हर तरह का सुप्रियारिटी काम्प्लेक्स सिर्फ तरक्की में बाधक

opआगे बढ़ने के लिए हीन भावना या भय की भावना का भी थोड़ा बहुत होना जरूरी होता है क्योंकि ज्यादातर स्थितियों में हीन या भय की भावना की बेचैनी ही मानव के आलस्य के स्वभाव पर हावी होकर, उसे आगे बढ़ने के लिए मजबूर करती है !

बहुत ज्यादा निश्चिन्तता का भाव आदमी को कड़ी मेहनत करने से रोकता है और बिना कड़ी मेहनत के किसी भी क्षेत्र में टिकाऊ बड़ी सफलता मिलना असम्भव है !

आपको अपने आस पास रिश्तेदार मित्रों में बहुत से ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनकी बुद्धिमानी की एक जमाने में उनके परचितों में बड़ी प्रसिद्धि थी और उन्हें खुद भी इस बात का बहुत गुरुर था की वो बहुत बुद्धिमान हैं पर उनकी बुद्धिमानी उनके लिए पूरी तरह से व्यर्थ साबित होती है क्योंकि वो अपनी लाख बुद्धिमानी के बाद भी जिन्दगी में बड़ी बड़ी बातें करने के अलावा कुछ विशेष कर नहीं पाये !

कारण बस एक ही है की इस दुनिया में भगवान् किसी का घमण्ड लम्बे समय तक चलने नहीं देते !

बहुत बारीक अन्तर है कॉन्फिडेंस और सुप्रियारिटी काम्प्लेक्स में, ठीक उसी तरह जैसे स्वाभिमान और अभिमान में !

कॉन्फिडेंस होना चाहिए लेकिन सुप्रियारिटी काम्प्लेक्स नहीं !

भगवान् जिन्हें प्यार करते हैं उन्हें बार बार अपनी बिना आवाज की लाठी से मार कर (भाग्य की मार) गलत मार्ग पर ज्यादा आगे बढ़ने से रोकते हैं पर ये इन्सान का गजब का जिद्दीपन है कि समझने को तैयार ही नहीं !

ये भी देखा गया है कि जिसने जिंदगी भर अपने आप को बहुत बुद्धिमान और दूसरों को मूर्ख समझा भगवान् ने उसकी सन्तान को ही हल्के दिमाग का बना दिया !

ऐसे भी लोग हैं दुनिया में जो दूसरों की हर बात में खी खी हंसकर या गम्भीरता वाले तरीके से मजाक उड़ाने की कोशिश करते हैं ! इन लोगों को भगवान् कुछ साल बाद ऐसी अपमान जनक स्थिति में पहुंचा देते हैं की वो दूसरों का मजाक उड़ाना तो दूर, दूसरों से नजर मिलाने में भी हिचकतें हैं !

जो लड़के अत्यधिक लाड प्यार की वजह से घर परिवार में राजा बने घूमते हैं और घर की औरतों, छोटे बच्चों पर धौंस जमाते फिरते हैं, वही लड़के जब पैसा कमाने के लिए फील्ड में उतरते हैं तो क्रूर दुनिया उनके राजा के सपने को तोड़कर उन्हें अति साधारण आदमी की तरह ट्रीट करती हैं !

जो लोग पहले बोलने में बहुत उजड्ड, बद्तमीज और उग्र हुआ करते थे, उन्हें पैसा कमाने के लिए अब अक्सर अपने मुंह में मिश्री घोल कर चाटुकारिता की जबान में अपने बॉस से बोलना पड़ रहा है !

जो अपने आप को बहुत दबंग बनते हैं और अपनी व्यर्थ की दबंगई दिखाकर दूसरों को अपने कण्ट्रोल में रखने की कोशिश करते हैं, उन्हें या तो ऐसे झंझट में फंसते देखा गया है की उनकी दबंगई ही उनके लिए मुसीबतों का कुंआ खोद देती है या उनकी संतान ही इतनी बद्तमीज निकल जाती है कि दूसरों के सामने बार बार उनको ही बेइज्जत करती है !

