बिना यू. एफ. ओ. की मदद के, सिर्फ ध्यान करके एलियंस की दुनिया में तुरंत पहुँच जाने वाले बालक योगी

इस बेहद आश्चर्यजनक घटना के बारे में वर्णन परम आदरणीय श्री राम शर्मा जी आचार्य जी ने खुद अपने द्वारा लिखे गए परलोक संबंधित लेखों में किया है इसलिए इस घटना की सत्यता पर संदेह करने की कोई गुंजाइश ही नहीं है क्योकि विश्व कल्याण के लिए परम आदरणीय श्री राम शर्मा आचार्य जी ने कितनी प्रचंड मेहनत की है यह हर सनातनी जानता है !

श्रद्धेय आचार्य शर्मा जी ने, ना केवल हरिद्वार में “गायत्री परिवार” की स्थापना की है (जिसकी ब्रांच भारत के लगभग हर शहर और विदेशो में भी है) बल्कि खुद हिमालय की गुफा में कई वर्षों तक रहकर, सप्तर्षि के मार्गदर्शन में अत्यंत कठोर तप किया है ! इसलिए ऐसे देवतुल्य महापुरुष के मुंह से निकली हर बात और कलम से लिखा गया हर शब्द अत्यंत शिक्षाप्रद और कल्याणकारी होता है !

चूंकि आजकल अक्सर देखने को मिलता है कि कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकाँश बच्चों को शुद्ध हिंदी के कई शब्द जैसे लोक – भुवन आदि समझ में नहीं आते हैं इसलिए उनके समझने की आसानी के लिए ही इस आर्टिकल में परलोकवासी, लोक – भुवन आदि शब्दों को आजकल की सामान्य बोलचाल की भाषा में एलियंस, प्लैनेट्स आदि के रूप में भी लिखा गया है (चूंकि बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं, इसलिए हर वो सम्भव प्रयास जरूर करना चाहिए जिससे बच्चे अधिक से अधिक अच्छी बातों को आसानी से सीख सकें) ! अतः आईये अब जानते हैं आचार्य जी द्वारा वर्णित उस घटना के बारे में-

ये घटना सन 1937 की है ! बनारस शहर के बंगाली टोला मोहल्ले में “केदार मालाकार” नाम के एक 16 वर्षीय किशोर रहते थे ! जिन दिनों ये आश्चर्यजनक घटना घटी, उसके कुछ समय पहले ही केदार जी के पिता जी का देहांत हुआ था ! इसलिए अब परिवार में सिर्फ उनकी माँ, बहन और भांजा रह गए थे ! केदार जी पास के ही एक विद्यालय में पढ़ाई करने जाते थे ! एक दिन उनके साथ एक बड़ी आश्चर्यजनक घटना घटी !

उस दिन केदार जी दशाश्वमेध घाट के पास स्थित बाज़ार में कोई सामान खरीदने जा रहे थे ! रास्ते में थोड़ा सूनसान क्षेत्र पड़ता था ! वहीँ पर एक पेड़ की उपरी टहनियों पर, अचानक उन्हें एक ज्योतिर्मय दिव्य सत्ता (यानी दिव्य प्रकाश से चमकती हुई कोई मानवीय आकृति) दिखाई दी ! केदार जी एकदम भौचक्का, अवाक होकर उन दिव्य सत्ता को देखे रहे थे ! उन दिव्य सत्ता के तेज से प्रभावित होकर वह हतप्रभ होकर, पत्थर की तरह जड़ हो गए थे !

जब थोड़ी देर बाद, केदार जी थोड़ा सामान्य हुए तो उनके मन में विचार आया कि इन दिव्य सत्ता को किसी दूसरे आदमी को भी दिखाना चाहिए ! ऐसा सोचकर, वो वही खड़े होकर अन्य राहगीरों का इंतजार करने लगे लेकिन वहाँ दूर – दूर तक केवल दोपहर का सन्नाटा था ! इसी बीच एक और आश्चर्यजनक घटना घटी कि जैसे ही केदार जी के मन में ऐसा विचार आया कि उन दिव्य देहधारी को किसी दूसरे आदमी को भी दिखाना चाहिए, वैसे ही वो दिव्य सत्ता तुरंत वहाँ से गायब हो गए !

