हमारे रिसर्चर की आश्चर्यजनक खोज, ज्यूपिटर प्लेनेट पर स्थित एक नए ब्लैक होल के बारे में और पृथ्वी से बाहर मानव जीवन बसाने में आने वाली कुछ अनजानी बड़ी समस्याओं के बारे में

प्रतीकात्मक चित्र (Symbolic Image)
सबसे पहले जिन आदरणीय पाठकों को नहीं पता है, उन्हें हम यह बताना चाहेंगे कि अमेरिका देश का अंतिरक्ष शोध संस्थान “नासा” (National Aeronautics and Space Administration; https://www.nasa.gov/), ज्यूपिटर प्लेनेट (यानी बृहस्पति ग्रह) के चन्द्रमा (जिसका नाम “यूरोपा” है) पर जीवन की संभावना तलाशने के लिये अक्टूबर 2024 में यान भेजने वाला है (जिसके बारे में विस्तृत जानकारी पाने के लिए, कृपया मीडिया में प्रकाशित इस खबर को पढ़ें- योजना: दो साल बाद बृहस्पति ग्रह पर रॉकेट भेजेगा नासा, एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स संग किया करार) !
प्रथम दृष्टया इस प्रोजेक्ट में सब ठीक लग रहा है, लेकिन हाल ही में “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए ब्रह्मांड सम्बन्धित विषयों के मूर्धन्य शोधकर्ता डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी (Space Researcher Doctor Saurabh Upadhyaya) ने एक ऐसी खोज की है जिसका असर पड़ सकता है नासा के “यूरोपा मिशन” (NASA’s Europa Mission) पर भी !
डॉक्टर उपाध्याय का कहना है कि उनके शोध के अनुसार इसकी प्रबल संभावना है कि बृहस्पति ग्रह पर ही एक ब्लैक होल (Black hole; कृष्ण विवर) मौजूद है जिसका किसी ना किसी तरह से असर पड़ सकता है “यूरोपा मिशन” की सफलता पर !
वास्तव में मुख्य धारा के अधिकतर वैज्ञानिक ये मानते है कि ब्रह्माण्ड में ब्लैक होल्स के निर्माण के लिए, तारों का या उतने ही विशालकाय किसी देदीप्यमान पिंड का होना आवश्यक है क्योंकि किसी विशालकाय तारे का ब्लैक होल में बदलने के लिए, उस तारे के द्रव्यमान और घनत्व का महत्व काफी अधिक होता है ! लेकिन आज के वैज्ञानिकों की राय से अलग, डॉक्टर सौरभ का कहना है कि ब्लैक होल के अस्तित्व के लिए, किसी पिंड का तारा जितना विशालकाय होना आवश्यक नहीं है, क्योकि ब्लैक होल का अस्तित्व किसी विशालकाय ग्रह पर भी हो सकता है !
एक स्वाभाविक अनुमान के आधार पर कहा जा सकता है कि डॉक्टर उपाध्याय द्वारा बृहस्पति ग्रह पर खोजे गए इस संभावित ब्लैक होल के बारे में, नासा को सम्भवतः अभी तक जानकारी नहीं है, क्योकि प्राप्त जानकारी अनुसार नासा के किसी भी स्टेटमेंन्ट में, इस ब्लैकहोल की खोज के बारे में और इससे जुड़े हुए प्रीकॉशन्स के बारे में सम्भवतः चर्चा नहीं की गयी है !
किसी भी यान का, किसी भी ब्लैक होल के नजदीक जाने पर क्या – क्या संभावित असर (जैसे- यान के फंक्शन्स सही से काम ना करना या यान ही गायब हो जाना आदि) हो सकतें हैं इसका थोड़ा बहुत अंदाजा तो लोग आम तौर कुछ प्रसिद्ध हॉलीवुड मूवीज (जैसे- इंटरस्टेलर; Interstellar आदि) को देखकर लगा सकतें हैं !
