आश्चर्यजनक सत्य कथा : मै हूँ न
(“स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े एक स्वयं सेवक की सत्य आत्मकथा)-
आज से लगभग 8 – 9 वर्ष पूर्व, कंपनी के जर्मनी हेडक्वाटर के नित्य बदलते फैसले की वजह से अचानक कुछ महीने से भारतवर्ष के एक महानगर स्थित मेरा बिजनेस घाटे की ओर लगातार अग्रसर होने लगा था और मै चाह कर भी इसे रोक नहीं पा रहा था !
हद तो तब हो गयी जब जर्मनी हेडक्वाटर ने पूरे भारत का कण्ट्रोल अचानक से एक दूसरी भारतीय कंपनी को बेच दिया, जिसकी वजह से मेरा बिजनेस जो इस कंपनी से जुड़ने के बाद काफी अच्छी तरह शुरू हुआ था, उसका अंत उतना ही बुरा हुआ !
शुरुआत में मेरे शहर में इस कंपनी की साख अच्छी नहीं थी पर इसके बावजूद भी मैंने इस कंपनी से जुड़कर काफी मेहनत व पैसा खर्च कर इस कंपनी को दुबारा अपने शहर में स्थापित किया था, पर जब मेहनत का फल मिलने का समय आया तो कम्पनी ही डांवाडोल होने लगी और अंततः अपने साथ साथ मेरी महीनों की मेहनत व पैसा भी ले डूबी !
असफलता की यह चोट काफी गहरे तक मेरे दिल में धस गयी पर सिवाय इस दर्द को चुपचाप बर्दाश्त कर जाने के अलावा मै कर भी क्या सकता था !
उपर्युक्त समस्या के अलावा एक नयी समस्या भी मुझे अक्सर परेशान कर रही थी कि शहर में क़ानून व्यवस्था एकदम हाशिये पर पहुच गयी थी, जिसकी वजह से लगभग रोज ही सुनने को मिल रहा था कि अपराधी दिन दहाड़े सीधे घर में ही घुसकर रिवाल्वर दिखा कर लूट पाट कर रहे थे !
ये बेख़ौफ़ अपराधी सामान तो लूट ही रहे थे उसके अलावा घर के सदस्यों को इतना ज्यादा बुरी तरह से मार पीट रहे थे कि कईयों की तुरंत मौत तक हो जा रही थी !
त्रस्त जनता अच्छे से समझ रही थी कि उससे कितनी बड़ी गलती हो गयी जो उसने जाति व मजहब के नाम पर वोट देकर, एक ऐसी लापरवाह सरकार की स्थापना प्रदेश में कर दी है जिससे प्रदेश की कानून व्यवस्था संभल ही नहीं पा रही थी !
मै युवा अविवाहित हूँ इसलिए अपने बड़े से निजी घर में एकदम अकेले रहता था लेकिन उस घर की एक सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उस घर के ठीक सामने की दीवार सिर्फ शीशे से बनी हुई थी जिसके पीछे लोहे की बारीक रॉड्स लगी हुई थी !
मुख्य कमरा होने की वजह से, मै तो उसी कमरे में सोता था पर यह डर हमेशा लगा रहता था कि कभी भी रात में कोई अपराधी उस शीशे में थोड़ा सा सुराख बना कर रिवाल्वर अंदर डालकर मुझे दरवाजा खोलने के लिए आसानी से मजबूर कर सकता है ! हालांकि मै खुद एक ताकतवर शरीर का व्यक्ति हूँ पर रिवाल्वर जैसे हथियारों के आगे मै अकेला निहत्था क्या कर सकता हूँ !
मैंने कई बार सोचा कि उस दीवार को परमानेंट बंद करवा दूं लेकिन उस बिजनेस के घाटे के हालात में, मै दीवार बंद करवाने पर अनावश्यक पैसा खर्च नहीं करना चाहता था जबकि उस पुराने घर को जल्द ही पूरी तरह से तोड़कर फिर से उसी जमीन पर एक नया भव्य आलिशान घर बनवाने का मेरा परिवार, पहले से ही विचार कर रहा था !
और दूसरी समस्या यह भी थी की मेरा घर कई जगहों से खुला हुआ एक पुराने जमाने के हवादार घर की तरह बना हुआ था जिसकी वजह से फुलप्रूफ सिक्यूरिटी के लिए मुझे इस घर में बहुत कुछ बंद करवाना पड़ता जिसमें काफी बजट खर्च हो जाता जो कि कुछ ही दिनों बाद एकदम बेकार साबित होता जब फिर से पूरा घर टूटकर नया बनता !
