स्वयं बने गोपाल

निबंध – लक्ष्य से दूर (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

हम अपने लक्ष्‍य से दूर हटते जा रहे हैं। देश की आजादी का सवाल हमारे सामने है। कुछ समय पहले अधिकांश कार्यकर्ताओं को रात-दिन उसी की धुन थी, परंतु इस समय वे शिथिल हैं।...

निबंध – लोक-सेवा (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

वर्तमान युग अधिकारों का युग है। संसार के कोने-कोने से अधिकारों की ध्‍वनि उठ रही है। अत्‍याचारों से पीड़ित व्‍यक्तियों और समूहों से लेकर स्‍वतंत्र और शक्तिसंपन्‍न व्‍यक्तियों और समूहों तक सभी ने वर्तमान...

निबंध – वे दीवाने (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

अनुत्‍तरदायी? जल्‍दबाज? अधीर, आदर्शवादी? लुटेरे? डाकू? हत्‍यारे? अरे, ओ दुनियादार, तू किस नाम से, किस गाली से विभूषित करना चाहता है? वे मस्‍त हैं। वे दीवाने हैं। वे इस दुनिया के नहीं हैं। वे...

निबंध – वज्रपात : देशबंधु दास (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

यह वज्रपात है। वज्रपात देश के हृदय-स्‍थल पर! स्‍वप्‍न में भी इस बात का ध्‍यान न हुआ था कि अचानक ऐसा हो जायेगा। तार पढ़ते हुए भी कुछ क्षण तक यह विश्‍वास न हुआ...

निबंध – शिक्षा का प्रथम – I (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

शिक्षा के अधिक प्रचार से देश को जो बड़ा लाभ हो सकता है, उस पर कुछ कहना-सुनना मानी हुई बातों को दोहराना है। किसी भी उद्देश्‍य से हो, परंतु इस बात को स्‍वीकार करना...

निबंध – शिक्षा का प्रथम -I I (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

वैसे तो हमारा देश-भर शिक्षा में, मनुष्‍य की बाहरी उन्‍नति के इस परमावश्‍यक साधन के विषय में, संसार-भर के सभ्‍य देशों से बहुत पिछड़ा हुआ है, परंतु देश में भी हमारा प्रांत इस विषय...

निबंध – सुगमता की माया (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

काम करने के दो मार्ग हैं। एक तो यह कि आगे बढ़ा जाये, परंतु आदि से लेकर अंत तक नैतिक आधार न छोड़ा जाये। दूसरा यह कि, काम हो, और,‍ फिर चाहे जिस तरह,...

निबंध – संपादकाचार्य सुब्रह्मण्यम् अय्यर (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

देश से सर्वश्रेष्‍ठ पत्र-संपादक उठ गया! ये संपादकाचार्य थे मद्रास के मि.सुब्रह्मण्‍यम् अय्यर। देश-भर में उनसा चतुर, योग्‍य और कुशाग्र बुद्धि का कोई पत्र-संपादक नहीं था। 23 वर्ष की अवस्‍था में उन्‍होंने ‘हिंदू’ पत्र...

निबंध – समुद्र-मंथन (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

पुराने जमाने में, एक माँ की कोख से पैदा हुए दो भिन्‍न प्रकृति के बेटों ने युद्ध किया था। खूब घमासान लड़ाई हुई थी। खून की नदियाँ बहीं। फिर वे थक गये। कुछ शांत...

निबंध – स्व. श्रीयुत लक्ष्मीशंकर अवस्थी (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

अवस्‍थी – यह केवल दुर्भाग्‍य ही नहीं, किंतु हृदय को हिला और उसे रुला देने वाली बात भी है कि इस प्रियजन के, जिसके बिछोह की कोई कल्‍पना भी न की गयी हो और...

निबंध – स्वर्गीय महात्मा गोखले (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

अत्‍यंत शोक और हृदय-वेदना के साथ हम अपने पाठकों को महात्‍मा गोखले के देहांत का समाचार सुनाते हैं। हमारे राष्‍ट्रीय विकास के इतिहास में 19 फरवरी 1915 का दिन एक अशुभ दिन समझा जायेगा।...

निबंध – स्वर्गीय राय देवीप्रसाद ‘पूर्ण’ (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

धीरे-धीरे एक-एक दीपक बुझते जा रहे हैं। इस विनाश-लीला में दुर्भाग्‍य ने जिस मजबूती के साथ हमारे प्रांत का पल्‍ला पकड़ा है, वैसी मजबती से दूसरे का नहीं। वर्ष के भीतर ही बाबू गंगाप्रसाद...

निबंध – हमारे जातीय जीवन के दोष (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

अंग्रेजी साहित्‍य-क्षेत्र के हलधर मि. जी.के. चेस्‍टरटन ने एक बार कहा था कि स्‍वस्‍थ चित्‍त का यह चिन्‍ह है कि वह कभी-कभी आपकी मूर्खताओं का मजाक उड़ा सके। किसी समाज की मानसिक स्‍वस्‍थता का...

निबंध – स्वराज्य की आकांक्षा (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

देश के सजीव हृदयों में स्‍वराज्‍य की प्रबल आकांक्षा का उदय हो गया है। वे भली-भाँति समझ गये हैं कि जिस देश के निवासियों को अपने कानून आप अनाने का अधिकार न हो, जो...

निबंध – हमारे वे मतवाले निर्वासित वीर (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

जिन तपस्यिों ने अपने प्राण होम कर स्‍वतंत्रता का यज्ञ-कुंड प्रज्‍ज्‍वलित किया, उनमें से अनेक वीर आज विदेशों में पड़े हुए हैं। जो हुतात्‍मा भारतीय जेलों की विकराल दाढ़ों से बच गये, वे आज...

निबंध – हमारा सार्वजनिक जीवन (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

देश में सार्वजनिक जीवन की बड़ी कमी है, जो कुछ है भी, वह दुर्भाग्‍य से ऐसा मलिन और नि:सार है कि हताश होकर किसी-किसी समय यह कहना पड़ता है कि वह न होता तो...