Author: gopalp

व्यंग – सिद्धांतों की व्यर्थता (लेखक – हरिशंकर परसाई)

अब वे धमकी देने लगे हैं कि हम सिद्धांत और कार्यक्रम की राजनीति करेंगे। वे सभी जिनसे कहा जाता है कि सिद्धांत और कार्यक्रम बताओ। ज्योति बसु पूछते थे, नंबूदरीपाद पूछते थे। मगर वे...

संस्मरण – मुक्तिबोध (लेखक – हरिशंकर परसाई)

भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था – उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आया...

निबंध – आँगन में बैंगन (लेखक – हरिशंकर परसाई)

मेरे दोस्‍त के आँगन में इस साल बैंगन फल आए हैं। पिछले कई सालों से सपाट पड़े आँगन में जब बैंगन का फल उठा तो ऐसी खुशी हुई जैसे बाँझ को ढलती उम्र में...

निबंध – चूहा और मैं (लेखक – हरिशंकर परसाई)

चाहता तो लेख का शीर्षक ”मैं और चूहा” रख सकता था। पर मेरा अहंकार इस चूहे ने नीचे कर दिया। जो मैं नहीं कर सकता, वह मेरे घर का यह चूहा कर लेता है।...

लोककथा – अपना-पराया (लेखक – हरिशंकर परसाई)

आप किस स्‍कूल में शिक्षक हैं?’ ‘मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्‍यों, कुछ काम है क्‍या?’ ‘हाँ, मेरे लड़के को स्‍कूल में भरती करना है।’ ‘तो हमारे स्‍कूल में ही भरती करा दीजिए।’ ‘पढ़ाई-‍वढ़ाई...

लोककथा – चंदे का डर (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक छोटी-सी समिति की बैठक बुलाने की योजना चल रही थी। एक सज्‍जन थे जो समिति के सदस्‍य थे, पर काम कुछ नहीं, गड़बड़ पैदा करते थे और कोरी वाहवाही चाहते थे। वे लंबा...

लोककथा – दानी (लेखक – हरिशंकर परसाई)

बाढ़-पीड़ितों के लिए चंदा हो रहा था। कुछ जनसेवकों ने एक संगीत-समारोह का आयोजन किया, जिसमें धन एकत्र करने की योजना बनाई। वे पहुँचे एक बड़े सेठ साहब के पास। उनसे कहा, ‘देश पर...

लोककथा – रसोई घर और पाखाना (लेखक – हरिशंकर परसाई)

गरीब लड़का है। किसी तरह हाई स्‍कूल परीक्षा पास करके कॉलेज में पढ़ना चाहता है। माता-पिता नहीं हैं। ब्राह्मण है। शहर में उसी के सजातीय सज्‍जन के यहाँ उसके रहने और खाने का प्रबंध...

लोककथा – सुधार (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक जनहित की संस्‍था में कुछ सदस्‍यों ने आवाज उठाई, ‘संस्‍था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्‍था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या...

लोककथा – समझौता (लेखक – हरिशंकर परसाई)

अगर दो साइकिल सचार सड़क पर एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़े तो उनके लिए यह लाजिमी हो जाता है कि वे उठकर सबसे पहले लड़ें, फिर धूल झाड़ें। यह पद्धति इतनी मान्‍यता प्राप्‍त कर...

पत्र – अग्रज के नाम (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

पूज्‍य भाई साहब प्रणाम। झाँसी से लिखे हुए पत्र आपको मिल गये होंगे। उसके सबेरे ही मैं यहाँ बनापुर चतुर्वेदी जी के साथ चला आया। यहाँ अच्‍छी तरह से हूँ। कोई कष्‍ट नहीं। चतुर्वेदी...

पत्र – पत्‍नी के नाम (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

मेरी परम प्‍यारी प्रकाश, कल तुम्‍हारा पत्र प्राप्‍त हुआ। तुमने जो कुछ लिखा है, व‍ह बिल्‍कुल ठीक है। माफी माँगने से अच्‍छा यह है कि मौत हो जाये। तुम विश्‍वास रखो कि मैं बेइज्‍ज्‍ती...

पत्र – बड़ी पुत्री के नाम (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

हरदोई जेल (26 मई 1930 से 15 मार्च 1931 के मध्‍य का कोई समय : संपा.) प्‍यारी कृष्‍णा प्रसन्‍न रहो। अपनी माता से कह देना कि वह तनिक भी न घबरायें। मैं बहुत अच्‍छी...

पत्र – माँ के नाम (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

पूज्‍यनीय माँ, चरणों में प्रणाम। मैं तुम्‍हें कुछ भी सुख न पहुँचा सका। सदा कष्‍ट देता रहा। फिर कष्‍ट दे रहा हूँ। पिता की यह दशा है तो भी मैंने हृदय पर पत्‍थर धर...

निबंध – अदालत के सामने लिखित बयान (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

सरकारी रिपोर्टर ने मेरे व्‍याख्‍यान की जो रिपोर्ट की है वह अपूर्ण, गलत और कहीं-कहीं बिल्‍कुल विकृत है। मेरा मतलब यह नहीं है कि रिपोर्टर ने जान-बूझकर महज इसलिए उसमें वे शब्‍द घुसेड़ दिये...

निबंध – अनुपात की महिमा (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

कितना सुंदर चिन्‍ह, अपने आत्‍मगौरव का! कितनी अनमोल क्‍यारी आत्‍मभिमान को पल्‍लवित करने के लिए! अपनी की हुई भूलों को सुधार लेना, अपने दुराशय से पूरित भावों के लिए सिहार उठना, अपने दुष्‍कृत्‍यों पर...