दिन में तो काम धाम में ही दिमाग बटा रहता था पर रात में 2 से 3 बजे के बीच सोते समय कभी खट – पट की आवाज सुनाई देती थी तो ना चाहते हुए भी एक बार तो डर लग ही जाता था ! यह मेरी आदत थी कि कोई भी आवाज सुनने के बाद, जब तक उठकर मै पूरा घर चेक ना कर लूं तब तक मुझे दुबारा नीद ही नहीं आ सकती थी !
सुरक्षा के लिए हथियार के नाम पर मेरे पास सिर्फ फर्श साफ़ करने वाले वाइपर का एक डंडा था ! चूंकि मै रोज खाना पीना बाहर होटल में ही खाता था इसलिए घर गृहस्थी के सामान मैंने विशेष इकट्ठा किया नहीं था !
वैसे तो मेरा घर एक पॉश कॉलोनी में स्थित था जिसकी वजह से वहां रात में हर थोड़ी थोड़ी देर में प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड्स व पुलिस राउंड लगाती रहती थी लेकिन उसके बावजूद भी पता नहीं क्यों ज्यादातर डकैतियां पॉश कॉलोनी में ही हो रही थी ! शायद अपराधियों को भी लगता होगा कि पॉश कॉलोनी में रहने वाले लोग ज्यादा अमीर होतें हैं इसलिए उनके घर डाका मारने पर ज्यादा बड़ी रकम हाथ लगेगी !
एक दिन तो मै भी बुरी तरह से हिल गया, जब पता चला कि बगल के ही मोहल्ले में भीषण डकैती पड़ी और घर वाले बुरी तरह जख्मी भी हुए, तब मैंने तय किया कि अब अपनी सुरक्षा के लिए भी कोई सीरियसली कदम उठाना पड़ेगा !
अपनी सुरक्षा के लिए मैंने हर उपलब्ध आप्शन्स पर गौर करना शुरू किया !
उस समय मेरे पास जो बजट उपलब्ध था, उसमें ज्यादा विकल्प मौजूद नहीं थे, जैसे- पहला आप्शन यह आया कि सामने की दीवार और सभी खुली जगहों को बंद करवा दूं पर यह पूरी तरह से वेस्टेज ऑफ़ मनी था क्योंकि जल्द ही पूरा घर टूट कर नया बनने वाला था !
दूसरा आप्शन मन में यह आया कि प्राइवेट सिक्यूरिटी गार्ड रख लूं पर सिक्यूरिटी गार्ड कितने दिन, कितने महीने या कितने साल तक के लिए रखूं क्योंकि चोरों का कोई निश्चित तो है नहीं कि वे कब आयेंगे और आयेंगे भी या नहीं ! और अभी तो कम से कम पुराना घर होने की वजह से चोर मुझे एक गरीब आदमी समझतें होंगे पर सिक्यूरिटी गार्ड तैनात कर देने के बाद तो चोरों के मन में शक का कीड़ा पैदा हो सकता है कि मेरे घर में जरूर कोई ना कोई कीमती समान है तभी मैंने सिक्यूरिटी लगा रखी है, इस वजह से मैंने सिक्यूरिटी गार्ड का आईडिया ड्राप कर दिया !
तीसरे आप्शन के तौर पर सूझा कि कोई खतरनाक टाइप का कुत्ता पाल लूं पर कुत्ते के साथ भी कई समस्या थी कि कुत्ते के बड़े होकर रक्षा करने लायक बनने में काफी समय लग जाएगा और यहाँ खतरा रोज का बना हुआ है इसके अलावा मै अब तक पालतू पागल कुत्ते के काटने से हुई तीन इंसानी मौते भी देख चुका हूँ इसलिए मुझे कुत्ते को घर के अंदर पालना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है !
चौथा विकल्प था कि मै खुद रिवाल्वर खरीद लूं पर इसमें भी कई समस्या थी जैसे एक तो रिवाल्वर का सरकारी लाइसेंस बनने में काफी वक्त लग जाता और दूसरा रिवाल्वर पास होते हुए भी विशेष मददगार साबित नहीं होती अगर मैं गहरी नीद सो रहा हूँ और अपराधी बिना आवाज के घर में घुस गए तो (क्योंकि सोता हुआ आदमी मरे हुए के समान होता है) !
पांचवां विकल्प था कि मै कोई इलेक्ट्रॉनिक सिक्यूरिटी सिस्टम लगवा लूं पर विश्वसनीय कंपनी का इलेक्ट्रॉनिक सिक्यूरिटी सिस्टम पूरे घर की बाउंड्री (मेरे घर की बाउंड्री काफी बड़ी थी जिसमें से घर में घुसने के कई मार्ग थे) पर लगवाने का खर्च कई लाख रूपए था जिसे मैं पुराने ऐसे घर पर बिल्कुल नहीं खर्च करना चाहता था जो कुछ ही दिनों में टूट कर बनने वाला था !
