विश्व के जागृत हिन्दू मंदिर और तीर्थ स्थल -5
यहाँ भूत-प्रेतादि उपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। तंत्र-मंत्रादि, उपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहां पर बिना किसी दवा-दारू और तंत्र मंत्रादि से स्वस्थ होकर लौटते हैं।
राजस्थान के वर्तमान करौली जिला में स्थित बाला जी के इस मंदिर का गर्भगृह और पिछली दीवारें कभी सवाई माधोपुर जिले में तथा मुख्य द्वार और मंदिर का आधा भाग जयुपर जिले के अंतर्गत पड़ता था।
मंदिर आगरा/जयपुर राष्टीय राजमार्ग पर भरतपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूरी पर और जयपुर से 100 किलोमीटर पहले बायें हांथ पर लगभग तीन किलोमीटर अंदर प्रतिष्ठित है।
बांदीकुई रेलवे स्टेशन से यह स्थान लगभग 40 किमी. है। तथा सड़क द्वारा यह जयपुर या भरतपुर या अलवर की तरफ से आराम से जाया जा सकता है।
बालाजी का मंदिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें घाटे पहाड़ों वाले बाबा जी भी कहा जाता है। इस मंदिर में बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि वह स्वयंभू है। इस मूर्ति के सीने के बाई ओर एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है, जिससे पवित्र जल की धारा निरन्तर बह रही है।
यह जल बाला जी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है, जिसे भक्तजन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं। यह मूर्ति लगभग 1000 वर्ष प्राचीन बताई जाती है, किन्तु मंदिर का निर्माण पिछली सदी में ही कराया गया।
बाला जी महाराज के अलावा यहां श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान भैरव की मूर्तियां भी हैं। प्रेतराज सरकार यहां दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं, वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर।
दुःखी -कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुंचकर तीनों देवगण को प्रसाद चढ़ाना पड़ता है। बाला जी को लड्डू, प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान भैरव को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस प्रसाद में से दो लड्डू, रोगी को खिलाए जाते हैं, शेष प्रसाद पशुओं को डाल दिया जाता है। भूत-प्रेतादि स्वतः ही बाला जी महाराज के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं।
बाला जी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। उनकी आरती, चालीसा, कीर्तन, भजन भक्ति-भाव से किए जाते हैं।
बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। पृथक रूप से उनकी आराधना-उपासना कहीं नहीं की जाती, न ही उनका कहीं कोई मंदिर है। वेद, पुराण, धर्म ग्रन्थ आदि में कहीं भी प्रेतराज सरकार का उल्लेख नहीं मिलता। प्रेतराज श्रद्धा और भावना के देवता हैं। बाला जी के मंदिर और उनके भक्तों में प्रेतराज सरकार की बहुत अधिक मान्यता है।
कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव जी भगवान शिव के अवतार हैं। भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही वह शीघ्र प्रसन्न हो उठते हैं। भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशुल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रा का पांचवां कटा शीश रहता है। भैरव औघड़ बाबा हैं। शंकर भगवान के समान वह नग्न-बदन रहते हैं, किन्तु कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं।
आप शिव जी के समान ही भस्म लपेटते हैं, किन्तु आपकी मूर्तियों पर सिन्दूर का चोला चढाया जाता है। चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर आपका चोला तैयार किया जाता है। भैरव देव जी बाला जी महाराज की सेना के कोतवाल माने जाते हैं, इसलिए इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है।
कुछ लोगों का मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही मेंहदीपुर बाला जी जाना चाहिए परन्तु यह बिल्कुल गलत है। देश-विदेश से करोड़ों भक्त नित्यप्रति बालाजी के दरबार में मात्र उनके दर्शन एवं आर्शीवाद प्राप्त करने के लिऐ उपस्थित होते हैं, जबकि उन्हें कोई रोग अथवा कष्ट नहीं होता।
खजराना स्थित गणेश मंदिर काफी प्रचलित धार्मिक स्थल है। यहां दूर-दूर से अपनी आस्था के अनुसार लोग दर्शन करने आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। इंदौर में यह दूसरा गणेश मंदिर है जहां ऐसा माना जाता है कि अगर कोई भक्त मन्नत मांगे तो वह पूरी होती है।
वैसे तो खजराना मंदिर में हर रोज पूजा आरती होती है लेकिन बुधवार के दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल होकर गजानन का आर्शीवाद लेते हैं।
मंदिर का परिसर काफी भव्य और मनोहारी है, परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त अन्य 33 छोटे-बड़े मंदिर और है । मुख्य मंदिर में गणेशजी की प्राचीन मूर्ति है इसके साथ-साथ शिव और दुर्गा माँ की मूर्ति है। इन 33 मंदिरों में अनेक देवी देवताओ का निवास है।
मंदिर परिसर में ही पीपल का एक प्राचीन वृक्ष है इसे भी मनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है |
बृहदेश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक राजाराज चोल १ ने करवाया था।
उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है। यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। इसके तेरह मंजिले भवन की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है।
यह कला की प्रत्येक शाखा – वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का भंडार है। यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है।
जिस पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानत: उसका भार 2200 मन (80 टन) है और यह एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है।
मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम् के भीतर एक चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है।
भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है ।
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