लेकिन वास्तव में ब्लैक होल क्या होतें हैं, इसका अनुमान भी आज के मुख्य धारा के वैज्ञानिको को नहीं है ! वैज्ञानिको के ज्यादातर कैलकुलेशन और अवधारणाएं, किसी ब्लैक होल के आस – पास उपस्थित ब्रह्मांडीय पिंडों एवं गैसों के व्यवहार पर निर्भर करती हैं, जिसका अनुमान वे उन पिंडों एवं गैसों से निकलने वाली उच्च आवृत्तियों के विद्युतचुम्बकीय विकिरण से लगाते हैं !
डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी ने ब्लैक होल्स के विषय में भी कुछ आश्चर्यजनक खोज निकाला है, जिसके बारे में अधिक जानने के लिए कृपया हमारे द्वारा पूर्व में प्रकाशित इस आर्टिकल के लिंक पर क्लिक करें- ब्लैक होल्स के बारे में पूरी दुनिया के वैज्ञानिको से एकदम अलग खोज है “स्वयं बनें गोपाल” समूह के शोधकर्ताओ की !
नासा ने जो “यूरोपा मिशन” शुरू किया है उसका मुख्य उद्देश्य यही जानना है कि “क्या वहां पर जीवन (किसी भी रूप में) है या नहीं और क्या वहां पर जीवन जीया जा सकता है या नहीं (ताकि अगर भविष्य में हमारी पृथ्वी युद्ध, पानी की कमी, भूकंप, सुनामी आदि में से किसी भी वजह से बर्बाद हो गयी तो वहां पर मानवो को बसाया जा सके) !
लेकिन नासा के इन उद्देश्यों में से एक यह उद्देश्य कि “क्या वहां पर मानव जीवन सुगमता पूर्वक जीया जा सकता है” वास्तव में तर्क संगत नहीं है और ऐसा क्यों है इसके भी कारणों का खुलासा कर रहें हैं डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी, जो कि निम्नवत है-
डॉक्टर सौरभ के अनुसार हमारे सौरमंडल में केवल पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ पर मानव जीवन जीने के लिए आवश्यक 5 तत्व (यानी- पृथ्वी, जल, आकाश, वायु, अग्नि) भरपूर मात्रा में मौजूद है ! इन 5 तत्वों में से कोई भी तत्व अगर किसी ना किसी रूप में ज्यादा समय तक ना मिले तो शरीर बर्बाद होने लगता है (जैसे- मुर्दा शरीर में सांस लेने की प्रकिया बंद हो जाने की वजह से, शरीर के अंदरूनी अंगो तक तो वायु नहीं पहुँच पाती है जिससे शरीर अंदर से सड़ने लगता है) !

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मानव जीवन, तत्वों पर कितना ज्यादा आश्रित है इसका अंदाजा आप इस उदाहरण से भी लगा सकते हैं कि वैज्ञानिको की लाख मेहनत व प्रीकॉशन्स के बावजूद भी आज तक दुनिया में किसी भी मानव की “हेड ट्रांसप्लांट” सर्जरी (Head Transplant Surgery) सक्सेसफुल क्यों नहीं हो सकी ?
क्योकि इसका एक सीधा सा कारण योग शास्त्र में दिया गया है कि जैसे ही किसी मानव की गर्दन कटती है, वैसे ही उसकी रीढ़ की हड्डी से गुजरने वाली सुषम्ना नाड़ी में बहने वाली “मुख्य प्राण वायु” (यानी वायु तत्व) शरीर से मुक्त होकर बाहर निकल जाता है (मतलब मौत हो जाती है, भले ही लाइफ सपोर्ट सिस्टम से वाइटल ऑर्गन्स को काफी देर तक सक्रीय रखने की कोशिश की जाए) !
वैसे तो शरीर में कई अन्य तरह की प्राण व उपप्राण रूपी वायु बहती रहती है लेकिन मौत सिर्फ तभी होती है जब नाभि स्थित मुख्य प्राण वायु (जो रीढ़ की हड्डी के सहारे मस्तिष्क तक हमेशा पहुंचती रहती है) शरीर से हमेशा के लिए बाहर निकल जाती है (वैसे उच्च स्तरीय योगी अपनी इच्छा से मुख्य प्राण को भी बाहर निकालकर इंटर डाईमेंशनल ट्रेवल यानी दूसरे लोकों की यात्रा कर सकतें हैं) !