इन्ही सब समस्याओं का बेस्ट पॉसिबल सल्यूशन सोचते सोचते मै काफी परेशान हो गया कि आखिर मै ऐसा क्या करूं कि मुझे पहले ही दिन से हंड्रेड परसेंट सिक्यूरिटी मिले वो भी कम से कम इन्वेस्टमेंट में !
कभी कभी सोचता की मै व्यर्थ ही डर रहा हूँ क्योंकि जरूरी थोड़े ही ना है कि चोर कभी मेरे पुराने से दिखने वाले घर में घुसने की कोशिश करें पर जब मीडिया की वो ख़बरें याद आती कि मात्र चंद हजार रूपयों के लिए भी, निर्दोषों का मर्डर हुआ जा रहा है और चोर ऐसे टार्गेट को ज्यादा पसंद करतें हैं जो अमीर के साथ साथ अकेला व आसान भी हो, तो एक स्वाभाविक चिंता हो जाती क्योंकि आसानी के पॉइंट ऑफ़ व्यू से तो मेरा घर एकदम खुला दरबार था जहां कोई भी चोर आसानी से घुस सकता था और अब तो डकैत बगल के मोहल्ले तक में भीषण वारदात कर चुके हैं अतः अब अपनी सुरक्षा का कुछ ना कुछ पुख्ता इन्तजाम करना ही पड़ेगा !
जब अंततः कुछ नहीं समझ में आया, तो अपने दिमाग को रिलैक्स करने के लिए मै टी वी देखने लगा ! थोड़ी देर टी वी देखने के बाद मै उठ कर कमरे में ही थोडा इधर उधर टहलने लगा ! अचानक मेरी निगाह मेरे घर के एक कोने में बनी, एक छोटी सी मंदिर में रखे एक पुराण पर गयी ! मैंने सोचा कि मैं बचपन से सुनता आ रहां हूँ की भगवान् सबकी रक्षा करते हैं, अतः आओ इस पुराण को पढ़कर फिर से समझने की कोशिश करतें हैं कि भगवान् से कैसे फुल प्रूफ अर्थात गारंटीड सुरक्षा मिल सकती है !
वैसे तो मुझे बचपन से योग आध्यात्म में अत्यधिक रूचि रही है जिसकी वजह से मैंने अपने जीवन में अब तक हजारो दुर्लभ योग आध्यात्म के ग्रन्थों का अध्ययन किया है पर उस दिन उस पुराण को पढ़कर मेंरे मन में एक नया कांसेप्ट (जो कि सुनने पर प्रथमद्रष्टया बहुत सामान्य लगता है) पैदा हुआ कि जो भगवान् से जितना ज्यादा नजदीकी बढ़ाता जाता है वह उतना ही ज्यादा सुरक्षित होता जाता है (भगवान की सुरक्षा दुनिया में किसी भी सिक्यूरिटी गार्ड या सिक्यूरिटी इक्विपमेंट से अनंत गुना बढ़कर ज्यादा मजबूत होती है क्योंकि “जाको राखे साइयां, मार सके ना कोय”) !
काफी सोचविचार के बाद मै फिर इस निष्कर्ष पर पंहुचा कि भगवान् से नजदीकी बढ़ाने का इस कलियुग में सबसे आसान तरीका होता है,- भगवान् के ही बारे में बार – बार सोचना !
भगवान् के बारे में सोचने का भी सबसे आसान तरीका होता है कि भगवान के किसी मनपसन्द अवतार का मन ही मन ही बार बार ध्यान करना और अगर अच्छा लगे तो भगवान् के उस रूप को अपने किसी रिश्ते में बाँध लेना और फिर काल्पनिक रूप से उस रिश्ते को निभाना ! जैसे- देवी दुर्गा को माँ के रूप में मानकर उनकी मन ही मन अपनी सगी माँ जैसी सेवा करना और सगी माँ जैसे हक से उनसे कुछ भी उचित मनोकामना माँगना !
या हनुमान बाबा (आदरणीय बुजुर्गों को भी बाबा कहतें हैं) को अपने दादा जी की तरह मानकर उनकी सेवा करना (दादा का दिल माँ के ही समान दयालु होता है) और वैसे ही हक़ से उनसे अपनी किसी समस्या के निवारण के लिए निवेदन करना !
या भगवान् शिव व माता पार्वती को अपना माता पिता मानकर अपने सगे माँ बाप के समान उनकी गोद में निश्चिन्त होकर रहना !
या भगवान् कृष्ण को दो मुख्य तरीके से ध्याया जा सकता है जैसे प्रथम कोई स्त्री उन्हें मीरा बाई की तरह अपने असली पति अर्थात अनंत जन्मो तक साथ निभाने वाले पति के रूप में मन ही मन ध्यान कर सकती है या कोई भी स्त्री/पुरुष भगवान् कृष्ण को बाल रूप अर्थात लड्डू गोपाल के रूप में उन्हें अपने सगे बेटे, भतीजे, भांजे, भाई किसी भी मनपसंद रूप में ध्यान कर नजदीकी बढ़ा सकता है (कृष्ण के बाल रूप के साथ मन ही मन खेलने को “लाड लड़ाना” प्रक्रिया भी कहतें हैं) !
