इससे पहले कि पानी की घनघोर किल्लत से आपको घर – शहर छोड़ना पड़ जाए, तुरंत लागू करवाईये इन 3 उपायों को अपने घर, कॉलोनी/मोहल्ले, शहर में

ये तो अब लगभग सभी को पता चल गया है कि ना केवल विश्व के बल्कि भारत के भी कई दर्जन महानगरों में जमीन के नीचे का पानी एकदम सूख चुका है (ZERO Level of Ground Water) इसलिए इन शहरों के अधिकाँश लोग पूरी तरह से म्युनिसिपैलिटी (महानगर पालिका) की वाटर सप्लाई के भरोसे जीवित हैं और अगर एक दिन भी पानी की सप्लाई बंद हो जाए तो जनता में चीख – पुकार मच जाती है इसलिए म्युनिसिपैलिटी से मिलने वाले पानी में भले ही कभी गलती से कोई गंदगी मिल जाए तब भी जनता मजबूर है उसी पानी को इस्तेमाल करने के लिए (प्राप्त जानकारी अनुसार अकेले भारत में हर साल 2 लाख लोग गंदा पानी पीने से मरते हैं) !

जिन्दा रहने के लिए सबसे आवश्यक चीजों में हवा के बाद दूसरा नंबर पानी का ही आता है और यह गजब की मूर्खता हम मानवों में देखने को मिल रही है कि हर शहर में तेजी से गिरते हुए पानी के लेवल की बार – बार चेतावनी के बावजूद भी हम लोग कुछ भी नहीं कर रहें हैं इसे रोकने के लिए ! अतः संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव से लेकर विश्व के कई बुद्धिजीवियों द्वारा की गयी यह भविष्यवाणी कि “अगला विश्व युद्ध पानी के लिए हो सकता है”, गलत नहीं लगती है !

आपको जानकार शायद आश्चर्य हो लेकिन जिन महानगरों में पानी का लेवल एकदम सूख चुका है उन महानगरों से कई लोग अपना जमा जमाया बिजनेस, नौकरी, घर, प्रॉपर्टी आदि छोड़कर दूसरे शहर जाने को मजबूर हो रहें हैं ! और जिन शहरों में पानी पूरी तरह से सूखा नहीं है लेकिन बहुत कम बचा है उनके बारे में सुनने को मिल रहा है कि वहां का पानी इतना दूषित हो चुका है कि उसे पीने से कई तरह की बीमारियां हो सकतीं हैं !

आज जिसे देखो वही अपना घर – बंगला – ऑफिस आदि सजाने में लगा हुआ है लेकिन बहुत ही कम लोग यह दूरदर्शी सोच इस्तेमाल कर पा रहें है कि आखिर क्या फायदा ऐसी सजावट का जिसे हो सकता है कि मात्र 5 से 10 साल बाद ही छोड़कर जाना पड़े क्योकि “बिन पानी सब सून” ! निकट भविष्य में, दुनिया में पानी की कमी की असली भयानक तस्वीर दिखाने की वजह से ही कुछ विदेशी मूवीज (जैसे- “द साइलेंट सी”; The Silent Sea) बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हुई है !

इसलिए हम लोग अपनी हर निजी समस्याओं को भी सरकार के मत्थे मढ़कर, शुतुरमुर्ग की तरह अपना सिर रेत में छिपाकर आने वाले भयानक खतरे के प्रति निश्चिन्त होकर बिल्कुल नहीं बैठ सकतें हैं ! इसमें कोई शक नहीं की भारतवर्ष के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ईमानदारी पूर्वक यथासम्भव देश हित के प्रयास में दिन रात लगे हुए हैं, लेकिन जब बार – बार समझाने के बावजदू भी करोड़ो जनता पानी की बर्बादी रोज कर रही हो तो कोई भी प्रशासन पानी की कमी को दूर करने में कितना सफल हो पायेगा !

