Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को

कहानी – उर्वशी (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

विलसत सान्ध्य दिवाकर की किरनैं माला सी। प्रकृति गले में जो खेलति है बनमाला सी।।   तुंग लसैं गिरिशृंग भर्यो कानन तरुगन ते।   जिनके भुज मैं अरुझि पवनहू चलत जतन ते।।   निर्भय...

लेख – सृष्टि – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

(अदन की वाटिका, तीसरे पहर का समय। एक बड़ा सांप अपना सिर फूलों की एक क्यारी में छिपाये हुए और अपने शरीर को एक वृक्ष की शाखाओं में लपेटे हुए पड़ा है। वृक्ष भलीभांति...

कहानी – बभ्रुवाहन (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

प्रथम परिच्छेद मणि-प्रभापूर मणिपुर नगर के प्रान्त में एक उद्यान के द्वार पर प्रतीची दिशा-नायिकानुकूल तरणि के अरुण-किरण की प्रभा पड़ रही है। वासन्तिक सान्ध्य वायु का प्रताप क्रमश: उदय हो रहा है, पूर्व...

कहानी – विस्मृति – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

चित्रकूट के सन्निकट धनगढ़ नामक एक गाँव है। कुछ दिन हुए वहाँ शानसिंह और गुमानसिंह दो भाई रहते थे। ये जाति के ठाकुर (क्षत्रिय) थे। युद्धस्थल में वीरता के कारण उनके पूर्वजों को भूमि...

कहानी – दुखिया (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

पहाड़ी देहात, जंगल के किनारे के गाँव और बरसात का समय! वह भी ऊषाकाल! बड़ा ही मनोरम दृश्य था। रात की वर्षा से आम के वृक्ष तराबोर थे। अभी पत्तों से पानी ढुलक रहा...

कहानी – प्रारब्ध – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

लाला जीवनदास को मृत्युशय्या पर पड़े 6 मास हो गये हैं। अवस्था दिनोंदिन शोचनीय होती जाती है। चिकित्सा पर उन्हें अब जरा भी विश्वास नहीं रहा। केवल प्रारब्ध का ही भरोसा है। कोई हितैषी...

कहानी – घीसू (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

सन्ध्या की कालिमा और निर्जनता में किसी कुएँ पर नगर के बाहर बड़ी प्यारी स्वर-लहरी गूँजने लगती। घीसू को गाने का चसका था, परन्तु जब कोई न सुने। वह अपनी बूटी अपने लिए घोंटता...

कहानी – सुहाग की साड़ी – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

यह कहना भूल है कि दाम्पत्य-सुख के लिए स्त्री-पुरुष के स्वभाव में मेल होना आवश्यक है। श्रीमती गौरा और श्रीमान् कुँवर रतनसिंह में कोई बात न मिलती थी। गौरा उदार थी, रतनसिंह कौड़ी-कौड़ी को...

लेख – सोयी हुई जातियाँ पहले जगेंगी – (लेखक – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)

”न निवसेत् शूद्रराज्ये” मनु का यह कहना बहुत बड़ा अर्थ-गौरव रखता है। शूद्रों के राज्य में रहने से ब्राह्मण-मेधा नष्ट हो जाती है। पर यह यवन और गौरांगों के 800 वर्षों के शासन के...

कहानी – वैर का अंत – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

रामेश्वरराय अपने बड़े भाई के शव को खाट से नीचे उतारते हुए भाई से बोले-तुम्हारे पास कुछ रुपये हों तो लाओ, दाह-क्रिया की फिक्र करें, मैं बिलकुल खाली हाथ हूँ। छोटे भाई का नाम...

कहानी – छोटा जादूगर (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हँसी और विनोद का कलनाद गूँज रहा था। मैं खड़ा था उस छोटे फुहारे के पास, जहाँ एक लड़का चुपचाप शराब पीनेवालों को देख रहा था।...

कहानी – निर्वासन – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

परशुराम- वहीं-वहीं, दालान में ठहरो! मर्यादा- क्यों, क्या मुझमें कुछ छूत लग गयी?   परशुराम- पहले यह बताओ तुम इतने दिनों कहाँ रहीं, किसके साथ रहीं, किस तरह रहीं और फिर यहाँ किसके साथ...

कहानी – तानसेन (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

यह छोटा सा परिवार भी क्या ही सुन्दर है, सुहावने आम और जामुन के वृक्ष चारों ओर से इसे घेरे हुए हैं। दूर से देखने में यहॉँ केवल एक बड़ा-सा वृक्षों का झुरमुट दिखाई...

कहानी – आधार – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सारे गाँव में मथुरा का-सा गठीला जवान न था। कोई बीस बरस की उमर थी। मसें भीग रही थीं। गउएँ चराता, दूध पीता, कसरत करता, कुश्ती लड़ता था और सारे दिन बाँसुरी बजाता हाट...

कहानी – आकाशदीप (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

बन्दी!” ”क्या है? सोने दो।”   ”मुक्त होना चाहते हो?”   ”अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।”   ”फिर अवसर न मिलेगा।”   ”बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत...

कहानी – स्वर्ग की देवी – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

भाग्य की बात! शादी-विवाह में आदमी का क्या अख्तियार! जिससे ईश्वर ने, या उनके नायबों- ब्राह्मणों ने तय कर दी, उससे हो गयी। बाबू भारतदास ने लीला के लिए सुयोग्य वर खोजने में कोई...