दुष्टता को लगातार सहते जाना धर्म नहीं पाप है
अहिंसा परमो धर्मः , अधूरा वाक्य है जो गांधीजी के द्वारा फैलाया गया था ! पूरा वाक्य है, – अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च !
जिसका मतलब होता है कि, धर्म अर्थात न्याय और सत्य के लिए की गयी हिंसा भी उसी तरह धर्म अर्थात सही है जैसे की अहिंसा का धर्म !
अगर सिर्फ अहिंसा से काम चलता तो क्या जरूरत थी निराकार भगवान् को कभी श्री राम बनकर, कभी श्री कृष्ण बनकर, श्री काली बनकर या कभी श्री भैरव बनकर इतने बड़े पैमाने पर हिंसा करने की !
कुछ इतने प्रचण्ड किस्म के दुष्ट होते हैं जिन पर किसी चीज का डर भी काम नहीं करता तो ऐसे लोगो को जेल की चार दीवारी में बन्द करना या अन्य कोई कड़ा दंड देना ही विकल्प बचता है !
ठीक यही स्थिति आज के युग में उन अत्याचारी आतंकवादियों के साथ है जो ना जाने किस क्रूर मानसिकता के तहत निर्दोष लोगों की हत्या कर देते हैं ! किसी भी घर के किसी भी सदस्य की मौत अचानक से हो जाय तो उसके परिवार वालों को उस सदमें से निकलने में कई साल तक लग सकते हैं या यदि कोई निर्दोष व्यक्ति, बर्बर आतंकवादियों के द्वारा किये गए बम धमाके में अपाहिज हो जाय तो उसकी आगे की जिन्दगी सिर्फ दूसरों पर बोझ बनकर बीतती है !
इसलिए हमारे आदरणीय प्रधान मंत्री मोदी जी समेत अन्य कुछ देशों के समझदार राजनायिकों का यह वचन एकदम सही है की आतंकवाद जैसे खतरनाक मुददे पर थोड़ा सा भी नरम पड़ना मतलब अपने देश की कानून व्यवस्था को बर्बाद होते देखना !
भगवान ने हर आदमी की जिन्दगी में चार उद्देश्य (लक्ष्य) दिए हैं और वो उद्देश्य हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष और इन चारों लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए चार तरह के कर्म बतायें हैं जिनका धर्म के रास्ते पर रहकर ही पालन करना चाहिए और इन कर्मों के नाम हैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कर्म !
कुछ नासमझ लोग इन्हें जाति समझते हैं जो कि नितान्त गलत है !
ब्राह्मण जाति नहीं कर्म होता है जिसका मतलब ये होता है की जीव (मानव) को मरते दम तक लगातार सत्य ज्ञान की खोज में लगे रहना चाहिए और साथ ही इस ज्ञान को दूसरों को बिना घमण्ड या चालाकी किये बांटना भी चाहिए !
क्षत्रिय कर्म का मतलब होता है की जहाँ भी, जो भी गलत हो रहा हो उसका बुद्धिमानी पूर्ण तरीके से विरोध करना चाहिए और विरोध करने के भी चार तरीके बताये गये हैं – साम, दाम, दंड और भेद ! साम का मतलब होता है गलत काम करने वाले को समझाना, दाम का मतलब है गलत काम करने वाले को गलत काम छोड़ने के लिए कोई लालच देना, दंड का मतलब होता है गलत काम करने वाले को सजा या कड़ी सजा देना और कुछ नीच लोग सजा देने पर भी नहीं सुधरते तो उनका भेद (राज या रहस्य) जानने का प्रयास करना चाहिए, यहाँ भेद का मतलब होता है ऐसी कमजोर नस जानना जिस पर चोट पड़ने पर गलत काम करने वाला आदमी बेचैन हो उठे और वो हर आदेश मानने को मजबूर हो जाय !
तो हर आदमी को अपनी जिंदगी में जब भी जरूरत पड़े, क्षत्रिय धर्म का पालन करने से पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि जिस समाज में दुष्टों को उनकी दुष्टता का दण्ड नहीं मिलता है, उस समाज का नाश निश्चित है ! सत्य ही ईश्वर है और अगर कोई सत्य के साथ है तो साक्षात् ईश्वर ही उसके साथ है तो फिर डर किस बात का !
वैश्य कर्म है, लगातार अपने धन और अन्न की पूंजी को बढ़ाना ! क्योंकि आपके पास जितना ज्यादा अन्न और धन होगा आप उतना ही ज्यादा दूसरे बेसहारों लोगों की सहायता कर पाएंगे ! और दूसरों के आंसू पोछने से बड़ी ईश्वर की पूजा दुनिया में कोई और नहीं है !
इसलिए अपने जीवन में खूब पैसा कमाइए पर दूसरों का हक़ मारकर कदापि नहीं !
शूद्र कर्म का मतलब है, अपने अहंकार का नाश ! मतलब कभी भी अपने आप को दूसरों से ऊपर नहीं समझना ! दूसरों की जितनी अधिक से अधिक सेवा हो सके उतनी अधिक से अधिक सेवा, सेवक (नौकर) भाव से करना चाहिये वो भी बिना कोई शर्म और आलस्य किये !
तो ये है ईश्वर का वास्तविक सन्देश अपने बच्चों अर्थात इंसानों के लिए जिसे अक्सर इन्सान समझने में गलती कर भटकना प्रारम्भ कर देता है और यदि समय रहते बुद्धि नहीं आई तो ये भटकाव कई जन्मों तक लम्बा खिंच सकता है !
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