स्वयं बने गोपाल

कहानी – दुखिया (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

पहाड़ी देहात, जंगल के किनारे के गाँव और बरसात का समय! वह भी ऊषाकाल! बड़ा ही मनोरम दृश्य था। रात की वर्षा से आम के वृक्ष तराबोर थे। अभी पत्तों से पानी ढुलक रहा...

कहानी – प्रारब्ध – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

लाला जीवनदास को मृत्युशय्या पर पड़े 6 मास हो गये हैं। अवस्था दिनोंदिन शोचनीय होती जाती है। चिकित्सा पर उन्हें अब जरा भी विश्वास नहीं रहा। केवल प्रारब्ध का ही भरोसा है। कोई हितैषी...

कहानी – घीसू (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

सन्ध्या की कालिमा और निर्जनता में किसी कुएँ पर नगर के बाहर बड़ी प्यारी स्वर-लहरी गूँजने लगती। घीसू को गाने का चसका था, परन्तु जब कोई न सुने। वह अपनी बूटी अपने लिए घोंटता...

कहानी – सुहाग की साड़ी – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

यह कहना भूल है कि दाम्पत्य-सुख के लिए स्त्री-पुरुष के स्वभाव में मेल होना आवश्यक है। श्रीमती गौरा और श्रीमान् कुँवर रतनसिंह में कोई बात न मिलती थी। गौरा उदार थी, रतनसिंह कौड़ी-कौड़ी को...

लेख – सोयी हुई जातियाँ पहले जगेंगी – (लेखक – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)

”न निवसेत् शूद्रराज्ये” मनु का यह कहना बहुत बड़ा अर्थ-गौरव रखता है। शूद्रों के राज्य में रहने से ब्राह्मण-मेधा नष्ट हो जाती है। पर यह यवन और गौरांगों के 800 वर्षों के शासन के...

कहानी – वैर का अंत – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

रामेश्वरराय अपने बड़े भाई के शव को खाट से नीचे उतारते हुए भाई से बोले-तुम्हारे पास कुछ रुपये हों तो लाओ, दाह-क्रिया की फिक्र करें, मैं बिलकुल खाली हाथ हूँ। छोटे भाई का नाम...

कहानी – छोटा जादूगर (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हँसी और विनोद का कलनाद गूँज रहा था। मैं खड़ा था उस छोटे फुहारे के पास, जहाँ एक लड़का चुपचाप शराब पीनेवालों को देख रहा था।...

कहानी – निर्वासन – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

परशुराम- वहीं-वहीं, दालान में ठहरो! मर्यादा- क्यों, क्या मुझमें कुछ छूत लग गयी?   परशुराम- पहले यह बताओ तुम इतने दिनों कहाँ रहीं, किसके साथ रहीं, किस तरह रहीं और फिर यहाँ किसके साथ...

कहानी – तानसेन (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

यह छोटा सा परिवार भी क्या ही सुन्दर है, सुहावने आम और जामुन के वृक्ष चारों ओर से इसे घेरे हुए हैं। दूर से देखने में यहॉँ केवल एक बड़ा-सा वृक्षों का झुरमुट दिखाई...

कहानी – आधार – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सारे गाँव में मथुरा का-सा गठीला जवान न था। कोई बीस बरस की उमर थी। मसें भीग रही थीं। गउएँ चराता, दूध पीता, कसरत करता, कुश्ती लड़ता था और सारे दिन बाँसुरी बजाता हाट...

कहानी – आकाशदीप (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

बन्दी!” ”क्या है? सोने दो।”   ”मुक्त होना चाहते हो?”   ”अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।”   ”फिर अवसर न मिलेगा।”   ”बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत...

कहानी – स्वर्ग की देवी – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

भाग्य की बात! शादी-विवाह में आदमी का क्या अख्तियार! जिससे ईश्वर ने, या उनके नायबों- ब्राह्मणों ने तय कर दी, उससे हो गयी। बाबू भारतदास ने लीला के लिए सुयोग्य वर खोजने में कोई...

कहानी – ममता (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

रोहतास-दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, शोण के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही है। ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था। मन में वेदना, मस्तक में...

कहानी – कौशल – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

पंडित बालकराम शास्त्री की धर्मपत्नी माया को बहुत दिनों से एक हार की लालसा थी और वह सैकड़ों ही बार पंडितजी से उसके लिए आग्रह कर चुकी थी; किंतु पंडितजी हीला-हवाला करते रहते थे।...

कहानी – व्रत-भंग (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

चैत्र-कृष्णाष्टमी का चन्द्रमा अपना उज्ज्वल प्रकाश ‘चन्द्रप्रभा’ के निर्मल जल पर डाल रहा है। गिरि-श्रेणी के तरुवर अपने रंग को छोड़कर धवलित हो रहे हैं; कल-नादिनी समीर के संग धीरे-धीरे बह रही है। एक...

कई रोगों का नाश मुफ्त में करती हैं डाला छठ पर भगवान सूर्य से निकलने वाली दिव्य किरणें

बिहार में जिसे डाला छठ कहते हैं, असल में एक बहुत साइंटिफिक त्यौहार है और इसका महत्व समझना आज के वैज्ञानिकों के लिए मुश्किल काम हैं क्योंकि वे भगवान सूर्य को आज भी एक...