जानिये कैसे सिर्फ प्राकृतिक उपायों से ट्यूबरक्लोसिस (टी बी) का दमन किया जा सकता है

ट्यूबरक्लोसिस (टी बी, Tubeculosis or TB) जितनी ज्यादा तकलीफदायक बीमारी है, उसका इलाज आज के सो कॉल्ड मॉडर्न एलोपैथिक साइंस में अब भी उतना ही ज्यादा अनिश्चित है क्योंकि गिनती की कुछ चंद एलोपैथिक दवाएं हैं (जैसे- आइसोनियाज़िड, रिफाम्पिसिन, पायराज़ीनामाईड, एथेमब्युटोल आदि) जिन्हें ट्यूबरक्लोसिस के मरीज को दी जाती हैं और उसमें भी यह समस्या अक्सर आती है कि अगर किन्ही कारणों से ट्यूबरक्लोसिस के कीटाणु इन एलोपैथिक दवाओं के प्रति रेसिस्टेंट हो गए तो फिर इन दवाओं का कोई भी ख़ास फायदा मरीज को नही मिल पाता है !

इसलिए ट्यूबरक्लोसिस के मरीज जो एलोपैथ से अपनी बीमारी का इलाज करवाते हैं, उन्हें अक्सर इस बीमारी को कई कई महीनों तक बुरी तरह झेलते हुए देखा गया है और ऊपर से दूसरी बड़ी समस्या यह आती है कि इन एलोपैथिक दवाओं के कई अपने खतरनाक साइड इफेक्ट्स भी होतें हैं (जिन्हें कोई भी Google पर side effects of Isoniazid, side effects of Rifampicin, side effects of Pyrazinamide, side effects of Ethambutol टाइप करके पढ़ सकता है) जो मरीज के शरीर पर बहुत ही बुरा असर डालतें है, खासकर अगर एलोपैथिक इलाज लम्बा चल गया तो !

ट्यूबरक्लोसिस आम तौर पर वृद्ध स्त्री/पुरुषों को ज्यादा होते हुए देखा गया है या बहुत कम उम्र के बच्चों को लेकिन होने को यह बीमारी किसी भी उम्र के स्त्री पुरुष को हो सकती है !

ट्यूबरक्लोसिस को ही यक्ष्मा व तपेदिक भी कहतें हैं ! यह बीमारी एक बार पूरी तरह से ठीक भी हो जाती है तो भी इसका दुबारा होने का चांस, बिल्कुल बना रहता है इसलिए बीमारी ठीक होने के बाद भी काफी दिनों तक मरीज को किसी दूसरे टी बी के मरीज के सम्पर्क से यथासंभव बचना चाहिए ! आकड़ों के अनुसार दुनिया में लगभग छह – सात करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं और हर दिन लगभग चालीस हजार नए लोगों को इसका संक्रमण हो जाता है !

वास्तव मे ट्यूबरक्लोसिस, संक्रमण से होने वाली बीमारी है, जो शुरुआत में फेफड़ों को संक्रमित करती है ! यह बीमारी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया (microbacterium of tuberculosis, pulmonary or extrapulmonary symptoms and herbal treatments) द्वारा होती है ! द्वितीय स्तर पर यह रक्त के माध्यम से लसिका ग्रंथियों, मेरुदंड और पेट को प्रभावित कर सकता है !

टी.बी. के बैक्टीरिया, सांस द्वारा से शरीर में प्रवेश करते हैं ! किसी रोगी के खांसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय बलगम व थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूंदें हवा में फैल जाती हैं, जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में तैरतें रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सांस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं !

इसके मुख्य लक्षण हैं- खाँसी जो कि 3 या अधिक सप्ताहों तक रहती है, बलगम या खून के साथ खाँसी, छाती में दर्द, बिना कारण के वजन में गिरावट, थकावट और कमजोरी, बुखार, पसीना, ठिठुरन, भूख में कमी आदि ! टी बी विशेष तकलीफदायक तब हो जाती है जब टी बी के साथ साथ लीवर से सम्बंधित कठिन बीमारियाँ भी हो जाती हैं !

