी से नाश करने में सक्षम होतें हैं, इसलिए प्राणायामों को किसी भी मामले में, किसी भी पूजा पाठ से कम फलदायी नहीं माना जाता है} !

Hindi Hindu spirituality religion religious temple God yoga pranayama asana mudra ayurveda treatment cure meditation 0इसके बाद 12 से 15 मिनट में 4 योगासनों का अभ्यास करें जिनका नाम है,- पश्चिमोत्तानासन, शलभासन, भुजंगासन व ताड़ासन (ये चारो आसन दिखने में भले ही साधारण व आसान हैं लेकिन ये आसन धीरे धीरे पूरे शरीर का कायाकल्प करके, कुण्डलिनी शक्ति के जागरण में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ! इन आसनों को करने की विधि जानने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- जानिये हर योगासन को करने की विधि ) !

फिर इसके बाद माँ सरस्वती के ऊपर लिखे हुए तीन नामों (“जय माँ सरस्वती जितेन्द्रिया अनन्ता”) का 108 बार जप करें जिसमें सामान्यतया लोगों को 7 से 15 मिनट लगता है !

फिर इसके बाद सबसे महत्वपूर्ण राजयोग का अभ्यास करना है, जिसमें आराम की मुद्रा में बैठकर (मतलब आराम से सुखासन अर्थात पालथी मारकर बैठते हुए अपनी गोद में बाएं हाथ की हथेली पर दायें हाथ की हथेली को रखकर बैठना), आँखे बंद कर यह ध्यान लगाना है कि आपके शरीर के अंदर, आपकी ही शरीर की साइज़ (आकृति) के बराबर भगवान् गोपाल (अर्थात कृष्ण) बैठे हुए हैं !

ngo svyam bane gopal process Indian Hindi Hindu spirituality religion religious templeजिसकी वजह से अब आपका हाथ, पैर, उँगलियाँ, पेट, सीना, सिर, चेहरा, आँखें, बाल आदि सब कुछ अब आपका वो पुराने वाले शरीर का नहीं रहा, बल्कि साक्षात् भगवान् कृष्ण के शरीर के अंगो के समान ही परम तेजस्वी, अति सुंदर व युवा, सभी रोगों शोक भय दुर्भाग्य से रहित, महान बलशाली, परम उत्साह प्रसन्नता स्फूर्ति आदि से भरपूर, अजरता व अमरता जैसे सभी परम दिव्य ईश्वरीय गुणों से युक्त हो गया है !

अर्थात अब आप पूरी तरह से कृष्ण में बदल गए हैं ! मतलब अब आप ही साक्षात् श्री कृष्ण हो चुके हैं ! यानी आपमें और कृष्ण में कोई अंतर रह ही नही गया है !

इस राज योग का सम्पूर्ण सारांश यही है कि आप को बार बार यही ध्यान, यही भावना, यही सोचना है कि “मै ही स्वयं गोपाल” अर्थात कृष्ण हूँ !

(स्त्रियाँ इसी तरह अपने शरीर को परम तेजस्वी राधा जी के शरीर में परिवर्तित करें और छोटे बच्चे या बच्चियां इसी तरह अपने शरीर को हमउम्र बाल गोपाल या बाल राधा जी के शरीर में बदलने का ध्यान करें) !

शुरू में कुछ दिनों तक इस तरह ध्यान करने में दिक्कत, उबन आदि महसूस हो सकती है लेकिन निराश ना हों क्योंकि मात्र 7 दिनों के अंदर ही निश्चित ही आपको आपके शरीर में आश्चर्यजनक सुधार दिखने लगेंगे !

वो सुधार कैसा होगा यह तो आपको मात्र 7 दिनों में ही पता लग जाएगा पर उस सुधार के साथ ही साथ आपको दिन रात अक्सर काफी लम्बे समय तक अनायास एक आंतरिक प्रसन्नता, ताजगी, उत्साह, स्फूर्ति आदि भी लगातार महसूस होती रहेगी !

और इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सुधार का कोई अंत नहीं है, मतलब धीरे धीरे आपको रोज पहले से ज्यादा आपके शरीर में कुछ नया सुधार होता मिलेगा !

bhakti ishvar Bhagavan golok radha krishna vrindavan death moksha hindu hindi religious story history real aliens ufoऔर यही प्रक्रिया एक दिन आपको साक्षात् भगवान् गोपाल अर्थात कृष्ण के दर्शन का महा सुख भी दिलवाकर ही छोड़ेगी, जिसके बाद से आपके जीवन की हर छोटी से छोटी घटना, स्वयं अनंत ब्रह्मांडों के निर्माता श्री कृष्ण ही तय करेंगे !

वास्तव में इस पूरी “स्वयं बनें गोपाल” प्रक्रिया में यह राज योग (अर्थात ध्यान करना) ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, लेकिन यह राज योग आप सफलता पूर्वक रोज कर पायें इसलिए अति आवश्यक है कि आप ऊपर दिए गए माँ सरस्वती के नाम के साथ साथ इन योगासन व प्राणायामो को भी करें ताकि आपकी मन की अच्छे से सफाई हो सके और आप अच्छे से अपने शरीर को भगवान् कृष्ण के शरीर में बदलने का ध्यान कर सकें !

सुबह के ध्यान के अतिरिक्त दिन रात जब भी फुर्सत मिले (जैसे ऑफिस/दुकान के लंच टाइम में, बस या मेट्रो में सफर करते हुए, किचेन में काम करते हुए, टी वी देखते हुए, रात को बेड पर सोते हुए, आदि आदि), भगवान् कृष्ण का अपने शरीर के अंदर ध्यान निश्चित ही किया जा सकता है !

