आखिर सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि, पत्नी के द्वारा पति को मातापिता से अलग रहने पर मजबूर करना, क्रूरता है !

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय के समर्थन में अपनी राय देते कुछ समाज शास्त्री-

किसी परिवार के बिखरने में ज्यादातर पुरुषों से सम्बंधित कारण बताया जाता है कि पुरुषों की बुरी आदतों और क्रूर स्वभाव की वजह से महिलाएं एक सफल दाम्पत्य जीवन निर्वाह नहीं कर पाती हैं और शादी के कुछ साल बाद ही तलाक तक की नौबत आ जाती है या पती पत्नी बिना तलाक के ही अलग अलग रहना शुरू कर देते हैं !

समाज में जहाँ एक तरफ पतियों और ससुराल के द्वारा बहुओं पर अत्याचार की घटनाएँ देखने को मिलती रहीं हैं वहीँ दूसरी तरफ अब बहुओं के द्वारा पति और ससुराल के ऊपर होने वाले अत्याचारों की भी बहुत सी घटनाएँ रोज ही देखने को मिल रहीं हैं !

महिलाएं शारीरिक ताकत में पुरुषों से आम तौर पर कमजोर होती हैं इसलिए एक साधारण सामाजिक मान्यता है कि एक कमजोर स्त्री, अपने से ज्यादा ताकतवर पुरुष पर कैसे अत्याचार कर सकती है !

पर किसी को प्रताड़ित करने के लिए शारीरिक ताकत ही एक मात्र जरिया नहीं होता है !

अक्सर ऐसी घटनाएँ अख़बारों में देखने को मिलती है जब पत्नियों के द्वारा बार बार दी जाने वाली मानसिक प्रताड़ना से आखिरी परेशान होकर पति कोई आत्मघाती गलत कदम उठा लेते हैं !

जहाँ लड़कों को शादी करने से पहले यह समझने की जरूरत है की शादी का असल मतलब है क्या, वहीँ ठीक यही चीज लड़कियों को भी अच्छे से समझने की जरूरत है !

जैसे शादी के बाद, कोई सभ्रांत घर का लड़का पहले की तरह आराम फरमा नहीं सकता, बल्कि उसे कहीं ना कहीं से पैसा कमाना ही कमाना है क्योंकि शादी के बाद पैसा कमाना उसकी मजबूरी हो चुकी होती है, ठीक इसी तरह शादी के बाद हर हाउस वाइव्स महिलाओं को घर के अन्दर की हर जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी से जरूर सम्भाल लेना चाहिये, ना कि दिन भर बैठ कर टी वी देखने, दोस्तों और मायके फोन से बात करने या घूमने फिरने आदि में ही पूरा दिन बर्बाद कर देना चाहिए !

दिक्कत मुख्य रूप से तब शुरू होती है, जब कोई लड़की शादी के बाद भी काम नहीं करना चाहती और जब ससुराल के लोग उसकी लापरवाही से तंग आकर उस पर उसकी जिम्मेदारियों का पूरा करने का दबाव बनाते हैं तो वो घर में रोज नए नए तरह के झगड़े, नाटक, प्रपंच करती है जिससे ससुराल के लोग परेशान, उबकर या डरकर कर उससे काम करने के लिए कहना ही छोड़ दें !

ऐसी लड़कियां काम इसलिए नहीं करना चाहती क्योंकि उन्होंने कभी अपने मायके में जिम्मेदारी से काम किया ही नहीं होता है !

मायके में जिम्मेदारी से काम इसलिए नहीं किया होता है क्योकि मायके में लड़की के माता पिता ने लड़की को हमेशा लाड प्यार से यह सोचकर रखा कि बेचारी एक दिन ससुराल को चली जाएगी और वहां तो उसे काम करना ही पड़ेगा, पर लड़की के माता पिता ये भूल गए जिस बच्चे को बचपन में मेहनत करने की आदत नहीं डाली गयी उसे बड़े होकर काम करने में बहुत मानसिक तकलीफ महसूस होती है जिसकी वजह से उसे आसान से आसान काम भी कठिन लगता है !

अतः ऐसी कामचोर लड़कियां अपनी जिम्मेदारियों को टालने के लिए कई घंटा बिना थके हुए मुंह से लड़ तो सकती हैं पर क्या मजाल कि काम करने के लिए वो थोड़ा सा भी अपना हाथ पैर चला दें ! ऐसी लड़कियां ना जाने कैसे नजरंदाज कर लेती है इस बात को कि एक तरफ उनका पति है जो शादी के बाद जाड़ा, गर्मी, धूप, बरसात हर मौसम में बाहर जाकर, अपना पूरा टैलेंट झोककर और काफी तनाव सोखकर किसी ना किसी तरीके से मेहनत से पैसा कमा कर घर ला रहा है और एक तरफ वो हैं कि जिन्हें घर के साफ़ सुथरे आरामदायक माहौल में ही रहकर रोजमर्रा के फिक्स काम करने होते हैं तो भी पता नहीं क्यों उन्हें यह बहुत भारी लगता है !

