हरिऔध् ग्रंथावली – खंड : 4 – भूमिका (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

download (4)ग्रंथावली के प्रस्तुत (चौथे) खंड में ‘हरिऔधा’ के खड़ीबोली के स्फुट काव्य को शामिल किया गया है। इसके पहले तीन खंड भी कविता से सम्बध्द हैं, जिसमें ‘हरिऔधा’ के ब्रजभाषा-काव्य, खड़ीबोली के महाकाव्य और खड़ीबोली बोलचाल-काव्य को हम देख चुके हैं। इनके अलावा खड़ीबोली से सम्बन्धिात जो भी उनके काव्य-संग्रह हैं, उनकी कविताओं को यहाँ सिलसिलेवार तरीके से रखने की कोशिश की गयी है। इन कविताओं का विषयवैविधय ही नहीं; भाषिक एवं शिल्पगत वैविधय भी कविता-प्रेमी पाठकों को विस्मयविमुग्धा करनेवाला है। बीसवीं सदी के आरम्भ के साथ हरिऔधा-काव्य में खड़ीबोली माधयम के रूप में सामने आती है। 1900ई. में काशी नागरीप्रचारिणी सभा के भवन के प्रवेश के अवसर पर उन्होंने ‘प्रेमपुष्पोपहार’ नामक काव्य छपवाया और उसे वितरित किया। इसे खड़ीबोली का उनका पहला काव्य कहा जा सकता है। इसका ढर्रा भी बोलचाल काव्य-सा है और उर्दू छन्दों के मेल में है। उसमें ऐसी प्रसन्न भाषा के दर्शन हो जाते हैं-

बायु बहती है बरसती है घटा।

दस दिसा में फैलता है तेज तम ।

है दिखाता चाँद भी अपनी छटा।

ओस से धारती हुआ करती है नम ।

खड़ीबोली की इस छटा के साथ उनकी मुहावरे के साँचे में काव्य को ढालने की प्रवृत्तिा के दर्शन भी इस काव्य में हो जाते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ‘इतिहास’ में इसकी चर्चा करते हुए कहा है, ‘खड़ीबोली के लिए उन्होंने पहले उर्दू के छन्दों और ठेठ बोली को उपयुक्त समझा, क्योंकि उर्दू के छन्दों में खड़ीबोली अच्छी तरह मँज चुकी थी।’ इसके बाद उनके’काव्योपबन’ (1907) में कुछेक खड़ीबोली कविता के दर्शन होते हैं। पाठक उसे खंड-1 में देख चुके हैं। स्फुट कविताओं की दृष्टि से उनका कायदे से पहला उल्लेखनीय काव्य ‘पद्य-प्रमोद’ (1920) है। इसमें उनकी 1900 के आस-पास से लेकर 1915-16 तक की कविताएँ शामिल हैं। इसमें कुछ ऐतिहासिक-पौराण्0श्निाक चरित्राों के काव्यात्मक आख्यान के साथ राष्ट्रप्रेम की ही नहीं अन्य विषयों से सम्बन्धिात कविताएँ शामिल हैं। 1924ई. में उनके ‘पद्य-प्रसून’ नामक काव्य का प्रकाशन होता है; यद्यपि इसमें1920-21 तक की रचनाएँ ही शामिल हैं। इसका स्वरूप प्रबन्धाात्मक न होते हुए भी इसकी प्रकृति थोड़ी-बहुत मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत-भारती’ से मिलती है। जातीय हित-चिन्ता ही यहाँ प्रबल दिखाई पड़ती है। इसमें ‘बाल-विलास’ शीर्षक एक उपखंड है। इसमें विभिन्न शीर्षकों के तहत इक्कीस कविताएँ शामिल की गयी हैं। इनमें कुछ कविताएँ ‘काव्योपवन’ में शामिल हैं। इसकी अन्य कविताएँ भी ‘बाल-कवितावली’ में समाविष्ट हैं; इसलिए उन्हें इस संग्रह से हटा दिया गया है। कदाचित् यही खंड स्वतन्त्रा रूप से ‘बाल-विलास’ नाम से 1921-22 में प्रकाशित हुआ था। जो अब अनुपलब्धा है।

