पूरे विश्व में पहली बार खुलासा कर रहें हैं हमारे रिसर्चर कि, क्या हमारा सोलर सिस्टम बाइनरी है या नहीं और अगर है तो कैसे है
“स्वयं बनें गोपाल” समूह के ब्रह्मांड व एलियंस सम्बन्धित विषयों के मूर्धन्य शोधकर्ता डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी (Doctor Saurbh Upadhyay) के अनुसार आज के बहुत से स्पेस साइंटिस्ट, ब्रह्माण्डीय रहस्यों को उजागर करने के लिए कई नयी विचार धाराओं पर प्रयोग कर रहे हैं, और उन्ही खोजों में से एक है, इस बात का पता लगाना कि क्या हमारा सूर्य (या सौरमंडल) एक बाइनरी सिस्टम (Binary System) के अंतर्गत किसी अज्ञात केन्द्र का उसी तरह चक्कर लगा रहा है (जैसे हमारी पृथ्वी और सौर मंडल के अन्य ग्रह हमारे सूर्य का चक्कर लगा रहे है) !
आईये सबसे पहले संक्षिप्त में जानतें हैं कि आखिर क्या होता है बाइनरी सिस्टम ! बाइनरी सिस्टम एक द्विआधारीय प्रणाली होती है जिसके अंतर्गत होने वाले सारे क्रियाकलाप के आधार में सिर्फ 2 इकाइयां होती है !
उदहारण के तौर पर अगर हम बात करें बाइनरी नंबर सिस्टम की तो इस प्रणाली (सिस्टम) में प्रत्येक संख्या को केवल दो संख्याओं, अर्थात- 0 और 1, के आधार पर ही व्यक्त किया जाता है (जिन्होंने बाइनरी नंबर सिस्टम का अध्ययन किया है, वे जानते है कि ऐसा कैसे होता है) !
सोलर सिस्टम (Solar System) का बाइनरी होने से मतलब है कि एक ऐसा तारामण्डल जिसमे दो समान गुणधर्म वाले तारे एक ही केन्द्र का, अलग – अलग पथ पर, चक्कर लगातें हों !
आज के कुछ वैज्ञानिक का मानना हैं कि हमारा सूर्य (और उसका सौरमंडल) शायद ऐसे ही किसी बाइनरी स्टार सिस्टम का हिस्सा है जबकि कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसा अतीत में कभी रहा होगा लेकिन अब ऐसा शायद नहीं है !
जहा एक तरफ आज के बड़े – बड़े स्पेस एजेंसीज के साइंटिस्ट अभी केवल इसी खोज में लगे हुए हैं कि हमारा सोलर सिस्टम बाइनरी है या नहीं, वही डॉक्टर सौरभ जी पूरे विश्व में पहली बार खुलासा करते हुए बता रहे हैं कि “हमारा सोलर सिस्टम बिल्कुल बाइनरी ही है” और यह बाइनरी क्यों है इसके दुर्लभ कारण का खुलासा भी कर रहें हैं !
डॉक्टर उपाध्याय के अनुसार हमारा सोलर सिस्टम बाइनरी हुआ है आज से लगभग साढ़े 4 करोड़ साल पहले हुई एक अति दुर्लभ खगोलीय घटना की वजह से ! इस खगोलीय घटना का पूर्ण विवरण आज के किसी प्राप्त ग्रन्थ में मिलना मुश्किल है लेकिन अगर परम आदरणीय मार्गदर्शक सत्ता की अत्यंत दयामयी कृपा हो तो परमार्थ के लिए खोजी जानी वाली दुर्लभ जानकारियाँ भी किसी ना किसी प्रकार से प्राप्त हो ही जाती हैं !
डॉक्टर सौरभ के अनुसार आज से लगभग 4 करोड़ 53 लाख साल पहले, जब हमारे पृथ्वी के पास अपना कोई सूर्य नहीं था, तब पृथ्वी भी अन्तरिक्ष के तापमान अर्थात लगभग 3 केल्विन (यानी माईनस 270 डिग्री सेल्सियस) के समान ही एकदम ठंडी थी और चुपचाप सिर्फ अँधेरे में अपने ही अक्ष पर घूमती जा रही थी !
ये तो हम सभी जानते हैं कि जीवनदायी सूर्य द्वारा मिलने वाले प्रकाश व ऊष्मा की वजह से ही हमारी पृथ्वी गर्म है जिसकी वजह से पृथ्वी पर वर्तमान जीवन प्रक्रिया संभव हो सकी है लेकिन आज से लगभग साढ़े 4 करोड़ साल पहले पृथ्वी का अपना कोई सूर्य नहीं था जिसकी वजह से हमारी पृथ्वी बेहद ठंडी व अन्धकार युक्त थी !
उस समय हमारी आकाश गंगा में भी आज की तरह विभिन्न प्रकार के बहुत ज्यादा पिंड नहीं थे ! लेकिन उसी समय अचानक एक विचित्र खगोलीय घटना घटी जिसकी वजह से हमारी पृथ्वी को अपना सूर्य प्राप्त हुआ !
