इस आश्चर्यजनक रुद्राभिषेक से अपने कठिन रोगों से मुक्ति पाईये

भगवान् शिव की भक्ति का पवित्र समय चल रहा है और भक्त गण अपने घरों व मंदिरों में रुद्राभिषेक का आयोजन कर रहें हैं ! भगवान शिव की महिमा को तो अब विदेशी वैज्ञानिकों को भी स्वीकारना पड़ रहा है, जैसे- प्राप्त जानकारी अनुसार नासा ने एक स्टडी में बताया है कि पृथ्वी पर पहला डीएनए एक शिवलिंग से आया है ! ये शिवलिंग पृथ्वी पर एक उल्कापिंड के साथ आया था ! ये उल्कापिंड अमेरिका के अलास्का में अगस्त 2011 में गिरा था ! नासा के वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया तो पाया कि शिवलिंग के जरिए ही पृथ्वी पर पहली बार डी. एन. ए. आया था (जिसके बारे में Google पर सर्च करके विस्तार से जाना जा सकता है) !

इसके अतिरिक्त शिवलिंग के अन्य बहुत से आश्चर्यजनक वैज्ञानिक रहस्यों (जैसे- प्राप्त जानकारी अनुसार सैटेलाईट द्वारा भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के पास बहुत ज्यादा रेडिएशन पाया गया है और यह रेडिएशन नियंत्रित हो पा रहा है भक्तों द्वारा जाने – अनजाने में बेलपत्र, आक, धतूरा, गुड़हल आदि जैसी न्यूक्लियर एनर्जी को सोख लेने वाले पूजा के सामानों को शिवलिंग पर चढ़ाये जाने की वजह से, आदि) को हिंदी में जानने के लिए, मीडिया में प्रकाशित इन खबरों के लिंक पर कृपया क्लिक करें- शिवलिंग पर क्यों किया जाता है जल और बेलपत्र का अभिषेक, जानें वैज्ञानिक रहस्य और इंग्लिश भाषा में जानने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- Are Shivlinga’s Considered Radioactive?

भगवान शिव का रुद्राभिषेक किसी सिद्ध शिवलिंग (जैसे- 12 ज्योतिर्लिंग) पर पूरे विधि विधान के साथ किसी शुभ मुहूर्त में कर पाना बहुत ही उत्तम काम है लेकिन ऐसा सौभाग्य हर किसी को नसीब नही हो पाता है ! ज्यादातर लोगों को भगवान की विशेष याद तभी आती है जब उन्हें कोई विशेष आवश्यकता होती है ! और समस्या की घड़ी में व्यक्ति समझ ही नहीं पाता है कि वो क्या, कैसे, कब और कितना करे कि उसकी उचित आवश्यकता पूरी हो सके !

कहा जाता है कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है ! और हम यहाँ एक ऐसे ही आविष्कार के बारे में बताने जा रहें हैं जिसे अचानक से खोजा गया था “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए एक स्वयं सेवक द्वारा और जिस आविष्कार का लाभ उठाकर कोई भी, कभी भी अपनी कठिन समस्याओं से मुक्ति पा सकता है !

आज से कई वर्ष पूर्व की बात है वो स्वयं सेवक बहुत बीमार पड़ गये थे ! उनकी बिमारी कुछ ही दिनों में इतनी ज्यादा बढ़ गयी थी कि वो बिस्तर से उठ भी नही पा रहे थे और उन्हें यहाँ तक भी डर सताने लगा था कि शायद अब वो बचेंगे नही !

एक दिन जब उनकी स्थिति ठीक नही थी तो उन्होंने लेटे – लेटे ही सोचा कि, हे भगवान पूर्व जन्म के किस पाप की सजा मुझे मिल रही है ये तो मुझे नही पता लेकिन अब आप ही कुछ ऐसा रास्ता सुझाईये जिससे मुझे इस तकलीफ से जल्द से जल्द मुक्ति मिल सके !