इसलिए इससे पहले कि आपको भी पानी की कमी की वजह से अपना बना – बनाया सपनो का आशियाना यानी घर – नौकरी – बिजनेस – प्रॉपर्टी छोड़कर कही दूसरी जगह शिफ्ट होने के लिए मजबूर होना पड़े, आप निश्चित तौर पर प्रयास कर सकतें हैं निकट भविष्य में आने वाले इस दर्दनाक खतरे से निपटने के लिए ! जिसके लिए आप अपनी सुविधानुसार निम्नलिखित 3 कामों में से कोई भी काम कर सकतें हैं (निम्नलिखित 3 कामों को कैसे किया जा सकता है इसके बारे में भी आसान तरीके से नीचे वर्णन किया गया है)-

(1) अपने घर की छत से जोड़कर “बोरवेल सहित रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम”” या “बोरवेल रहित रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम” को फिट करवाना !

(2) घनी आबादी वाले क्षेत्रों यानी कॉलोनी/मोहल्लो के अंदर स्थित अपनी खुद की जमीनों में (या सरकार की बेकार – गंदी अवस्था में पड़ी हुई जमीनों में, सरकार की इच्छा व अनुमति से) छोटे – छोटे जलाशयों (यानी तालाब, Ponds) का निर्माण करवाना !

(3) कम आबादी वाले क्षेत्रों यानी कस्बों/गावों के अंदर स्थित अपनी खुद की जमीनों/खेतों में (या ग्राम समाज/पंचायत/सरकार की बेकार – बंजर अवस्था में पड़ी हुई जमीनों में, सरकार की इच्छा व अनुमति से) बड़े – बड़े जलाशयों का निर्माण करवाना !

रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रक्रिया को समझने की आसानी के लिए कह सकतें हैं, “धरती के अंदर स्थित जल को रिचार्ज (recharge) करना”, जैसे- मोबाइल को लगातार इस्तेमाल करने से जब उसकी बैटरी की बिजली कम हो जाती है तब उसे बाहर से बिजली देकर रोज रिचार्ज करना होता है, उसी तरह धरती के पानी को लगातार इस्तेमाल करते रहने से, पानी में आयी कमी को दूर करने के लिए, बाहर से पानी यानी बारिश के पानी को धरती के अंदर भेजकर, पानी की रिचार्ज करना जरूरी होता है !

वास्तव में बारिश का जो पानी हर साल बरसता है उसका अधिकांश हिस्सा जमीन के अंदर नहीं जा पाता है क्योकि बढ़ते शहरीकरण की वजह से अधिकांश जमीनों पर सीमेंट से बने हुए मकान व सड़कें बन गयी हैं (जो पानी को जमीन के अंदर जाने से रोकतें हैं) इसलिए बारिश का अधिकांश पानी, सड़क किनारे बनी हुई नालियों से बहते हुए बड़े नालों में पहुँच जाता है (और उसमे से कुछ हिस्सा सूरज की गर्मी से भांप बनकर भी उड़ जाता है), फिर बड़े नालों से अंततः नदी में पहुँच जाता है ! इस तरह शहर की बड़ी आबादी के नीचे की जमीन तक बारिश का बेशकीमती पानी बहुत मामूली मात्रा में ही पहुँच पाता है जिसकी वजह से आजकल यही विडंबना हर शहर में देखने को मिल रही है कि जमीन के अंदर पानी लगातार सूखते रहने की वजह से पानी का लेवल तेजी से नीचे गिरते जा रहा है इसलिए हर कुछ साल बाद बोरवेल को और ज्यादा गहरा खुदवाना पड़ता है !

“बोरवेल सहित रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम” (Rainwater Harvesting with Borewell Recharge; वर्षा जल संचयन) वो प्रक्रिया होती है, जिसमें हर साल बारिश के मौसम में जो लाखो लीटर पानी घर की छत पर मुफ्त में बरसता है उसे बोरवेल की एक पाइप द्वारा भूमिगत जल तक (यानी 50 फ़ीट से लेकर 200 फ़ीट गहराई तक) तुंरत पंहुचा दिया जाता है जिससे भूमिगत जल का स्तर इतना अधिक बढ़ जाता है कि पूरे साल भर पानी का लेवल कम नहीं होने पाता है !