दिव्य सत्ता के गायब हो जाने के कुछ देर बाद से ही केदार जी को अपने शरीर में बेहद अजीबोगरीब अनुभव होने लगा था ! कुछ पलों के लिए उनकी चेतना का शरीर पर नियंत्रण शिथिल पड़ गया था और वह इतनी कमजोरी महसूस करने लगे कि जमीन पर घुटनों के बल बैठ गए थे ! थोड़ी देर बाद उन्होंने किसी तरह अपने आप को संभाला और फिर बाजार की तरफ बढ़ चले अपना सामान खरीदने !

आवश्यक खरीददारी करने के बाद वह तुरंत घर वापस आ गए ! लेकिन घर आने के बाद से ही उनकी हालत और ज्यादा बिगड़ने लगी ! शरीर असाधारण रूप से बुखार से तप रहा था ! पूरे शरीर में होने वाला दर्द भी असहनीय होने लगा था ! परिवार वाले अत्यंत चिंतित हो गए थे लेकिन दो दिन तक लगातार ऐसे ही दशा रहने के बाद, उनकी तबियत में धीरे – धीरे सुधार होने लगा था और कुछ दिनों बाद वह पूरी तरह से ठीक हो गए थे !

केदार जी का उन दिव्य देहधारी से संपर्क होने का, यह पहला अनुभव था ! इसके बाद वह ज्योतिर्मय सत्ता अक्सर केदार जी के पास आने – जाने लगे और अब वह जब भी आते, तो केदार जी को पहले जैसी तकलीफ का अनुभव तो नहीं होता था लेकिन उनकी उपस्थिति से केदार जी का सूक्ष्म शरीर अपने आप, केदार जी के स्थूल शरीर (यानी हाड़ मांस से बने हुए शरीर) से बाहर निकलकर, देव सत्ता के साथ चल पड़ने के लिए मजबूर हो जाता था ! कभी – कभी केदार जी घंटों तक अपने स्थूल शरीर से बाहर रहते थे और फिर अपने आप वापस उसमे लौट आते थे !

जब रोज – रोज यही घटना होने लगी तो उनके परिवार वालो ने केदार जी से आश्चर्य पूछा कि, अभी कुछ दिनों पहले तक तुम एक साधारण बालक थे लेकिन अचानक तुममें ये आश्चर्यजनक शक्ति कहाँ से आ गयी ? इस प्रश्न का केदार जी ने जवाब दिया था कि यह उनकी कोई आश्चर्यजनक शक्ति नहीं थी क्योकि जो कुछ भी असाधारण घटनायें उनके साथ हो रही थी उसमे ना तो उनकी खुद की कोई शक्ति थी और ना ही उनकी कोई इच्छा थी !

केदार जी ने परिवार वालों को बताया कि यह सब कुछ एक देवपुरुष की सहायता से संपन्न हो रहा था ! जब – जब वह देवपुरुष सामने आ कर प्रकट होते थे तब – तब केदार जी का सूक्ष्म शरीर, अपने आप उनके स्थूल शरीर से बाहर निकल जाता था और फिर उन देवपुरुष के पीछे – पीछे चलते हुए वह उसी लोक में पहुँच जाते थे, जिस लोक के वे देवपुरुष रहने वाले थे ! और फिर वहाँ से केदार जी को अलग – अलग लोकों, स्थानों पर ले जाया जाता था और साथ ही साथ अनगिनत प्रकार के ज्ञान – विज्ञान के रहस्यों की जानकारी दी जाती थी ! काम पूरा हो जाने के बाद केदार जी को पृथ्वी पर वापस अपने स्थूल शरीर में लौटा दिया जाता था !

