स्वयं बने गोपाल

व्यंग – खेती (लेखक – हरिशंकर परसाई)

सरकार ने घोषणा की कि हम अधिक अन्न पैदा करेंगे और एक साल में खाद्य में आत्मनिर्भर हो जाएँगे। दूसरे दिन कागज के कारखानों को दस लाख एकड़ कागज का आर्डर दे दिया गया।...

व्यंग – घायल वसंत (लेखक – हरिशंकर परसाई)

कल बसंतोत्सव था। कवि वसंत के आगमन की सूचना पा रहा था – प्रिय, फिर आया मादक वसंत। मैंने सोचा, जिसे वसंत के आने का बोध भी अपनी तरफ से कराना पड़े, उस प्रिय...

व्यंग – जैसे उनके दिन फिरे (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक था राजा। राजा के चार लड़के थे। रानियाँ? रानियाँ तो अनेक थीं, महल में एक ‘पिंजरापोल’ ही खुला था। पर बड़ी रानी ने बाकी रानियों के पुत्रों को जहर देकर मार डाला था।...

व्यंग – ठिठुरता हुआ गणतंत्र (लेखक – हरिशंकर परसाई)

चार बार मैं गणतंत्र-दिवस का जलसा दिल्ली में देख चुका हूँ। पाँचवीं बार देखने का साहस नहीं। आखिर यह क्या बात है कि हर बार जब मैं गणतंत्र-समारोह देखता, तब मौसम बड़ा क्रूर रहता।...

व्यंग – दो नाक वाले लोग (लेखक – हरिशंकर परसाई)

मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ खर्च मत करो। पर वे बुजुर्ग कह रहे थे – आप ठीक कहते हैं, मगर रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी। नाक...

व्यंग – नया साल (लेखक – हरिशंकर परसाई)

साधो, बीता साल गुजर गया और नया साल शुरू हो गया। नए साल के शुरू में शुभकामना देने की परंपरा है। मैं तुम्हें शुभकामना देने में हिचकता हूँ। बात यह है साधो कि कोई...

व्यंग – पुराना खिलाड़ी (लेखक – हरिशंकर परसाई)

सरदारजी जबान से तंदूर को गर्म करते हैं। जबान से बर्तन में गोश्त चलाते हैं। पास बैठे आदमी से भी इतने जोर से बोलते हैं, जैसे किसी सभा में बिना माइक बोल रहे हों।...

व्यंग – पुलिस मंत्री का पुतला (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक राज्य में एक शहर के लोगों पर पुलिस-जुल्म हुआ तो लोगों ने तय किया कि पुलिस-मंत्री का पुतला जलाएँगे। पुतला बड़ा कद्दावर और भयानक चेहरेवाला बनाया गया। पर दफा 144 लग गई और...

व्यंग – पवित्रता का दौरा (लेखक – हरिशंकर परसाई)

सुबह की डाक से चिट्ठी मिली, उसने मुझे इस अहंकार में दिन-भर उड़ाया कि मैं पवित्र आदमी हूँ क्योंकि साहित्य का काम एक पवित्र काम है। दिन-भर मैंने हर मिलनेवाले को तुच्छ समझा। मैं...

व्यंग – पिटने-पिटने में फर्क (लेखक – हरिशंकर परसाई)

(यह आत्म प्रचार नहीं है। प्रचार का भार मेरे विरोधियों ने ले लिया है। मैं बरी हो गया। यह ललित निबंध है।) बहुत लोग कहते हैं – तुम पिटे। शुभ ही हुआ। पर तुम्हारे...

व्यंग – बदचलन (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक बाड़ा था। बाड़े में तेरह किराएदार रहते थे। मकान मालिक चौधरी साहब पास ही एक बँगले में रहते थे। एक नए किराएदार आए। वे डिप्टी कलेक्टर थे। उनके आते ही उनका इतिहास भी...

व्यंग – भगत की गत (लेखक – हरिशंकर परसाई)

उस दिन जब भगतजी की मौत हुई थी, तब हमने कहा था- भगतजी स्वर्गवासी हो गए। पर अभी मुझे मालूम हुआ कि भगतजी, स्वर्गवासी नहीं, नरकवासी हुए हैं। मैं कहूं तो किसी को इस...

व्यंग – भोलाराम का जीव (लेखक – हरिशंकर परसाई)

ऐसा कभी नहीं हुआ था. धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान ‘अलॉट’ करते आ रहे थे. पर ऐसा कभी नहीं हुआ था....

व्यंग – मुंडन (लेखक – हरिशंकर परसाई)

किसी देश की संसद में एक दिन बड़ी हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीतिक समस्या नहीं थी, बल्कि यह था कि एक मंत्री का अचानक मुंडन हो गया था। कल तक उनके सिर...

व्यंग – यस सर (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक काफी अच्छे लेखक थे। वे राजधानी गए। एक समारोह में उनकी मुख्यमंत्री से भेंट हो गई। मुख्यमंत्री से उनका परिचय पहले से था। मुख्यमंत्री ने उनसे कहा – आप मजे में तो हैं।...

व्यंग – वैष्णव की फिसलन (लेखक – हरिशंकर परसाई)

वैष्णव करोड़पति है। भगवान विष्णु का मंदिर। जायदाद लगी है। भगवान सूदखोरी करते हैं। ब्याज से कर्ज देते हैं। वैष्णव दो घंटे भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, फिर गादी-तकिएवाली बैठक में आकर धर्म...