वे प्रेरणादायी घटनाएं जो साबित करती हैं कि ईश्वर भी हार जाते हैं कर्मफल से

आदमी के जब तक सुख के दिन चलते रहते हैं तब तक आदमी को विश्वास रहता है कि जीवन में चाहे जैसी भी कठिन परिस्थितियां आएँगी वो उनको आसानी से संभाल लेगा, लेकिन अक्सर देखने को मिलता है कि मामूली दुःख पड़ते ही मजबूत आदमी के भी हाथ पाँव फूलने लगते हैं ! और अगर दुःख का समय लम्बा चल गया तब तो अच्छा से अच्छा भोगी मानसिकता वाला आदमी भी, योगी मानसिकता वाला होने लगता है !

अर्थात दुःख का समय एक टीचर (शिक्षक) की तरह काम करता है जो व्यक्ति के मन को भोगवाद (सांसारिक सुखो जैसे मौज, मस्ती, पार्टी आदि) से आध्यात्मवाद (मैं कौन हूँ और मैं इस धरती पर जन्म लेकर क्यों इतना दुःख भोग रहा हूँ) की तरफ मोड़ता है इसलिए बहुत से महान संतो ने कहा है कि जीवन में मिलने वाले कष्ट, वास्तव में वरदान स्वरुप है ! कई संत तो भगवान से रोज यहां तक प्रार्थना करते हैं कि भगवान उनके जीवन में ऐसे हर बड़े से बड़े कष्ट जरूर दें जो उन्हें एक सेकंड के लिए भी भगवान को भूलने ना दें !

वास्तव में पूर्णता (यानी मोक्ष) की प्राप्ति एक बहुत ही ज्यादा लम्बी प्रक्रिया है अतः बहु आयामों वाले मानव मन को कई स्तर पर विकसित होना बेहद जरूरी होता है जिसके लिए दुःख का समय बहुत अच्छा माना जाता है, क्योकि सुख के कई साल मानव मन को उतना जल्दी विकसित नहीं कर पाते हैं, जितना दुःख के मात्र कुछ दिन !

तो आईये प्रस्तुत लेख में हम उस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात करते हैं जो यह प्रदर्शित करता है कि कैसे आम तौर पर मानवों का मन लगातार पाप करने के बावजूद भी यह सोचकर आत्मसंतुष्ट हो जाता है कि उसके द्वारा कुछ मिनट की भगवान के लिए की गयी पूजा पाठ, उसे उसके पाप कर्म की सजा से बचा लेगी ! इसी सन्दर्भ में सबसे पहले बात करते हैं इतिहास की कुछ अद्भुत घटनाओं के बारे में !

परम आदरणीय संतों द्वारा बताये गए कथानक के अनुसार, रावण ने अंतिम दिन युद्ध के लिए अपनी तरफ से खुद भगवान शंकर को भेज दिया था, भगवान राम को हराने के लिए (भगवान् शंकर कितने भोले हैं इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपने परम भक्त रावण को खुश करने के लिए, शिव जी ने अपना शहर अमरावती यानी सोने की लंका को भी रावण को वरदान स्वरुप दे दिया था) !

वास्तव में रावण को इसी बात का हमेशा घमंड रहता था कि उसने भगवान शंकर की खूब पूजा पाठ की है इसलिए भगवान शंकर उसकी रक्षा हमेशा करने के लिए तैयार रहेंगे ! और हुआ भी यही, मतलब अंत में जब रावण एकदम युद्ध हारने वाला था (यानी जब मेघनाद, कुम्भकरण, अहिरावण आदि जैसे उसके सभी महायोद्धा मारे जा चुके थे) तब रावण की रक्षा करने खुद भक्तवत्सल भगवान शंकर गए थे भगवान् राम के खिलाफ लड़ने के लिए !

जो भगवान शंकर प्रलय काल में एक सेकंड में पूरे ब्रह्माण्ड को नष्ट कर देते हैं, वही भगवान शंकर अपना पूरा जोर लगाकर भी भगवान विष्णु के अवतार श्री राम को नहीं हरा सके और अंत में अदृश्य होकर चले गए ! अब यहाँ मुख्य प्रश्न बनता है कि भगवान शंकर, भगवान राम को क्यों नहीं हरा पाए !