विभिन्न मेडिकल टेस्ट्स से जब कन्फर्म हो जाए कि मरीज को टी बी ही है, तो उसके इलाज और परहेज में बिल्कुल लापरवाही नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बीमारी शरीर को पूरी तरह से तोड़ कर रख देती है !

परहेज में साफ़ सुथरा वातावरण जो की सीलन व नमी युक्त ना हो (मतलब ए. सी. की ठंडी हवा नुकसानदायक है, जबकि सूर्यप्रकाश व हल्की गर्मी फायदेमंद है पर सीधे धूप का सेवन नहीं करना चाहिए) तथा खान पान में ठंडा व कफ वर्धक पदार्थ (जैसे- दही, ठंडा पानी, ठन्डे फ्रूट जूस आदि) नहीं खाना पीना चाहिए !

अगर हम बात करें टी बी के प्राकृतिक निदान की तो, निश्चित रूप से प्राणायाम से बढ़कर कोई दूसरी औषधि है ही नहीं, टी बी के इलाज के लिए लेकिन इसमें मुख्य समस्या यह आती है कि टी बी के मरीज, खासकर एडवांस्ड स्टेज के मरीज, इच्छा होते हुए भी प्राणायाम नहीं कर पातें है क्योंकि जब कोई मरीज नाक, मुंह, गले, फेफड़े की बीमारी से ग्रसित हो जाता है तो उसे प्राणायाम करने में दिक्कत आती है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि प्राणायाम कर पाना एकदम असम्भव हो, क्योंकि जहाँ चाह, वहां राह अतः अगर टी बी का मरीज ठान ले तो अनुलोम विलोम जैसा बेहद आसान प्राणायाम तो कर ही सकता है !

अगर बैठ कर प्राणायाम ना हो सके तो सीधे पीठ के बल लेट कर (मतलब रीढ़ की हड्डी व गर्दन एकदम सीधी होनी चाहिए) भी प्राणायाम कर सकता है ! टी बी के मरीज को कपालभाति व भस्त्रिका जैसे प्राणायाम तब तक नहीं करना चाहिए जब तक टी बी की बीमारी पूरी तरह से ठीक ना हो जाए क्योंकि कपालभाति व भस्त्रिका प्राणायाम को करने से सीने पर दबाव पड़ता है जो कि टी बी के मरीज की मुश्किलें बढ़ा सकता है पर अनुलोम विलोम एकदम सुरक्षित प्राणायाम है और निश्चित रूप से टी बी को केवल अकेले अपने दम पर (मतलब बिना किसी भी दवा की मदद के) पूरी तरह से ठीक कर पाने में संभव है !

पर टी बी की अत्यंत बिगड़ी हुई अवस्था में मरीज ज्यादा देर तक अनुलोम विलोम भी नहीं कर पाता है, अतः ऐसे में जरूरत पड़ती है, आयुर्वेदिक औषधियों के सहयोग की ! कुछ मूर्धन्य वैद्यों के सौजन्य से, “स्वयं बनें गोपाल” समूह को इन औषधियों की जानकारी प्राप्त हुई है जिन्हें “स्वयं बनें गोपाल” समूह जनहितार्थ यहाँ प्रकाशित कर रहा है ! अगर पूर्ण नियम व परहेज से इन दवाओं का सेवन किया जाए तो निश्चित रूप से धीरे धीरे आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होगा पर इन दवाओं का पूर्ण फायदा तभी प्राप्त होगा जब इसके साथ किसी भी एलोपैथिक दवा का सेवन बिल्कुल ना किया जाए !

अब ऐसे में कई टी बी के मरीज और उसके परिजनों को शंका होती हैं कि सिर्फ आयुर्वेदिक दवा के दम पर मरीज की टी बी जैसी कठिन बीमारी, पता नहीं ठीक हो पाएगी भी या नही ? तो ऐसे मरीज के परिजनों को खुद सोचना चाहिए कि आखिर इतने दिनों तक एलोपैथ से इलाज करवाकर उन्हें कौन सी बड़ी उपलब्धि मिल गयी ?