यह जरूरी नहीं है कि ध्यान सिर्फ बैठकर आँखे बंदकर ही किया जाए, बल्कि खड़े होकर या चलते हुए भी (जैसे- पार्क में मॉर्निंग वाक करते हुए) बिल्कुल किया जा सकता है !

रोज जितना ज्यादा देर तक ध्यान किया जाता है, उतना ही ज्यादा फायदा मिलता है (नोट- ध्यान कभी भी ऐसे संवेदनशील स्थिति में नहीं लगाना चाहिए जिससे कोई हानि होने का डर बना रहे, जैसे- ड्राइव करते समय, सीढ़ियां चढ़ते समय, अपने ऑफिस का कोई जरूरी काम निपटाते समय आदि आदि) !

इस राज योग का अभ्यास रोज सुबह कम से कम 20 मिनट तक करें !

(3)- फिर इसके बाद आप रात को बेड पर जब सोने जाएँ तो सोने से ठीक पहले, फिर से माँ सरस्वती के तीन नामों (“जय माँ सरस्वती जितेन्द्रिया अनन्ता”) का 108 बार जप करें !

परहेज-
(1)- कोशिश करिए मांस मछली अंडा खाना तुरंत अपने आप छोड़ दीजिये, नहीं तो यह पक्का गारंटीड है कि माँ सरस्वती के इन तीन नामों का मात्र 40 दिनों तक आपके द्वारा किया गया जप, आपसे निश्चित रूप से मांस मछली अंडा के अलावा सभी तरह के नशा (जैसे- शराब, सिगरेट, धूम्रपान, चरस, गांजा, हेरोइन आदि) को करना निश्चित छोड़वाकर ही रहेगा ! चाहे तो कोई भी इसे आजमाकर देख सकता है !

(2)- दूसरा परहेज है कि दूसरों को बेवजह परेशान, कष्ट आदि देना ! अगर आपमें यह दुर्गुण है और आप चाह कर भी अपने इस स्वभाव को बदल नहीं पा रहें हों, तो चिंता की कोई बात ही नहीं है क्योंकि यह भी तय है कि माँ सरस्वती के इन तीन नामों का जप मात्र 40 दिनों में ही आपको एक मतलबी, स्वार्थी, क्रोधी, चिडचिडे, दुखी, उदास, डरपोक या मनहूस इंसान से बदल कर एक बेहद परोपकारी (मतलब हमेशा दूसरों की भलाई करने वाला), हंसमुख, साफ़ सुथरे दिल का (मतलब धोखा, ईर्ष्या, झूठ आदि सभी दुर्गुणों से रहित), खुश, जिन्दादिल, मेहनती, उत्साहित, फुर्तीला, साहसी इंसान बनाना शुरू कर देगा ! चाहे तो इसे भी कोई आजमाकर निश्चित देख सकता है !

तो मुख्यतः ऊपर दिए गए तीन बेहद आसान काम ही महा प्रभावी “स्वयं बनें गोपाल” प्रक्रिया के आधार हैं, जिनका नियम से अभ्यास करके कोई भी स्त्री/पुरुष मात्र 7 दिनों में ही अपने शरीर के साथ साथ अपने पूरे जीवन में निश्चित आश्चर्यजनक सुधार होता देख सकता है !

इसलिए एक बार मात्र 7 दिनों के लिए ही सही, लेकिन सभी को अपने जीवन में इसका अभ्यास करके जरूर देखना चाहिए, क्योंकि इस प्रक्रिया से उन्हें निश्चित ऐसा लाभ मिलेगा जो रोज बढ़ता ही जाएगा !

इसलिए इस महान दैवीय प्रकिया को खुद भी करिए और अधिक से अधिक दूसरे दुखी, परेशान, बीमार, कमजोर लोगों को भी बताइए क्योंकि यदि आपके प्रयास से अगर किसी एक आदमी ने भी इस प्रक्रिया को नियम से करके सफलता पा ली तो उसका महा पुण्य आपको जरूर मिलेगा, जो आपके इस जीवन में अपार खुशियों के साथ साथ परलोक में भी आपको अक्षय सुख प्रदान करेगा !

parimal parashar founder president of ngo svyam bane gopal process Indian Hindi Hindu spirituality religion religious temple God yoga pranayama asana mudra ayurveda treatment cure meditationइस दुनिया का हर एक मानव अपने वास्तविक रूप अर्थात श्री गोपाल का रूप प्राप्त कर पाने में सफल हो पाए, इसी एक मात्र इच्छा व उद्देश्य के साथ और परम आदरणीय संत कृपा की क्षत्रछाया में, कई वर्षों पूर्व स्थापना हुई थी आपके अपने इस “स्वयं बनें गोपाल” समूह की !

जब हर एक इंसान, सीधे स्वयं ईश्वर बनने के महासुख को प्राप्त कर पाने की क्षमता रखता है, तो फिर क्यों कोई इंसान समझौता करे, ईश्वर से कम बनने की ?

ईश्वर से कम बनने की कोशिश करना मतलब ईश्वर के द्वारा हम मानवों को उपहार में दी गयी अथाह मानसिक क्षमता का जानबूझकर कम इस्तेमाल करना, जो की निश्चित रूप से गलत है !

इसलिए आज से ही, “स्वयं बनें गोपाल” और दूसरों को भी बनाएं गोपाल !

Know about the supreme divine progression that makes oneself Gopal

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