वैसे तो मै साइंस का स्टूडेंट रहा हूँ और मुझे शुरू से हर तरह के रहस्यों को सुलझाने का बड़ा शौक रहा है लेकिन भगवान् के बारे में विभिन्न तथ्यों से निकाले गए इन निष्कर्षों पर मेरा मन खुद ही बार बार अविश्वास कर रहा था कि क्या वाकई में यह तरीका काम करेगा या केवल समय की बर्बादी होगी ?
क्योंकि मैंने तो बचपन से अब तक यही सुना है और धार्मिक टीवी सीरियल्स में देखा है कि भगवान् कि वर्षो तक पूजा पाठ करनी पड़ती है तब जाकर भगवान् खुश होतें है और ऐसे में क्या बिना कोई मन्त्र जपे हुए, बस आराम से बिस्तर पर लेटकर या बैठकर, भगवान् का ध्यान करने से मात्र कुछ सेकंड्स में भी भगवान की कृपा मिल सकती हैं ?
मै बचपन से धार्मिक विचारों वाला था लेकिन उसके बावजूद भी मुझे इस पूरी प्रकिया (लाड लड़ाना) और इससे मिलने वाले बेहद आश्चर्यजनक लाभों पर बहुत ज्यादा विश्वास नहीं हो पा रहा था ! लेकिन तब भी मै इस प्रयोग को एक बार तो आजमा कर देखना ही चाहता था क्योंकि इसे करने में सिर्फ लाभ ही लाभ था, हानि कुछ भी नहीं थी ! मतलब एक आम संसारी आदमी की सोच की भाषा में कहे तो यह प्रयोग अगर सफल हो गया तो मेरी सुरक्षा तो हो ही जायेगी और इसके अलावा भगवान् की कृपा से मिलने वाले अन्य सांसारिक लाभ (जैसे- सुख समृद्धि, और मरने के बाद मोक्ष इत्यादि) भी मिल सकतें है !
अंततः मैने यह तय किया कि आज रात से इस प्रयोग को करना शुरू करूंगा ! यह प्रयोग कितने दिन में असर दिखाना शुरू करेगा इसका कुछ निश्चित मानक नहीं था, मतलब इस प्रयोग का लाभ पहले ही दिन से दिखना शुरू होगा या एक महीने बाद से या एक साल बाद से या दस साल बाद से, कुछ भी नहीं पता था, बस इतना पता था कि इस कलियुग में भगवान् की मानवों के प्रति यह विशेष सुविधा होती है कि मन से कोई भी आध्यात्मिक प्रयास करने पर बहुत ही जल्द लाभ मिलना निश्चित शुरू हो जाता है !
मेरा अभी तक विवाह नहीं हुआ है, पर मुझे शुरू से ही छोटे बच्चे बहुत ही ज्यादा पसंद थे और जब कभी मै अपने दूसरे शहर स्थित घर (जहाँ मेरे माता पिता व बड़े भाई रहते थे) जाता था तब मेरा मोस्ट फेवरेट काम होता था अपने 3 – 4 साल के भतीजे के साथ घंटो खेलना ! अतः मुझे ध्यान करने के लिए भगवान् कृष्ण के ऐसे बाल रूप सबसे उचित लगा जब उनकी उम्र 4 वर्ष की हो अर्थात मेरे भतीजे के उम्र बराबर !
हालांकि शुरुआत में यह बहुत विचित्र व अटपटा महसूस हो रहा था कि कृष्ण जो की भगवान् हैं, सर्वेसर्वा हैं, परमेश्वर हैं, और जिनकी मंदिरों में रंग बिरंगे फूलों सोना चांदी के मुकुट आदि चढ़ाकर पूजा की जाती है, उन्हें साधारण भतीजे के रूप में अर्थात अपने से छोटे के रूप में ध्यान करना ! कोई भी आदमी अपने मानवीय भतीजे के साथ तो वाकई में ऐसा खेल सकता है जिसमें हँसी, मजाक, प्यार, डांटना, आदि सभी क्रियाएं हो सकती हैं पर बाल रूप कृष्ण के साथ मन ही मन में ऐसी क्रियाएं करना आसान तो नहीं है !