आयुर्वेद के साथ होम्योपैथिक दवाएं, तो चल सकतीं हैं पर एलोपैथिक ना चले तो ही बेहतर है क्योंकि कई बार एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स, बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक होतें हैं जिससे बीमारी को घटने की बजाय बढ़ते हुए देखा गया है अथवा एक बीमारी ठीक होने की बजाय पचासों नयी खतरनाक बीमारियाँ पैदा होते हुए देखा गया है !

कई बार यह भी देखा गया है कि आयुर्वेदिक दवाएं और एलोपैथिक दवाओं को साथ साथ खाने वालों को आयुर्वेदिक दवाओं का कोई भी फायदा महसूस नहीं हो पाता है क्योंकि आयुर्वेदिक दवायें रोज जितना फायदा पहुचातीं हैं, उससे ज्यादा एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स रोज नुकसान पंहुचा देतें हैं इसलिए आयुर्वेदिक दवाओं का पूर्ण फायदा महसूस करना हो तो इसके साथ किसी एलोपैथिक दवा का सेवन ना करें पर इन सत्यपरक तथ्यों को समझने के बावजूद भी, किसी मरीज या उसके परिजन को एलोपैथिक दवा का सेवन एकदम से बंद कर देने में झिझक महसूस हो रही हो, तो उनके लिए यही सुझाव है कि वे धीरे धीरे चिकित्सक के परामर्शनुसार, एलोपैथिक दवा का सेवन कम करते हुए अंततः बंद कर दें, और केवल आयुर्वेदिक दवाओं को ही खिलाते रहें, जब तक कि बीमारी पूरी तरह ठीक ना हो जाए ! रही बात इन आयुर्वेदिक दवाओं की तो, हमें मूर्धन्य वैद्यों ने बताया कि इन आयुर्वेदिक नुस्खों से टी बी एडवांस्ड स्टेज को भी पूरी तरह से ठीक होते हुए देखा गया है, वो भी बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के !

इस आयुर्वेदिक इलाज में निम्नलिखित दवाओं को निम्नलिखित विधियों से ग्रहण करना चाहिए (टी बी का जल्द खात्मा तभी संभव हो पायेगा जब इनमें से सभी नुस्खों को एक साथ, प्रतिदिन एकदम नियम से निभाया जाए)-

(1)- हीरक भस्म 1 ग्राम, प्रवाल पंचामृत 10 ग्राम, मृगश्रृंग 10 ग्राम, स्वर्णबसंतमालती 2 ग्राम, श्वासारि रस 10 ग्राम, इन पांचो दवाओं को आपस में खूब अच्छे से मिलाकर 40 पुड़िया बना लेना चाहिए और फिर एक – एक पुड़िया सुबह शाम पानी से लेना चाहिए ! अगर टी बी की स्थिति बहुत ज्यादा बिगड़ गयी हो तो इसमें टंकण भस्म, ताल सिंदूर, स्वर्णमक्षिका भस्म, मकरध्वज भी मिलाया जा सकता है !

(2)- गिलोय वटी 1 पीस, अश्वशिला कैप्सूल 1 पीस सुबह शाम पानी से लेना चाहिए !

(3)- सितोपलादि चूर्ण सुबह शाम 5 – 5 ग्राम पानी के साथ लें !

(4)- श्वासारि प्रवाही सुबह शाम 1 – 1 चम्मच लें !

(5)- टी बी के मरीज को बुखार ज्यादा हो तो ज्वरनाशक वटी सुबह, दोपहर व शाम 2 – 2 गोली ले और अगर बुखार सामान्य हो तो सुबह, शाम 2 – 2 गोली लें ! अगर आवश्यकता महसूस हो तो ज्वरनाशक वटी के साथ साथ संजीवनी वटी भी एक एक या दो दो गोली सुबह शाम ले सकतें हैं !