केदार जी अक्सर कहा करता था कि दूसरे लोकों में ले जाने वाले देवदूत (वो उनको इसी नाम से बुलाते थे) एक ही हों, ऐसा नहीं था ! अलग – अलग भुवनों व लोकों में ले जाने के लिए अलग – अलग देवदूत आते थे (आजकल के मॉडर्न साइंटिस्ट्स इन देवदूतों को भी एलियंस और उनके रहने वाली जगह यानी भुवनों व लोकों को एलियंस के प्लैनेट्स समझते हैं) ! जिस भुवन में केदार जी को ले जाया जाना होता था, उसी भुवन के देवदूत आते थे और उन्हें अपने साथ ले जाते थे ! लेकिन यह सब कुछ केदार जी की मर्जी से हो, ऐसा जरूरी नहीं था !

केदार जी ने बताया कि, या तो देवदूत अपनी मर्जी से, या अपने लोक के अधिष्ठाता ईश्वरीय अंश की इच्छा से उन्हें अपने भुवनों में ले जाते थे ! कहाँ जाना है, और वहां जाकर क्या करना है, इन सभी मामलों में केदार जी पूरी तरह से उन्ही देवदूतों पर निर्भर थे ! मतलब देवदूत जहाँ – जहाँ जाते, केदार जी भी उन्ही के साथ वहां – वहां इस तरह चले जाते थे, मानो उसका सूक्ष्म शरीर उन देवदूत के आकर्षण से अपने आप खिंचा चला जाता हो !

उस समय के बनारस के कुछ बुद्धिजीवियों ने केदार जी से पूछा कि शरीर से बाहर निकलने पर कैसा अनुभव होता है ? तो उन्होंने बताया कि भौतिक देह (यानी स्थूल शरीर) के बंधन से मुक्त होते ही अचानक यह दुनिया (यहाँ तक की अपना स्थूल शरीर भी) एक प्रकार से अदृश्य हो जाते हैं और अपने चारो तरफ एक शून्य स्थान का अनुभव होने लगता है ! बाद में केदार जी ने बताया वह शून्य, वास्तव में महाशून्य था, क्योकि उसका कोई ओर – छोर, आदि – अंत नहीं था लेकिन उसी महाशून्य से अन्य सभी भुवनों या लोकों में प्रवेश किया जा सकता था (यहाँ पर “स्वयं बनें गोपाल” समूह अपने सभी आदरणीय पाठको को याद दिलाना चाहेगा की आज से लगभग 8 वर्ष पहले प्रकाशित इन 2 आर्टिकल्स में हमारे स्पेस साइंस के विद्वान रिसर्चर डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी ने भी इसी “महाशून्य” को एक दूसरे नाम “महास्थान” कहकर, उसके ऐसे आश्चर्यजनक रहस्यों का खुलासा किया था जिनके बारे में प्राप्त जानकारी अनुसार आज तक सम्भवतः विश्व में कही भी प्रकाशन नहीं किया गया है- जानिये कौन हैं एलियन और क्या हैं उनकी विशेषताएं ; एलियन्स कैसे घूमते और अचानक गायब हो जाते हैं) !

दिव्य सत्ता के आकर्षण से, केदार जी उसी महाशून्य को भेदते हुए आगे बढ़ते थे ! इसी तरह से वे दोनों (केदार और देवदूत) एक ऐसे स्थान पर पहुँचते थे जो भयंकर तरंग युक्त होता था ! यहाँ केदार जी के सूक्ष्म शरीर को ऐसा महसूस होता था जैसे उच्च ऊर्जा युक्त बिजली के झटके लग रहे हों ! वहाँ ऐसा झटका महसूस होने के कारण केदार जी ने उस स्थान का नाम “झटिका” रख दिया था !

केदार जी ने बताया कि इस झटके वाले स्थान के आगे कुछ समय तक इन्द्रियां निष्प्रभावी हो जाती थी, इसलिए तब तक का ज्ञान अग्राह्य (यानी समझ से परे) हो जाता था और उन्हें उन अनुभवों की कोई याद नहीं रहती थी ! लोकान्तर यात्रा का हमेशा यही अनुभव रहता था, जिसके बाद केदार जी नये भुवनो या नए लोकों में पहुंचते थे और वहाँ की नई जानकारियाँ को अर्जित करते थे !

