गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 10 (गायब लड़के का लौटना)

cropped-gayatribannerश्री विनोद बिहारी गर्ग, विशनगढ़ का कहना है कि आजकल शहरों में बच्चों की सुरक्षा भी एक पेचीदा समस्या है। लड़के स्कूल में पढऩे जाते हैं, वहां कोई जन्मजात दुष्ट प्रकृति के ऐसे लड़के मिल जाते हैं जो अपनी बदमाशी का प्रभाव दूसरों पर भी डालते हैं। छुटटी के समय यह बुरे लड़के भोले-भाले लड़कों से दोस्ती गांठते हैं और उन्हें अपनी बुराइयां सिखा देते हैं। इस प्रकार चोर और आवरागर्दी लड़कों का एक अच्छा खासा गिरोह बन जाता है। यह लड़के घर से पैसे तथा वस्तुएं चुराते हैं और फिर उनसे आवारगर्दी करते हैं।

हमारा लड़का सुरेश दस वर्ष की आयु तक बड़ा सुशील और आज्ञाकारी था, उसमें सभी सुसंस्कार थे, जहां भी जाता वहीं उसकी प्रशंसा होती थी, यह आशा की जाती थी कि बड़ा होकर यह बड़ा सभ्य एवं सुसंस्कृत बनेगा, उसकी आदतें उच्च कुल के बालकों जैसी थीं। कुसंग ने हमारे अच्छे लड़के का नाश कर दिया। बुरे लड़कों की चांडाल चौकड़ी में पहले घुमक्कड़ बना, स्कूल की छुटटी हो जाने के बाद बहुत समय इधर-उधर बिताकर तब घर आता। घर से स्कूल का बहाना करके जाता और रास्ते में ही रुक जाता। इस प्रकार कई कई दिन की उसकी गैर हाजिरी मिलती पैसे चुराना ही नहीं , घर के जेवर बर्तन कपड़े चुराना भी उसने आरम्भ कर दिया।

पहले तो कुछ दिन उसकी यह आदतें घर वालों की नजर में न आईं, जब थोड़ी-थोड़ी देखभाल हुई तो दन पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया पर जब उसकी आदतें बहुत खराब हो गईं तो आंखें खुल गईं और इस पर कड़ाई की जाने लगी। मारपीट, धमकाना, समझाना, नाराजगी सभी उपाय काम में लाये गये, पर सुधार होना तो दूर वह उल्टी नई-नई शरारतों पर उतर आया, अब वह 14 वर्ष का हो गया था, 4 वर्ष में उसने बुरी आदतें अच्छी तरह सीख लीं। वह दूसरों के लड़कों को भी बिगाड़ता था।
हम लोगों का मस्तक शर्म से नीचा हो जाता, मन में बड़ी कुढऩ रहती, पर कुछ वश न चलता। एक दिन वह अपनी मां के वक्स में से 152 रु. नगद तथा कुछ जेवर लेकर भाग गया। एक दो दिन तो ऐसा ख्याल रहा कि कहीं घूमता होगा, रुपये खराब करके वापस आ जायेगा, पर जब सात महीने हो गये और वह न आया तो चिन्ता होने लगी। हिन्दू मुस्लिम दंगों का जमाना था, जान न गंवा बैठा हो। 14 वर्ष की छोटी आयु, अनुभवहीन, आवारा लड़का सहज ही किसी मुसीबत में फंस सकता है। सुरेश ने बताया कि मैं अपने साथियों सहित कई शहरों घुमता रहा।
कहीं मजूरी, कहीं चोरी, कहीं खामना आदि करके पेट भरता रहा। जिस दिन यहां आया हॅ उससे 15 दिन पहले हर रात में एक भयंकर स्त्री स्वप्न में दिखाई पड़ती थी और पीठ में चाबुक जमाती हुई कहती थी कि सीधे घर चलो, नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं। कई रात को मुझे बड़ा डर लगा और बैठकर जागते हुए समय निकालना पड़ा, रोज के ऐसे भयंकर दृश्यों से भयभीत होकर मैं घर वापस आया हूं। बच्चे को स्वप्न में त्रास देकर उसे घर लाने वाली शक्ति कौन थी? इस पर अधिक विचार करने की आवश्यकता नहीं, निश्चय ही वह गायत्री माता थी। उसने न केवल बालक को घर ही ला पटका वरन् उसकी बुद्घि भी सुधार दी। सुरेश की माता उसी दिन से श्रद्घापूर्वक गायत्री जप करती है। मैं भी थोड़ा बहुत कर ही लेता हूं।

सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार

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