परवरिश में खोट, तो सन्तान, बेटा से पहले पति

p,अपनी जानकारी में माँ बाप बड़ी मेहनत से संतान नाम के पौधे को बचपन से सींचते हैं कि यही पौधा बड़ा होकर, हम बूढों को हमारी अशक्त अवस्था में, फल देगा, पर माँ बाप की ये सारी खुशफहमी तब धूमिल पड़ने लगती है जब उनका लगाया पौधा बड़ा होकर फल देने लायक होता है तब अचानक से उसका फल देने का रुझान अपने माँ बाप को नहीं बल्कि कुछ दिन पहले बने रिश्ते बीवी की तरफ हो जाता है !

और दुःख अपरम्पार स्तर तक तब पहुच जाता है, जब लड़के के लिए उसकी बीवी प्रथम प्राथमिकता पर और माँ बाप धीरे धीरे आखिरी प्राथमिकता पर पहुँच जाते हैं !

अब ऐसी स्थिति में माँ बाप की स्थिति विचित्र हो जाती है क्योंकि उन्हें अपना दुःख, ना किसी से कहते बनता है और ना ही सहते बनता है !

सही बात है कि किससे किस मुंह से क्या कहें, क्योंकि अभी कुछ दिन पहले तक तो सबसे गर्व से यही बताते फिरते थे, कि मेरा बेटा इस बड़ी पोस्ट पर बैठ गया और उसकी अमुक बड़े घर की हाइली क्वालिफाइड लड़की से शादी करा दी, पर अब ! अब तो मानों हम अपने ही लड़के के लिए मेहमान हो गए !

माँ बाप यही सोच कर अन्दर ही अन्दर परेशान रहते हैं कि पहले जो लड़का अपनी हर सुख दुःख की बातें रोज हमसे शेयर करता था अब उसी लड़के को हमसे बात करने के लिए कुछ सेकंड्स भी नहीं हैं ! समझ में ही नहीं आता की उस लड़के की जिन्दगी में हमारी कोई इम्पोर्टेंस रह भी गयी है या नहीं ! लड़का तो अपनी बीवी के साथ नयी जिन्दगी में ऐसा रच बस गया है कि हम भी उसकी जिंदगी के अहम हिस्से हैं ये वो भूल ही गया है ! अपने बीवी बच्चों की तरह ही उसे हम बूढ़े माँ बाप की भी देखभाल करनी चाहिए पर वो तो बस हमसे फ़ोन से ही हाल चाल लेकर ही अपनी ड्यूटी का अन्त समझ लेता है !

कैसी विडम्बना है कि, जिंदगी भर जिस लड़के की घूम घूम कर तारीफ की, आज उसका परिचय हमारे बेटे के रूप में नहीं बल्कि उसकी बीवी के हसबैंड के रूप में दिया जा रहा है ! अब तो उसके घर जाकर लम्बा रहने में भी डर लग रहा है क्योंकि कभी भी लड़का या उसकी वाइफ मुंह खोलकर कोई ऐसी बात जाने अनजाने कह सकते हैं जिससे बेइज्जत होकर वापस लौटना पड़े !

ऐसे सैकड़ो प्रश्न ऐसे हर माँ बाप के दिल को बार बार उठते रहते हैं, जो अपने बेटों की बेरूखी, नजरंदाजी से परेशान हैं ! उन्हें यही चीज बार बार कचोटती है की हमने तो उस लड़के को हर सुख देने के लिए अपने जीवन में बहुत से कष्ट सहे लेकिन जब उसका हम लोगों के प्रति कर्तव्य निभाने का टाइम आया तो लड़का ऐसा फॉर्मल बिहैवियर (औपचारिक या दिखावटी व्यवहार) कर रहा हो जैसे हम उसके जन्म दाता माता पिता नहीं बल्कि दूर के रिश्तेदार हों !

और ऐसा भी नहीं की हमारा लड़का इतना नादान है, कि उसे पता ही ना हो कि, कैसे किसी की दिल से देखभाल किया जाता हैं क्योंकि जहाँ एक तरफ वो हम लोगों से एक फॉर्मल दूरी बनाकर बात कर रहा है या हम लोगों के लिए कोई काम कर भी रहा है तो उसमे दिखावट ज्यादा सेवा भाव कम है, वही दूसरी तरफ चन्द दिनों पुराने रिश्ते पत्नी के लिए इतना ज्यादा समर्पण व उत्साह से लगातार काम किये जा रहा है जैसे मानो वही उसकी जिन्दगी का एकमात्र परम सुख व कर्तव्य हो !