फिर अचानक थोड़ी देर बाद उनके मन में विचार आया कि लोग कहते हैं कि रुद्राभिषेक से कठिन रोगों से भी मुक्ति मिलती है क्योकि भगवान शिव को जल से नहलाने से, हमारे शरीर के कठिन रोग व जीवन की अन्य समस्याएं भी धुलकर बह जातीं हैं ! तो फिर उन्होंने सोचा कि उनकी जो वर्तमान शारीरिक स्थिति है उसमें तो वो रुद्राभिषेक के लिए बैठ भी नही पायेंगे और इसके अलावा समस्या ये है कि जो पंडित रुद्राभिषेक करेंगे उनका विद्वान होना भी जरूरी है क्योकि संस्कृत के कठिन मन्त्रों का इतनी लम्बी पूजा में लगातार सही उच्चारण कर पाना सभी पंडितों के वश की बात नहीं है और गलत उच्चारण करने वाले पंडित से पूजा करवाने से कितना लाभ मिलेगा कौन जानता है !

इसी उहापोह के बारे में सोचते – सोचते उन्होंने अंत में निर्णय लिया कि वास्तव में भगवान किसी पूजा के सामान (जैसे – जल, बेल पत्र, दूध, धतूरा, शहद, फल, मिठाई, सोना, चांदी आदि) को भगवान को अर्पण करने के पीछे छिपे हुए भक्त के भाव से ही मुख्यतः प्रसन्न होतें हैं इसलिए मैं भगवान को बाजार से खरीदे हुए पूजा के किसी सामान को अर्पित करने की जगह, अपनी सबसे कीमती चीज यानी अपनी इस शरीर को ही उनको अर्पण कर दे रहा हूँ, और जैसा कि भगवान का नाम नीलकंठ इसलिए पड़ा है क्योकि ये भक्तो के शरीर से बड़े से बड़े विष (यानी रोग) को हर लेते हैं, ठीक उसी तरह ये मेरे शरीर से भी रोगों के कारण टोक्सिन (विष) को हरकर मुझे भी रोग मुक्त कर देंगे !

अपनी इस थ्योरी को आजमाने के लिए उन्होंने मानसिक रूप से एक शिवलिंग का ध्यान किया और शिवलिंग पर अपना सिर रखकर मन ही मन भगवान शिव का कोई भजन गाने लगे ! उनकी शरीर की तकलीफ की वजह से ना तो वो ठीक से ध्यान कर पा रहे थे और ना ही ठीक से मन में भजन गा पा रहे थे ! सारांशतः कहा जाए तो उन स्वयं सेवक को खुद भी नही मालूम था कि उनका रुद्राभिषेक करने का ये मनगढ़ंत मानसिक तरीका काम करेगा या नहीं !

पर कुछ ही मिनट्स बाद उन्होंने गौर किया कि अब उनके सिर के दर्द में कुछ कमी आना शुरू हुई है और शरीर में थोड़ी सी ताकत भी महसूस हो रही है ! अपनी तबियत में अचानक से हुए इस तरह के सुधार को बहुत दिनों बाद देखकर उन्हें काफी ख़ुशी और आश्चर्य हुआ ! इसके बाद तो वो हर थोड़ी – थोड़ी देर बाद इस प्रयोग को करने लगे जिससे उनकी तबियत में धीरे – धीरे स्थायी सुधार होने लगा (क्योकि अब दवाओं का असर भी ज्यादा प्रभावी दिखने लगा) और अंततः कुछ ही दिनों में वे वाकई में पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गये !

उन स्वयं सेवक को सबसे बड़ा आश्चर्य हुआ यह देखकर कि कैसे मानसिक पूजा से असली बीमारियाँ ठीक हो गयी थी, अर्थात बिना किसी पूजा के सामान को इस्तेमाल किये हुए, बिना नहाए – धोये हुए, सिर्फ बिस्तर पर लेटकर, मन की कल्पना में किये गए रुद्राभिषेक से, उनकी शरीर की कठिन बीमारियाँ भी कुछ दिनों में दूर हो गयी थी !

