स्वयं बने गोपाल

हरिऔध् ग्रंथावली – खंड : 3 – चुभते चौपदे (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

गागर में सागर देवदेव चौपदे अब बहुत ही दलक रहा है दिल। हो गईं आज दसगुनी दलवें+। उ+बता हूँ उबारने वाले। आइये, हैं बिछी हुई पलवें+। डाल दे सिर पर न सारी उलझनें। जी...

हरिऔध् ग्रंथावली – खंड : 3 – चोखे चौपदे (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

जो किसी के भी नहीं बाँधो बँधो। प्रेमबंधान से गये वे ही कसे। तीन लोकों में नहीं जो बस सके। प्यारवाली आँख में वे ही बसे। पत्तिायों तक को भला वै+से न तब। कर...

निबंध – आपने मेरी रचना पढ़ी ? – (लेखक – हजारी प्रसाद द्विवेदी)

हमारे साहित्यिकों की भारी विशेषता यह है कि जिसे देखो वहीं गम्भीर बना है, गम्भीर तत्ववाद पर बहस कर रहा है और जो कुछ भी वह लिखता है, उसके विषय में निश्चित धारणा बनाये...

निबंध – आम फिर बौरा गए – (लेखक – हजारी प्रसाद द्विवेदी)

वसंतपंचमी में अभी देर है, पर आम अभी से बौरा गए। हर साल ही मेरी आँखें इन्‍हें खोजती हैं। बचपन में सुना था कि वसंतपंचमी के पहले अगर आम्रमंजरी दिख जाय तो उसे हथेली...

निबंध – देवदारु – (लेखक – हजारी प्रसाद द्विवेदी)

पता नहीं किसने इस पेड़ का नाम देवदारु रख दिया था, नाम निश्चय ही पुराना है, कालिदास से भी पुराना, महाभारत से भी पुराना। सीधे ऊपर की ओर उठता है, इतना ऊपर कि पासवाली...

निबंध – भीष्म को क्षमा नहीं किया गया – (लेखक – हजारी प्रसाद द्विवेदी)

मेरे एक मित्र हैं, बड़े विद्वान, स्‍पष्‍टवादी और नीतिमान। वह इस राज्‍य के बहुत प्रतिष्ठित नागरिक हैं। उनसे मिलने से सदा नई स्‍फूर्ति मिलती है। यद्यपि वह अवस्‍था में मुझसे छोटे हैं, तथापि मुझे...

निबंध – शिरीष के फूल – (लेखक – हजारी प्रसाद द्विवेदी)

जहाँ बैठके यह लेख लिख रहा हूँ उसके आगे पीछे, दाएँ-बाएँ, शिरीष के अनेक पेड़ हैं। जेठ की जलती धूप में, जबकि धरित्री निधूर्म अग्निकुंड बनी हुई थी, शिरीष नीचे से ऊपर तक फूलों...

लेख – नाखून क्यों बढ़ते हैं ? – (लेखक – हजारी प्रसाद द्विवेदी)

बच्चे कभी-कभी चक्कर में डाल देने वाले प्रश्न कर बैठते हैं। अल्पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है। मेरी लड़की ने उस दिन पूछ लिया कि नाखून क्यों बढते हैं, तो मैं कुछ सोच...

लेख – धर्म और पाप – (लेखक – आचार्य चतुरसेन शास्त्री)

भारत धर्म-प्रधान देश है और मनुष्य पाप का चोर है, इसलिए धर्म और पाप की बिना सहायता लिए मैं मानने वाला आदमी नहीं हूँ। मैं अपनी अंतरात्मा में भली भाँति जानता हूँ कि पाप...

लेख – रेल की रात – (लेखक – इलाचंद्र जोशी)

गाड़ी आने के समय से बहुत पहले ही महेंद्र स्टेशन पर जा पहुँचा था। गाड़ी के पहुँचने का ठीक समय मालूम न हो, यह बात नहीं कही जा सकती। जिस छोटे शहर में वह...

अनुवाद – दयामय की दया (तोल्सतोय) – (लेखक – प्रेमचंद)

किसी समय एक मनुष्य ऐसा पापी था कि अपने 70 वर्ष के जीवन में उसने एक भी अच्छा काम नहीं किया था। नित्य पाप करता था, लेकिन मरते समय उसके मन में ग्लानि हुई...

अनुवाद – एक चिनगारी घर को जला देती है (तोल्सतोय) – (लेखक – प्रेमचंद)

एक समय एक गांव में रहीम खां नामक एक मालदार किसान रहता था। उसके तीन पुत्र थे, सब युवक और काम करने में चतुर थे। सबसे बड़ा ब्याहा हुआ था, मंझला ब्याहने को था,...

अनुवाद – क्षमादान (तोल्सतोय) – (लेखक – प्रेमचंद)

दिल्ली नगर में भागीरथ नाम का युवक सौदागर रहता था। वहाँ उसकी अपनी दो दुकानें और एक रहने का मकान था। वह सुंदर था। उसके बाल कोमल, चमकीले और घुँघराले थे। वह हँसोड़ और...

अनुवाद – दो वृद्ध पुरुष (तोल्सतोय) – (लेखक – प्रेमचंद)

एक गांव में अजुर्न और मोहन नाम के दो किसान रहते थे। अजुर्न धनी था, मोहन साधारण पुरुष था। उन्होंने चिरकाल से बद्रीनारायण की यात्रा का इरादा कर रखा था। अजुर्न बड़ा सुशील, सहासी...

अनुवाद – ध्रुवनिवासी रीछ का शिकार (तोल्सतोय) – (लेखक – प्रेमचंद)

हम एक दिन रीछ के शिकार को निकले। मेरे साथी ने एक रीछ पर गोली चलाई। वह गहरी नहीं लगी। रीछ भाग गया। बर्फ पर लहू के चिह्न बाकी रह गए। हम एकत्र होकर...

अनुवाद – प्रेम में परमेश्वर (तोल्सतोय) – (लेखक – प्रेमचंद)

किसी गांव में मूरत नाम का एक बनिया रहता था। सड़क पर उसकी छोटीसी दुकान थी। वहां रहते उसे बहुत काल हो चुका था, इसलिए वहां के सब निवासियों को भलीभांति जानता था। वह...