अगर ऐसे मानसिक अभ्यास के बारे में आज के किसी पाश्चात्य जगत के डॉक्टर को पता चले तो वह हसेगा और आश्चर्य भी करेगा कि कैसा पागलपन वाला अभ्यास है जिसमें जानबूझकर ऐसी कल्पना के बारे में सोचना पड़ रहा है जिसका कोई अस्तित्व है भी या नही कौन जानता है ? वह डॉक्टर यही कहेगा कि आखिर आज तक किसने देखा कृष्ण को, दुर्गा को या शिव को तो फिर जिसको कभी देखा नहीं तो उसका मन में कल्पना वाला चित्र बना कर उसी के बारे लगातार सोचने से कोई भी स्वस्थ आदमी कुछ ही दिनों में साईको (अर्थात पागल) हो सकता है !
मेरी भी साइंस की आधुनिक शिक्षा की वजह से उपजने वाले तर्क भी मुझे अक्सर यही कहते कि अरे ये सब सिर्फ वेस्टेज ऑफ़ टाइम है, ऐसा सोचने से कुछ नहीं होने वाला, क्योंकि सिर्फ ऐसा सोचने से ही अगर वाकई में कुछ होता तो अब तक बहुत से लोगों का वारे न्यारे हो गया होता, वहीँ दूसरे तरफ मै अपने जीवन में कुछ ऐसे उच्च कोटि के महात्माओं से भी मिल चुका था जिन्हें वाकई में ईश्वर का दर्शन प्राप्त हो चुका था और ईश्वर दर्शन से प्राप्त होने वाली दिव्य विभूतियाँ भी उन्हें प्राप्त थी ! मन में उपजने वाले इन विश्वास – अविश्वास के थपेड़ों के बावजूद भी मेरा यह अभ्यास रुका नहीं !
शुरूआत में जब मै लेट कर ध्यान अर्थात लड्डू गोपाल के साथ मनपसंद खेल खेलने की कल्पना करता था तो थोड़ी ही देर बाद मुझे नीद आने लगती थी ! इसलिए तब मैंने बैठकर ध्यान लगाना शुरू किया ताकि मुझे जल्दी नीद ना आये पर बैठने के बावजूद भी मुझे नीद आने लगी तब मैंने आँखों पर थोडा पानी लगाया ताकि मुझे जल्दी नीद आये, तब मैंने जाना कि ध्यान करना बिल्कुल भी आसान काम नहीं होता है, इसमें बहुत एनर्जी खर्च होती है !
ध्यान लगाना तब और मुश्किल होता है जब आपकी दिन भर की ऑफिशियल समस्याएं बार बार आपकी आँखों के सामने घूमती हों !
मेरी कंपनी सम्बन्धित समस्याएं रोज बढ़ती जा रही थी और अंततः जैसा कि पहले से तय था, वैसा ही हुआ और मेरा कंपनी से हमेशा के लिए सम्बन्ध ख़त्म हो गया और पीछे रह गया सिर्फ बड़ा आर्थिक घाटा !
इन मुश्किल भरे दौर के बावजूद भी मैंने रात में ध्यान करना नही छोड़ा हालांकि मन दुखी होने की वजह से ध्यान केवल एक फॉर्मल ड्यूटी बनकर रह गया था क्योंकि उसको करने में मुझे कोई खास ख़ुशी या उत्साह महसूस नहीं होता था !
ध्यान करते करते मुझे शायद एक महीने बीते होंगे पर मुझे ना तो रात में डकैतों से डर लगना कम हुआ और ना ही ध्यान करते समय कोई दिव्य अनुभव महसूस हुआ !
मेरा बिजनेस पूरी तरह से बंद हो चुका था और इसी बीच में मुझे उत्तर भारत से, मुम्बई के समीप स्थित एक शहर जाना पड़ा जहाँ मेरे सगे बड़े भाई कार्यरत थे !
मेरे बड़े भाई मुझसे सिर्फ 3 ही वर्ष बड़े थे पर आचार विचार आदर्शों के मामले में मुझसे बहुत ही बड़े थे क्योकि आधुनिक विज्ञान में विश्व स्तरीय खोज करने के बावजूद भी उनकी सादगी व पवित्रता पूर्ण दिनचर्या किसी गृहस्थ संत से कम ना थी !
मै भाईसाहब के घर में ठहरा हुआ था और पहली रात हम लोग काफी देर तक बातें करते रहे ! जहाँ एक तरफ भाईसाहब बहुत खुश थे कि इतने दिन बाद उनका भाई (यानी मैं) उनसे मिलने आया है, वहीँ दूसरी तरफ भाईसाहब बहुत दुखी भी थे मेरे बिजनेस के दुखद अंत के बारे में सुनकर !
भाईसाहब मुझसे बार बार पूछ रहे थे कि बताओ अब आगे क्या करने का सोचा है ? और मैं उन्हें कोई संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं दे पा रहा था क्योंकि मैंने आगे का अभी तक कुछ सोचा ही नहीं था ! मुझे खुद भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आगे अब मुझे करना क्या है ?
