पत्र – पत्नी के नाम (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)
कल तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ। तुमने जो कुछ लिखा है, वह बिल्कुल ठीक है। माफी माँगने से अच्छा यह है कि मौत हो जाये। तुम विश्वास रखो कि मैं बेइज्ज्ती का काम नहीं करूँगा। तुमने जो साहस दिलाया उसमें मेरे जी को बहुत बल मिला। मुझे तुम्हारी और बच्चों की बहुत चिंता है। परंतु तुम्हारा हृदय कितना अच्छा और ऊँचा है, उससे मेरे मन को बहुत संतोष हो रहा है। ईश्वर तुम्हारे मन को दृढ़ रखे। अगर तुम दृढ़ रहोगी तो मेरा मन कभी न डिगेगा। मैं तुमसे कोई बात छिपाना नहीं चाहता।
मैं खुशी से तैयार हूँ। जो मुसीबतें आयेंगी मैं उन्हें हँसते-हँसते झेल लूँगा। लेकिन मेरी हिम्मत को कायम रखने के लिए यह आवश्यक है कि तुम अपना जी न गिरने दो। हाँ, माखनलालजी के साथ मैं उनके घर जा रहा हूँ। होली वहीं करूँगा। होली के बाद दूज या तीज को मैं कानपुर पहुँचूँगा और उसी दिन दोपहर तक मैं अपने को पुलिस के हाथों में दूँगा। मैं सीधे ही पुलिस के हाथों में अपने को दे देता, मगर एक बार तुम लोगों को देख लेना धर्म समझता हूँ। देखो, ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखो। आज कष्ट के दिन सिर पर हैं। कल सुख के दिन भी आवेंगे। धर्म के लिए सहे जाने वाले कष्ट के दिनों के बाद जो दिन आवेंगे, वे परमात्मा की कृपा से अच्छे सुख के दिन होंगे।
हरि, कृष्ण, विमला और ओंकार को प्यार।
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