सबसे पहले जिन लोगों को ये नहीं पता कि बोरवेल क्या चीज होता है, वे बोरवेल को साधारण भाषा में इस तरह समझ सकतें हैं कि बोरवेल जमीन में मशीन द्वारा या मैन्युअली किये जाने वाला एक गहरा सुराख (छेद) होता है जिसकी गहराई आमतौर पर 50 फ़ीट से लेकर 1000 फ़ीट तक हो सकती है और इस सुराख को करने के ये 2 मुख्य उद्देश्य होतें हैं, (1)- जमीन के अंदर से पीने के पानी को ऊपर निकालना (सबमर्सिबल पंप की मदद से), (2)- जमीन के अंदर पानी को डालना (मतलब रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रक्रिया के तहत बारिश के पानी को जमीन के अंदर, बोरवेल की पाइप के द्वारा डालते रहना ताकि जमीन का पानी यानी भूगर्भ जल सूखने न पाए) ! सबमर्सिबल पंप की मदद से इतना अंधाधुंध पानी का दोहन हो रहा है कि सरकार को “ग्राउंड वाटर बोर्ड” की स्थापना करनी पड़ी !

छत की रेन पाइप को बोरवेल की पाइप से कनेक्शन जोड़ने का मुख्य फायदा ये होता है, कि वर्षा के पानी की बर्बादी (अर्थात वर्षा के पानी का नाली में चला जाना या सूरज की गर्मी से भांप बनकर उड़ जाना) नहीं होने पाती है, बल्कि सारा पानी सही सलामत जमीन के एकदम अंदर तक तुरंत पहुँच जाता है !

वैसे तो कुछ लोग सलाह देते हैं कि अगर आपके घर में पीने के पानी को ऊपर निकालने के लिए पहले से बोरवेल हो रखा हो (मतलब जिस बोरवेल में सबमर्सिबल पंप लगा हुआ होता है) तो आपको रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए अलग से बोरवेल खुदवाने का खर्च करने की जरूरत नहीं है बल्कि आप उसी पीने के पानी वाले बोरवेल में ही, छत के पानी को भी फ़िल्टर से साफ़ करके डाल सकतें है ! लेकिन हमारे हिसाब से यह ठीक नहीं है क्योकि छत के द्वारा जो भी पानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जमीन के अंदर जाता है उसमें फ़िल्टर की सफाई के बावजूद भी थोड़ी सी गंदगी मिली हुई होने की संभावना बनी रहती है, इसलिए बेहतर है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए अलग से एक नया बोरवेल खुदवाया जाये !

ये हमेशा याद रखने की जरूरत है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बने हुए बोरवेल (मतलब जो बोरवेल बारिश के पानी को जमीन के अंदर सोख लेता है) और पीने का पानी ऊपर निकालने के लिए बने हुए बोरवेल (मतलब जिस बोरवेल में सबमर्सिबल पंप लगा हुआ होता है) के बीच में थोड़ी सी दूरी होनी चाहिए, और दोनों की गहराई में भी काफी अंतर किया जा सकता है (मतलब रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए कुछ लोग 50 फ़ीट की गहराई तक बोरवेल की पाइप नीचे डालना पर्याप्त मानते हैं जबकि पीने के पानी के लिए कम से कम 200 फ़ीट की गहराई तक बोरवेल की पाइप को नीचे डालना उचित मानते है) !

इस तरह दोनों बोरवेल के बीच की दूरी में मामूली अंतर व गहराई में काफी अंतर होने से छत के पानी का, पीने वाले पानी में सीधे मिलावट होने की संभावना खत्म हो जाती है (वास्तव में जब छत का पानी जमीन की पर्तों द्वारा सोखकर ज्यादा नीचे पीने वाले पानी की गहराई तक पहुँचता है तब तक वह पानी स्वच्छ व विभिन्न बेशकीमती मिनरल्स की खान बन चुका होता है, इसलिए धरती को माँ कहते हैं जो हम मूर्ख मानवों द्वारा पैदा की गयी सभी गंदगियों को अपने में सोख लेती हैं और बदले में हमें स्वच्छ जल व अन्न देती है) !

रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रकिया में छत पर मौजूद गंदगी को जमीन के अंदर तक पहुँचने से रोकने के लिए, बारिश के पानी को पहले एक छोटी सी टंकी (ऐसी सीमेंटेड या प्लास्टिक की टंकी जो हर तरफ से वॉटर प्रूफ होती है) में स्टोर किया जाता है जहाँ वो पानी विभिन्न तरह के नेचुरल फिल्टर्स द्वारा तेजी से अपने आप साफ़ हो जाता है (बिना बिजली के सप्लाई के) और फिर वो पानी अपने आप (टंकी में बनी ढ़लान पर) बहते हुए बोरवेल के छेद से जमीन के एकदम अंदर तक (यानी 50 फ़ीट से लेकर 200 फ़ीट गहराई तक) तुंरत पहुँच जाता है (शहरी प्रदूषित इलाको में आम तौर पर पहली बारिश के पानी को जमीन के अंदर नहीं डाला जाता है क्योकि उस पानी में वातावरण में मौजूद कई तरह के प्रदूषण के कण ज्यादा मात्रा में घुले हुए होतें हैं) !