उस रात मै और मेरे बड़े भाई अपने – अपने बिस्तर पर लेटकर बाते करते – करते कब सो गये हमें पता ही नहीं चला !
अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि सुबह के 9 बजने वाले हैं और भाई साहब जल्दी जल्दी तैयार हो रहें हैं ऑफिस जाने के लिए ! लेकिन आश्चर्य की बात थी कि भाईसाहब उस समय काफी खुश व उत्साहित महसूस हो रहे थे जबकि रात को जब सोये थे उस समय मेरी चिंता की वजह से काफी दुखी व निराश थे ! तो आखिर एक रात में ऐसा क्या हो गया था कि भाई साहब इतने ज्यादा खुश हो गये थे !
मैंने भाईसाहब से ही पूछा कि उनकी आकस्मिक ख़ुशी का कारण क्या है ? तब भाईसाहब ने मुझे बताया कि उनकी ख़ुशी का कारण एक सपना है जो उन्हें कल रात को 4 बजे के आस पास दिखाई दिया था !
तब मैंने उनसे पूछा कि सपने तो रोज ही आतें हैं लेकिन इसमें खुश होने वाली बात क्या है ?
इस पर भाईसाहब ने विस्तार से बताया कि असल में उन्हें 4 बजे जो सपना दिखाई दिया था वह सपना होते हुए भी सपना नहीं था क्योंकि वह इतना ज्यादा जीवंत था कि उन्हें सपने के ख़त्म होने के बाद विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वो जो देख रहें हैं वो हकीकत नहीं बल्कि सपना था !
वो सपना था भी ख़ास ! क्योंकि भाईसाहब ने बताया कि कल रात को सोने से पहले, वो मेरी ही भविष्य की चिंता से काफी दुखी थे और मेरे बारे में ही सोचते सोचते उन्हें कब नीद आ गयी उन्हें पता नहीं चला !
नीद आ जाने के बाद उन्होंने उस जीवंत सपने में, अपने आप को एक जंगल में पाया और मै भी उनके साथ ही था ! लेकिन मै उनसे यह कहकर वहां से चला गया कि मुझे किसी से मिलने जाना है ! जब मै काफी देर तक वापस नहीं लौटा तो बड़े भाईसाहब मुझे खोजने के लिए जंगल में परेशान होकर इधर उधर घूमने लगे !
घनघोर अंधेरी रात थी वैसे में वो विशाल जंगल बहुत खतरनाक लग रहा था लेकिन भाई साहब ने मुझे ढूढना नहीं छोड़ा ! अंततः भाईसाहब को जंगल के बीच में एक बड़ा घास का मैदान दिखाई दिया जिसमें दूर से देखने पर एक आदमी करवट लेटे हुए दिखाई दिया जिसकी पीठ के पीछे से चंद्रमा सा उजाला निकलता हुआ दिखाई दे रहा था !
भाईसाहब तुरंत उस आदमी की ओर चल दिए ! पास पहुचने पर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि वह गहरी नीद सोता हुआ आदमी कोई और नहीं बल्कि मै (यानी उनका छोटा भाई) हूँ !
और फिर उन्होंने उस चंद्रमा के समान उज्जवल प्रकाश की ओर देखा जो मेरी पीठ की तरफ से निकल रहा था तो उन्होंने पाया कि वह दिव्य प्रकाश एक 3 – 4 साल के अतिसुंदर बच्चे के शरीर से निकल रहा है, जो मेरी पीठ से एकदम सटकर लेटा हुआ है ! उस दिव्य प्रकाश में आकाशीय बिजली जैसी निरंतर कौंध व चमक थी पर इसके बावजूद भी वह प्रकाश परम आकर्षक, रोमांचकारी व सुखद था !
वह बच्चा एकदम गौर वर्ण का है, कमर में करधनी पहने हुए, भरीपूरी मांसल थुलथुल शरीर वाला, चेहरे पर एक परम आकर्षक रहस्यमयी मुस्कान लिए हुए, हाथ में एक चमकदार डंडा (जो संभवतः बांसुरी थी) लिए हुए, बड़ी बड़ी आँखों वाला था !
मेरे भाई साहब अवाक होकर एकटक उस छोटे बच्चे को देख रहे थे ! उस बच्चे की अद्भुत महान छवि को देखकर भाईसाहब उस समय कुछ सोच समझ पाने की स्थिति में नही थे, बस बिना पलक झपकाए हुए उसी बच्चे पर सम्मोहित हो चुके थे !
उसी बच्चे को निहारते हुए ना जाने कितना समय बीत गया कहना मुश्किल है लेकिन उसी दौरान उस बच्चे के मुख से कही हुई एक बात भाईसाहब के अन्तरंग में गूँज उठी ! उस बच्चे ने तो मुंह खोला ही नहीं लेकिन तब भी उस बच्चे की वाणी साफ़ साफ़ उनके अन्तरंग में गूँज रही थी कि, “क्यों इसकी चिंता करते हो, मैं हूँ ना” !