आधुनिक वैज्ञानिक तो मानव शरीर के अंदर केवल मांस, खून, हड्डी, त्वचा आदि जैसी आँख से दिखाई देने वाली चीजों के अस्तित्व को ही सही मानते हैं, लेकिन “प्राण वायु” (यानी वायु तत्व) जैसी अदृश्य रहने वाली चीज को अंधविश्वास मानते हैं ! इसलिए तत्वों की इस “वैदिक थ्योरी” को सही साबित करने के लिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह विनम्रतापूर्वक दुनिया के सभी वैज्ञानिको व डॉक्टर्स को मुफ्त में यह क्लू (clue) देता है कि, जब तक कि वे सुषम्ना से गुजरने वाले मुख्य प्राण वायु के बहिर्गमन को नहीं रोक सकेंगे तब तक वे, किसी भी मानव की हेड ट्रांसप्लांट सर्जरी में कभी कामयाब नहीं हो सकेंगे !
अतः निष्कर्ष यही है कि वातावरण में 5 तत्वों की “अपर्याप्त मौजूदगी”, दूसरे ग्रहों पर मानव जीवन जीने में एक बहुत बड़ी समस्या साबित होगी, क्योकि इन 5 तत्वों की भरपूर मात्रा को किसी दूसरे ग्रह पर हमेशा पहुंचा पाना, बहुत ही महंगा व अधिक समय लेने वाली प्रकिया है (जैसा कि पृथ्वी के यान को बृहस्पति के चन्द्रमा यूरोपा पर पहुंचने में लगभग 5 साल लगेंगे और मंगल ग्रह पर पहुँचने में 1 साल तक लग सकते हैं और हर बार यान को भेजने में करोड़ो डॉलर्स खर्च भी होतें हैं), इसलिए डॉक्टर सौरभ के अनुसार निकट भविष्य के लिए, पृथ्वी पर स्थित सागरों व महासागरों के अंदर ही मानव बस्तियां बसाना ज्यादा अच्छा, आसान व सस्ता तरीका है क्योकि पृथ्वी के आस – पास रहकर ही इन 5 तत्वों को अपेक्षाकृत ज्यादा मात्रा में हमेशा पाया जा सकता है (किसी दूसरे ग्रह पर रहते हुए शायद यह उतना सम्भव ना हो सकेगा) !
डॉक्टर सौरभ के अनुसार पृथ्वी को ये 5 तत्व, 5 अलग – अलग ग्रहों (व सूर्य) से प्राप्त हुए हैं, जैसे- शून्य यानी अंतरिक्ष से ही पृथ्वी पैदा हुई (इसलिए पृथ्वी में “आकाश तत्व” है), बृहस्पति ग्रह से “पृथ्वी तत्व” प्राप्त हुआ है, बुध से “वायु तत्व”, सूर्य से “अग्नि तत्व”, और चन्द्रमा से “जल तत्व” प्राप्त हुआ है ! डॉक्टर सौरभ का कहना है कि हमारे इस ब्रह्माण्ड में सूर्य के उत्पन्न होने के काफी पहले से ही, पृथ्वी अस्तित्व में आ चुकी थी (लेकिन पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत, सूर्य के उत्पन्न होने के बाद से ही हुई है) ! जबकि कई वैज्ञानिक ठीक इसका उल्टा मानते हैं यानी वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य, पृथ्वी से पहले उत्पन्न हुआ है (डॉक्टर सौरभ की इस अवधारणा के बारे में अधिक जानने के लिए, कृपया हमारे इस आर्टिकल को पढ़ें- पूरे विश्व में पहली बार खुलासा कर रहें हैं हमारे रिसर्चर कि, क्या हमारा सोलर सिस्टम बाइनरी है या नहीं और अगर है तो कैसे है) !