तो इस तरह से देखा जाय तो असली दोषी ऐसी हर बहुओं के वे माँ बाप होते हैं, जो अपनी बेटी में बचपन से लेकर शादी तक जिम्मेदारी का भाव पैदा करने की बजाय सिर्फ लाड, प्यार, दुलार देकर पालते हैं जिससे बीतते समय के साथ सिर्फ लड़की का शरीर ही बड़ा होता है पर उसके मन में पलने वाली अधिकांश भावनाएं अभी भी छोटी (अर्थात नकचढ़ापन, चिडचिडापन, आलस्य, पग पग पर शरारती बच्चों की तरह काल्पनिक मनगढ़न्त झूठ बोलने की आदत, अपनी हर गलती के लिए सिर्फ दूसरों को दोष देना आदि आदि) रहती हैं !

अपनी लड़की को सही परवरिश देने की बजाय सिर्फ लाड प्यार से उसकी आदत बिगाड़ देने वाले माता पिता को, निश्चित उस लड़की के ससुराल वालों की हाय लगती है, जब जब वो लड़की अपनी बुरी आदतों से अपने ससुराल वालों का दिन रात मेंटली टार्चर करती है !

ऐसी ही लड़कियों को सुसराल में मामूली खाना पीना बनाने के लिए भी नौकरानी या किसी अन्य महिला का साथ चाहिए होता है, भले ही वो नौकरानी बहुत गन्दगी और अशुद्धता से खाना बनाये ! नौकरानी या किसी अन्य महिला का सहयोग ना मिले तो ये चाय जैसी मामूली चीज भी समय से नहीं दे सकती !

ऊपर से तुर्रा यह कि पति (husband) इन्हें नियम से घुमाने के लिए बाहर ले जाय या रेस्टोरेंट में खाना खिलाये, नहीं तो पति के ऊपर ये आरोप लगता है कि पति तो इनका कोई ख्याल रखता ही नहीं, पर इन्हें यह कभी समझ में नहीं आता कि वास्तव में पति उनके झगडालू व कामचोर स्वभाव से इतना तंग आ चुका होता है कि उसे उनकी सिर्फ शक्ल देखकर ही बुखार आने लगता है तो साथ में रेस्टोरेंट जाना तो बहुत दूर की बात होती है !

ये लड़कियां अपने छोटे छोटे बच्चों तक की देखभाल भी ठीक से तभी कर पाती हैं जब इन्हें नौकरानी या घर के किसी अन्य महिला की मदद मिल पाए !

इन्हें अपने बच्चों को खुश करने का सबसे आसान तरीका यही आता है की बच्चे को बाजार लेकर जाओ और उसे महंगे दिखने वाले चाकलेट्स, टॉफी, नूडल्स, पिज्जा बर्गर, ड्रेस, खिलौने आदि खरीदवा दो जिससे बच्चे के मुंह से तुरंत “स्वीट माँम” “बेस्ट माँम” आदि का खिताब पा जाओ, पर मेहनत करके घर का ताजा शुद्ध खाने का सामान बना कर बच्चे को ना दो !

ऐसी लड़कियों को अगर नौकरानी ना मिल पाए तो इन्हें अपने पति और बच्चों के आलावा किसी और (जैसे ससुराल के अन्य सदस्यों) के लिए रोज रोज खाना नाश्ता बनाना बड़ा भारी बोझ लगने लगता है तो वो इससे मुक्ति पाने के लिए अपने पति के मन में लगातार तब तक सास, ससुर, जेठ, देवर, भाभी, ननद आदि अन्य पारिवारिक सदस्यों के लिए कड़वाहट भरती जाती हैं, जब तक की उनका पति अपने माता पिता से अलग घर लेकर रहना शुरू ना कर दे !

वो भूल जाती हैं की अपने छोटे से फायदे के लिए, सास ससुर से उनके बेटे को या देवर जेठ से उनके भाई को अलग करके कितना बड़ा पाप कर रही हैं और ऐसे पाप की नींव पर बसा उनका नया घर कैसे सुखी रह सकता है ? ऐसी लड़कियां घर के कामों (जैसे खाना बनाना, साफ़ सफाई, बच्चों को पालना) को घटिया और समय की बर्बादी मानती हैं !