उस बच्चे को देखते देखते कब अचानक आँख खुली पता ही नहीं चला और जब आँख खुली तो यह दुनिया नकली लग रही थी और वो बच्चे वाली दुनिया ही असली लग रही थी !
तब भाई साहब ने हर्षातिरेक में मुझसे कहा कि मै भले ही स्वप्न की अवस्था में उस समय समझ नही पाया था, लेकिन अब मुझे अच्छे से पता है कि वो बालक, कोई और नहीं, बल्कि स्वयं बाल गोपाल ही थे जो मुझे तुम्हारे बारे में अतिशय चिंतित देखकर आश्वासन देने आये थे कि मै अनावश्यक तुम्हारे बारे में परेशान ना होंऊ क्योंकि तुम्हारी सुरक्षा करने के लिए वे स्वयं हैं !
भाई साहब ने फिर कहा कि ना जाने हमारे परिवार के किस जन्म का पुण्य उदय हुआ है कि मुझे स्वप्नावस्था में ही सही, लेकिन स्वयं अनंत ब्रह्मांडों के निर्माता बाल गोपाल का परम दुर्लभ दर्शन प्राप्त हुआ, और तुम्हे उनकी सुरक्षा का आश्वासन ! निश्चित रूप से यह घटना दुर्लभ है और महान ईश्वरीय कृपा से ही संभव हुई है !
भाईसाहब के द्वारा बताई गयी यह स्वप्न में घटी घटना निश्चित रूप से अत्यंत सुखद थी पर इस सुख से भी ज्यादा आश्चर्यजनक था इस घटना में छिपा एक गुप्त पहलू जिसके बारे में उस समय तक सिर्फ मै ही समझ पाया था !
वो पहलू यह था कि मै पिछले एक महीने से बाल गोपाल का जो अपने भतीजे के रूप में ध्यान कर रहा था, उसमें मै अक्सर यही ध्यान करता था कि, जैसे मेरे भतीजे का फेवरेट काम था कि अक्सर वो मेरी पीठ से सटकर लेट जाता था उसी तरह बाल गोपाल भी मेरी पीठ से सटकर लेट गये हैं मेरी सुरक्षा करने के लिए !
अब भाई साहब द्वारा देखे गए सपने में भी बाल गोपाल मेरी पीठ से ठीक उसी तरह सटकर लेटे हुए थे जैसा कि मै ध्यान करते समय सोचता था ! अतः यह अपने आप में एक बेहद आश्चर्यजनक घटना थी क्योकि मै पिछले एक महीने से बाल गोपाल का कोई ऐसा ध्यान कर रहा हूँ यह सिर्फ मै ही जानता था और कोई नहीं ! मैंने यह ध्यान वाली बात कभी किसी को बताने की जरूरत ही नहीं समझी क्योकि मुझे खुद भी नहीं मालूम था कि इससे मुझे कभी, कोई सुरक्षा या कोई अन्य फायदा मिलेगा भी या नहीं !
लेकिन बाल गोपाल के ठीक उसी जगह पर (यानी मेरी पीठ से सटकर) लेटे हुए रूप में भाईसाहब को स्वप्न में दर्शन देना निश्चित रूप से बाल गोपाल की महान कृपा का परिचायक है कि भक्त चाहे नौसिखिया हो या पुराना, वो कभी भी, किसी पर भी, किसी भी हद तक कृपा कर सकते हैं, और यहाँ तक कि भक्त द्वारा ध्यान किये जाने वाले रूप में (भाई, पुत्र, भतीजे आदि रूप में) स्वयं पूर्ण या आंशिक रूप से जन्म लेकर भी आ सकतें हैं !
और इसमें एक रोचक बात यह भी थी कि यह स्वप्न मुझे नहीं बल्कि भाईसाहब को आया जिसकी वजह से यह स्वप्न और ज्यादा रेलेवेंट व ऑथेंटिक था क्योकि अगर यह स्वप्न मुझे आया होता तो एकबार मै खुद अपने द्वारा देखे गए सपने को अपनी कल्पना मान लेता कि मै रोज रात को ऐसा ध्यान करता हूँ इसलिए हो सकता है कि मेरे अचेतन मन ने कोई ऐसा काल्पनिक स्वप्न गढ़ लिया हो ! लेकिन इसमें सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यही है कि ध्यान रोज मैं करता था और स्वप्न आया भाईसाहब को, जिन्हें मेरे ध्यान के बारे में कुछ भी पता नहीं था ! और भाईसाहब को स्वप्न में वही चीज दिखाई दी (यानी बाल गोपाल का मेरी पीठ के पास लेटकर मेरी सुरक्षा करना) जिसका रोज मै ध्यान करता था ! इसलिए यह तो अब निश्चित था कि यह कोई सामान्य स्वप्न नही, बल्कि स्वयं गोपाल की हम तुच्छ मानवों के प्रति अपनी दुर्लभ दया का प्रकटीकरण ही था !