इस प्रश्न का सीधा सा उत्तर है जो भगवान ने ही उनके द्वारा बनवाये गए सभी वेद पुराणों में ऋषियों द्वारा लिखवाया है कि “सत्यमेव जयते” यानी सत्य को परेशान किया जा सकता है लेकिन पराजित नहीं किया जा सकता है ! राम – रावण युद्ध में सत्य, श्री राम की तरफ था इसलिए भले ही भक्त की प्रार्थना से मजबूर होकर बिना इच्छा के, भगवान शिव को श्री राम से लड़ने के लिए जाना पड़ा था, लेकिन ये बात भगवान शिव ने खुद जाने से पहले रावण को समझा दिया था कि तुमने एक निर्दोष स्त्री माता सीता को मृत्यु तुल्य कष्ट पहुंचाया है इसलिए तुम्हे भी मृत्यु तुल्य कष्ट झेलने से, मै भी चाहकर नहीं बचा पाऊंगा !

भगवान शिव ने रावण को दयावश यह उपाय भी बताया था कि अगर तुम वाकई में अपने मृत्युतुल्य कष्ट में कुछ राहत पाना चाहते हो तो मुझसे प्रार्थना करने की जगह, तुरंत जाकर माता सीता से प्रार्थना करो कि वो तुम्हे माफ़ कर दें ! लेकिन इसे महाज्ञानी माने जाने वाले रावण की महामूर्खता ही कही जायेगी कि उसको लगता था कि जब स्वयं मृत्यु के देवता भगवान मृत्युंजय शिव खुद उसकी रक्षा हमेशा कर रहें हैं तो फिर वो कैसे कभी मृत्युतुल्य कष्ट झेल सकता है ! पर अंततः वही हुआ जो शाश्वत सत्य है यानी रावण का कर्म (मतलब माता सीता का अपमान) इतना ज्यादा पापपूर्ण था कि भगवान शिव खुद चाहकर भी रावण को उसके अकाट्य कर्मफल यानी श्री राम के द्वारा पूरी तरह से बर्बाद होने से बचा नहीं सके थे !

वैसे यहां पर इस विचित्र शंका का निवारण करना भी जरूरी है जो कुछ लोगों को महसूस होती है कि भगवान शंकर, श्री राम को इसलिए नहीं हरा पाए क्योकि श्री राम, भगवान विष्णु के अवतार थे और भगवान विष्णु, भगवान शंकर से ज्यादा शक्तिशाली हैं (क्योकि ऐसे लोगों का यह अजीब तर्क है कि भगवान विष्णु पालनकर्ता हैं इसलिए बचाने वाला, हमेशा मारने वाला यानी भगवान शिव से बड़ा होता हैं) ! इस विषय में हमे यही कहना है कि वास्तव में त्रिदेव (यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश) एक ही हैं इसलिए इनमे किसी को बड़ा या छोटा समझना या भगवान के किसी भी अन्य अवतार (जैसे- श्री सरस्वती, श्री नरसिंह, श्री हनुमान, श्री गणेश, श्री कर्तिकेय, श्री कृष्ण आदि) को बड़ा या छोटा समझना पूरी तरह से गलत व मूर्खतापूर्ण है, इसलिए ऐसे भ्रमों से हमेशा बचना चाहिए !

अतः जिन लोगों को यह संदेह है कि सिर्फ भगवान विष्णु ही सर्वश्रेष्ठ हैं और भगवान शिव उनसे छोटे हैं, उन लोगों को राजा दक्ष के नाश की घटना याद करना चाहिए जब भगवान शिव के केवल एक सेवक वीरभद्र जी से युद्ध करने में भगवान विष्णु हारकर अदृश्य हो गए थे ! भगवान विष्णु हार इसलिए गए थे क्योकि वो अपनी भक्तवत्सलता से मजबूर होकर, बिना इच्छा के राजा दक्ष की रक्षा करने के लिए, वीरभद्र जी से लड़ने के लिए जरूर चले गए थे, लेकिन वो जानते थे कि सत्य, वीरभद्र की तरफ है इसलिए अंततः उनकी हार निश्चित है !

इसलिए भगवान विष्णु ने खुद राजा दक्ष को समझाया था कि तुमने जो भगवान शंकर व देवी सती को बहुत बुरा भला, कड़वे वचन बोलकर अपमानित किया है उसकी वजह से तुम्हारा मुँह तो बकरे जैसा हो ही जाएगा और साथ ही साथ तुम्हे भी उसी तरह मृत्युतुल्य कष्ट झेलना पड़ेगा, इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि मुझसे प्रार्थना करना छोड़कर, तुरंत जाओ भगवान शिव से माफ़ी मांगों जिनका तुमने अपने साथी दरबारियों के साथ मिलकर खूब मजाक उड़ाया है !

