जो चुनाव के पहले ही इतना चूस रहा है वो चुनाव जीतने के बाद कितना चूसेगा

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(भारत में आजकल होने वाले इलेक्शन्स में, सर्वत्र दिखने वाले विचित्र माहौल, का जीवंत प्रस्तुतिकरण करते हुए, “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े मूर्धन्य समाजशास्त्री)-

इलेक्शन का टाइम जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे वैसे भ्रष्ट पार्टियों का झंडा हाथ में लेकर विधानसभा पहुचने का ख्वाब देखने वाले नेता उन शिकारों को अपनी गिद्ध दृष्टि से चारों ओर तेजी से तलाश रहें हैं जिनसे वे वोट के अलावा, चुनाव जीतने के लिए, उनके हिसाब से आवश्यक मानी जाने वाली सहायताओं को अधिक से अधिक चूस सकें !

इन भ्रष्ट नेताओं में से कोई मीडिया को सेट करने के चक्कर में हैं तो कोई व्यापारियों को सब्ज बाग़ दिखा रहा है, कोई किसानों का बेटा बन रहा है तो कोई युवाओं का रोल माडल, कोई महिलाओं को कल्पना से भी परे सस्ती रसोई देने का वादा कर रहा है तो कोई बिजली पानी एकदम मुफ्त देने का, कोई समाज के इंटेलेक्चुअल्स में अपनी पैठ बनाने के चक्कर में हैं तो कोई लोकल दलालों की जेबें गर्म कर रहा है !

भ्रष्ट पार्टियों के टिकट पर चुनाव लड़ने का इरादा रखने वाले, ऐसे नेता जो पहले से ही स्थापित (अर्थात जो अपने आप को बड़ा नेता समझते हैं) हैं, उनके पास तब भी कई फिक्स जरियां (जैसे – धन, वाहन, चेले चपाड़े, भांड, चापलूस आदि) हैं जिनके बल पर वे अपने चुनाव प्रचार अभियान को जोर शोर से चलाते हैं !

लेकिन समस्या उन नौसिखिये नेताओं के साथ है जो किसी भ्रष्ट पार्टी से जुड़कर, नया नया पहली बार चुनाव लड़ने की फिराक में हैं, क्योंकि ज्यादातर ऐसे नौसिखिये नेताओं के पास ना तो पर्याप्त धन है, ना ही अन्य जरूरी मानी जाने वाली चीजें (जैसे वाहन, इशारों पर नाचने वाले किराए के या मुफ्त के चेले, चपन्टू, भांड आदि) और ना ही जनता के बीच में इनकी इतनी प्रसिद्धि है कि ये कम से कम इतने वोट पा सकें कि इनकी जमानत जब्त ना होने पाए !

जहाँ एक तरफ भ्रष्ट पार्टियों के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले स्थापित नेताओं का ट्रेंड यह सुनने को मिलता है कि इनके कुछ फिक्स दलाल होते हैं जिनसे ये चुनाव लड़ने के लिए बड़ी मात्रा में काला धन, हथियार, कारतूस, नकली शराब, मांस, वोटर्स को ललचाने के लिए तोहफे (जैसे बाईक, कार, साइकल, सोने चांदी के बिस्किट्स, फ्रिज, टीवी, ए सी, फर्नीचर) आदि उधार पर या जबरदस्ती वसूलते हैं |

वहीँ भ्रष्ट पार्टियों से चुनाव लड़ने वाले नौसिखिये नेताओं को अगर मदद पाने के लिए कोई बड़ा दलाल नहीं मिल पाता है तो अंततः वे मदद पाने के लिए मजबूर होकर अपने सभी परिचित-अपरचित लोगों के गले ही जबरदस्ती पड़ने लगते हैं ! भ्रष्ट पार्टी के दम पर रातो रात बड़ी कमाई कमाने के ख्याल से ही उत्साहित रहने वाले ये नौसिखिये नेता “पांव उतना फैलाइये जितनी बड़ी चादर हो” वाली सत्य लोकोक्ति को एकदम नकार देते हैं जिसके प्रत्यक्ष परिणामस्वरुप यह देखने को मिलता है कि ये नौसिखिये नेता सभी प्रकार की मान मर्यादाएं भूलकर, जो भी परिचित अपरिचित इन्हें मिलता हैं उन सभी से ही कुछ ना कुछ वसूलने का भरपूर प्रयास करते रहते हैं !

हालात तो यहाँ तक देखने को मिलते हैं कि अगर किसी परिचित से इन्हें कुछ खास नहीं मिल सका तो उन्होंने उस परिचित की गाड़ी को ही अपने किसी काम के लिए दौड़ा दिया जिससे कम से कम उनका दो तीन सौ रुपया पेट्रोल का ही बच गया या उस परिचित के घर अपने चार पांच लफंगे टाइप दोस्तों को लेकर पहुँच गए और उन्हें जमकर नाश्ता पानी खिलाकर अपना तीन चार सौ रुपया ही बचा लिया मतलब इनका परिचित चाहे या ना चाहे पर परिचय कि आड़ में इन्हें उससे कुछ ना कुछ तो चूस कर ही रहना है, वो भी पूरे अधिकार और गर्व से !

