स्वयं बने गोपाल

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 3 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

द्वितीयांक ( स्थान-राजसभा) ( महाराज भीष्मक , रुक्म , रुक्मकेश , मंत्री और सभासद्गण यथास्थान बैठे हैं) भीष्मक- (चिन्ता से स्वगत) ईश्वर की रचना क्या ही अपूर्व है। वह एक ही जठर है, जिससे...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 2 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

प्रथमांक (स्थान-राजद्वार के सन्मुख की भूमि) (महाराणी रुक्मिणी अटा पर विराजमान) (कुछ याचकों का प्रवेश) पहला याचक- अहा! यह नगर भी कैसा रमणीय है, विशेषत: स्वर्ग में कैलाश की भाँति, अथवा सत्यलोक में बैकुण्ठ...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 1 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

प्रार्थना प्रिय सहृदय पाठकगण! नाटकरचना विषयक मेरा यह प्रथमोन्माद है। इस नाटक के प्रथम मैंने कोई दूसरा नाटक लिपिबद्ध नहीं किया है। नाटक क्या, वास्तव बात तो यह है कि एक ‘श्रीकृष्णशतक’ नामक लघु...

नाटक – श्रीप्रद्युम्नविजय व्यायोग – अध्याय 2 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

सा.- कुमार! क्या यह सुरराज निजप्रियपुत्र को प्रवर की रक्षा का निदेश दे रहे हैं? प्रद्यु.- हाँ हाँ! ज्ञात होता है कि जब तक निकुंभ ने प्रवर पर गदा का प्रहार किया, तभी तक...

आत्मकथा – झाड़फूँक (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

आजकल एक विचार फैला हुआ है-जो बात चटपट समझ में न आ जावे, या दलीलों से जो पूरी तौर पर साबित न की जा सके, या जिसका प्रभाव ठीक-ठीक हम न जान सकें, वह...

आत्मकथा – पूजा-पाठ (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

पूजा-पाठ आजकल का एक ढंग यह भी है कि पहले तो हमारे मन की जितनी बातें नहीं हैं, उनको हम मानना नहीं चाहते, और यदि किसी कारण से हमको उन्हें मानना पड़ता है, तो...

आत्मकथा – तन्त्र यन्त्र (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

तन्त्र यन्त्र मैं समझता हँ इस ग्रन्थ के पढ़नेवालों में कितने लोग ऐसे होंगे, जो तन्त्र का नाम पढ़ते ही मुँह बना लेंगे और ग्रन्थ को अपने हाथ से दूर फेंक दें, तो भी...

आत्मकथा – दान पुण्य (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

दान पुण्य मेरा विचार है कि ”न देने से देना अच्छा है”। कोई आकर हम से कुछ माँगता है, तो हम उसको क्या देते हैं। एक दो पैसे। जो हमारे लिए कुछ नहीं है,...

आत्मकथा – मृत्यु क्या है (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

मृत्यु क्या है जब किसी की बीमारी बढ़ जाती है, और वह समझ लेता है कि अब बचने की आशा नहीं, तो सब ओर से हटकर उसका जी यह सोचने लगता है कि मृत्यु...

आत्मकथा – मृत्यु का भय (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

मृत्यु का भय मृत्यु क्या है? यह आप लोगों ने समझ लिया। जैसा हमें बतलाया गया है, उससे पाया जाता है कि मृत्यु कोई ऐसी वस्तु नहीं है, कि जिससे कोई डरे। यह सच...

आत्मकथा – मृत्यु का प्रभाव (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

मृत्यु का प्रभाव संसार में आज जो अमन दिखलाई पड़ रहा है, धुली हुई चाँदनी सी शान्ति जो चारों ओर छिटकी हुई है। जब आप यह जानेंगे कि इसमें सबसे अधिक श्रेय मृत्यु का...

आत्मकथा – स्वर्ग (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

स्वर्ग जब किसी के जी में यह बात जम जाती है कि अब जीवन के दिन इने-गिने ही हैं, जब कूच का नगारा बजने लगता है, मौत सामने खड़ी दिखलाती है, उस समय यदि...

आत्मकथा – नरक (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

नरक स्वर्ग के साथ नरक के विषय में तेरहवें सर्ग में बहुत सी बातें लिखी जा चुकी हैं। जैसे स्वर्ग के विषय में भूतल के समस्त ग्रन्थ एक राय हैं, और उसके अस्तित्व को...

आत्मकथा – जन्मान्तर वाद (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

जन्मान्तर वाद पुनर्जन्म का सिद्धान्त आर्य जाति की उच्च कोटि की मननशीलता का परिणाम है। इसीलिए चाहे सनातन धर्म हो, चाहे बौद्ध धर्म उनमें पुनर्जन्म वाद स्वीकृत है। अन्य धर्मों अर्थात् ईसवी, मुसल्मान, और...

आत्मकथा – संसार (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

संसार क्या है? प्रकृति का क्रीड़ा स्थल, रहस्य निकेतन, अद्भुत व्यापार समूह का आलय, कलितकार्य कलाप का केतन, ललित का लीलामन्दिर, विविध विभूति अवलम्बन, विचित्र चित्र का चित्रपट, अलौकिक कला का कल आकर, भव्य-भाव...

लेख – चार (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

प्रिय विचारशील एवं विवेचक महाशय, ‘चार’ शब्द से आशा है कि आप भली-भाँति परिचय रखते होंगे और समाचार, दुराचार, अत्याचार, अनाचार, सदाचार, शिष्टाचार, आचार, उपचार, प्रचार, विचार, उचार, अचार इत्यादि पदों के अन्त में...