(6)- टी बी की बिमारी और इसके चलने वाले एलोपैथिक इलाज की वजह से लीवर पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है ! लीवर की सभी समस्याओं के लिए आज की डेट में सबसे अच्छी दवा बाबा रामदेव के पतंजलि फार्मा की ‘लिव डी 38 टेबलेट’ को माना जाता है ! इस दवा की सुबह, शाम 2 – 2 गोली खाने से लिवर सही रहता है और टी बी के मरीज की मर चुकी भूख भी धीरे धीरे खुलने लगती है (लीवर की किसी भी समस्या के लिए कोई एलोपैथिक दवा खाना बिल्कुल बुद्धिमानी नहीं होती है, क्योंकि सभी एलोपैथिक दवाओं की तरह लीवर के लिए ली जाने वाली एलोपैथिक दवाएं खुद भी सबसे पहले अपना साइड इफ़ेक्ट लीवर व किडनी पर ही तो डालतीं हैं) ! लीवर व किडनी की कंडीशन को बराबर वाच करते रहने के लिए इनके टेस्ट्स रेग्युलर करवाते रहना चाहिए !

(7)- नीम की 7 पत्ती को खलबट्टा में पीसकर, एकदम सुबह खाली पेट पानी के साथ मरीज को निगलने के लिए दें ! नीम बहुत ही कड़वी होती है और ऊपर से टी बी के मरीज की कुछ भी खाने पीने की इच्छा बिल्कुल नहीं करती है, लेकिन नीम की पत्तियां, तपेदिक के कीटाणुओं की जबरदस्त दुश्मन होती है और यह शरीर में पहुँचते ही तपेदिक के कीटाणुओं का तेजी से नाश करना शुरू कर देती है इसलिए नीम की पत्तियों को टी बी के मरीज को जरूर देना चाहिए ! ध्यान रहें की पत्तियों को रोज सिर्फ ताज़ी अवस्था में ही तोड़ कर इस्तेमाल करना है ! भले ही पत्तियों को रोज रोज ताज़ी अवस्था में इकठ्ठा करने में दिक्कत आती हो तब भी किसी ना किसी तरह इसकी व्यवस्था जरूर करें और कुछ ही दिनों में इसका लाभ देखें !

टी बी का मरीज कुपोषण का शिकार हो जाता है इसलिए उसे जबरदस्ती खाने पीने का समान थोड़ी थोड़ी देर पर खिलाते पिलाते रहना चाहिए अन्यथा उसके शरीर का वजन खतरनाक स्तर तक कम हो सकता है पर मरीज को ज्यादा तला भुना, मसालेदार या बाजार का खाने पीने का सामान नही देना चाहिए ताकि कमजोर लीवर पर ज्यादा दबाव नहीं पड़े ! बेहतर होगा की मरीज को लिक्विड डाइट (जैसे खिचड़ी, दलिया आदि) दी जाए ताकि पचने में आसान भी हो और शरीर में पानी की भी कमी ना पड़ने पाए !

मरीज के शरीर में आयी प्रोटीन की कमी (जिसकी वजह से शरीर में सूजन आ जाती है) के लिए अंडा या बाजार में बिकने वाले किसी भी प्रोटीन पाउडर (egg or protein powder) को देने की बिल्कुल भी आवश्यकता नही होती है क्योंकि प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत दाल होती है और दाल से मिलने वाला प्रोटीन शरीर द्वारा आसानी से ग्रहण भी हो जाता है इसलिए सुबह, दोपहर व रात 1 – 1 कटोरी दाल पिलाने से मरीज की प्रोटीन की कमी निश्चित दूर हो जाती है !

दाल के अलावा मरीज को रात में सोते समय आधा ग्लास से लेकर एक ग्लास तक भारतीय देशी गाय माता का शुद्ध दूध अवश्य देना चाहिए क्योंकि भारतीय देशी गाय माता का दूध ना केवल कैंसर, एड्स, टी बी जैसी खतरनाक बिमारियों के जीवाणुओं का नाश करने में मदद करता है बल्कि शरीर की शारीरिक ताकत में भी खूब इजाफा करता है !