मुंगेरी लाल के हसीन सपने अर्थात बिना किसी पर्याप्त ग्राउंड के भी इलेक्शन में अपनी जीत पक्की समझने वाले कुछ दुर्लभ किस्म के ऐसे स्वार्थी नेता भी होते हैं जो ऊपर से भले ही अपने आप को शान्त, जिम्मेदार व व्यवहारिक दिखाने का भरसक प्रयास करें लेकिन चुनाव लड़ कर जीतने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए अंदर ही अंदर वे इतना ज्यादा बेचैन होते हैं, कि वे किसी भी हद तक जा सकते हैं यहाँ तक कि वे अपने पूरे परिवार को भी दांव पर लगा सकते हैं |

अपना असली स्वार्थी स्वभाव छुपाने में कुशल ऐसे नेताओं को अगर दूसरों से बहुत कम आर्थिक मदद मिल पाती है तो वे अपने घर में किसी इमरजेंसी या जरूरत के लिए रखा गया कैश, गहना, बैंक एफ डी, जमीन आदि को ही गिरवी रखकर या बेचकर, चुनाव लड़ने का खर्चा निकालने लगते हैं पर जब इलेक्शन का दौर खत्म हो जाता है और अंततः उनके हाथ कुछ भी नहीं लग पाता है, तब शुरू होती है उनके घर में पैसे को लेकर आपसी कलह, झगड़ा आदि जैसी समस्याएं !

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अब आज के सोशल मीडिया के जमाने में ज्यादातर वोटर्स इतने समझदार हो चुके है कि उन्हें अच्छे से मालूम है कि सिर्फ किसे ही वोट देने से उनका और पूरे देश का उद्धार होगा, पर क्या किया जाए इन बिन बुलाये मेहमानों का जो आये दिन कभी वोट मांगने के लिए या कभी डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से कुछ और वसूलने के लिए घर पहुँचें रहतें हैं और अगर किन्ही कारणों से ये घर नहीं पहुच पाए तो ये फोन पर ही डिमांड का पिटारा खोलने लगते हैं कि ये कर दो, वो दे दो आदि आदि पर इन्हें जरा भी परवाह नहीं रहती कि इनकी स्वार्थपूर्ण व पकाऊ बातों से अगला कितना ज्यादा अंदर ही अंदर चिढ़ रहा होगा !

भ्रष्ट पार्टी से इलेक्शन लड़ने वाले, स्थापित नेताओं द्वारा तो कम से कम कुछ सेलेक्टेड अमीर दलालों को ही चूसने की बात सुनाई देती है पर कौड़ी के भाव इफरात हर शहर में मिलने वाले नौसिखिये नेताओं से तो आम जनता ही त्रस्त होने लगती है !

इलेक्शन टाइम में तो मानों झड़ी ही लग जाती है कि अभी एक नेता दस मिनट समय चाट कर गया तब तक दूसरा नेता आ गया अपने चेले चपाडों के साथ समय बर्बाद करने के लिए !

कुछ अज्र्स जिद्दी किस्म के देशद्रोहियों को छोड़कर, भारत की अधिकांश जनता के दिलों के अंदर कहीं ना कहीं देशप्रेम की भावना जरूर रहती है पर जब किसी संकोची स्वभाव के देशप्रेमी नागरिक के परिचय में अगर कोई नेता, किसी भ्रष्ट पार्टी से चुनाव लड़ने वाला होता है तो उस देशप्रेमी की तो मानों एकदम फजीहत ही हो जाती है क्योंकि उस देशप्रेमी को तो अच्छे से पता होता है कि आज के इस महापरिवर्तन के दौर में धीरे धीरे सभी भ्रष्टाचारियों का अन्त तो पहले से ही सुनिश्चित हो चुका है लेकिन क्या करें इस परिचित नेता का जो बार बार मुंह खोलकर कुछ ना कुछ मदद मांगनें आ जाता है जबकि सबको पता है कि इस नेता के उपर चवन्नी भी खर्च करने से कुछ फायदा मिलने वाला है नहीं !

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इसलिए इलेक्शन कैंपेन पीरियड के दौरान हर आम देशप्रेमी नागरिक अपने एक साधारण संकोची स्वभाव या शिष्टाचार की वजह से घर आने वाले हर भ्रष्टाचारी नेता से भी मुस्कुरा कर गले तो मिलता है लेकिन अंदर ही अंदर यह सोचकर व्यथित रहता है कि यह नेता जब इलेक्शन से पहले ही कई परिचित/अपरिचित लोगों को जोंक की तरह चूसने से बाज नहीं आ रहा है तो अगर यह चुनाव जीत गया तब कितना अंधाधुंध लूट खसोट मचा देगा !

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