कई बार ऐसा भी देखा गया है की ऐसी लड़कियों की स्वच्छंद हरकतों का अगर ससुराल वाले विरोध करतें है तो ये लड़कियां अपने ससुराल वालों पर फर्जी दहेज़ प्रताड़ना का पुलिस केस कर देतीं है !

भारत जैसे संस्कारी देश में बहुओं के द्वारा होने वाली इस तरह की अराजकताओं के बारे में पहले यदा कदा सुनने को मिलता था पर अब इस तरह की घटनाएं अक्सर (खासकर मध्यम वर्गीय परिवारों में) सुनने को मिल रहीं हैं !

संभवतः इन्ही सब बढती घटनाओं की वजह से सुप्रीम कोर्ट को ऐतिहासिक निर्णय देना पड़ा कि, पत्नी द्वारा पति को माता पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करना एक तरह की क्रूरता है और केवल इसी आधार पर तलाक़ की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सकती है !

कई रिच फैमिली (जो अपने आप को हाई सोसाइटी के मिथ्या अभिमान में भी रहतें हैं) के घर के सीनियर्स का अपने बहुओं से तो खाना बनाने या घर की साफ़ सफाई जैसे कार्यों की अपेक्षा नहीं होती है लेकिन इसी वजह से उनके साथ अक्सर दूसरे किस्म की समस्याओं के बारे में सुनने को मिलती है अगर वो वर्किंग नहीं है तो !

ऊपर लिखी महिलाओं की केटेगरी के अलावा समाज में ऐसी भी बहुत सी समझदार महिलाएं हैं जो शादी के बाद जिस घर में पहुचती है उस घर का मानो भाग्य खुल जाता है ! ऐसी सच्ची मेहनती हॉउस वाइफ महिलायें जिस घर में जाती हैं उस घर के छोटे बड़े सबका दिल से बहुत ख्याल और सम्मान रोज करती है ! बिना किसी पक्षपात, भेदभाव या चालाकी के ये सबके खाने पीने और अन्य पहलुओं का भी बहुत समय और सावधानी से ख्याल रखती हैं ! इनके इसी समर्पण के महान भाव की वजह से ही इन्हें ससुराल में खूब आदर सम्मान मिलता हैं ! ससुराल का हर आदमी चाहता है की ऐसी महान बहू को क्या अच्छे से अच्छा गिफ्ट खरीद कर दे दें जिससे वो हमेशा खुश रहें !

वहीँ दूसरे तरफ जब कोई ऐसी स्वार्थी लड़की जिसे दूसरों की इच्छाओं की कद्र नहीं है और जिसके लिए सिर्फ और सिर्फ उसकी अपनी लाइफ की इच्छाएं ही सर्वोपरि हैं, शादी के बाद ससुराल पहुचती है तो उस लड़की को ससुराल का हर वो वो आदमी अपना दुश्मन लगता है जो उसे कोई अच्छी बात सिखाता है ! ऐसी लड़कियां जब समझ जाती हैं की ससुराल में बिना काम किये गुजारा नहीं है और ना ही कोई काम वाली ढंग की नौकरानी भी मिल रही तो वो ससुराल से जल्द से जल्द मुक्ति पाने के लिए तरह तरह की खुरापाती साजिश रचने से भी बाज नहीं आती हैं !

कुछ पति समझदार होते हैं इसलिए वो अपनी पत्नी की चालबाजियों को तुरंत समझ जाते हैं जिससे उसे नजरअंदाज करते हैं या ऐसी कुत्सित बुद्धि वाली पत्नी से एकदम मानसिक दूरी बना लेते हैं, पर कुछ सतही दिमाग के पति देर सवेर अपनी पत्नी के बहकावे में आकर, अपने घर व अपने बूढ़े माँ बाप भाई बहन से अलग होकर कहीं दूसरी जगह जाकर रहने लगते हैं |

हालाँकि कई बार देखा गया है की पत्नी को लेकर अलग हो जाने वाले पति बहुत जल्द ही आर्थिक तंगी या मानसिक क्लेश झेलने लगते हैं और कुछ दिन बाद ही माफ़ी मांगकर वापस अपने घर में आ जाते हैं, लेकिन वापस आने पर दुबारा वो सम्मान और प्रेम नहीं मिलता है जो पहले मिला करता था ! इसलिए अलग होने से पहले 100 बार सोचना चाहिए !