जो लोग दूसरों के संतानों की नौकरी या रोजगार पर बार बार फब्तियां कसते हैं की बहुत छोटी नौकरी है या बहुत कम तनख्वाह है आदि आदि, उनके खुद के लड़के एकदम नालायक और नाकारा निकल जाते हैं !

जिन्होंने अपने लड़कों के भविष्य के लिए अपने परिवार, खानदान के अन्य लोगों से सम्बन्धों में दूरी बना ली, अब वही लड़के उनसे दूरी बना कर बैठे हैं !

हमारे शास्त्र कहते हैं की जो महिला अपनी निरीह सास ससुर से लड़ झगड़ कर उन्हें धमकाकर अपनी धौंस में रखना चाहती है वो इस जन्म में तो भोगेगी ही साथ ही अगले जन्म में निश्चित काटने वाली कुतिया बनती हैं !

हर समय अपने आप को फर्जी हाई फाई दिखा कर किसी से सीधे मुंह बात ना करने वाले लोग जल्द ही ऐसी स्थिति में भी घिर जाते हैं की उन्हें बार बार सबका हाथ पैर जोड़कर मदद मांगनी पड़ती है !

ऐसे लोग जो मुंह पर तो सबसे प्रेम से बात करें पर पीठ पीछे खूब बुराई करते हों, वे हमारे शास्त्रों के अनुसार उस घड़े के समान हैं जिनके मुंह पर तो दूध भरा है पर अन्दर विष ! ऐसे लोगों का कोई भी दिल से सगा नहीं होता है और मुसीबत पड़ने पर वे सहायता पाने के लिए तरसते हैं !

पर जिन लोगों के मुंह में तेज़ाब भरा हो मतलब जो मुंह पर और पीठ पीछे भी सिर्फ दूसरों से बिना मतलब कड़वा बोलें तो उनके पास सिर्फ वही रह सकता है जिसकी कोई विशेष मजबूरी हो या स्वार्थ ! ऐसे लोग जब बीमार पड़ते हैं तो कोई झाँकने भी नहीं आता की वो जी रहें की मर गएँ !

ईश्वर मेहरबान हो तो आदमी किसी घटना से झटका खाकर चेत जाता है और अपने स्वभाव में अपेक्षित सुधार लाता है पर इस कलियुग में ज्यादातर स्थितियों में दुर्भावना से ग्रसित लोगों का हाल उसी बन्दर की तरह होता है जिसने एक परोपकारी चिड़िया का घोसला तोड़ दिया था क्योंकि उस चिड़िया ने उस बन्दर को बारिश में भीगने से बचाने के लिए अपने घोसले के नीचे शरण दी थी तथा बन्दर को दुबारा बारिश से भीगने से बचने के लिए खुद का घोसला बनाने की नेक सलाह दे डाली थी !

यही बुजुर्गों का सर्वमान्य सुझाव है की अपनी इस छोटी सी जिंदगी में किस बात का घमण्ड !

ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री कृष्ण ने नन्द बाबा से कहा है कि मानव जीवन, पत्ते की नोक पर टिकी पानी की बूँद की तरह है जो ना जाने कब गिर जाय पता भी नहीं चलता है !

आत्मा भी परमात्मा की तरह अविनाशी है इसलिए हर एक आत्मा अब तक अनन्त शरीर धारण कर चुकी हैं और आगे भी कई शरीर धारण करेगी इसलिए यह जानते हुए भी जीवन की हर माया को एकदम सच समझ लेना और उसी में सुख दुःख भोगना ही मूर्खता है !

ये जो भव सागर अर्थात भावनाओं का सागर है, इसमें हमारे अन्दर की भावनाएं (काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया, मत्सर आदि) ही हमारा परिणाम तय करती हैं इसलिए अपने मन की भावनाओं को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए !

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