Author: gopalp

आत्मकथा – रोग का रंग (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

बाबू बंकिमचन्द्र चटर्जी बंगाल के एक बड़े प्रसिद्ध उपन्यास लेखक हैं। उन्होंने बंगला में ‘विष वृक्ष’ नाम का एक बड़ा ही अनूठा उपन्यास लिखा है। उसमें कालिदास की एक बड़ी मनोमोहक कहानी है-आप लोग...

पत्र – पगली का पत्र (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

तुम कहोगे कि छि:, इतनी स्वार्थ-परायणता! पर प्यारे, यह स्वार्थ-परायणता नहीं है, यह सच्चे हृदय का उद्गार है, फफोलों से भरे हृदय का आश्वासन है, व्यथित हृदय की शान्ति है, आकुलता भरे प्राणों का...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 11 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

दशमांक श्रीरुक्मिणीपरिणयनाटक का एक अतिरिक्त अंक (स्थान-शय्याभवन) (भगवान श्रीकृष्ण एक सुकोमल तल्प पर बिराजमान, व्यजनहस्ता रुक्मिणी समीप दण्डायमान) (सुलोचना व सुनैना दो परिचारिकाओं का प्रवेश) सुलो.- सखी सुनयने! आज कैसा आनन्द का दिन है,...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 10 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

नवमांक ( स्थान-रणभूमि का बहि:प्रान्त) ( भगवान श्रीकृष्ण , सारथी एवं महारानी रुक्मिणी सहित एक रथ विराजमान) श्रीकृ.- (नेपथ्य की ओर देखकर) सारथी! देखो, पद्म व्यूह रचकर खड़ी यादवों की सेना को बली शाल्वादि...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 9 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

अष्टमांक ( स्थान-जनवासे का बाहरी प्रान्त) ( बहुत से सूरमे खड़े और शिशुपाल , शाल्व , दन्तवक्र , जरासन्ध इत्यादि बहुत से वीर बैठे हैं) (एक दूत का प्रवेश) दू.- (हाथ जोड़कर काँपते हुए)...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 8 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

सप्तमांक ( स्थान-देवी के मन्दिर का निकटवर्ती उद्यान) ( महारानी रुक्मिणी अपनी अनामा और अनाभिधाना प्रभृति सखियों के साथ राक्षसों की कोट में मत्तगजगति से मन्द-मन्द जा रही हैं ) अनामा- सखी अनाभिधाने! देख!...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 7 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

षष्ठांक ( जनवासे का एक विस्तृत भवन) ( शिशुपाल , जरासन्ध , शाल्व , विदूरथ , रुक्म , दन्तवक्र प्रभृति अनेक सूरमे यथास्थान बैठे हैं) शि.- (भय से) मैंने सुना है, आज बहुत सी...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 6 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

पंचमांक ( स्थान-राजभवन) ( महारानी रुक्मिणी शोकाकुल एक सिंहासन पर बैठी हैं और अनामा , अनाभिधाना पास खड़ी हैं) अनामा- राजकन्यके! आज विवाह का पहिला दिन है, नगर निवासियों का हृदय प्रफुल्ल शतदल समान...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 5 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

चतुर्थांक ( स्थान-राजभवन। भगवान श्रीकृष्ण सिंहासन पर विराजमान) ( एक ब्राह्मण का प्रवेश) ब्रा.- (आप ही आप) मेरा मन द्वारिका के बाह्योपगत भवनों की छटा देखकर इतना चमत्कृत हुआ था, कि अपने को बिल्कुल...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 4 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

तृतीयांक ( स्थान-गृहान्तर्गत एक पुष्पोद्यान) ( महारानी रुक्मिणी चिन्तान्वित सिंहासन पर एक कुंज में विराजमान अनामा और अनाभिधाना दो सखियों का प्रवेश) अनामा- सखी अनाभिधाने! वसन्तागम से इस उद्यान की कैसी शोभा है, रसाल...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 3 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

द्वितीयांक ( स्थान-राजसभा) ( महाराज भीष्मक , रुक्म , रुक्मकेश , मंत्री और सभासद्गण यथास्थान बैठे हैं) भीष्मक- (चिन्ता से स्वगत) ईश्वर की रचना क्या ही अपूर्व है। वह एक ही जठर है, जिससे...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 2 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

प्रथमांक (स्थान-राजद्वार के सन्मुख की भूमि) (महाराणी रुक्मिणी अटा पर विराजमान) (कुछ याचकों का प्रवेश) पहला याचक- अहा! यह नगर भी कैसा रमणीय है, विशेषत: स्वर्ग में कैलाश की भाँति, अथवा सत्यलोक में बैकुण्ठ...

नाटक – श्रीरुक्मिणीरमणो विजयते – अध्याय 1 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

प्रार्थना प्रिय सहृदय पाठकगण! नाटकरचना विषयक मेरा यह प्रथमोन्माद है। इस नाटक के प्रथम मैंने कोई दूसरा नाटक लिपिबद्ध नहीं किया है। नाटक क्या, वास्तव बात तो यह है कि एक ‘श्रीकृष्णशतक’ नामक लघु...

नाटक – श्रीप्रद्युम्नविजय व्यायोग – अध्याय 2 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

सा.- कुमार! क्या यह सुरराज निजप्रियपुत्र को प्रवर की रक्षा का निदेश दे रहे हैं? प्रद्यु.- हाँ हाँ! ज्ञात होता है कि जब तक निकुंभ ने प्रवर पर गदा का प्रहार किया, तभी तक...

आत्मकथा – झाड़फूँक (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

आजकल एक विचार फैला हुआ है-जो बात चटपट समझ में न आ जावे, या दलीलों से जो पूरी तौर पर साबित न की जा सके, या जिसका प्रभाव ठीक-ठीक हम न जान सकें, वह...

आत्मकथा – पूजा-पाठ (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

पूजा-पाठ आजकल का एक ढंग यह भी है कि पहले तो हमारे मन की जितनी बातें नहीं हैं, उनको हम मानना नहीं चाहते, और यदि किसी कारण से हमको उन्हें मानना पड़ता है, तो...