अतः उन स्वयं सेवक ने अपने प्रत्यक्ष अनुभव से जाना कि शिवलिंग से बड़ा पारस पत्थर कोई और नहीं है जो अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों के जीवन की हर तरह की कालिमा को स्वर्णिमा में बदलने की आश्चर्यजनक क्षमता रखता है !

बाद में उन स्वयं सेवक ने इस प्रक्रिया के बारे में संत समाज से भी पूछा कि आखिर उन्हें इस मानसिक रुद्राभिषेक से फायदा कैसे मिल गया ! तो संत समाज ने बताया कि स्वयं सेवक ने अनजाने में जो पूजा की थी वो कोई नई खोज नहीं थी क्योकि परम आदरणीय हिन्दू धर्म में मानसिक पूजा (भाव समर्पण) का विधान शुरू से ही रहा है इसलिए जब भी किसी पूजा को किसी कारणवश स्थूल रूप से कर पाना संभव नही हो पाता है तो वहां पर मानसिक पूजा करके भी वही लाभ प्राप्त किया जा सकता है, जैसे- श्री दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंत में “श्री दुर्गामानस पूजा” स्तोत्र दिया गया है जिसको शुद्धता पूर्वक पढ़ने मात्र से माँ दुर्गा की ऐसी दुर्लभ वस्तुओं से पूजा करने का फल मिल जाता हैं जिन वस्तुओं को आज की डेट में बाजार से शुद्ध रूप से खरीद पाना संभव नही है !

संत समाज के अनुसार मानसिक रुद्राभिषेक तभी संभव व सफल है जब अपनी शुद्ध भावनाओं को भगवान शिव को अर्पण किया जाए ! वास्तव में शुद्ध भावनाएं गंगा जल के समान पवित्र होतीं हैं (क्योकि ये भक्त के मन को एकदम पवित्र कर देती हैं) और ये तो सभी लोग जानते हैं कि भगवान शिव को गंगा जल से ज्यादा प्रिय कुछ और नहीं है (इसलिए भगवान शिव गंगा जल को अपने सिर के सबसे ऊपर धारण करते हैं) ! अतः जिन भक्तों को किसी कारणवश गंगा जल की प्राप्ति ना हो सके, वे अपनी पवित्र भावनाओं को ही भगवान शिव को अर्पित करके गंगा जल से रुद्राभिषेक करने का फल प्राप्त कर सकतें हैं !

संत समाज ने यह भी बताया कि इस दुनिया में अलग – अलग लोगों की पसंद अलग – अलग हो सकती है इसलिए कई भक्त ऐसे भी हो सकतें हैं जिन्हें शिवलिंग से ज्यादा भगवान शिव की मूर्ति को देखकर प्रेम उमड़ता है (इसलिए संभवतः कई मंदिरों में शिवलिंग पर भगवान शिव का चेहरा भी पुजारियों द्वारा बना दिया जाता है ताकि ऐसे भक्त ठीक से शिवलिंग में शिव की भावना कर सकें) ! इसके अलावा कई भक्त ऐसे भी होतें हैं जो बाल गोपाल की ही तरह, बाल शिव के अनन्य भक्त हैं ! तो संत समाज के अनुसार निष्कर्ष यही है कि भगवान शिव के उसी रूप का मानसिक अभिषेक किया जा सकता है जिस रूप के लिए भक्त के मन में सबसे ज्यादा प्रेम उमड़ता हो !

अतः अगर आपका भी अपना कोई स्वजन कभी इस तरह की लाचार व बीमार स्थिति में पहुँच जाए तो आप उसे इस अनोखे रुद्राभिषेक के बारे में बताकर उसका बहुत भला कर सकतें हैं जिसका बेशकीमती पुण्य आपको भी जरूर मिलेगा ! इस तरह के मानसिक रुद्राभिषेक को करने के लिए किसी शुभ मुहूर्त (जैसे- सोमवार, सावन, मलमास या शिवरात्रि) का इन्तजार करने की आवश्यकता नही होती है, बल्कि जब भी जरूरत महसूस हो इसे बेशक करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है !

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