केदार जी ने बताया कि उन्हें कई बार भयंकर तकलीफ सहनी पड़ती थी जिसकी वजह से उन्हें अचानक यात्रा को अधूरी छोड़कर वापस, पृथ्वी पर पड़े हुए, अपने स्थूल शरीर में लौटना पड़ता था ! लेकिन ऐसा तभी होता था जब उनके स्थूल शरीर को कोई अशुद्ध शरीर या मन से छू देता था !

समय बीतता रहा और केदार जी का अद्भुत मानसिक व आध्यात्मिक विकास होता चला गया ! केदार जी की इस आश्चर्जनक आध्यात्मिक उन्नति को देखते हुए, बनारस के कुछ साधू महात्माओं ने बताया कि इस बालक पर ऊपर के लोकों में रहने वाली किसी दैवीय सत्ता की महान कृपा हुई है अन्यथा एक साधारण बालक के लिए ऐसा पुरुषार्थ कर पाना संभव नहीं था !

धीरे – धीरे ऐसी स्थिति आ गयी कि अब केदार जी बिना दैवीय सत्ता की सहायता के, सिर्फ अपनी क्षमता से ही, अपने शरीर से बाहर निकल कर किसी भी लोक में तुरंत आ – जा सकते थे !

ऐसी विलक्षण क्षमता प्राप्त करने की वजह से अब बनारस शहर के लोगों को भी पक्का विश्वास हो गया था कि जिसे वे लोग अब तक केदार नाम का एक साधारण लड़का समझते थे, वो वास्तव में पूर्व जन्म के कोई महान दुर्लभ योगी थे, जिसकी वजह से उन्हें इतनी कम उम्र में ही ऐसी आश्चर्यजनक शक्ति प्राप्त हो गयी थी कि वो आँख बंद करते ही अपने सूक्ष्म शरीर से ब्रह्माण्ड में स्थित किसी भी लोक में तुरंत जा सकते थे !

इसी वजह से अब सैकड़ों लोग केदार जी के पास, परलोक सम्बन्धी तरह – तरह के प्रश्न पूछने के लिए आने लगे थे ! और एक परोपकारी व्यक्ति की भांति केदार जी हर एक आदमी की जिज्ञासा का समुचित समाधान करते थे ! एक बार ऐसी ही एक सभा में जब केदार जी से पूछा गया कि इस सृष्टिगत आयाम से बाहर जा कर इसको देखिये और बताइए कि यह कैसा लग रहा है ?

प्रश्न पूछने वाले सज्जन ज्ञानी थे और वे इस प्रश्न के द्वारा केदार जी की परीक्षा लेना चाह रहे थे कि क्या सचमुच केदार जी की पहुँच लोक – लोकान्तरों तक है या सब कुछ केवल उनकी कपोल – कल्पना ही है ! केदार जी को अपना सूक्ष्म शरीर बाहर निकालने में एक क्षण का समय लगा और पलक झपकते ही वो, वापस अपने स्थूल शरीर में लौट आये ! फिर इस सवाल का सटीक उत्तर देते हुए उन्होंने, उन ज्ञानी महोदय से कहा कि यह सृष्टिगत आयाम बाहर से ऐसा दिखाई पड़ता है मानो कोई मनुष्य अपने दोनों हांथों को दायें – बाए फैलाये हुए निश्चळ खड़ा हो (वास्तव में उपनिषदों में दी गयी वैश्वानर विद्या में ऐसा ही वर्णन है जिसका जैन आचार्य भी समर्थन करते हैं) !

