क्या गजब चमत्कार हो जाता है 8 घंटा कपालभांति प्राणायाम करने से

1परम आदरणीय गुरु सत्ता की महती कृपा द्वारा प्राप्त ज्ञान अनुसार, अगर कोई आदमी धीरे धीरे अपना अभ्यास बढ़ाते हुए 1 दिन में, 8 घंटा लगातार कपाल भांति (kapalbhati pranayam) करने की क्षमता विकसित कर ले तो उसके साथ गजब आश्चर्य जनक काम होता है !

मूर्धन्य योगियों के वचनों को अगर आसान और सीधी भाषा में कहें तो, इस तरह कपाल भांति (Kapalbhati) करने से अन्दर की प्राण वायु, प्रज्वलित अग्नि की तरह प्रचण्ड वेग से भभक उठती है और फिर वो भीषण रूप धारण कर शरीर के हर रोग का खोज खोज कर नाश करने लगती है !

सिर्फ रोगों के नाश से ही इस प्राण वायु की भूख नहीं मिटती है बल्कि वो शरीर के कर्माशय में संचित पूर्व कर्मों का भी तेजी से भक्षण करने लगती हैं जिससे बुरे प्रारब्ध (दुर्भाग्य) का भी नाश होने लगता है !

पूर्णता की प्राप्ति का ये गजब का तरीका है ! सौ प्रतिशत शुद्ध शरीर की निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और कहने की आवश्यकता नहीं की उस समय किस दिव्य सुख का अनुभव होता है !

8 घंटा कपाल भांति प्राणायाम (Kapabhaiti Pranayama) लगातार करने में सिर्फ बीच में मतलब 4 घंटे बाद कुछ क्षण का विश्राम लिया जा सकता है ! 8 घंटा कपाल भांति प्राणायाम लगातार करने का अभ्यास विकसित करना कोई 1 – 2 दिन का काम नहीं हैं बल्कि इस अभ्यास को विकसित करने में कई साल लगते हैं !

प्राणायाम के अभ्यास में जल्दीबाजी करने से फायदा के बजाय नुकसान होने की सम्भावना होती है इसीलिए हमारे योग शास्त्रों में प्राणायाम और आसन (Kapabhaiti Yoga) की तुलना, उस शेर से की है जिसे पालतू बनाते समय बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है और बिल्कुल भी जल्दीबाजी नहीं करनी पड़ती है क्योकि जल्दी बाजी में गलती होने पर जैसे शेर को गुस्सा आ जाय तो पालतू बनाने वाले आदमी को ही मार कर शेर खा सकता है उसी तरह से अगर प्राणायाम गलत हो जाय तो फायदा की बजाय नुकसान कर सकता है !

प्राणायाम 8 घंटे करने से कर्माशय के कर्म नाश के दौरान कई अच्छे अनुभव के साथ कुछ बुरे अनुभव (जैसे – डरावना दृश्य, शरीर में अचानक से अनजानी बीमारी या दर्द पैदा होना) भी होते हैं जिससे अभ्यास करने वाला बुरी तरह से डर सकता है, तो ऐसे में अनुभवी गुरु की आवश्यकता पड़ती है जो यह बतातें है कि अभ्यासी सब सही कर रहा है की नहीं !

धन्य है आदि देव महादेव योगी राज श्री भगवान शिव शम्भु की महा सागर सदृश्य दया, कि उन्होंने हम तुच्छ प्राणियों को ऐसे अनगिनत बहुमूल्य ज्ञान का पात्र समझ कर देने की महान कृपा की !

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