गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 27 (मनोवांछित पति-पत्नी)

cropped-gayatribannerश्री कौशल किशोर माहेश्वरी, संभलपुर लिखते हैं कि हमारे बाबा महेश्वरी थे और दादी राबुत थीं। उनका गन्धर्व विवाह हुआ था। उनकी प्रेम गाथा को लिखकर अपने पूजनीय पूर्वजों की शान में कोई धृष्ठता करने की अपनी इच्छा नहीं है, पर जो तथ्य है, उसको इसलिए प्रकट करना पड़ता है कि उसके कारण उनकी कई पीढिय़ों को काफी परेशान और अपमानित होना पड़ा। हमारे पिताजी चार भाई और एक बहिन थे।

जातीय बहिष्कार के कारण उनमें से किसी का विवाह अच्छी तरह न हो सका। पितामह ने निराश होकर एक अपने जैसे ही दूसरे बहिष्कृत परिवार के  साथ कुछ साँठ-गाँठ की और अपनी लड़की उन लोगों को देकर उसके बदले मे उनके रिश्तेदार की लड़की बड़े लड़के के लिए विवाह ली। उन्हीं से मैं तथा मेरी दो बहिनें हुई। तीनों कुँवारे ही रहे। उनके विवाह के लिए किये हुए सभी प्रयत्न निष्फल रहे। पिताजी एक मिल में दरबान थे।

नौकरी तो थोड़ी थी, पर उन्हें बाहर की आमदनी अच्छी हो जाती थी, उन्होंने मुझें पढ़ाया-मैंने मैट्रिक पास कर ली। मेरे जन्मकाल से ही पिताजी को मेरी शादी की चिन्ता थी। वे सदा यही सोचा करते थे कि हम जाति बहिष्कृतों को कोई भला आदमी लड़की न देगा। लड़की के बदले में लड़के के विवाह की साँठ-गाँठ वे भी किया करते थे, केवल इसी एक उपाय पर उनकी आशा अवलम्बित थी। इस प्रकार की चर्चा जब घर में चलती तो मुझे बड़ा दु:ख होता।

बहिनों को किसी अच्छे घर में विवाहने के बदले उन्हें ऐसी जगह पटकना पड़ेगा जो हमारी तरह बहिष्कृत हों और जो बदले में लड़की देने के लिए तैयार हों। इन शर्तों के साथ अपना और बहिन का विवाह करना बड़ा ही बुरा लगता था। सोचता था कि यदि ईश्वर को हमारा सम्मान पूज्य जीवन स्वीकार नहीं तो हमें आजीवन कुँवारा ही क्यों न रहना चाहिए? पिताजी अपने ढंग से सोचते थे, मैं अपने ढंग से सोचता था, पर हम दोनों ही विवाह की समस्या से काफी परेशान थे।

मैट्रिक पास करने के बाद मैं बैंक में क्लर्क हो गया। दफ्तर के हैड क्लर्क बड़े ईश्वर भक्त थे, उन्हें गायत्री पर बड़ी श्रद्घा थी और वे गायत्री उपासना के लिए सदा दूसरों को प्रोत्साहन देते रहते थे। एक दिन उन्होंने मुझसे गायत्री की महिमा का वर्णन किया मैंने उनसे पूछा कि क्या गायत्री जप से लोगों के मन में हर वक्त घुसी रहने वाली चिन्ता दूर हो सकती है? उन्होंने जोरदार शब्दों में आश्वासन दिया और कहा कि आप आज के दिन से ही प्रयोग के रुप में उपसना करके देखें आपको स्वयं प्रकट हो जायगा कि किस प्रकार गायत्री द्वारा आत्मिक और सांसारिक सुख-शान्ति बढ़ती है।

मुझे उनकी बात पर विश्वास  हो गया और दूसरे दिन से ही उनकी बताई हुई विधि के अनुसार गायत्री जप करने लगा। दो तीन मास ही बीते होंगे कि हमारे दफ्तर के एक दूसरे बाबू ने मेरी शादी की चर्चा चलाई। उनकी बहिन ने उसी साल मैट्रिक पास किया था अत्यन्त रुपवती तथा गृह शिल्प, संगीत सिलाई आदि में निपुण थी। बाबू साहब वैसे तो अग्रवाल थे पर नवीन विचारों के कायल थे और वे जाति-पाति को ढकोसला समझते थे।

उन्होंने मुझसे प्रस्ताव किया कि महेश्वरी बाबू क्या आप अग्रवालों में अपनी शादी कर सकते हैं? मुझे मालूम था कि उनके पूछने का क्या मतलब है। मैंने उनके विचारों का समर्थन करते हुए जाति-पाति की निरर्थकता बताई। पिता जी के सहयोग से मेरी शादी हो गई। उस लड़की को पाकर हम लोगों को इतना आनन्द हुआ जिसकी कुछ सीमा नहीं। साथ ही उन्होंने एक हजार रुपया दहेज के रुप में हमें नकद भी दिया।

शादी हो जाने के बाद अग्रवाल बाबू के एक मित्र जो बी.ए. पास थे और उसी साल रेलवे में टिकट कलक्टर हुए थे। उनके साथ मेरी बहिन की शादी पक्की हो गई। विवाह बहुत सादगी के साथ हुआ वह लड़की बड़े सुख से चली गई। इसके एक वर्ष बाद दूसरी बहन की शादी जेलर साहब के पुत्र के साथ हो गई।

हम तीनों भाई-बहिनों की ऐसे अच्छे स्थानों से शादियाँ हुई और ऐसे अच्छे जोड़े मिले कि ऐसे सुयोग्य कहीं किन्हीं बिरले ही भाग्यवानों को मिलते हैं। हम तीनों अपने दाम्पत्य जीवनों से बहुत ही सुखी और संतुष्ट हैं। हमारी बैंक के हैडक्लर्क साहब अब कभी-कभी पूछते हैं- गायत्री के सम्बन्ध में तुम्हारा क्या अनुभव है? तो मैं उन्हें सदा यही उत्तर देता हूँ कि उस पर मेरी श्रद्घा आपसे कम नहीं है। हम तीनों भाई-बहिन नित्य नियम पूर्वक गायत्री का जप करते हैं।

सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार

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