आधुनिक वैज्ञानिको के अनुसार “बोरवेल सहित रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम” प्रक्रिया है तो बहुत फायदेमंद, लेकिन थोड़ी सी मंहगी भी है आम आदमी के लिए, क्योकि इसमें पूरा एक बोरवेल करवाने (सबमर्सिबल पंप रहित) जितना खर्च आ जाता है (जबकि आज भी कई लोग ऐसे है जो पीने का पानी पाने के लिए खर्च करने में सक्षम नहीं हैं, तो उनसे पानी बचाने के लिए खर्च करने की उम्मीद करने का कोई औचित्य नहीं है) !

इसलिए कई लोग जो “बोरवेल सहित रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम” लगवाने का खर्च नहीं उठा सकतें है, उन्होंने बेहद आसान व सस्ते तरीके यानी “बोरवेल रहित रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम” द्वारा भी काफी पानी की बचत की है ! इस तरीके में केवल यह छोटा सा काम करना होता है कि छत पर बरसने वाले पानी को जो रेन पाइप नीचे लाती है उस पाइप को अपने घर के आंगन (या गार्डन) में खुदे हुए एक साधारण गड्ढे (जो गड्ढा कम से कम 2 से 4 फ़ीट तक लम्बा – चौड़ा व गहरा हो) से जोड़कर ढक देना होता है, और सम्भव हो तो उस गढ्ढे से एक ओवर फ्लो पाइप (overflow pipe) को भी जोड़कर घर की नाली से अटैच कर देना होता है ताकि गड्ढे में जब बारिश का पानी ज्यादा भरने लगे तो वो पानी बेढंगे इधर – उधर फैलने की जगह सीधे नाली में चला जाए !

कई सज्जनों ने तो ना केवल छत की रेन पाइप बल्कि रसोई में बर्तन धोते समय व बाथरूम में नहाते समय गिरने वाले पानी को भी, घर के आंगन में बने हुए ऐसे गड्ढे से जोड़ रखा है ताकि घर में इस्तेमाल होने वाला अधिक से अधिक पानी नाली में जाकर बेकार हो जाने की जगह, घर की जमीन के अंदर ही समाकर शुद्ध हो सके और ग्राउंड वाटर का लेवल भी बढ़ा सके ! किचेन व बाथरूम को गढ्ढे से जोड़ने वाले सज्जन इस बात का जरूर ख्याल रहते हैं कि उनके किचेन व बाथरूम में किसी तरह के केमिकल युक्त साबुन, शैम्पू व फिनाइल का इस्तेमाल कम से कम हो सके ताकि धरती माँ के अंदर हानिकारक केमिकल्स कम से कम जा सके, इसलिए ऐसे सज्जन बर्तन माजने के लिए सिर्फ हर्बल प्रोडक्ट्स (जैसे- खेतों की शुद्ध मिट्टी, गोबर की राख आदि) व नहाने के लिए बेसन, दही, मुल्तानी मिट्टी आदि का इस्तेमाल करने का बुद्धिमान काम करतें हैं (बर्तन मांजने व नहाने के लिए ये पूरी तरह से हर्बल प्रोडक्ट्स शरीर के लिए भी, मार्केट में मिलने वाले महंगे केमिकल्स युक्त ब्रांडेड प्रोडक्ट्स की तुलना में काफी फ़ायदेमंद माने जाते हैं) !