ऐसी ही एक दूसरी सभा में किसी ने केदार जी से एक अत्यंत कठिन और अजीब प्रश्न पूछ लिया ! उसने केदार जी से पूछा कि “जिस महाशून्य की आप बात करते हैं, वहाँ से बैकुंठ लोक कैसा दीखता है ” ! केदार जी पुनः अपने शरीर से बाहर निकले और थोड़ी ही देर में वापस लौट कर उन्होंने बताया कि “महाशून्य में बाहर से बैकुंठ लोक दक्षिणावर्ती शंख जैसा दिखाई पड़ता है” !

इस प्रकार से उन्होंने कई लोगो के परलोक सम्बन्धी गूढ़ व रहस्यमय प्रश्नों का समुचित उत्तर दिया ! वह जिन – जिन भुवनों या लोकों में जाते, वहाँ की भाषाएँ सीख लेते और कभी – कभी उनका प्रयोग, स्थूल देह में लौटने के बाद पृथ्वी पर भी करते पाए जाते और उन एकदम नई भाषाओं को सुनने वाले लोग समझ ही नहीं पाते कि वह कौन सी विचित्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं !

केदार जी नए – नए लोकों की एकदम अनजान व अपिरिचित शब्दावलियों का प्रयोग कभी – कभी भूलवश कर देते थे जिसकी वजह से उनके सामने प्रश्न पूछने के लिए बैठी भीड़ को कुछ समझ में नहीं आता था और भीड़ में एकदम सन्नाटा छा जाता था, तब केदार जी को तुरंत अपनी गलती का अहसास होता था और वो फिर तुरंत हिंदी में लोगों को जवाब देते थे ! शाम को संध्या के समय वेदपाठ करना उनका रोज का नियम था लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उनका वेद, हमारे यहाँ के प्रचलित वेद से अलग था !

उनके वेदपाठ के स्वरों में तो भिन्नता थी ही और साथ ही उनके शब्द भी काफी अलग थे ! उनके वेद के शब्द ना तो हिंदी में थे और ना ही संस्कृत में थे बल्कि वो तो किसी और ही दुनिया के लगते थे ! उनके उच्चारण भी बिलकुल अलग थे ! उनके वेदपाठ को देखने और सुनने वाले लोगों ने समझा कि शायद किसी उच्च लोक की यात्रा के दौरान उन्होंने कोई नई देव भाषा सीख ली होगी और उसी वाणी में वहाँ का वेदपाठ कर रहे होंगे !

फिर भी कुछ लोग से नहीं रहा गया तो उन्होंने केदार जी से इस बारे में पूछ ही लिया ! तब केदार जी ने उन लोगों की जिज्ञासा को शांत करते हुए बताया कि इस दुनिया की भाषा की तरह, उच्च लोकों की भाषा को पढ़कर या सुनकर नहीं सीखना पड़ता है क्योकि उच्च लोको में भाषाओँ को सीखने – समझने का तरीका, पृथ्वी से एकदम अलग है ! जब धरती का कोई भी सूक्ष्म शरीरधारी मनुष्य (जैसे मेरी तरह) किसी उच्च लोक में जाता है, और वहाँ के किसी भी देवपुरुष से बात करने की इच्छा जाहिर करता है, तो उन देवपुरुष के भ्रू – मध्य (माथे पर स्थित तीसरी आँख वाले स्थान) से एक ज्योति किरण निकलकर उस मनुष्य के भ्रू – मध्य को स्पर्श करती है जिसके बाद वह मनुष्य अपने आप उस लोक की सभी भावनाओं व भाषा का जानकार हो जाता है (मतलब इसके बाद वह मानव, न सिर्फ उस लोक की बोली को समझने लगता है बल्कि वहां खुलकर बातचीत भी कर सकता है) ! पृथ्वी की तरह, उन लोको में बातचीत करने के लिए भाषा के सही शब्दों, व्याकरण के नियमो आदि को याद रखने की भी जरूरत नहीं होती है क्योकि भ्रू – मध्य से ज्ञान प्राप्त हो जाने के बाद, केवल इच्छा मात्र से ही उस लोक की भाषा में उचित शब्दों की ध्वनि अपने आप प्रकट होने लगती है !