दुखी माँ बाप को यह भी महसूस होता है की ऐसी पढाई पढ़ाने का क्या फायदा मिला कि लड़का, अपना होकर भी अपना नहीं है ! तथा इतने हाई स्टेटस के घर की लड़की या सिर्फ कैरियर का रट लगाये रहने वाली लड़की से शादी कराने से भी क्या फायदा मिला कि अपना लड़का बस उसी को सँभालने भर को रह गया ! इससे बढियां तो किसी गरीब घर की सीधी संस्कारी लड़की से शादी करायी होती, तो वो विन्रमता से पति की सेवा भी करती और हम बूढों की भी नियमित देखभाल करती !

अपने ही बेटों के सच्चे प्यार से वंचित माँ बाप का दिल अन्दर से कई बार रोता है कि आखिर कमी कहाँ रह गयी कि, अपना बेटा तो बस अब दुनिया को दिखाने भर के लिए अपना रह गया है क्योंकि वास्तव में वो दिल दिमाग से सिर्फ और सिर्फ अपनी बीवी का हसबैंड ही बनकर रह गया है !

ऐसे माँ बाप अगर बेहद ईमानदारी से अपने गुजरे ज़माने को याद करेंगे तो पाएंगे की निश्चित तौर पर उनसे भी वही गलतियाँ हुई हैं जो आज उनका बेटा उनके साथ कर रहा है क्योंकि इसकी सम्भावना नहीं के बराबर होती है (हालाँकि अपवाद स्वरुप इस घोर कलियुग में सब कुछ सम्भव है) कि किसी ने जिंदगी भर अपने बुजुर्गों (माँ बाप, सास ससुर, दादा दादी, नाना नानी, बुआ फूफा, भाई बहन आदि) की सेवा की हो और उसके लड़के बड़े होकर उसकी सेवा ना करें !

व्यक्ति अपने जीवन में जिन भी बुजुर्गों के साथ रहता है, उनकी सेवा दिल से करे तो यह अति निश्चित है कि उसकी संतान बड़े होकर अपने आप इतने ज्यादा आज्ञाकारी बन जाते हैं, जैसे इशारों पर नाचने वाली कठपुतलियां !

जो लोग कई किस्म की चालाकियों को दिखाकर (जैसे नौकरी, व्यापार आदि की व्यस्तता बताकर) अपने बुजुर्गों की सेवा, देखभाल से अक्सर बचते रहतें हैं, उनके लड़के बड़े होने पर उनसे दोगुनी चालाकी दिखा कर उनकी देखभाल करने से बचते हैं !

आमतौर पर बेटियां इस मामले में, बेटों से बेहतर होती हैं क्योंकि शादी के बाद भी उनके मन में अपने माता पिता के लिए प्यार कम नहीं होता है बल्कि और ज्यादा बढ़ जाता है ! पर कोई लड़की शादी के बाद ससुराल जा कर अपने पति को उसके माँ बाप की देखभाल की प्रेरणा देने की बजाय उसे उसके माँ बाप की जिम्मेदारियों से दूर करें तो, यह बहुत बड़ा पाप है जिसका दण्ड उस लड़की को भविष्य में किसी न किसी रूप में जरूर भोगना ही पड़ता है !

अतः ऐसे माँ बाप जो दुनिया के नजर में किसी बड़े अधिकारी या बिजनेस मैन के माँ बाप होते है पर हकीकत में पैरेंट्स और लड़के के सम्बन्ध में केवल औपचारिकता व सामाजिक दिखावट ही बची हुई होती है, उन्हें दुखी होने की बजाय प्रायश्चित करना चाहिए ! प्रायश्चित के कई तरीके हैं पर इस स्थिति में सबसे सटीक प्रायश्चित यही है की – “सिर्फ अपनों में प्यार खोजने की बजाय सबको ही अपना बना लेने का प्रयास” |

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