कुछ लोग घर के आंगन में बनने वाले गड्ढे की तली (पेंदी या निचली सतह, bottom) में 1 – 2 फ़ीट ऊंचाई तक बालू (रेत), कोयला, पत्थर के टुकड़े आदि बिछावा देतें है ताकि जमीन में समाने से पहले बारिश के पानी की गंदगी कुछ साफ़ हो सके ! और गड्ढे के अंदर की चारो तरफ की दीवारों को ईंट व सीमेंट से प्लास्टर करवा देतें हैं या मोटी प्लास्टिक की चादर (पॉलिथीन शीट) से कवर्ड करवा देते हैं ताकि पानी सिर्फ तली में स्थित जमीन (कच्ची मिट्टी) में घुसकर नीचे की तरफ जाए, ना की गड्ढे की दीवारों से अंदर घुसकर घर की नींव (फाउंडेशन) तक पहुंच सके !

जो बारिश का पानी घर के आंगन में बने हुए ऐसे साधारण गड्ढे के माध्यम से अपने आप रिसकर (नेचुरल तरीके से) जमीन के अंदर पहुँचता है उस पानी की भी अधिकांश गंदगियां एकदम साफ़ तो हों जाती हैं, लेकिन वो पानी बहुत ही धीरे – धीरे जमीन के अंदर रिसकर पहुँचता है (जबकि बोरवेल तुरंत पानी को नीचे पहुंचा देता है) ! इसलिए खुले आसमान के नीचे बने हुए ऐसे गड्ढे (जिसे ऊपर से पूरी तरह से ढ़का ना गया हो और जिसमें बोरवेल का छेद भी ना हो) का यह नुकसान है कि उसमें स्थित काफी पानी सूरज की गर्मी से भाप बनकर उड़ जाता है ! अतः बेहतर होगा कि ऐसे गड्ढों को पूरी तरह से ढ़क कर रखा जाए ताकि उसमें बाहरी गंदगी भी ना पड़ सके !

वैसे कुछ लोगों ने तो इसका भी आसान व रेडीमेड जुगाड़ खोज निकाला है और वो है कि मार्केट में मिलने वाली पानी की 500 लीटर या 1000 लीटर की प्लास्टिक की टंकी को खरीदकर, उसकी पूरी पेंदी को गर्म चाकू से काटकर पेंदी को बाहर निकाल देतें है, फिर उस बिना पेंदी की टंकी को आँगन में खोदकर गाड़ देतें हैं और उस टंकी का मुंह ऊपर से ढक्कन से बंद करके, उसमें छत की रेन पाइप और ओवर फ्लो पाइप को जोड़ देतें हैं ! जिससे होता ये है कि जब भी छत पर बारिश होती है तो वो पानी रेन पाइप के द्वारा आंगन में गड़ी हुई पानी की टंकी में भरने लगता है और अगर पानी ज्यादा भर जाता है तो वो अपने आप ओवर फ्लो पाइप द्वारा घर की नाली से बाहर चला जाता है ! अब टंकी में भरा बारिश का पानी धीरे – धीरे रिसकर जमीन के अंदर समा जाता है ! जमीन में पानी समाने की यह प्रकिया धीमी जरूर है लेकिन साल भर में इतना ज्यादा पानी जमीन के अंदर भेज देती है कि शायद ही कभी पानी का लेवल सूखने की नौबत आ पड़े (वास्तव में यह तरीका इतना आसान व सस्ता है कि कई मध्यम वर्गीय परिवार इसे धड़ल्ले से अपने घरों में लगा रहें हैं) !

अब बात करें जलाशय की तो जलाशय का निर्माण इसलिए बेहद जरूरी काम है क्योकि बारिश के पानी को बड़ी मात्रा में जमीन के अंदर पहुंचाने का सबसे सस्ता व आसान तरीका है जलाशय ! इसलिए प्राचीनकाल के राजा – महाराजा से लेकर आज की मॉडर्न गवर्नमेंट्स तक सभी इस बात पर बहुत जोर देते हैं कि हर थोड़ी – थोड़ी दूर पर जलाशय का निर्माण जरूर होना चाहिए ताकि पानी की कमी को रोका जा सके !

जलाशय के निर्माण का खर्च इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितने बड़े जलाशय का निर्माण करवा रहें हैं ! वास्तव में जमीन पर बना हुआ एक छोटा सा गड्ढा भी एक जलाशय ही है पर, वर्तमान पानी की घनघोर किल्लत को देखते हुए यह माना जा सकता है कि जलाशय को कम से कम 10 फ़ीट से लेकर 50 फ़ीट तक लम्बा व चौड़ा होना चाहिए (माना जाता है कि जलाशय जितना ज्यादा गहरा होता है उतना ज्यादा तेजी से पानी को जमीन के अंदर भेज पाता है लेकिन ज्यादा गहरे जलाशय में अगर कोई गलती से गिर गया तो उसके डूबने की संभावना रहती है इसलिए आम तौर पर 5 से 10 फ़ीट तक गहरा जलाशय ही लोग बनवाते हैं) !