हालाँकि इस कलियुग कुछ ऐसे भी उदाहरण देखने को मिलते है जब किसी स्वार्थी मौकापरस्त लड़के की शादी किसी ऐसी स्वार्थी लड़की से हो जाती है जो लड़के से ज्यादा पढ़ी लिखी या धनी या सुन्दर होती है तो वह लड़का अपनी पत्नी के कामचोर झगडालू स्वभाव की होने के बावजूद भी इस कदर अपनी पत्नी का पिछलग्गू हो जाता है कि वो अपनी पत्नी को अधिक से अधिक खुश करने के लिए या तो खुद ही अपने माँ बाप का घर छोडकर, पत्नी के साथ कहीं दूसरी जगह किराए पर रहने लगता है या नौकरी बिजनेस के नाम पर अपनी पत्नी को लेकर किसी दूसरे शहर निकल लेता है या अपने ही माँ बाप को अपनी बीवी के हाथों इतना मेंटली टॉर्चर भी करवा सकता है कि माँ बाप खिन्न होकर अपना ही घर छोडकर कहीं और शिफ्ट हो जाते हैं पर यह शातिर कलियुगी लड़का साथ ही इस बात का भी ध्यान रखता है कि कोई रिश्तेदार कभी उस लड़के की अपने माता पिता के प्रति की गयी दगाबाजी पर उंगली ना उठाने पाए इसलिए वो लड़का खुद ही पूरी रिश्तेदारी में अपने माँ बाप पर ही मनगढ़ंत आरोप लगाने लगता है कि उसके माँ बाप पुरानी दकियानूसी मानसिकता के हैं, शादी के बाद से ही उनकी नजर मेरे प्रति बदल चुकी है, अब उनमे वो पहले जैसा प्यार मेरे लिए नहीं रहा, बेवजह ही वे हमेशा मेरी पत्नी के पीछे पड़े रहतें हैं, उन्हें तो इतनी अच्छी बहू की कोई कद्र ही नहीं हैं आदि आदि !

खैर ऐसे अहसान फरामोश लड़कों के बारे में बात ही करना व्यर्थ है क्योंकि जो अपने को पैदा करने वाले माँ बाप का सगा ना हो सका, वो क्या कभी किसी दूसरे (चाहे वो बीवी ही क्यों ना हो) का निःस्वार्थ रूप से सगा हो पायेगा | ऐसे लड़के का जब तक उसकी बीवी से विशेष स्वार्थपूर्ती होती रहती है, चाहे वो बीवी के मायके से मिलने वाली चल संपत्ति (धन आदि) के रूप में मदद हो या अचल संपत्ति (मकान, जमीन आदि) के रूप में मदद हो तभी तक वो लड़का अपनी बीवी का विशेष ध्यान रखता है पर जैसे ही मदद की संभावना ख़त्म हो जाती है वैसे ही बीवी भी उसके लिए उसके माँ बाप के समान यूज़लेस हो जाती है !

कुल मिलाकर, अंततः निष्कर्ष यही है कि किसी सभ्रांत समाज में, लड़का हो या लडकी, जब तक उसकी शादी ना हुई हो तब तक तो उसका आराम मौज मस्ती ऐय्याशी उसका परिवार व उसका समाज बर्दाश्त कर लेता है, पर जैसे ही उसकी शादी हो जाती है उसकी कामचोरी की आदत की चारो ओर निश्चित ही निन्दा होने लगती है !

और यह सही भी है क्योंकि भगवान ने हमें शरीर दी है जम कर मेहनत करने के लिए, ना कि यार दोस्तों के साथ बैठकर निरर्थक गपशप करने के लिए !

हमारे अनन्त वर्ष पुराने सनातन धर्म में नारी को इसलिए पुरुषों से ज्यादा महान कहा गया है क्योंकि नारी, शक्ति स्वरूपा है और चूंकि शक्ति अपने में अस्थिर होती है इसलिए उसे कोई पुरुष धारण करता है जिससे पुरुष शक्तिमान बन पाता है !

यह गूढ़ प्रकिया यह भी साबित करती है कि पुरुष खुद कुछ भी नहीं है अगर वो शक्ति का साथ ना पाए तो !

नारी और पुरुष अपने अंदर अपने मूलभूत मानवीय गुणों का ह्रास ना होने दें तभी एक परिवार सुखी रह पायेगा अन्यथा नहीं !

और बहुत गम्भीरता से समझने की जरूरत है कि एक सुखी देश का निर्माण, बिना सुखी परिवारों के सम्भव नही हैं !

इसलिए किसी देश की सबसे छोटी इकाई अर्थात परिवार को कैसे बिना किसी लड़ाई, झगड़े, कलह आदि के, एकदम सुखपूर्वक, सतत उन्नति के मार्ग पर बढ़ाया जा सके, इस कला को भी भारत सरकार को हर शिक्षण संस्थान में अनिवार्य रूप पढ़ाना शुरू कर देना चाहिए !

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