स्वयं बने गोपाल

व्यंग – वह जो आदमी है न (लेखक – हरिशंकर परसाई)

निंदा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं। निंदा खून साफ करती है, पाचन-क्रिया ठीक करती है, बल और स्फूर्ति देती है। निंदा से मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। निंदा पायरिया का तो शर्तिया इलाज है।...

व्यंग – शर्म की बात पर ताली पीटना (लेखक – हरिशंकर परसाई)

मैं आजकल बड़ी मुसीबत में हूँ। मुझे भाषण के लिए अक्सर बुलाया जाता है। विषय यही होते हैं – देश का भविष्य, छात्र समस्या, युवा-असंतोष, भारतीय संस्कृति भी (हालांकि निमंत्रण की चिट्ठी में ‘संस्कृति’...

व्यंग – सन 1950 ईसवी (लेखक – हरिशंकर परसाई)

बाबू गोपालचंद्र बड़े नेता थे, क्योंकि उन्होंने लोगों को समझाया था और लोग समझ भी गए थे कि अगर वे स्वतंत्रता-संग्राम में दो बार जेल – ‘ए क्लास’ में – न जाते, तो भारत...

व्यंग – संस्कृति (लेखक – हरिशंकर परसाई)

भूखा आदमी सड़क किनारे कराह रहा था। एक दयालु आदमी रोटी लेकर उसके पास पहुँचा और उसे दे ही रहा था कि एक-दूसरे आदमी ने उसका हाथ खींच लिया। वह आदमी बड़ा रंगीन था।...

व्यंग – सिद्धांतों की व्यर्थता (लेखक – हरिशंकर परसाई)

अब वे धमकी देने लगे हैं कि हम सिद्धांत और कार्यक्रम की राजनीति करेंगे। वे सभी जिनसे कहा जाता है कि सिद्धांत और कार्यक्रम बताओ। ज्योति बसु पूछते थे, नंबूदरीपाद पूछते थे। मगर वे...

संस्मरण – मुक्तिबोध (लेखक – हरिशंकर परसाई)

भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आया...

निबंध – आँगन में बैंगन (लेखक – हरिशंकर परसाई)

मेरे दोस्‍त के आँगन में इस साल बैंगन फल आए हैं। पिछले कई सालों से सपाट पड़े आँगन में जब बैंगन का फल उठा तो ऐसी खुशी हुई जैसे बाँझ को ढलती उम्र में...

निबंध – चूहा और मैं (लेखक – हरिशंकर परसाई)

चाहता तो लेख का शीर्षक ”मैं और चूहा” रख सकता था। पर मेरा अहंकार इस चूहे ने नीचे कर दिया। जो मैं नहीं कर सकता, वह मेरे घर का यह चूहा कर लेता है।...

लोककथा – अपना-पराया (लेखक – हरिशंकर परसाई)

आप किस स्‍कूल में शिक्षक हैं?’ ‘मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्‍यों, कुछ काम है क्‍या?’ ‘हाँ, मेरे लड़के को स्‍कूल में भरती करना है।’ ‘तो हमारे स्‍कूल में ही भरती करा दीजिए।’ ‘पढ़ाई-‍वढ़ाई...

लोककथा – चंदे का डर (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक छोटी-सी समिति की बैठक बुलाने की योजना चल रही थी। एक सज्‍जन थे जो समिति के सदस्‍य थे, पर काम कुछ नहीं, गड़बड़ पैदा करते थे और कोरी वाहवाही चाहते थे। वे लंबा...

लोककथा – दानी (लेखक – हरिशंकर परसाई)

बाढ़-पीड़ितों के लिए चंदा हो रहा था। कुछ जनसेवकों ने एक संगीत-समारोह का आयोजन किया, जिसमें धन एकत्र करने की योजना बनाई। वे पहुँचे एक बड़े सेठ साहब के पास। उनसे कहा, ‘देश पर...

लोककथा – रसोई घर और पाखाना (लेखक – हरिशंकर परसाई)

गरीब लड़का है। किसी तरह हाई स्‍कूल परीक्षा पास करके कॉलेज में पढ़ना चाहता है। माता-पिता नहीं हैं। ब्राह्मण है। शहर में उसी के सजातीय सज्‍जन के यहाँ उसके रहने और खाने का प्रबंध...

लोककथा – सुधार (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक जनहित की संस्‍था में कुछ सदस्‍यों ने आवाज उठाई, ‘संस्‍था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्‍था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या...

लोककथा – समझौता (लेखक – हरिशंकर परसाई)

अगर दो साइकिल सचार सड़क पर एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़े तो उनके लिए यह लाजिमी हो जाता है कि वे उठकर सबसे पहले लड़ें, फिर धूल झाड़ें। यह पद्धति इतनी मान्‍यता प्राप्‍त कर...

पत्र – अग्रज के नाम (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

पूज्‍य भाई साहब प्रणाम। झाँसी से लिखे हुए पत्र आपको मिल गये होंगे। उसके सबेरे ही मैं यहाँ बनापुर चतुर्वेदी जी के साथ चला आया। यहाँ अच्‍छी तरह से हूँ। कोई कष्‍ट नहीं। चतुर्वेदी...

पत्र – पत्‍नी के नाम (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

मेरी परम प्‍यारी प्रकाश, कल तुम्‍हारा पत्र प्राप्‍त हुआ। तुमने जो कुछ लिखा है, व‍ह बिल्‍कुल ठीक है। माफी माँगने से अच्‍छा यह है कि मौत हो जाये। तुम विश्‍वास रखो कि मैं बेइज्‍ज्‍ती...