कॉलोनी/मोहल्ले के बीच में जलाशय बनवाते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जलाशय में पानी की मात्रा ज्यादा होने की वजह से पानी का दबाव ज्यादा होता है इसलिए जलाशय के अंदर की चारो तरफ की दीवारें पूरी तरह से वॉटर प्रूफ होनी चाहिए ताकि पानी सिर्फ तली में स्थित जमीन (कच्ची मिट्टी) में घुसकर नीचे की तरफ जाए, ना की दीवारों से अंदर घुसकर अगल – बगल स्थित घरों की नींव (फाउंडेशन) तक पहुंच सके !

देखा जाए तो जलाशय को बनवाना कोई कठिन काम नहीं है क्योकि अगर छोटा जलाशय बनवाना हो तो मजदूर भाईयों की सहायता से और बड़ा जलाशय बनवाना हो तो जे सी बी मशीन की सहायता से आसानी से कम समय में गड्ढा खोदा जा सकता है, जिसके बाद जलाशय की अंदरूनी बॉउंड्री वॉल को किसी भी जानकार सिविल कांट्रेक्टर से वॉटर प्रूफ बनवाया जा सकता है, बस हो गया काम चलाऊ जलाशय तैयार (जिसमें बारिश का पानी अपने आप भरकर जमीन के अंदर समाता रहेगा) !

कम आबादी वाले इलाके में, बनने वाले छोटे जलाशय में तो लोग अंदरूनी चारों तरफ की दीवारों को वॉटर प्रूफ बनाने के लिए ईंट – सीमेंट के प्लास्टर की जगह, मोटी प्लास्टिक की चादर (पॉलिथीन शीट) से कवर्ड करवाकर भी काम चला लेते हैं !

सूरज की गर्मी से भी जलाशय का काफी पानी भांप बनकर कम होता रहता है इसलिए कई लोग जलाशयों के ठीक ऊपर सोलर पैनल्स को इस तरह तिरछा करके लगवा देतें है जिससे सोलर पैनल्स को तो धूप पर्याप्त मिलती है लेकिन जलाशय के पानी पर धूप कम से कम पड़ती है और सोलर पैनल्स पर गिरने वाला बारिश का सारा पानी बहकर अंततः जलाशय में ही गिरता है ! सोलर पैनल्स को इस तरह से लगवाने के ये 2 फायदे मिलते हैं (1)- अपेक्षाकृत कम पानी भांप बनकर उड़ पाता है (2)- मुफ्त सौर बिजली देने में सक्षम, लम्बे – चौड़े सोलर पैनल्स को लगवाने के लिए अलग से कोई बड़ी जगह खोजनी नहीं पड़ती है ! कुछ सज्जन तो पैसा खर्च करके, बड़े जलाशय के भी बीच में 50 – 100 – 200 फ़ीट तक गहरा बोरवेल का पाइप गड़वा देतें है जिससे जलाशय का बड़ी मात्रा में पानी तुरंत भूमिगत जल तक पहुँचकर, जल स्तर को तुंरत काफी ऊँचा कर देता है !

वैसे जलाशय को जहां भी बनाया जाए, इस बात का जरूर ध्यान रखा जाये कि जलाशय ऊपर से भी चारो तरफ से बॉउंड्री वॉल या लोहे की जाली से एकदम कवर्ड रहे ताकि छोटे बच्चे व निराश्रित जानवर (जैसे कुत्ते, बिल्ली, गाय माँ आदि) उसमें ना गिर सकें (आपने अक्सर मीडिया में सुना होगा कि छोटे बच्चे खेल कूद के दौरान बोरवेल के बड़े गड्डो में गिर जाते हैं और पिकनिक मनाने गए वयस्क लोग भी तालाब में डूब जातें हैं इसलिए यह सभी को समझने व समझाने की जरूरत है कि जलाशय व रेन वाटर हार्वेस्टिंग वाला बोरवेल कोई खेल कूद, पिकनिक या मौज मस्ती करने की जगह नहीं है बल्कि धरतीवासियों को अकाल, सूखा जैसे मृत्युतुल्य कष्टों से बचाने के लिए एक पवित्र यज्ञ कुंड है) !

