गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 38 (चिकित्सा में सफलता)
श्री भूरेलाल जी वैद्य, हर्रई लिखते हैं कि पं. नर्मदाप्रसाद शास्त्री भदरस कानपुर के रहने वाले उद्ण्ट विद्यावान भाग्यवश हर्रई (जागीर) के राम मन्दिर में आकर पुजारी हो गये थे, ईश्वर कृपा से उनके पास आया जाया करता था। एक रोज ये प्रसन्न होकर बोले कि हम तुमको ब्राह्मण के नाते एक महामन्त्र बताते हैं, वे मन्त्र का एक-एक शब्द उच्चारण करते गये और मैं उन शब्दों को हृदयांकित करता गया, एक ही बार के बताने से मुझे याद हो गया, वे बहुत खुश हुए और बोले कि इस मन्त्र से बढ़कर संसार में कोई मन्त्र नहीं है, जों चाहोगे इसी में मिलेगा जब से मैंने इसे अपना इष्ट मानकर यहाँ वहाँ न भटककर नित्य नियम से जप करने लगा।
आज अरसा 34 साल का होता है, इस अवधि में अनेक झंझटें और बाधाएँ आई, परन्तु महामन्त्र की बदौलत आप ही पार होती गईं। कई बार आर्थिक संकट भी उपस्थित हुए अनायास मुझे देवी सहायता भी प्राप्त हुई, जब से मैंने गायत्री मन्त्र को अपनाया तब से मेरी बुद्घि में भी परिवर्तन होकर वैद्यक विद्या पर रुचि हुई। गुरु के प्रताप से थोडें ही समय में मेरी गिनती राजवैद्यों में हो गई और बड़े-बड़े लक्षाधीशों के घर आनाजाना हो गया, कठिन से कठिन रोगों में सफलता हुई। बगैर कुछ माँगे लोग हजारों की तादाद में रुपया देने लगे। इस दैवी सहायता से चार लड़कियों की व एक लड़के की शादी की। आर्थिक कष्टï इस तरह निवारण होते गये।
मतलब कहने का यह है कि जिस चीज की इच्छा हुई। वह पूर्ण इसी तरह जमीन जायदाद की भी समझिये। अब तो इतना कुछ हो गया है कि जो भी अच्छा- बुरा खुद के लिए होने वाला है, बस स्वप्न में आगाह हो जाता है, इसका भी मैं कई बार अनुभव कर चुका हूँ, आगन्तुक का रूपान्तर होकर स्वप्न होता है और दूसरे दिन वह सत्य हो जाता है, लेकिन स्वप्न की याददास्त पूरी-पूरी रहने से फल स्पष्ट हो जाता है, सत्य निष्ठां से जप किया करता हूँ और कोई साधना या अनुष्ठïन नहीं किया मुझे इसी में फलीभूत है। प्रेत बाधा या मानसिक बीमारियों में मंत्र पढ़ कर थोड़ा जल पिला देने से सेहत ठीक हो जाती है। खोजने से इष्ट की प्राप्ति होती है, ऐसी इस मंत्र की मेरी गाथा है।
सौजन्य- पं० श्रीराम शर्मा आचार्य वाड्ïमय- ११
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