Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को

कहानी – धोखा – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सतीकुण्ड में खिले हुए कमल वसंत के धीमे-धीमे झोंकों से लहरा रहे थे और प्रातःकाल की मंद-मंद सुनहरी किरणें उनसे मिल-मिल कर मुस्कराती थीं। राजकुमारी प्रभा कुण्ड के किनारे हरी-हरी घास पर खड़ी सुन्दर...

कहानी – राजा हरदौल – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

बुंदेलखंड में ओरछा पुराना राज्य है। इसके राजा बुंदेले हैं। इन बुंदेलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है। एक समय ओरछे के राजा जुझार सिंह थे। ये बड़े साहसी और बुद्धिमान...

कविताएँ – चिंता सर्ग – कामायनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

भाग -1 हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,   बैठ शिला की शीतल छाँह   एक पुरुष, भीगे नयनों से   देख रहा था प्रलय प्रवाह |     नीचे जल था ऊपर हिम था,...

कहानी – लाग-डाट – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

जोखू भगत और बेचन चौधरी में तीन पीढ़ियों से अदावत चली आती थी। कुछ डाँड़-मेंड़ का झगड़ा था। उनके परदादों में कई बार खून-खच्चर हुआ। बापों के समय से मुकदमेबाजी शुरू हुई। दोनों कई...

नाटक – प्रथम अंक – ध्रुवस्वामिनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

(शिविर का पिछला भाग जिसके पीछे पर्वतमाला की प्राचीर है, शिविर का एक कोना दिखलाई दे रहा है जिससे सटा हुआ चन्द्रातप टँगा है। मोटी-मोटी रेशमी डोरियों से सुनहले काम के परदे खम्भों से...

कहानी – राज्य-भक्त – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

संध्या का समय था। लखनऊ के बादशाह नासिरुद्दीन अपने मुसाहबों और दरबारियों के साथ बाग की सैर कर रहे थे। उनके सिर पर रत्नजटित मुकुट की जगह अँग्रेजी टोपी थी। वस्त्र भी अँग्रेजी ही...

नाटक – सूचना – ध्रुवस्वामिनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

विशाखदत्त-द्वारा रचित ‘देवीचन्द्रगुप्त’ नाटक के कुछ अंश ‘शृंगार-प्रकाश’ और ‘नाट्य-दर्पण’ से सन् 1923 की ऐतिहासिक पत्रिकाओं में उद्धृत हुए। तब चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के जीवन के सम्बन्ध में जो नयी बातें प्रकाश में आयीं,...

कहानी – अमावस्या की रात्रि – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

दीवाली की संध्या थी। श्रीनगर के घूरों और खँडहरों के भी भाग्य चमक उठे थे। कस्बे के लड़के और लड़कियाँ श्वेत थालियों में दीपक लिये मंदिर की ओर जा रही थीं। दीपों से उनके...

नाटक – द्वितीय अंक – ध्रुवस्वामिनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

(एक दुर्ग के भीतर सुनहले कामवाले खम्भों पर एक दालान, बीच में छोटी-छोटी-सी सीढ़ियाँ, उसी के सामने कश्मीरी खुदाई का सुंदर लकड़ी का सिंहासन। बीच के दो खंभे खुले हुए हैं, उनके दोनों ओर...

कहानी – चकमा – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सेठ चंदूमल जब अपनी दूकान और गोदाम में भरे हुए माल को देखते तो मुँह से ठंडी साँस निकल जाती। यह माल कैसे बिकेगा बैंक का सूद बढ़ रहा है दूकान का किराया चढ़...

नाटक – तृतीय अंक – ध्रुवस्वामिनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

(शक-दुर्ग के भीतर एक प्रकोष्ठ। तीन मंचों में दो खाली और एक पर ध्रुवस्वामिनी पादपीठ के ऊपर बाएँ पैर पर दाहिना पैर रखकर अधरों से उँगली लगाए चिन्ता में निमग्न बैठी है। बाहर कुछ...

कहानी – आप-बीती – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

प्रायः अधिकांश साहित्य-सेवियों के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब पाठकगण उनके पास श्रद्धा-पूर्ण पत्र भेजने लगते हैं। कोई उनकी रचना-शैली की प्रशंसा करता है कोई उनके सद्विचारों पर मुग्ध हो जाता...

कहानी – संयोग श्रृंगार – (लेखक – रामचंद्र शुक्ल )

यद्यपि ‘पद्मावत’ में वियोग श्रृंगार ही प्रधान है, पर संयोग श्रृंगार का भी पूरा वर्णन हुआ है। जिस प्रकार ‘बारहमासा’ विप्रलंभ के उद्दीपन की दृष्टि से लिखा गया है, उसी प्रकार षड्ऋतु वर्णन संयोग...

कहानी – अधिकार चिन्ता – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

टामी यों देखने में तो बहुत तगड़ा था। भूँकता तो सुननेवाले के कानों के परदे फट जाते। डील-डौल भी ऐसा कि अँधेरी रात में उस पर गधे का भ्रम हो जाता। लेकिन उसकी श्वानोचित...

कहानी – वियोग पक्ष – (लेखक – रामचंद्र शुक्ल )

जायसी का विरहवर्णन कहीं-कहीं अत्यंत अत्युक्तिपूर्ण होने पर भी मजाक की हद तक नहीं पहुँचने पाया है, उसमें गांभीर्य बना हुआ है। इनकी अत्युक्तियाँ बात की करामात नहीं जान पड़तीं, हृदय की अत्यंत तीव्र...

कहानी – उध्दार – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

हिंदू समाज की वैवाहिक प्रथा इतनी दूषित, इतनी चिंताजनक, इतनी भयंकर हो गयी है कि कुछ समझ में नहीं आता, उसका सुधार क्योंकर हो। बिरले ही ऐसे माता-पिता होंगे जिनके सात पुत्रों के बाद...