लेकिन राजा दक्ष को हमेशा से यह घमंड था कि जब तीनों लोकों के पालनकर्ता भगवान विष्णु खुद उनकी रक्षा लगातार कर रहें हैं तो फिर कैसे कोई उनका बाल भी बांका कर सकता है ! अंततः हुआ वही जो भगवान विष्णु ने दक्ष को समझाया था यानी भगवान शिव के गण वीरभद्र जी ने राजा दक्ष की गर्दन उखाड़कर फेंक दी (बाद में भगवान शिव ने ही दयावश राजा दक्ष को फिर से जिन्दा किया, बकरे का सिर लगाकर) !

ऊपर लिखी हुई इन प्रेरणादायी घटनाओं को यहां बताने का उद्देश्य यही है कि, हमे हमेशा अपने कर्मों के प्रति सावधान रहना चाहिए खासकर उन कर्मों के प्रति जिनसे किसी को दुःख पहुंच सकता है क्योकि किसी निर्दोष को अगर हमारे किसी कर्म द्वारा बड़ा दुःख पहुँचता है तो उस पाप कर्म का फल एक अकाट्य प्रारब्ध बनकर हमारे पीछे कई जन्मों तक पड़ सकता है जब तक की हम उसका पूरा प्रयाश्चित खुद दुःख झेलकर ना कर लें !

किसी निर्दोष को सताने का पाप कर्म, तब महापाप कर्म में बदल जाता है जबकि वो निर्दोष व्यक्ति हमारी भलाई करना चाह रहा था और हमने उसका अहसान मानने की जगह, जानबूझकर उसी को बहुत दुःख पहुंचाया हो ! हमारी इस अहसानफरामोशी की सजा बड़ी भीषण मिल सकती है इसलिए बार – बार समझाया जाता है कि ऐसे परोपकारी व्यक्तियों (जैसे- माता, पिता, गुरु या कोई ऐसा अनजाना शख्स जिसने भी हमारी बहुत सहायता की हो) को अगर हम अपनी भ्रष्ट बुद्धि की वजह से आदर नहीं दे सकते हैं, तो कम से कम हम उन्हें अपमानित करने का पाप तो बिल्कुल ही ना करें अन्यथा हमारा हाल भी राजा जन्मेजय वाला हो सकता है !

महाभारत काल के राजा अर्जुन के परपोते, राजा जन्मेजय ने भी क्रोध में आकर, उनकी ही भलाई के लिए यज्ञ करने वाले ऐसे संत को मृत्युदंड दे दिया था जो उनकी पत्नी की भलाई के लिए बिना मांगे एक सलाह देने की गलती कर बैठे थे ! असल में राजा जन्मेजय की पत्नी अश्वमेध यज्ञ के लिए घोड़े को तैयार कर रही थी लेकिन पत्नी के द्वारा घोड़े की सेवा ठीक से ना होते हुए देखकर, संत ने पत्नी को समझाया कि आप एक रानी होने के बावजूद अगर एक छोटा सा काम भी ठीक से नहीं कर सकेंगी तो आपको प्रजा अपना आदर्श कैसे मानेगी !

संत की इस सलाह को सुधारात्मक रूप से लेने की जगह रानी ने इसे अपमान समझकर, राजा जन्मेजय से उन संत को तुरतं मृत्यदंड दिलवा दिया जिसके जघन्य पाप स्वरुप बाद में राजा जन्मेजय के शरीर में कीड़े पड़ने लगे और मवाद बहने लगा ! लाख दवा, पूजा पाठ आदि करने के बावजूद भी राजा जन्मेजय के शरीर की सड़न आजीवन ठीक नहीं हो सकी !

देखा जाए तो राजा जन्मेजय बहुत अच्छे व्यक्ति थे क्योकि उन्होंने अपने जीवन में अपनी प्रजा की भलाई के लिए एक से बढ़कर एक अच्छे काम किये थे, लेकिन जैसा की कहावत है कि “क्रोध सर्वनाश का कारण है” इसी वजह से गुस्से में लिया गया एक गलत निर्णय, उनके और उनके पूरे परिवार के लिए महान दुखकारी साबित हुआ !

