Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को

कहानी – सुभागी – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

और लोगों के यहाँ चाहे जो होता हो, तुलसी महतो अपनी लड़की सुभागी को लड़के रामू से जौ-भर भी कम प्यार न करते थे। रामू जवान होकर भी काठ का उल्लू था। सुभागी ग्यारह...

कविताये – तुम हमारे हो – (लेखक – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)

नहीं मालूम क्यों यहाँ आया ठोकरें खाते हु‌ए दिन बीते । उठा तो पर न सँभलने पाया गिरा व रह गया आँसू पीते ।   ताब बेताब हु‌ई हठ भी हटी नाम अभिमान का...

कहानी – तावान – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

छकौड़ीलाल ने दुकान खोली और कपड़े के थानों को निकाल-निकाल रखने लगा कि एक महिला, दो स्वयंसेवकों के साथ उसकी दुकान छेकने आ पहुँची। छकौड़ी के प्राण निकल गये। महिला ने तिरस्कार करके कहा-...

कविताये – प्राप्ति – (लेखक – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)

तुम्हें खोजता था मैं, पा नहीं सका, हवा बन बहीं तुम, जब मैं थका, रुका ।   मुझे भर लिया तुमने गोद में, कितने चुम्बन दिये, मेरे मानव-मनोविनोद में नैसर्गिकता लिये;   सूखे श्रम-सीकर...

कहानी – गिला – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

जीवन का बड़ा भाग इसी घर में गुजर गया, पर कभी आराम न नसीब हुआ। मेरे पति संसार की दृष्टि में बड़े सज्जन, बड़े शिष्ट, बड़े उदार, बड़े सौम्य होंगे; लेकिन जिस पर गुजरती...

कहानी – सयानी बुआ (लेखिका – मन्नू भंडारी)

सब पर मानो बुआजी का व्यक्तित्व हावी है। सारा काम वहाँ इतनी व्यवस्था से होता जैसे सब मशीनें हों, जो कायदे में बँधीं, बिना रुकावट अपना काम किए चली जा रही हैं। ठीक पाँच...

उपन्यास – अलंकार-1 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

उन दिनों नील नदी के तट पर बहुतसे तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झोंपड़ियां थोड़ीथोड़ी दूर पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इन्हीं में एकान्तवास करते थे और जरूरत...

उपन्यास – अलंकार-2 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

थायस ने स्वाधीन, लेकिन निर्धन और मूर्तिपूजक मातापिता के घर जन्म लिया था। जब वह बहुत छोटीसी लड़की थी तो उसका बाप एक सराय का भटियारा था। उस सराय में परायः मल्लाह बहुत आते...

उपन्यास – अलंकार-3 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

जब थायस ने पापनाशी के साथ भोजशाला में पदार्पण किया तो मेहमान लोग पहले ही से आ चुके थे। वह गद्देदार कुरसियों पर तकिया लगाये, एक अर्द्धचन्द्राकार मेज के सामने बैठे हुए थे। मेज...

उपन्यास – अलंकार – 4 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

नगर में सूर्य का परकाश फैल चुका था। गलियां अभी खाली पड़ी हुई थीं। गली के दोनों तरफ सिकन्दर की कबर तक भवनों के ऊंचेऊंचे सतून दिखाई देते थे। गली के संगीन फर्श पर...

उपन्यास – अलंकार – 5 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

पापनाशी ने एक नौका पर बैठकर, जो सिरापियन के धमार्श्रम के लिए खाद्यपदार्थ लिये जा रही थी, अपनी यात्रा समाप्त की और निज स्थान को लौट आया। जब वह किश्ती पर से उतरा तो...

उपन्यास – कर्मभूमि – 1-1 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

हमारे स्कूलों और कॉलेजों में जिस तत्परता से फीस वसूल की जाती है, शायद मालगुजारी भी उतनी सख्ती से नहीं वसूल की जाती। महीने में एक दिन नियत कर दिया जाता है। उस दिन...

उपन्यास – कर्मभूमि – 1-2 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

ग्यारह सारे शहर में कल के लिए दोनों तरह की तैयारियां होने लगीं-हाय-हाय की भी और वाह-वाह की भी। काली झंडियां भी बनीं और फलों की डालियां भी जमा की गईं, पर आशावादी कम...

उपन्यास – कर्मभूमि – 2- (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

उत्तर की पर्वत-श्रेणियों के बीच एक छोटा-सा रमणीक गांव है। सामने गंगा किसी बालिका की भांति हंसती, उछलती, नाचती, गाती, दौड़ती चली जाती है। पीछे ऊंचा पहाड़ किसी वृध्द योगी की भांति जटा बढ़ाए...

उपन्यास – कर्मभूमि – 3 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

लाला समरकान्त की जिंदगी के सारे मंसूबे धूल में मिल गए। उन्होंने कल्पना की थी कि जीवन-संध्‍या में अपना सर्वस्व बेटे को सौंपकर और बेटी का विवाह करके किसी एकांत में बैठकर भगवत्-भजन में...

उपन्यास – कर्मभूमि – 4 – 1 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

अमरकान्त को ज्योंही मालूम हुआ कि सलीम यहां का अफसर होकर आया है, वह उससे मिलने चला। समझा, खूब गप-शप होगी। यह खयाल तो आया, कहीं उसमें अफसरी की बू न आ गई हो...