चूंकि यहाँ बात ब्लैक होल की भी हुई है जिसके बारे में लोगों को आम तौर लगता है कि ब्लैक होल, दूसरे लोकों (या डाइमेंशन्स) में जाने के रास्ता हो सकता है, तो इसी परिप्रेक्ष्य में हम डॉक्टर सौरभ द्वारा बताये गए एक दुर्लभ वृत्तांत के बारे में भी बताना चाहेंगे कि एक बार प्राचीन काल में, कुछ हाई क्लास साइंटिस्ट्स यानी ऋषियों ने अथक परिश्रम से रिसर्च (तप) किया, ये जानने के लिए कि आखिर हमारा ब्रह्माण्ड या अन्य ब्रह्माण्ड, प्रकृति, ये सारी माया, अंत में जाकर कहाँ विलीन होतें हैं ! तो उन्हें कई हजार सालों के रिसर्च वर्क के बाद पता चला कि, सभी ब्रह्माण्ड अलग – अलग इसलिए दिख रहें है क्योकि उनके कालचक्र अलग – अलग है और ये सभी ब्रह्माण्ड, प्रकृतियाँ, माया और उनका कालचक्र भी तिरोहित हो रहें हैं, एक ही “बिंदु” में !
तब उन ऋषियों ने महान साहस दिखाते हुए, उसी बिंदु में खुद को भी समाहित (तिरोहित) करने का प्रयास किया ताकि वो समझ सकें कि वो परम रहस्यमय बिंदु आखिर है क्या ! लेकिन कोई भी ऋषि उस बिंदु में समाहित ना हो सका ! जिसका कारण उन्हें बाद में ईश्वरीय कृपा से पता चला कि उस बिंदु में प्रवेश करने के लिए उन्हें अन्य विभिन्न ब्रह्माण्डों में उपस्थित उनके अन्य सभी “जीव रूपों” को भी, अपने इस वर्तमान “जीव रूप” से एकाकार करना होगा, तभी वे उस बिंदु में प्रवेश कर पाएंगे ! तब भगवत्कृपा से, उन ऋषियों ने अपने योग अनुसन्धान द्वारा, अन्य विभिन्न ब्रह्माण्डों के अलग – अलग कालचक्रों में उपस्थित, उनके ही अन्य विभिन्न जीव रूपों को, चित्त को विह्वल कर देने वाली माया से ग्रसित होकर, विचित्र लीलाएं करते हुए देखा !
अद्भुत आश्चर्यों से लगातार सामना करते हुए तब उन ऋषियों ने “एकोहं बहुस्याम” रुपी ईश्वरीय ज्ञान को आत्मसात किया ! इस ईश्वरीय ज्ञान से उन्होंने समझा कि जब ईश्वर “एकोहं बहुस्याम” हो सकतें हैं (यानी ईश्वर एक होते हुए भी उनके अनंत रूप होते है) तो हर आत्मा के भी अनंत “जीव रूप” क्यों नहीं हो सकतें हैं (क्योकि आत्मा, परमात्मा का ही अविनाशी अंश है) ! उसके पश्चात् उन ऋषियों ने अपने योग बल से, अन्य ब्रह्माण्डो में स्थित अपने उन सभी जीवरूपों को, अपने ब्रह्मांडीय शरीर से एकाकार करते हुए, अपने में ही विलीन कर लिया ! जिसके तुरंत बाद, वे सभी ऋषि उस महानतम बिंदु में समा गए !
बिंदु में समाते ही, बिना किसी समयांतराल के, वे बिंदु के उस पार निकल गए ! उन्होंने देखा कि बिंदु के उस पार यानी दूसरी तरफ एक ऐसी नई विचित्र दुनिया चल रही है जहाँ के जीव, माया को तो अपने अधीन कर सकतें है लेकिन महामाया को नहीं (जबकि बिंदु के इस पार के जीव यानी हम लोग माया के भी अधीन होते हैं) ! उस नयी दुनिया की सबसे विशेष बात यह थी की वहां हमारी दुनिया की तरह “एक सार्वभौमिक कालचक्र के अनुसार से जीव – जगत नहीं चल रहे थे”, बल्कि वहां पर “हर जीव का अपना एक स्वतंत्र कालचक्र” था !