इसलिए ये हमेशा याद रखना चाहिए कि हमें क्रोध में आकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए, खासकर किसी को अपमानित तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए क्योकि अगर किसी सज्जन व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुंच जाए तो उसे मृत्युतुल्य कष्ट पहुँच सकता है, जिसे सज्जन व्यक्ति भले ही अपने क्षमाशील स्वभाव की वजह से भूलकर तुरंत माफ़ कर दे लेकिन सर्वोच्च न्यायाधीश यानी ईश्वर कभी माफ़ नहीं करते है, इसलिए इस दुनिया में हमेशा से देखने को मिलता है कि बड़े से बड़ा दबंग, घमंडी, बद्तमीज स्वभाव का व्यक्ति भी देर सवेर ऐसी परिस्थिति में पहुंच सकता है जब उसके पास निरीह बनकर दूसरों से माफ़ी मांगने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है !

वास्तव में आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा पाप कर्म, वाणी के द्वारा कड़वे वचन बोलकर किया जाता है इसलिए बड़े बुजुर्ग हमेशा समझाते है कि “अच्छे इंसान बनो या ना बनो, लेकिन अच्छी वाणी बोलने वाला जरूर बनो” ताकि बहुत सी मुसीबतों से बचे रह सको ! आम तौर पर अगर आदमी अपने वर्तमान जीवन में किसी पूर्व जन्म के पाप का दंड भुगत रहा होता है तो तब भी उसके मन में ये लाचारगीभरा संतोष रहता है कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन वो अब पूर्व जन्म में जाकर अपने बुरे कर्म को बदल तो नहीं सकता है (इसलिए पूर्व जन्म के पाप की वजह से इस जन्म में जो कुछ भी जन्मजात या लाइलाज समस्याएं मिली हैं उन्हें चुपचाप झेलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है), लेकिन आदमी अगर इसी जन्म के किसी जानबूझकर किये गए पाप कर्म की सजा भुगत रहा होता है तो उसको अफ़सोस कई – कई – कई गुना ज्यादा होता है क्योकि उसका मन उसे बार – बार यह धिक्कार रहा होता है कि आखिर उसने क्यों सबके लाख समझाने के बावजूद भी सिर्फ अपने क्रोध व जिद्द में ऐसे बुरे कार्य कर दिए जो उसे अब आजीवन दुःख देंगे !

अतः सारांश यही है कि जब ईश्वर भी हमारे जघन्य पाप कर्मो से मिलने वाली सजा को समाप्त करने की जगह, सिर्फ उसे सुगमतापूर्वक झेलने की शक्ति प्रदान कर सकते हैं तो हमे हमेशा इस बात के लिए सावधान रहना चाहिए कि हमसे जाने – अनजाने कभी, कोई ऐसा बुरा कर्म ना होने पाए जो हमें आजीवन खून के आंसू रुलाने पर मजबूर कर सके (खासकर उन राक्षसी स्वभाव के लोगों को विशेष सावधान रहने की जरूरत है जो अपने क्रोध व जिद्द को संतुष्ट करने के लिए, अपने मददगार लोगों से भी बदला लेने तक का घृणित पाप कर सकते हैं) और साथ ही साथ हमें प्रतिदिन अधिक से अधिक जरूरतमंद लोगों की सेवा सहायता करने का पुण्य सौभाग्य भी मिल सके ताकि हम और हमारा परिवार शाश्वत सुख की तरफ निरंतर अग्रसर हो सके !

इस कठिन आत्म नियंत्रण की प्रक्रिया को बेहद आसान बनाने के लिए एक बहुत ही कारगर तरीका यह है कि रोज सुबह सोकर उठते ही, तुरंत बिस्तर पर कम से कम 12 बार “जय माँ सरस्वती” को बोल लिया जाए जिससे दिन भर वाणी और कर्मों पर एक ऐसी दिव्य लगाम लगी रहती है जो कोई भी पाप कर्म करने से अपने आप रोकती है ! “जय माँ सरस्वती” को बोलने से और क्या – क्या आश्चर्यजनक फायदे मिल सकतें हैं, उनके बारे में विस्तार से जानने के लिए कृपया निम्नलिखित आर्टिकल्स के लिंक्स पर क्लिक करें-

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