स्वयं बने गोपाल

कहानी – ब्रह्म का स्वांग – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

स्त्री – मैं वास्तव में अभागिन हूँ, नहीं तो क्या मुझे नित्य ऐसे-ऐसे घृणित दृश्य देखने पड़ते ! शोक की बात यह है कि वे मुझे केवल देखने ही नहीं पड़ते, वरन् दुर्भाग्य ने...

कहानी – कलावती की शिक्षा (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

श्यामसुन्दर ने विरक्त होकर कहा-”कला! यह मुझे नहीं अच्छा लगता।” कलावती ने लैम्प की बत्ती कम करते हुए सिर झुकाकर तिरछी चितवन से देखते हुए कहा-”फिर मुझे भी सोने के समय यह रोशनी अच्छी...

कहानी – शिकारी राजकुमार – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मई का महीना और मध्याह्न का समय था। सूर्य की आँखें सामने से हटकर सिर पर जा पहुँची थीं, इसलिए उनमें शील न था। ऐसा विदित होता था मानो पृथ्वी उनके भय से थर-थर...

कहानी – आँधी (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

चंदा के तट पर बहुत-से छतनारे वृक्षों की छाया है, किन्तु मैं प्राय: मुचकुन्द के नीचे ही जाकर टहलता, बैठता और कभी-कभी चाँदनी में ऊँघने भी लगता। वहीं मेरा विश्राम था। वहाँ मेरी एक...

कहानी – बोध – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

पंडित चंद्रधर ने अपर प्राइमरी में मुदर्रिसी तो कर ली थी, किन्तु सदा पछताया करते थे कि कहाँ से इस जंजाल में आ फँसे। यदि किसी अन्य विभाग में नौकर होते, तो अब तक...

कहानी – चक्रवर्ती का स्तंभ (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

बाबा यह कैसे बना? इसको किसने बनाया? इस पर क्या लिखा है?” सरला ने कई सवाल किये। बूढ़ा धर्मरक्षित, भेड़ों के झुण्ड को चरते हुए देख रहा था। हरी टेकरी झारल के किनारे सन्ध्या...

कहानी – गरीब की हाय- (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मुंशी रामसेवक भौंहे चढ़ाए हुए घर से निकले और बोले- ‘इस जीने से तो मरना भला है।’ मृत्यु को प्रायः इस तरह के जितने निमंत्रण दिये जाते हैं, यदि वह सबको स्वीकार करती, तो...

कहानी – मधुआ (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

आज सात दिन हो गये, पीने को कौन कहे-छुआ तक नहीं! आज सातवाँ दिन है, सरकार! तुम झूठे हो। अभी तो तुम्हारे कपड़े से महँक आ रही है।   वह … वह तो कई...

कहानी – खून सफेद- (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

चैत का महीना था, लेकिन वे खलियान, जहाँ अनाज की ढेरियाँ लगी रहती थीं, पशुओं के शरणास्थल बने हुए थे; जहाँ घरों से फाग और बसन्त का अलाप सुनाई पड़ता, वहाँ आज भाग्य का...

कहानी – दासी (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

यह खेल किसको दिखा रहे हो बलराज?-कहते हुए फिरोज़ा ने युवक की कलाई पकड़ ली। युवक की मुठ्ठी में एक भयानक छुरा चमक रहा था। उसने झुँझला कर फिरोज़ा की तरफ देखा। वह खिलखिलाकर...

कहानी – बेटी का धन- (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

बेतवा नदी दो ऊँचे कगारों के बीच इस तरह मुँह छिपाये हुए थी जैसे निर्मल हृदयों में साहस और उत्साह की मद्धम ज्योति छिपी रहती है। इसके एक कगार पर एक छोटा-सा गाँव बसा...

कहानी – उर्वशी (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

विलसत सान्ध्य दिवाकर की किरनैं माला सी। प्रकृति गले में जो खेलति है बनमाला सी।।   तुंग लसैं गिरिशृंग भर्यो कानन तरुगन ते।   जिनके भुज मैं अरुझि पवनहू चलत जतन ते।।   निर्भय...

लेख – सृष्टि – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

(अदन की वाटिका, तीसरे पहर का समय। एक बड़ा सांप अपना सिर फूलों की एक क्यारी में छिपाये हुए और अपने शरीर को एक वृक्ष की शाखाओं में लपेटे हुए पड़ा है। वृक्ष भलीभांति...

कहानी – बभ्रुवाहन (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

प्रथम परिच्छेद मणि-प्रभापूर मणिपुर नगर के प्रान्त में एक उद्यान के द्वार पर प्रतीची दिशा-नायिकानुकूल तरणि के अरुण-किरण की प्रभा पड़ रही है। वासन्तिक सान्ध्य वायु का प्रताप क्रमश: उदय हो रहा है, पूर्व...

कहानी – विस्मृति – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

चित्रकूट के सन्निकट धनगढ़ नामक एक गाँव है। कुछ दिन हुए वहाँ शानसिंह और गुमानसिंह दो भाई रहते थे। ये जाति के ठाकुर (क्षत्रिय) थे। युद्धस्थल में वीरता के कारण उनके पूर्वजों को भूमि...

कहानी – दुखिया (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

पहाड़ी देहात, जंगल के किनारे के गाँव और बरसात का समय! वह भी ऊषाकाल! बड़ा ही मनोरम दृश्य था। रात की वर्षा से आम के वृक्ष तराबोर थे। अभी पत्तों से पानी ढुलक रहा...