इलाज के दौरान मरीज को भी अपने मन से सभी तरह के नकारात्मक विचार निकाल देना चाहिए (जैसे मै अब कभी नहीं ठीक हो पाउँगा या मै अब पहले की तरह अब कभी स्वस्थ नहीं हो पाउँगा आदि आदि) क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ! मन में नकरात्मक विचार लगातार बने रहने से कोई भी बीमारी ठीक होने में ज्यादा समय लगाती है !

मन में से सभी तरह के नकारात्मक विचारों को जबरदस्ती बाहर निकाल कर, शरीर को गजब का उत्साह व ताकत प्रदान करने का एक बहुत ही आसान तरीका है, हनुमान जी के एक विशेष मन्त्र का जप करना, जिसे रोगी व्यक्ति खुद बिस्तर पर ही लेटे लेटे (बिना नहाए, अशुद्ध स्थान या अशुद्ध कपड़े की परवाह किये हुए, क्योंकि गंभीर रोगी व्यक्ति पर शुद्धता निभाने के लिए कोई भी नियम लागू नहीं होता है) आराम से जप सकता है या रोगी का कोई हितैषी परिजन भी उसके लिए जप सकता है !

इस मन्त्र की सबसे बड़ी खास बात है कि यह मात्र 10 मिनट में ही निश्चित असर दिखाना शुरू कर देता है ! इस मन्त्र के बारे में और इसकी पूर्ण क्रिया विधि व लाभ को जानने के लिए इस लेख के लिंक को क्लिक कर पढ़ें– सिर्फ 10 मिनट में ही हर तरह की शारीरिक व मानसिक कमजोरी दूर करना शुरू कर देता है यह परम आश्चर्यजनक उपाय

उपर्युक्त तरीके से इलाज करने पर हफ्ते भर में ही पॉजिटिव रिजल्ट दिखने लगतें हैं, और एक महीने में तो काफी आराम महसूस होने लगता है और ईश्वर ने चाहा तो दो से तीन महीने में बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाती है | फिर किसी अनुभवी वैद्य के परामर्श से दवाओं को धीरे धीरे कम करते हुए छोड़ देना चाहिए !

पर बीमारी पूरी तरह से ठीक होने के बावजूद भी, अगला 6 महिना से लेकर 1 साल तक का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दौरान इन्फेक्शन रिपीट होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है और अगर टी बी दुबारा हो गयी तो इस बार टी बी के कीटाणुओं को हरा पाना, पहले से ज्यादा मुश्किल होता है, जिसमें दवाओं की मात्रा और प्रकार दोनों बढ़ाना पड़ता है और दुबारा टी बी ठीक होने में, पहली बार की तुलना में ज्यादा समय भी ले सकती है !

इसलिए यह आवश्यक नही, बल्कि अनिवार्य है कि एक बार टी बी ठीक हो जाय तो अगले 6 महिना से लेकर 1 साल तक सार्वजानिक स्थानों (जैसे – बाजार, ऑफिस, स्कूल, कॉलेज आदि) पर कम से कम जाया जाए और हाँ जैसे जैसे टी बी ठीक होने लगे, वैसे वैसे प्राणायाम शुरू करके बढ़ाते जाना चाहिए ताकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी ज्यादा मजबूत हो जाए कि दुबारा टी बी क्या, कोई अन्य बिमारी भी कभी ना होने पाए !

जानिये हर योगासन को करने की विधि

जानिये हर प्राणायाम को करने की विधि

(नोट – हर मरीज की शारीरिक सरंचना व परिस्थितियां अलग अलग हो सकतीं हैं इसलिए इस वेबसाइट में दिए हुए किसी भी यौगिक, आयुर्वेदिक व प्राकृतिक उपायों को आजमाने से पहले किसी योग्य योगाचार्य, वैद्य व चिकित्सक से परामर्श अवश्य ले लें)

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