लोककथा – अपना-पराया (लेखक – हरिशंकर परसाई)
आप किस स्कूल में शिक्षक हैं?’
‘मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्यों, कुछ काम है क्या?’
‘हाँ, मेरे लड़के को स्कूल में भरती करना है।’
‘तो हमारे स्कूल में ही भरती करा दीजिए।’
‘पढ़ाई-वढ़ाई कैसी है?
‘नंबर वन! बहुत अच्छे शिक्षक हैं। बहुत अच्छा वातावरण है। बहुत अच्छा स्कूल है।’
‘आपका बच्चा भी वहाँ पढ़ता होगा?’
‘जी नहीं, मेरा बच्चा तो ‘आदर्श विद्यालय’ में पढ़ता है।’
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(आवश्यक सूचना – “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट में प्रकाशित सभी जानकारियों का उद्देश्य, लुप्त होते हुए दुर्लभ ज्ञान के विभिन्न पहलुओं का जनकल्याण हेतु अधिक से अधिक आम जनमानस में प्रचार व प्रसार करना मात्र है ! अतः “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान अपने सभी पाठकों से निवेदन करता है कि इस वेबसाइट में प्रकाशित किसी भी यौगिक, आयुर्वेदिक, एक्यूप्रेशर तथा अन्य किसी भी प्रकार के उपायों व जानकारियों को किसी भी प्रकार से प्रयोग में लाने से पहले किसी योग्य चिकित्सक, योगाचार्य, एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट तथा अन्य सम्बन्धित विषयों के एक्सपर्ट्स से परामर्श अवश्य ले लें क्योंकि हर मानव की शारीरिक सरंचना व परिस्थितियां अलग - अलग हो सकतीं हैं)