खंड में शामिल उनकी स्फुट कविताओं के संग्रह ‘फूल-पत्तो’ (1934) की कविताएँ उनकी बोलचाल की भाषा में लिखी कविताओं का ही बढ़ाव हैं। इसमें ‘होली का हौआ’ खंड के अन्तर्गत पाँच कविताएँ होली से सम्बन्धिात हैं, जो उनके ‘पवित्रा पर्व’नामक काव्य-संग्रह में शामिल कर ली गयी हैं। इसलिए उन्हें यहाँ बने रहने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। इसकी कवि-लिखित भूमिका आगे चलकर ‘आधाुनिक कवि (5)’ की भूमिका की शक्ल में आती है। हाँ, थोड़ा हेर-फेर अवश्य है।

‘कल्पलता’ (1938) उनके स्फुट काव्यों का अन्य महत्तवपूर्ण संग्रह है। इसकी ब्रजभाषा कविताओं को सम्बध्द खंड में डाल दिया गया है। ‘विजयिनी विजया’, ‘दीपमालिका-दीप्ति’, ‘फाग-राग’ नामक खंड की इसकी कविताएँ ‘पवित्रा पर्व’ में तथा ‘बाल-विलास’ खंड की कविताएँ ‘बाल-कवितावली’ में समाहित कर ली गयी हैं। अतएव उन्हें भी यहाँ बनाये रखना उचित प्रतीत न हुआ।

‘पवित्रा पर्व’ (1941) उनकी ऐसी कविताओं का संग्रह है, जो पर्व-त्योहार से सम्बन्धिात हैं, जिन्हें वे समय-समय पर लिखते ही नहीं; विभिन्न संग्रहों में छपवाते भी रहते थे। ‘पवित्रा पर्व’ की कविताओं का दूसरे संग्रह की पर्व सम्बन्धाी कविताओं से मिलान कर दूसरे संग्रहों से इन कविताओं को हटा दिया गया है।

बाल-साहित्य की सृष्टि की ओर हमारे आरम्भिक लेखकों-कवियों का धयान गया था। हरिऔधा-काव्य की ऊपर की चर्चा से स्पष्ट है कि हरिऔधा लगातार ऐसी कविताएँ लिखते रहे हैं। ‘बाल-विलास’ के अलावा ‘खेल-तमाशा’ और ‘चाँद-सितारे’ नाम से भी उनकी बाल-कविताओं का प्रकाश हुआ। इन तीनों संग्रहों की सभी कविताएँ 1939 में प्रकाशित उनकी ‘बाल-कवितावली’ नामक शिशु-काव्य में शामिल कर ली गयी हैं। उक्त संग्रहों की कविताओं के अतिरिक्त करीब दस-पन्द्रह कविताएँ ‘बाल-कवितावली’ में ऐसी भी शामिल हैं जो उक्त तीनों संग्रहों में शामिल नहीं हैं। सम्भव है, ये कविताएँ उनके अनुपलब्धा काव्य ‘अच्छे-अच्छे गीत’ (1937) और ‘ग्रामगीत’ से भी ली गयी हों। ‘बाल-कवितावली’ की ‘भूमिका’ में बेनीमाधाव शर्माजी का कहना उपयुक्त प्रतीत होता है कि बालक सम्बन्धिानी ‘अधिाकांश कविताओं का संग्रह यह ग्रंथ है।’ ‘खेल-तमाशा’ और ‘चाँद-सितारे’ की कविताओं तथा’बाल-कवितावली’ की कविताओं में यत्रा-तत्रा कुछ पाठ-भेद दिखाई पड़ते हैं। पाठ-भेद जहाँ अधिाक हैं, ऐसी कविताओं को ‘बाल-कवितावली’ का परिशिष्ट बनाकर उसमें शामिल कर दिया गया है। जैसे-‘खेल’, ‘चुहिया’, भौंरा’, ‘आम’ शीर्षक कविताएँ। कहीं-कहीं एक ही कविता दो स्थलों पर भिन्न शीर्षकों से पाई गयी है। इसका समुचित मिलान कर लिया गया है और पुनरावृत्तिा से भरसक बचा गया है।

