गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 35 (गायत्री के निजी अनुभव)
श्री लक्ष्मीनारायण श्रीवास्तव वकील कनकुआ लिखते हैं कि एक वर्ष के पहले मुझे साढ़े साती आया था । जिस काम में हाथ डालता था, उसी में हानि दृष्टिïगोचर होती थी । हानि पर हानि से में बहुत विचलित हो उठा – अत: शान्ति पूर्वक एक रात्रि को विचार किया और दूसरे दिन से गायत्री पूजन व अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिया । दैनिक साधन के साथ-साथ पूजन ध्यान व जप का कार्यक्रम चलता रहा ।
दैनिक कार्यक्रम में ब्रम्ह मुहर्त में उठा कर नित्य कर्म से निश्चिन्त होकर स्नान आदि से निवृत्त होकर अनुष्ठान पर बैठ जाता था। रेशम की धोती पीली रंगी हुई ,कमीज व चादर रेशम की पीली रंगी हुई थी। जिस कमरे में साधन करता था उसको पीले रंग दिया था। बिछाने ,ओढऩे के कपड़े भी पीला रंग लिया था, भोजन में भी हल्दी का अधिक प्रयोग करता था। ध्यान में हाथी पर सवार पीताम्बर धारी गायत्री माता का ध्यान करता था।
इस प्रकार एक माह से कुछ अधिक समय बीत गया अब मुझे ज्ञात हुआ कि हानि कम होने लगी और लाभ की आश प्रतीत होने लगी । कुछ ही समय के पश्चात् लाभ ही लाभ दिखाई देने लगा और आकस्मिक धन की प्राप्ति भी हुई । मुझे पूर्ण विश्वास है कि जो महानुभाव आर्थिक अभाव से दु:खित हों, इस कार्यक्रम से गायत्री साधना करेंगे, अवश्य लाभान्वित होंगे।
गायत्री जप के अनुष्ठान का मेरा अनुभव है वह संकटो को दूर करने लिए सर्वोत्तम है। मेरी स्त्री के जब बच्चा पैदा होता था तब वे हमेशा ही सख्त बीमार हो जाती थी और जीवन की आशा नहीं रहती थी। इस बार मैंने पहले ही गायत्री माता से प्रार्थना करके संकल्प को लेकर जप किया , फलस्वरूप इस बार कोई ऐसा घोर कष्ट नहीं हुआ और न हालत ही खराब हुई और कुछ दिनों के पश्चात् अच्छी होकर स्वस्थ निकलीं।
एक बार मेरा बड़ा लड़का जिसकी उम्र करीब 7 साल थी मोतीझरा की बीमारी से ग्रसित हो गया। कई दिनों की बीमारी के पश्चात् एक रात उसकी हालत बहुत खराब हो गई। बिल्कुल बेहोशी की बातचीत करता था और जोरों से चिल्लाता था। बच्चे की दशा देखकर इतनी असहाय अवस्था का अनुभव कर रहा था कि आत्महत्या कर लूँ ताकि यह न देखूँ इसी विचार से रात के सुनसान समय में घर से निकल पड़ा और जंगल की ओर गया।
सुनसान जंगल में जहाँ पर एक चिडिय़ा के बोलने की भी आवाज न आती थी घबराया हुआ टहलता रहा इतने में एक कुआँ दिखाई दिया तो विचार किया कि इसी कुएँ में कूद पड़े अत: उसी ओर झपटा और कुआँ की जगत पर चढ़ गया । इसी समय माता के शीतल हस्त कमल का ध्यान आया और रो-रोकर माता से बच्चे के स्वस्थ होने की प्रार्थना करता रहा।
अपनी उस दीन व असहाय अवस्था को माता के सन्मुख करता रहा मुझे नहीं ज्ञान हुआ कि इस दशा में कितनी देर रहा जब होश आया तो अपने को उसी कुएँ की जगत में पड़ा पाया। धीरे-धीरे उठ कर घर की ओर चला चित्त में शन्ति थी। घर पहुँच कर देखा की बच्चा सुख की नींद सो रहा था। मैंने माता कोटिश: धन्यवाद दिया और उस दिन से गायत्री माता में इतनी श्रद्घा हो गई की आजन्म न भूल सकूँगा।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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