वो खगोलीय घटना यह थी कि उस समय हमारे आकाश गंगा का जो सबसे विशालकाय व देदीप्यमान पिंड (तारा) था उसके केंद्र में अचानक से प्रचंड विस्फोट हुआ जिसकी वजह से वह पिंड दो (लगभग) बराबर भागो में फट गया और उस पिंड के दोनों भाग, उस महा विस्फोट से उत्पन्न हुए प्रचण्ड बल की वजह से परस्पर विपरीत दिशा में तेजी से गति करने लगे !
डॉक्टर उपाध्याय यहाँ एक बात और बताते हैं कि उन दोनों पिण्डों का परस्पर, एक दूसरे से, दूर जाने का वेग क्या था इसका अनुमान लगाना आज कठिन है क्योंकि अल्बर्ट आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी (Albert Einstein’s Theory of Relativity) और कुछ जटिल क्वांटम थ्योरीज (Quantum theories) की वजह से हमने आज अन्तरिक्ष में अपनी सीमायें बांध ली है, लेकिन उनका वेग जितना भी था अविश्वसनीय था !
उस प्रचंड विस्फोट की वजह से, ब्रह्माण्ड में एक ऐसी परम आश्चर्यजनक रिक्तिता (खालीपन) पैदा हुई जिसके वजह से समय व स्थान (Time-Space Continuum) की भी शून्यता पैदा होने लगी थी ! यह ब्रह्माण्ड की सबसे असाधारण घटनाओं में से एक थी ! उस परम आश्चर्यजनक रिक्तिता की वजह से आकाशगंगा में उपस्थित अन्य आस-पास के विशालकाय पिंड उस ओर तेजी से खिचने लगे थे ! यह हमारे ब्रह्माण्ड की स्थिरता के लिए बेहद असामान्य परिस्थिति थी !
लेकिन ठीक उसी समय, उस प्रचण्ड विस्फोट की जगह पर उत्पन्न हुए महाशून्य में, एक महाविशालकाय प्रकाश स्तम्भ पैदा हुआ जिसके आदि व अंत का कोई छोर नहीं था ! तात्पर्य यह कि वह परम दिव्य प्रकाश स्तम्भ उस महाशून्य से ही प्रकट हुआ था इसलिए उसके आदि और अंत (अर्थात लम्बाई चौड़ाई) का अनुमान लगाना किसी ब्रह्माण्डीय जीव (Cosmic Creature) के लिए संभव न था !
उस प्रकाश स्तम्भ से अद्भुत दिव्य प्रकाश निकल रहा था जो यह साबित कर रहा था कि वह किसी भी प्राकृतिक तत्व से नही बना हुआ था ! उस प्रकाश स्तम्भ में इतना जबरदस्त आकर्षण था कि उस बड़े पिंड के फटने से पैदा हुए दोनों टुकड़े जो परस्पर विपरीत दिशा की तरफ जा रहे थे, उस प्रकाश स्तम्भ के प्रचण्ड गुरुत्वाकर्षण बल में फंस गए और उसी (प्रकाश स्तम्भ) का, दीर्घ वृत्ताकार पथ पर चक्कर लगाने लगे !
प्रकाश स्तम्भ का चक्कर लगाने वाले उन्ही दोनों पिंडो में से एक पिंड बना हमारे पृथ्वी का सूर्य और दूसरा पिंड बना हमारे बाइनरी स्टार सिस्टम का दूसरा सूर्य !
तदनन्तर हमारे सूर्य से हमारे सोलर सिस्टम का विकास हुआ और दूसरे सूर्य से दूसरे सोलर सिस्टम का विकास हुआ जिसे जानने के लिए हमें अपने सोलर सिस्टम से बाहर की दुनिया को समझना होगा |
बहुत से वैज्ञानिकों को लगता है कि सुदूर अंतरिक्ष से आ रहे विकिरण और आज के अत्याधुनिक सूक्ष्म भौतिक यंत्रों की मदद से, हम अंतरिक्ष और ब्रह्माण्ड में अन्यत्र स्थित दुनिया और उसमे हो रहे क्रिया-कलापों को समझ सकते हैं लेकिन इस बात से डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी सहमत नही है क्योकि उनका कहना है कि हमारी दुनिया के वर्तमान भौतिकी के नियम और सूत्र ही अभी अपने विकास के प्रारम्भिक चरण में हैं !
डॉक्टर उपाध्याय यह भी बताते हैं कि इस बेहद असाधारण ब्रह्माण्डीय घटना का सांकेतिक वर्णन परम आदरणीय हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रन्थों के उन कथानको में आया है जिसमे भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न नाल दंड (जो कि अनंत योजन लम्बी प्रकाश स्तम्भ की तरह थी) से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए थे और फिर ब्रह्मा जी को जगत की सृष्टि कर पाने में सक्षम बनाने के लिए, भगवान विष्णु ने उन्हें कई तरह के परम दुर्लभ ज्ञान दिए थे !
(ब्रह्माण्ड व एलियंस सम्बंधित हमारे अन्य हिंदी आर्टिकल्स एवं उन आर्टिकल्स के इंग्लिश अनुवाद को पढ़ने के लिए, कृपया नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें)-
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