किन्तु इस घटना के बाद मेरा कभी दुबारा इस तरह ध्यान लगाने का मन नहीं हुआ क्योकि मुझे लगने लगा कि ईश्वर हम आम संसारी मानवों की तरह नहीं है कि मै उनका ध्यान नहीं लगाऊंगा तो वो मेरी सुरक्षा करना छोड़ देंगे ! जब एक बार उन्होंने आश्वासन दे दिया कि मेरी सुरक्षा करने के लिए वे सदा हैं, तो फिर उनसे रोज रोज अपनी सुरक्षा के लिए कहने की क्या जरूरत है !
इस घटना के कुछ वर्ष पश्चात् जब ईश्वरीय कृपा से परम आदरणीय ऋषि सत्ता का सानिध्य प्राप्त हुआ तो उनसे भी इस घटना के बारे में मैंने पूछा कि वास्तव में यह घटना क्या थी और कैसे हो गयी, क्योंकि मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि मात्र 1 महीने आधे अधूरे मन से ध्यान लगाने से, मेरे जैसा अति साधारण कलियुगी प्राणी, अनंत ब्रह्मांड अधीश्वर श्री कृष्ण को कैसे इस स्तर तक प्रिय हो सकता है कि वो मुझे आश्वासन देने के लिए स्वयं मेरे भाई के स्वप्न में आ सकतें हैं ?
इस पर ऋषि सत्ता ने यही उत्तर दिया कि वास्तव में लाड लडाना प्रकिया एक तरह का राज योग का ही अभ्यास है और इस अभ्यास की सफलता में उत्प्रेरक का काम करती है इसको करने के पीछे की लगन ! भगवान भी समझते हैं कि इस कलियुग के प्राणी के लिए कितना ज्यादा कठिन होता है काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया आदि दुर्गुणों से लड़ना, पर इन सबके बावजूद भी कोई थोड़ा सा भी सच्चे दिल से भगवान् से अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगाता है तो भगवान उसकी सुरक्षा जरूर करते हैं लेकिन यह हमेशा याद रखना कि अकाट्य प्रारब्धों को तो जीव को भोगना ही पड़ता है और इसी में जीव की भलाई छिपी हुई होती है जो उसे बाद में ही समझ में आती है !
ऋषि सत्ता ने कहा कि लाड लडाना एक इतनी ज्यादा प्रभावशाली प्रक्रिया है कि कोई इसे अगर नियम से 40 दिनों तक, सिर्फ आधे घंटे तक भी रोज करे तो निश्चित है कि उसे भगवान् श्री कृष्ण की कुछ ना कुछ दिव्य अनुभूति होकर ही रहेगी !
ऋषि सत्ता के आश्वासन व अपने निजी अनुभव से प्रभावित होकर मैंने इस लाड लडाना प्रक्रिया के बारे में कुछ कृष्ण भक्तों को बताया और उनमे से सभी को 40 दिनों के भीतर ही आश्चर्यजनक दिव्य अनुभव हुए ! इनमें से किसी को बाल गोपाल एक अनजान मानवीय बालक बनकर स्पर्श करके गए तो किसी के स्वप्न में एक मनोहारी बालक के रूप में आये, किसी को बाल गोपाल ने तन्द्रा अवस्था में अपने बेहद मुलायम छोटे हाथों से छूया तो किसी के कमरे में अदृश्य रूप से अपने बाल मित्रों की मण्डली के साथ धमाचौकड़ी वाला शोर मचा कर चले गए !
कलियुग में श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा करने पर निश्चित रूप से अति शीघ्र ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है क्योंकि नारद पुराण में राधा कृष्ण युगल सहस्त्र नाम में श्री कृष्ण का एक नाम “नामोच्चारवशः” दिया है जिसका अर्थ होता है कि सिर्फ नाम के उच्चारण से वश में हो जाने वाले !
इसलिए मेरा यह मानना है कि जिन लोगों को अभी भी अविश्वास है कि ईश्वर नाम की कोई चीज होती है, उन्हें अपने जीवन एक बार सिर्फ 40 दिनों के लिए ही सही लेकिन लाड लडाना प्रक्रिया को जरूर करके देखना चाहिए, क्योकि ऐसा करने पर उन्हें निश्चित रूप से कुछ ना कुछ ऐसी दिव्य ईश्वरीय अनुभूति होकर रहेगी, जिससे उनके पूरे जीवन की सोच ही बदल जायेगी !
महा आश्चर्य, इतना बड़ा चमत्कार वो भी इतने जल्दी
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