जलाशय में डूब सकने के खतरे के बारे में सुनकर, कुछ लोगों के मन में यह शंका पैदा हो सकती है कि आखिर जरूरत क्या है जलाशय जैसी खतरनाक चीज को कॉलोनी/मोहल्ले के भीड़ – भाड़ से भरे हुए इलाके में बनाने की, जबकि पीने का पानी तो आसानी से मिल ही जा रहा है ! तो ऐसे लोगों को हम बताना चाहेंगे कि जलाशय से कई गुना ज्यादा खतरनाक तो सड़कें, बाथरूम, सीढ़ियां, बिजली के तार आदि होतें है क्योकि हर साल जलाशय में डूब के मरने वाले कुछ दर्जन लोगों की तुलना में कई हजार गुना लोग सड़कों पर एक्सीडेंट, बाथरूम में फिसलकर, सीढ़ियों से गिरकर व बिजली के तार से झटका खाकर मरते हैं, तो क्या हम लोग सड़कों, बाथरूम, सीढ़ियों व बिजली के तारों का उपयोग करना बंद कर देतें हैं ?

बिल्कुल बंद नहीं करते हैं, क्योकि इनके बिना अब जीवन सम्भव नहीं है ! ठीक इसी तरह आज भले ही हमे पीने का पानी आसानी से मिल जा रहा हो लेकिन यह तय है कि जमीन के अंदर का पानी अगर इसी तेज रफ्तार से सूखता रहा तो बिना जलाशय की मदद के हम कुछ सालों बाद पानी नहीं पा सकेंगे ! जैसे आग लगने पर कुंआ तुरंत नहीं खोदा जा सकता है, बल्कि पहले से खोद कर रखना पड़ता है, ठीक इसी तरह निकट भविष्य में हर कॉलोनी/मोहल्ले में पानी के लिए मचने वाली जनता की चीख – पुकार को रोकने के लिए बहुत जरूरी है कि हर घर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (बोरवेल सहित या रहित) का इंस्टालेशन करवाया जाए और हर कॉलोनी/मोहल्ले/कस्बे/गाँव में थोड़ी – थोड़ी दूरी पर छोटे – बड़े जलाशयों का निर्माण करवाया जाए !

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने कुछ ऐसे सज्जनो से भी जल बचाने की अपार महिमा के बारे में जाना, जिन सज्जनों ने अपने बिजनेस में अक्सर होने वाले बड़े आर्थिक घाटों व अपने शरीर की कुछ जिद्दी बिमारियों का कारण जानने के लिए “पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी” (पूर्व जन्म चिकित्सा) की तो उन्हें पता चला की पूर्व के किसी जन्म में उन्होंने अपने ऐशो – आराम – सुख – सुविधा के लिए पानी की बहुत फिजूल खर्ची की था इस वजह से उन्हें उस पाप का दंड, इस जन्म में आर्थिक नुकसान व शरीर की बिमारी के रूप में मिल रहा है (यह घटना यह भी साबित करती है कि अगर जल का नुकसान करने से भगवान नाराज होकर दंड दे सकतें हैं तो जल को बचाने से भगवान की परम दुर्लभ प्रसन्नता भी प्राप्त की जा सकती है) !

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जल, चन्द्रमा का कारक होता है और चन्द्रमा, मन का कारक होता है इसलिए ज्योतिष के अनुसार पानी की बर्बादी करने से मानसिक अशांति बढ़ती है और मानसिक अशांति कितना बुरा असर डाल सकती है शरीरिक स्वास्थ्य पर, यह समझाने की जरूरत नहीं है क्योकि सभी डॉक्टर्स कहतें हैं “स्ट्रेस इस द रीज़न ऑफ ऑल डिसीसिस” (मतलब मानसिक अशांति ही सभी बीमारियों की जड़ है) !

उम्मीद है कि ऊपर लिखे हुए तथ्यों द्वारा बताये गए, जल की कमी से जल्द होने वाली भयानक समस्याओं से बाहर निकलने के आसान उपायों को शीघ्र लागू करने के लिए सभी आदरणीय पाठक पूर्णतः सहमत होंगे !

इसलिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह आवाहन व विनम्र निवेदन करता है हर शहर, कॉलोनी/मोहल्ले में रहने वाले ऐसे प्रभावशाली व सम्मानित शख्सियत से जिनके अंदर क्षमता है अपने प्रचंड सामर्थ्य का सदुपयोग करके सैकड़ों लोगों की मदद करने का ! वास्तव में कलियुग में धन ही शक्ति है और अगर ईश्वर ने आपको शक्तिशाली बनाया है तो यह अपने आप आपकी जिम्मेदारी बन जाती है कि अपना खुद का जीवन खत्म हो जाने से पहले अधिक से अधिक दूसरे लोगों का जीवन सवांरना !

लगभग सभी धर्म ग्रंथों में लिखा है कि जलाशय का निर्माण करवाना अपने पूरे परिवार के साथ – साथ सभी पितरों/पूर्वजों को भी अक्षय पुण्य व सौभाग्य देने वाला होता है क्यकि “जल ही जीवन है” ! इसलिए अगर आप दूसरों के लिए जल बचाने का महान परोपकारी काम करतें हैं (यानी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के घरों में आप खुद के पैसे से रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाते हैं और अधिक से अधिक कॉलोनी/मोहल्लों में आप खुद के पैसे से छोटे या बड़े जलाशयों का निर्माण करवातें हैं), तो भले ही आपको खुद विश्वास ना हो लेकिन आप सही मायने में इंसान के भेष में साक्षात देवता हैं जिन्हे ईश्वर ने निश्चित रूप से भेजा है इस दुनिया को बचाये रखने के अभियान में अपनी बुद्धि व बाहुबल की आहुति देने के लिए !

अगर आपको अब भी “रेन वाटर हार्वेस्टिंग” या “जलाशय” के निर्माण का तरीका समझने में कोई दिक्कत महसूस हो रही हो तो, आप अपने शहर के किसी भी एनवायर्नमेंटल कंसल्टेंसी कंपनी (पर्यावरणीय सलाहकार कंपनी) या सिविल कंस्ट्रक्शन कंपनी (भवन निर्माण कंपनी) की मदद ले सकतें हैं ! अंततः हम यही कहना चाहेंगे कि हमने इस आर्टिकल के माध्यम से पूरी कोशिश की है पानी की किल्लत रोकने वाले सभी कारगर उपायों को सरल भाषा में और विस्तार से समझाने की, ताकि छोटे अनभिज्ञ बच्चो से लेकर कमजोर बुजुर्गों तक सभी, पृथ्वी पर जीवन बचाने के प्रयास में अपनी भूमिका व जिम्मेदारी अपनी क्षमतानुसार खुद तय कर सके !

जय हो परम आदरणीय गौ माता की !
वन्दे मातरम् !

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण से संबन्धित आवश्यक सूचना)- विभिन्न स्रोतों व अनुभवों से प्राप्त यथासम्भव सही व उपयोगी जानकारियों के आधार पर लिखे गए विभिन्न लेखकों/एक्सपर्ट्स के निजी विचार ही “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि पर विभिन्न लेखों/कहानियों/कविताओं/पोस्ट्स/विडियोज़ आदि के तौर पर प्रकाशित हैं, लेकिन “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट, इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, दी गयी किसी भी तरह की जानकारी की सत्यता, प्रमाणिकता व उपयोगिता का किसी भी प्रकार से दावा, पुष्टि व समर्थन नहीं करतें हैं, इसलिए कृपया इन जानकारियों को किसी भी तरह से प्रयोग में लाने से पहले, प्रत्यक्ष रूप से मिलकर, उन सम्बन्धित जानकारियों के दूसरे एक्सपर्ट्स से भी परामर्श अवश्य ले लें, क्योंकि हर मानव की शारीरिक सरंचना व परिस्थितियां अलग - अलग हो सकतीं हैं ! अतः किसी को भी, “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और इससे जुड़े हुए किसी भी लेखक/एक्सपर्ट के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, प्राप्त हुई किसी भी प्रकार की जानकारी को प्रयोग में लाने से हुई, किसी भी तरह की हानि व समस्या के लिए “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट जिम्मेदार नहीं होंगे ! धन्यवाद !