स्वयं बने गोपाल

कहानी – सोहाग का शव – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मध्यप्रदेश के एक पहाड़ी गॉँव में एक छोटे-से घर की छत पर एक युवक मानो संध्या की निस्तब्धता में लीन बैठा था। सामने चन्द्रमा के मलिन प्रकाश में ऊदी पर्वतमालाऍं अनन्त के स्वप्न की...

कविताएँ – कर्म सर्ग – कामायनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

भाग-1 कर्मसूत्र – संकेत सदृश थी   सोम लता तब मनु को   चढ़ी शिज़नी सी, खींचा फिर   उसने जीवन धनु को।     हुए अग्रसर से मार्ग में   छुटे-तीर-से-फिर वे,  ...

नाटक – द्वितीय अंक – अजातशत्रु (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

प्रथम दृश्य स्थान – मगध   अजातशत्रु की राजसभा।       अजातशत्रु : यह क्या सच है, समुद्र! मैं यह क्या सुन रहा हूँ! प्रजा भी ऐसा कहने का साहस कर सकती है?...

कहानी – गृह-दाह – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सत्यप्रकाश के जन्मोत्सव में लाला देवप्रकाश ने बहुत रुपये खर्च किये थे। उसका विद्यारम्भ-संस्कार भी खूब धूम-धाम से किया गया। उसके हवा खाने को एक छोटी-सी गाड़ी थी। शाम को नौकर उसे टहलाने ले...

नाटक – तृतीय अंक – अजातशत्रु (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

प्रथम दृश्य स्थान – मगध में राजकीय भवन   छलना और देवदत्त।       छलना : धूर्त्त! तेरी प्रवंचना से मैं इस दशा को प्राप्त हुई। पुत्र बन्दी होकर विदेश चला गया और...

कहानी – कप्तान साहब – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

जगत सिंह को स्कूल जान कुनैन खाने या मछली का तेल पीने से कम अप्रिय न था। वह सैलानी, आवारा, घुमक्कड़ युवक थां कभी अमरूद के बागों की ओर निकल जाता और अमरूदों के...

कविताएँ – निर्वेद सर्ग – कामायनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

भाग-1 वह सारस्वत नगर पडा था क्षुब्द्ध,   मलिन, कुछ मौन बना,   जिसके ऊपर विगत कर्म का   विष-विषाद-आवरण तना।     उल्का धारी प्रहरी से ग्रह-   तारा नभ में टहल रहे,...

कहानी – धोखा – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सतीकुण्ड में खिले हुए कमल वसंत के धीमे-धीमे झोंकों से लहरा रहे थे और प्रातःकाल की मंद-मंद सुनहरी किरणें उनसे मिल-मिल कर मुस्कराती थीं। राजकुमारी प्रभा कुण्ड के किनारे हरी-हरी घास पर खड़ी सुन्दर...

कहानी – राजा हरदौल – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

बुंदेलखंड में ओरछा पुराना राज्य है। इसके राजा बुंदेले हैं। इन बुंदेलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है। एक समय ओरछे के राजा जुझार सिंह थे। ये बड़े साहसी और बुद्धिमान...

कविताएँ – चिंता सर्ग – कामायनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

भाग -1 हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,   बैठ शिला की शीतल छाँह   एक पुरुष, भीगे नयनों से   देख रहा था प्रलय प्रवाह |     नीचे जल था ऊपर हिम था,...

कहानी – लाग-डाट – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

जोखू भगत और बेचन चौधरी में तीन पीढ़ियों से अदावत चली आती थी। कुछ डाँड़-मेंड़ का झगड़ा था। उनके परदादों में कई बार खून-खच्चर हुआ। बापों के समय से मुकदमेबाजी शुरू हुई। दोनों कई...

नाटक – प्रथम अंक – ध्रुवस्वामिनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

(शिविर का पिछला भाग जिसके पीछे पर्वतमाला की प्राचीर है, शिविर का एक कोना दिखलाई दे रहा है जिससे सटा हुआ चन्द्रातप टँगा है। मोटी-मोटी रेशमी डोरियों से सुनहले काम के परदे खम्भों से...

कहानी – राज्य-भक्त – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

संध्या का समय था। लखनऊ के बादशाह नासिरुद्दीन अपने मुसाहबों और दरबारियों के साथ बाग की सैर कर रहे थे। उनके सिर पर रत्नजटित मुकुट की जगह अँग्रेजी टोपी थी। वस्त्र भी अँग्रेजी ही...

नाटक – सूचना – ध्रुवस्वामिनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

विशाखदत्त-द्वारा रचित ‘देवीचन्द्रगुप्त’ नाटक के कुछ अंश ‘शृंगार-प्रकाश’ और ‘नाट्य-दर्पण’ से सन् 1923 की ऐतिहासिक पत्रिकाओं में उद्धृत हुए। तब चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के जीवन के सम्बन्ध में जो नयी बातें प्रकाश में आयीं,...

कहानी – अमावस्या की रात्रि – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

दीवाली की संध्या थी। श्रीनगर के घूरों और खँडहरों के भी भाग्य चमक उठे थे। कस्बे के लड़के और लड़कियाँ श्वेत थालियों में दीपक लिये मंदिर की ओर जा रही थीं। दीपों से उनके...

नाटक – द्वितीय अंक – ध्रुवस्वामिनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

(एक दुर्ग के भीतर सुनहले कामवाले खम्भों पर एक दालान, बीच में छोटी-छोटी-सी सीढ़ियाँ, उसी के सामने कश्मीरी खुदाई का सुंदर लकड़ी का सिंहासन। बीच के दो खंभे खुले हुए हैं, उनके दोनों ओर...