इस क्रम में हरिऔधा के दोहों का विशिष्ट महत्तव है। ‘दिव्य दोहावली’ और ‘हरिऔधा सतसई’ उनके दोहों के संग्रह हैं। आगे चलकर ‘हरिऔधा दोहावली’ (1946) का प्रकाशन होता है। इसमें कुल 1040 दोहे शामिल हैं। जाहिर है कि इसी से ‘हरिऔधा सतसई’ (1947) का निर्माण हुआ है-कदाचित् ‘सतसई’ की परम्परा के आग्रह के कारण। ‘दिव्य दोहावली’ में अंग-प्रत्यंग को लेकर बनाए गये सुन्दर दोहे शामिल हैं। इसके अलावा ‘विविधा विषय’ के अन्तर्गत लिखे दोहों की संख्या भी अच्छी-खासी है। इनमें जातीय प्रेम के साथ अन्य अनेक विषय शामिल हैं। वस्तुत: ‘हरिऔधा दोहावली’ उनकी ‘दिव्य दोहावली’ नाम की पुस्तक का ही रूपान्तरण प्रतीत होता है।

दोहा हिन्दी का लोकप्रिय छन्द रहा है। स्वभावत: ‘हरिऔधा’ को यह आकृष्ट करता रहा है। ‘पद्य-प्रसून’ एवं ‘मर्मस्पर्श’ में उनके दोहे मिलते हैं। इनके अधिाकांश दोहे ‘हरिऔधा दोहावली’ में शामिल हैं। अत: उन दोहों को उक्त संग्रहों से आवृत्तिा-भय से हटा दिया गया है। अलबत्ता, ‘पद्य-प्रसून’ के जो ‘दिव्य दोहे’ ‘हरिऔधा दोहावली’ में नहीं पाए गये, उन्हें ‘हरिऔधा दोहावली’ का परिशिष्ट बनाकर शामिल कर दिया गया है और उन्हें ‘पद्य-प्रसून’ से हटा दिया गया है।

खड़ीबोली के ज्ञात मगर अनुपलब्धा कविता-पुस्तकों की चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं। यहाँ उन्हें हम पुन: स्पष्टतया उल्लिखित करते हुए आशा करते हैं कि उन्हें लग्नशील खोजी या शोधाकर्ता आज-न-कल अवश्य ढूँढ़ लेंगे। अनुपलब्धा काव्य-पुस्तकों में ‘उपहार’ (1928) उनकी राजभक्ति सम्बन्धाी कविताओं का संग्रह है, जिसकी ‘स्वर्गारोहण’ शीर्षक कविता महारानी विक्टोरिया को लेकर लिखी गयी है और जो ‘काव्योपबन’ में शामिल है। ‘अच्छे-अच्छे गीत’ (1938) और ‘ग्रामगीत’ (1938) के बारे में अनुमान किया जा सकता है कि इनमें हरिऔधा के या तो पहले के गीत संकलित होंगे या फिर उनके नये गीतों को इसमें शामिल किया गया होगा। ‘दिव्य दोहावली’ (1946) और ‘हरिऔधा सतसई’ (1947) निश्चय ही हरिऔधा दोहावली (1946)में समाविष्ट से लगते हैं।

‘हरिऔधा’ की खड़ीबोली की ये कविताएँ पाठकों को आकृष्ट करेंगी, ऐसी आशा करना शायद गलत न हो। इति।

– तरुण कुमार
अनुक्रम

प्रेमपुष्पोपहार 11

प्रेमपुष्पोपहार 13

पद्य-प्रमोद 25

प्रभु-प्रताप 27

पद्य-प्रसून 155

पावन प्रसंग 157

सुशिक्षा-सोपान 200

जीवनी-धारा 211

जातीयता-ज्योति 245

विविधा विषय 268

फूल-पत्तो 289

भेद भरी बातें 306

कल्पलता 385

विभुता-विभूति 387

पवित्रा पर्व 489

पर्व और उत्सव 491

विजया 495

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