तब उन ऋषियों ने फिर आश्चर्यचकित होकर कातर भाव से “नेति – नेति” (अर्थात “यह अन्त नहीं है”) कहते हुए उन अनंत रहस्यमय व सार्वभौमिक सत्ता को अपने ह्रदय से पुकारा, जिन्हे वे जितना ज्यादा खोजते जा रहें उतना ही ज्यादा उलझते जा रहें हैं ! तब अंतिम सत्ता अर्थात ईश्वर ने ऋषियों को दर्शन देकर सृष्टि के आदि व अंत का रहस्य समझाया !
अंततः सारांश रूप में हम यही कहना चाहेंगे कि, ये कॉमन सेन्स तो सभी को है कि देश, काल, परिस्थिति के हिसाब से चुनौतियों का रूप हमेशा बदलता रहता है, इसलिए हर बुद्धिमान व्यक्ति भविष्य में आ सकने वाली सभी तरह की समस्याओं का समाधान, पहले से ही खोजने की कोशिश करता रहता है, अतः विश्व की दिशा व दशा तय कर सकने में सक्षम, सभी दूरदर्शी वैज्ञानिकों, राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, उद्योगपतियों व समाजसेवियों आदि को एक स्वस्थ मानसिकता के तहत, साथ मिलकर संबंधित समस्याओं के उचित समाधानों को खोजने के लिए आवश्यक रिसर्च वर्क्स में, यथासम्भव सहयोग करते रहना चाहिए, ताकि आने वाली मानवीय पीढ़ी सुखपूर्वक अबाध गति से बढ़ती रहे और साथ ही साथ हमारे इस पूरे जीव – जगत को धारण करने वाली पृथ्वी माँ (Mother Earth) की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके !
वन्दे मातरम् !
(ब्रह्माण्ड व एलियंस सम्बंधित हमारे अन्य हिंदी आर्टिकल्स एवं उन आर्टिकल्स के इंग्लिश अनुवाद को पढ़ने के लिए, कृपया नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें)-
क्या चंद्रयान -2 के लैंडर ‘विक्रम’ से सम्पर्क टूटने के पीछे एलियंस का हाथ है
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यू एफ ओ, एलियंस के पैरों के निशान और क्रॉस निशान मिले हमारे खोजी दल को
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क्या एलियन से बातचीत कर पाना संभव है ?
ऋषि सत्ता की आत्मकथा (भाग – 1): पृथ्वी से गोलोक, गोलोक से पुनः पृथ्वी की परम आश्चर्यजनक महायात्रा
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एलियन्स कैसे घूमते और अचानक गायब हो जाते हैं
जानिये कौन हैं एलियन और क्या हैं उनकी विशेषताएं
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क्यों गिरने से पहले कुछ उल्कापिण्डो को सैटेलाईट नहीं देख पाते
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सावधान, पृथ्वी के खम्भों का कांपना बढ़ता जा रहा है !
“Svyam Bane Gopal” group reveals the current probable city of aliens that may be in India
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जिसे हम उल्कापिंड समझ रहें हैं, वह कुछ और भी तो हो सकता है
Our research group finds U.F.O. and Aliens’ footprints
The facts published by us are still the riddles for the scientists
Is it possible to interact with aliens?
Are Scientists telling the complete truth about Bermuda Triangle ?
What we consider as meteorites, can actually be something else as well
How aliens move and how they disappear all of sudden
Who are real aliens and what their specialties are
Why satellites can not see some meteorites before they fall down
Know how to identify the aliens who are born in human form
There is nothing imaginary here, everything is true
Eventually what do we get benefited with if the actual contact with Aliens gets established
Beware, shaking of pillars of earth is increasing !
अपार सफलता पाईये दिनचर्या के इन आसान कामों से सभी ग्रहों के अशुभ प्रभावों को समाप्त करके
अखंड यौवन को बेहद आसानी व जल्दी से प्रदान करने में सक्षम हैं ये यौगिक क्रियाएं
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जब तक हम “सही कारण” को नहीं हटायेंगे तब तक उससे मिलने वाली “तकलीफ” से परमानेंट मुक्ति कैसे पा सकेंगे
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