बाप धृतराष्ट्र तो सन्तान कैसे ना हो दुर्योधन
संसार में भांति भांति के स्वभाव वाले लोग मिल जाते हैं उन्हीं में से कई लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी सन्तानों से इतना अधिक प्यार करते हैं की उन्हें अपने सन्तान के खिलाफ कुछ भी सुनना पसंद नहीं आता है भले ही सन्तान ने दुनिया का हर कुकर्म प्रत्यक्ष या चोरी छुपे कर रखा हो !
ऐसे पिता मुख्यतः वे ही लोग होते हैं जिन्होंने जीवन में बिना किसी विशेष मेहनत व बिना ईमानदारी की कमाई की रोटी खायी होती है क्योंकि हर वो आदमी जिसने जिन्दगी में अपनी कठिन मेहनत से पैसा कमाया होता है उसे पता होता है कि परिश्रम से पैसा कमाने के लिए इस दुनिया में कितना ज्यादा सहना होता है और अगर उनके लड़के के व्यवहार में उचित सहन शक्ति नहीं होगी तो वो समाज में असफल आदमी साबित होगा !
बेटों की हर बात में माता पिता द्वारा सपोर्ट (समर्थन) करने से लड़कों में धैर्य की कमी हो जाती है और उनका स्वभाव भी चिड़चिड़ा व क्रोधी हो जाता है ! ज्यादातर देखा गया है कि ऐसे सयंम रहित लड़के अपने जीवन में ज्यादा तरक्की नहीं कर पाते और छोटा मोटा कैरियर अपना कर अपनी जिंदगी का गुजर बसर करते हैं !
तथा इन लड़कों के अन्दर अगर ज्यादा पैसा कमाने की इच्छा जोर मारे तो ये गलत रास्ता भी अपना सकते हैं !
कभी किन्ही परिस्थितियों में इन लड़को की एक बड़ी दुविधा यह भी हो सकती है कि इन लड़को को अपने माता पिता से सिवाय जबानी सपोर्ट के अलावा कुछ और मदद (जैसे आर्थिक मदद) नहीं मिल पाती ! ऐसे में ये लड़के फ्रस्ट्रेशन (निराशा) का शिकार होकर बार बार अपने अकर्मण्य पिता से झगड़ा करते हैं जिससे घर का माहौल विषाक्त हो जाता है !
तो अन्ततः इन जल्दबाज लडकों के पास बिना किसी अपराध को किये, जल्दी पैसा कमाने के कुछ आसान तरीकों में से होता है कि या तो वो किसी पैतृक संपत्ति को बेच दें और या तो किसी परिचित सफल रिश्तेदार या मित्र से जुड़कर उससे कर्ज मांगे ! बार बार उधार मांगने का यह सिलसिला निमंत्रण देता है भविष्य की नयी अपमान जनक मुसीबतों को, और इन मुसीबतों को बहुत लम्बे समय तक दबाया या छुपाया नहीं जा सकता है !
इन दोनों तरीकों का भविष्य लम्बा नहीं होता क्योंकि अगर लड़के के स्वभाव में सुधार नहीं है तो कितनी भी पैतृक संपत्ति बेची जाय पर वो अन्ततः रहेगा कंगाल ही (भले ही वो दुनिया की नजर में अपने आप को भरसक सफल व समृद्ध दिखाने का बार बार नाटक करे) !
जिन्दगी भर की इन सारी जलालत की जड़ है यही परम्परा जो पिता से पुत्र में ट्रांसफर होती है कि आज इस को बेवकूफ बना कर पैसा उधार मांगो, कल किसी दूसरे को बेवकूफ बना कर पैसा उधार मांगो तथा जैसे पैसा हाथ में आये, मौज मस्ती पार्टी फंक्शन आदि करके जिन्दगी एन्जॉय करो ! इसी को बोलते हैं “कर्जा लेकर घी पीना” !
लड़के का पिता अपने लड़कों के परवरिश के दौरान उन्हें अच्छे संस्कार देने की बजाय, खुद कई सालों तक सारे आदर्शों को ताक पर रखकर अधिकाँश समय गप शप, अड्डेबाजी, व्यर्थ की राजनीति बतियाना आदि करके अपना जीवन व्यर्थ करे साथ ही अपने लड़कों की गलतियों पर डाटने की बजाय हमेशा उनका अँधा समर्थन भी करें एवं माता भी कलियुगी स्वभाव की हो मतलब दिन भर सिर्फ किसी ना किसी की चुगली में व्यस्त रहकर खुद घोर असंतुष्ट रहे तथा अपने पति और बच्चों को भी असंतुष्ट करे, तो ऐसे माता पिता का कॉम्बिनेशन बहुत खतरनाक होता है क्योंकि इनके लड़के बड़े होकर कौन से अदभुत प्राणी बनेंगे ये तो उनके माँ बाप भी अन्दाजा नहीं लगा पाते !
निश्चित तौर पर इनके लड़के भी अपने माँ बाप से मिले विरासत में संस्कारों की वजह से जिन्दगी भर अपने पर विश्वास करने वालों के घर, संपत्ति या पैसे पर निगाह लगाए रहते हैं की कैसे उसका अधिक से अधिक अपने मतलब के लिए फायदा उठाया जा सके !
ऐसे लोगों की ऐसी असंतुष्ट जिंदगी का सबसे बड़ा कारण है उनकी अकर्मण्यता, जिसकी वजह से, ना कभी वो अपने बेटों के मन में अपने लिए सच्चा सम्मान पैदा कर पाते हैं और ना ही उनके सगे भाई भी उनके लिए बलराम या लक्ष्मण जैसे घनिष्ठ साबित हो पाते हैं !
एक साधू भी दूसरों के अनाज या पैसे से पेट भरता है लेकिन बदले में वो पूरी दुनिया को इतना बड़ा गिफ्ट देता है जिसकी कोई कीमती नहीं हैं क्योंकि श्रीमद् भागवत पुराण में लिखा है की जब कोई भक्त, साधू, योगी अपनी साधना में एकदम तल्लीन हो जाता है तो उसके शरीर से निकलने वाली प्रचण्ड सात्विक किरणें पूरे संसार में व्याप्त पाप को हरने लगती हैं
तो ऐसे माता पिता के ऊपर भी अगर उनके पूर्व के किसी अच्छे कर्म की वजह से ईश्वरीय कृपा हो जाय तो उनके अन्दर भी आत्म मंथन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है ! आत्म मन्थन से पैदा होता है भयंकर पश्चाताप तथा इस प्रायश्चित के आंसू से ही उनके पाप जल कर भस्म होते हैं !
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