अब विभिन्न लोकों में भ्रमण करना केदार जी की एक प्रकार से रोज की आदत बन गयी थी ! उनका दिन – रात जब भी मन करता था, वे दिव्य लोकों की यात्रा पर निकल पड़ते थे और इच्छानुसार देव पुरुषों के दर्शन, चरण स्पर्श, ज्ञानार्जन आदि करके लौट आते थे ! केदार जी की यह अलौकिक क्षमता उनके लिए केवल कौतुक या कौतूहल मात्र ही नहीं थी, बल्कि इसके माध्यम से उन्होंने अनेक प्रकार के अलौकिक ज्ञान – विज्ञान के रहस्यों का सबके भले के लिए खुलासा किया था ! लेकिन एक अवसर पर काशी की महान संत “सिद्धि देवी” से भेंट होने पर जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण बदल गया ! परम आदरणीया सिद्धि देवी ने उन्हें जीवन के वास्तविक उद्देश्य (जन्म – मरण से मुक्ति) को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया था !

वास्तव में केदार जी के साथ घटित हुई घटनाओं ने प्राचीन भारतीय ग्रंथों में लिखी हुई बातों को सत्य प्रमाणित किया है जिसे कुछ लोग अब भी काल्पनिक मान सकते है लेकिन पिछले कुछ वर्षो में मॉडर्न साइंटिस्ट्स द्वारा खोजी गयी फाइंडिंग्स, उनके आर्टिकल्स, इन विषयों पर बनने वाले वृत्तचित्र (Documentaries) और वहाँ बनने वाली कुछ मूवीज पर गौर करें तो हमें स्पष्ट अंदाज़ा लगेगा कि उन्हें प्राचीन भारतीय ग्रंथों में लिखे गए आश्चर्यजनक तथ्यों के “महत्वपूर्ण” होने का भरपूर अहसास है !

हमारे आस – पास की दुनिया जितनी शांत दीखती है, वास्तव में उतनी शांत है नहीं ! यत्र – तत्र – सर्वत्र एक हलचल सी मची हुई है ! किसी को चैन नहीं है ! और ये बेचैनी इस जगत में सिर्फ ऊपरी तौर पर ही नहीं है, बल्कि इस जगत के प्रत्येक परमाणु में भी समायी हुई है ! इस बेचैनी व हलचल को सुनने व देखने के लिए, पहले खुद को शांत करना बहुत ज़रूरी है (मतलब खुद का शरीर एकदम शांत होने के बाद ही दूसरी दुनिया की हलचल सुनाई व दिखाई पड़ने लगती है) ! और खुद को शांत करने के लिए मैडिटेशन (ध्यान) का अभ्यास करने से आसान कोई और तरीका नहीं है (ध्यान लगाने की अलग – अलग विधियों पर भी “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने कई महत्वपूर्ण आर्टिकल्स प्रकाशित किये हैं जिनमें से 2 को पढ़ने के लिए कृपया इन लिंक्स पर क्लिक करें- दैवीय कायाकल्प की प्रक्रिया निश्चित शुरू हो जाती है सिर्फ आधा घंटा इस तरह 1 से 3 महीने ध्यान करने से ; पारस पत्थर का रहस्य) !

सारांश यही है कि हम सभी मानवो को अनंत काल पुराने सनातन धर्म में वर्णित सभी सत्य जानकारियों का जरूर फायदा उठाना चाहिए और इन्ही महत्वपूर्ण जानकारियों में से एक है “ध्यान का नियमित अभ्यास करना” जिससे ना केवल हमारी आध्यात्मिक उन्नति बहुत तेज होती है बल्कि सभी तरह की शारीरिक व मानसिक बीमारियों में बहुत ज्यादा लाभ मिलता है ! इसीलिए ना केवल योगी, महात्मा लोग बल्कि दुनिया के सबसे धनी लोग भी अपनी अति व्यस्त दिनचर्या के बावजूद भी ध्यान करना नहीं भूलते हैं ! अधिक जानकारी के लिए कृपया मीडिया में प्रकाशित इन खबरों को पढ़ें-

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